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इस गांव में मुस्लिम समाज के लोग बनाते हैं हिंदुओं के 'सुहाग का प्रतीक' - पश्चिम चंपारण न्यूज

सिन्होरा कारीगर ने बताया कि इस कारोबार से वे अपना गुजारा करने भर कमा लेते हैं. खासकर यूपी और बिहार में सिन्होरा का अधिक प्रचलन है. इससे कई जिले के व्यापारी यहां से सिन्होरा खरीद कर ले जाते हैं और बाजार में बेचते हैं.

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पुश्तों से हो रहा सिन्होरा बनाने का काम
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Published : Jan 11, 2020, 11:58 AM IST

Updated : Jan 11, 2020, 12:05 PM IST

पश्चिम चंपारण: हिंदू धर्म में सिन्होरा को सुहाग का प्रतीक माना जाता है, ऐसी मान्यता है कि सिन्दूरदान के बाद लड़कियां इसे अपने साथ ससुराल लेकर जाती हैं. बेतिया के चनपटिया प्रखंड क्षेत्र के तुनिया विशुनपुर गांव में हर घर में सिन्होरा बनाने का काम किया जाता है. जिसमें ज्यादातर मुस्लिम समुदाय के लोग शामिल हैं.

अन्य राज्यों में भी होता है निर्यात
लगभग 2 हजार की आबादी वाले इस गांव के लोग सिन्होरा बनाने का काम करके अपनी जीविका चलाते हैं. गांव का कोई भी नौजवान या बुजुर्ग काम के लिए पलायन नहीं करता है. यहां का बना सिन्होरा बिहार के साथ अन्य दूसरे राज्यों में भी जाता है.

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सिन्होरा बनाता कारीगर

कई पुश्तों से चली आ रही परंपरा
भले ही सरकार ने राज्य में किसी उद्योग को स्थापित नहीं किया हो, लेकिन बेतिया का ये गांव अपने आप में लघु उद्योग का एक बड़ा केंद्र बना हुआ है. सालों से चली आ रही परंपरा को आज भी गांव के नौजवान और बड़े बुजुर्ग भली-भांति निभा रहे हैं.

200 घरों में होता है सिन्होरा बनाने का काम
सिन्होरा कारीगर ने बताया कि इस कारोबार से वे अपना गुजारा करने भर कमा लेते हैं. खासकर यूपी और बिहार में सिन्होरा का अधिक प्रचलन है. इससे कई जिले के व्यापारी यहां से सिन्होरा खरीद कर ले जाते हैं और बाजार में बेचते हैं. उन्होंने बताया कि गांव के 200 घर के लोग सिन्होरा बनाने का काम करते हैं.

पुश्तों से हो रहा सिन्होरा बनाने का काम

नहीं मिलता सरकारी योजनाओं का लाभ
केंद्र और राज्य सरकार लघु उद्योग को बढ़ावा देने के लिए कई तरह की योजनाएं चला रही हैं. लेकिन, सरकार की सभी योजनाएं यहां पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देती है. ऐसे में इन कारीगरों के कारोबार को सरकारी मदद की जरूरत है, जिससे इसे और बढ़ावा मिल पाए.

पश्चिम चंपारण: हिंदू धर्म में सिन्होरा को सुहाग का प्रतीक माना जाता है, ऐसी मान्यता है कि सिन्दूरदान के बाद लड़कियां इसे अपने साथ ससुराल लेकर जाती हैं. बेतिया के चनपटिया प्रखंड क्षेत्र के तुनिया विशुनपुर गांव में हर घर में सिन्होरा बनाने का काम किया जाता है. जिसमें ज्यादातर मुस्लिम समुदाय के लोग शामिल हैं.

अन्य राज्यों में भी होता है निर्यात
लगभग 2 हजार की आबादी वाले इस गांव के लोग सिन्होरा बनाने का काम करके अपनी जीविका चलाते हैं. गांव का कोई भी नौजवान या बुजुर्ग काम के लिए पलायन नहीं करता है. यहां का बना सिन्होरा बिहार के साथ अन्य दूसरे राज्यों में भी जाता है.

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सिन्होरा बनाता कारीगर

कई पुश्तों से चली आ रही परंपरा
भले ही सरकार ने राज्य में किसी उद्योग को स्थापित नहीं किया हो, लेकिन बेतिया का ये गांव अपने आप में लघु उद्योग का एक बड़ा केंद्र बना हुआ है. सालों से चली आ रही परंपरा को आज भी गांव के नौजवान और बड़े बुजुर्ग भली-भांति निभा रहे हैं.

200 घरों में होता है सिन्होरा बनाने का काम
सिन्होरा कारीगर ने बताया कि इस कारोबार से वे अपना गुजारा करने भर कमा लेते हैं. खासकर यूपी और बिहार में सिन्होरा का अधिक प्रचलन है. इससे कई जिले के व्यापारी यहां से सिन्होरा खरीद कर ले जाते हैं और बाजार में बेचते हैं. उन्होंने बताया कि गांव के 200 घर के लोग सिन्होरा बनाने का काम करते हैं.

पुश्तों से हो रहा सिन्होरा बनाने का काम

नहीं मिलता सरकारी योजनाओं का लाभ
केंद्र और राज्य सरकार लघु उद्योग को बढ़ावा देने के लिए कई तरह की योजनाएं चला रही हैं. लेकिन, सरकार की सभी योजनाएं यहां पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देती है. ऐसे में इन कारीगरों के कारोबार को सरकारी मदद की जरूरत है, जिससे इसे और बढ़ावा मिल पाए.

Intro:एंकर : देश में भले ही आजकल हिंदू व मुस्लिम समुदाय के लोगों के बीच दूरियां बढ़ गई हो लेकिन बेतिया में एक गांव ऐसा भी है जो हिंदू मुस्लिम एकता की मिसाल कायम कर रहा है, आलम यह है कि इस गांव के सभी घरों में सिन्होरा बनाने का काम किया जाता है, जिसमें अधिक संख्या मुस्लिम समुदाय के लोगों की है, इतना ही नहीं इस गांव के लोग रोजगार के लिए कहीं पलायन नहीं करते बल्कि वर्षों से अपने गांव में ही रहकर अपना जीविकोपार्जन कर रहे हैं। एक रिपोर्ट---


Body:हिंदू धर्म में सिन्होरा को सुहाग का प्रतीक माना जाता है, ऐसी मान्यता है कि शादी से पहले बाजार से सिन्होरा को खरीदा जाता है जिसे लड़कियां अपने साथ ससुराल लेकर जाती हैं, बेतिया के चनपटिया प्रखंड क्षेत्र का तुनिया विशुनपुर गांव संप्रदायिक सौहार्द के साथ साथ आत्मनिर्भरता की एक मिसाल है, लगभग 2 हजार की आबादी वाले इस गांव के हर घर में सिन्होरा बनाने का काम किया जाता है, जिससे यहां के लोग अपनी जीविका चलाते हैं, काम के लिए गांव का कोई भी नौजवान या बुजुर्ग पलायन नहीं करता, और तो और यहां का बना सिन्होरा बिहार के साथ-साथ अन्य दूसरे राज्यों में भी जाता है, गांव के लोगों की माने तो यह काम सदियों से होता आ रहा है और पुरखों की दी गई विरासत आज भी गांव के लोग संभाल कर रखे हुए हैं।

बाइट- मो. मंजूर अली, सिन्होरा कारीगर
बाइट- चंदन कुमार, ग्रामीण

भले ही सरकार ने राज्य में किसी उद्योग को स्थापित नहीं किया हो लेकिन बेतिया का यह गांव अपने आप में लघु उद्योग का एक बड़ा केंद्र बना हुआ है, वर्षों से चली आ रही परंपरा को आज भी गांव के नौजवान व बड़े बुजुर्ग भली-भांति निभा रहे हैं, बल्कि नई पीढ़ी के युवाओं को रोजी-रोटी के लिए गांव से बाहर जाने भी नहीं देते, गांव के लोगों की माने तो इस कारोबार से गांव के हर घर के लोग अपना गुजारा करने भर कमा लेते हैं, खासकर बिहार व यूपी के राज्यों में सिन्होरा का प्रचलन अधिक है, जिसके कारण कई जिले के व्यापारी यहां से सिन्होरा खरीद कर ले जाते हैं और बाजार में बेचते हैं, इस गांव के 200 घर के लोग सिन्होरा बनाने का काम करते हैं ।

बाइट- मो. वाल मियां, सिन्होरा कारीगर
बाइट- ज्वाला गिरी ,कारोबार


Conclusion:बात दो चुटकी सिंदूर की हो या फिर सिंदूर रखे जाने वाले पात्र सिन्होरा कि, किसी भी विवाहिता के लिए सिन्होरा अनमोल होता है । केंद्र और राज्य सरकार लघु उद्योग को बढ़ावा देने के लिए कई तरह की योजनाएं चला रही हैं लेकिन सरकार की सारी योजनाएं यहां पहुंचने से पहले दम तोड़ देती है, ऐसे में जरूरी है कि सरकार राज्य के इन छोटे छोटे कारोबार को बढ़ावा दें ताकि परंपरा के साथ-साथ नौकरी की तलाश में दूसरे राज्यों की ओर रुख करने वाले युवाओं का पलायन रुक सके और लोग आत्मनिर्भर बन सकें।

Last Updated : Jan 11, 2020, 12:05 PM IST
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