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ठंडे पानी में पक कर तैयार हो जाता है ये मैजिक राइस, बिहार में पहली बार हुई खेती - ब्लैक राइस

बिहार के पश्चिमी चंपारण में खास किस्म के चावल की खेती शुरू हुई है. इसको पकाने में ईंधन की जरूरत नहीं पड़ती है. केवल ठंडे पानी में रख देने से ही यह चावल बनकर तैयार हो जाता है.

मैजिक चावल के खेत
मैजिक चावल के खेत
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Published : Aug 18, 2020, 3:49 PM IST

Updated : Sep 19, 2020, 11:37 AM IST

बेतिया(बगहा): जिले में इन दिनों एक खास किस्म के चावल की खेती की जा रही है. इसे लोग 'मैजिक चावल' कह रहे हैं. मैजिक राइस लोगों में चर्चा का विषय बना हुआ है. क्योंकि इसे पकाने के लिए गरम पानी की जरूरत नहीं पड़ती है. इसकी खासियत यह है कि सामान्य पानी में डालने के आधे घंटे बाद ही यह भात बन जाता है.

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ठंडे पानी में पक कर तैयार चावल

बगहा में इस मौजिक राइस को लोग नमक, गुड़, अचार, दही, सब्जी के साथ खाते हैं. बिहार में इसकी खेती सफलतापूर्वक होने के बाद अब वैज्ञानिक इस चावल की प्रजाति पर शोध कर रहे हैं ताकि इसके खेती को बढ़ावा दिया जा सके. किसान इसकी पैदावर करके अच्छा और ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमा सके.

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किसान ने दी जानकारी

खुद पक जाता है यह चावल
यूं तो चावल अधिकांश लोगों का प्रिय भोजन है. इसकी कई किस्में हैं. बासमती राइस काफी लोगों का पसंदीदा चावल है. लेकिन हाल के दिनों में ब्लैक राइस भी अपने एंटीओक्सीडेन्ट गुणों के कारण खूब प्रसिद्ध हुआ है. बिहार में इसकी खेती बड़े पैमाने पर हो रही है. इसी बीच एक और खास किस्म के चावल की खेती बिहार के पश्चिमी चंपारण में शुरू हुई है. जिसका नाम है 'मैजिक चावल'. इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसे पारम्परिक तरीके से नहीं बनाना पड़ता है यानी इसको पकाने में ईंधन की जरूरत नहीं पड़ती है.

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मैजिक चावल के खेत

बिना ईंधन के बन रहा चावल
रामनगर के हरपुर गांव निवासी विजय गिरी और अवधेश सिंह जैसे किसानों ने इस वर्ष पहली बार बिहार में इस मैजिक चावल की खेती की है. किसान विजय गिरी का कहना है कि जिनलोगों को खाना पकाना झंझट का काम लगता है, उसके लिए यह इंस्टेंट राइस कमाल की किस्म है. क्योंकि इसे बिना ईंधन का उपयोग किए ठंढे पानी मे आधे घंटे रख देने पर यह पक जाता है. इसे गुड़, अचार, पका केला, नमक या किसी भी सब्जी के साथ साधारण तरीके से खाया जा सकता है. विजय गिरी बताते हैं कि यह चावल दुर्गम स्थलों पर रहने वाले सैनिकों और आपदा के समय बिना ईंधन के बनाना हो तो वरदान साबित हो सकता है.

कृषि वैज्ञानिक कर रहे हैं रिसर्च
मैजिक राइस की खेती मूलतः असम में ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे माजुली द्वीप पर की जाती है. वहां से इस प्रजाति की खेती पश्चिम बंगाल में शुरू की गई. जिसको वहां की सरकार ने काफी बढ़ावा दिया. वहीं से चम्पारण के किसानों ने किसान मेला से इसका बीज लाया और इसकी खेती शुरू की. कृषि समन्वयक बीएन पांडेय बताते हैं कि अब कृषि वैज्ञानिकों ने इस प्रजाति पर शोध करना शुरू किया है ताकि इसकी खेती को बढ़ावा दिया जा सके.

चमत्कारी गुणों से भरपूर है मैजिक राइस
बता दें कि इस मैजिक चावल की खेती जैविक विधि से की जाती है. इसमें 150 दिनों में धान पककर तैयार हो जाता है. बताया जाता है कि आमतौर पर अन्य चावलों में 20 से 25 प्रतिशत अमायलोज पाया जाता है जबकि इसमें सिर्फ 4 से 5 प्रतिशत ही. यही वजह है कि इसमे कार्बोहाइड्रेट और वसा की मात्रा कम होती है.यह जल्दी पचता है और जिससे मोटापा नहीं बढ़ता. साथ ही पकाने के लिए ईंधन की जरूरत नहीं पड़ती तो प्रदूषण का खतरा भी कम रहता है.

बेतिया(बगहा): जिले में इन दिनों एक खास किस्म के चावल की खेती की जा रही है. इसे लोग 'मैजिक चावल' कह रहे हैं. मैजिक राइस लोगों में चर्चा का विषय बना हुआ है. क्योंकि इसे पकाने के लिए गरम पानी की जरूरत नहीं पड़ती है. इसकी खासियत यह है कि सामान्य पानी में डालने के आधे घंटे बाद ही यह भात बन जाता है.

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ठंडे पानी में पक कर तैयार चावल

बगहा में इस मौजिक राइस को लोग नमक, गुड़, अचार, दही, सब्जी के साथ खाते हैं. बिहार में इसकी खेती सफलतापूर्वक होने के बाद अब वैज्ञानिक इस चावल की प्रजाति पर शोध कर रहे हैं ताकि इसके खेती को बढ़ावा दिया जा सके. किसान इसकी पैदावर करके अच्छा और ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमा सके.

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किसान ने दी जानकारी

खुद पक जाता है यह चावल
यूं तो चावल अधिकांश लोगों का प्रिय भोजन है. इसकी कई किस्में हैं. बासमती राइस काफी लोगों का पसंदीदा चावल है. लेकिन हाल के दिनों में ब्लैक राइस भी अपने एंटीओक्सीडेन्ट गुणों के कारण खूब प्रसिद्ध हुआ है. बिहार में इसकी खेती बड़े पैमाने पर हो रही है. इसी बीच एक और खास किस्म के चावल की खेती बिहार के पश्चिमी चंपारण में शुरू हुई है. जिसका नाम है 'मैजिक चावल'. इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसे पारम्परिक तरीके से नहीं बनाना पड़ता है यानी इसको पकाने में ईंधन की जरूरत नहीं पड़ती है.

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मैजिक चावल के खेत

बिना ईंधन के बन रहा चावल
रामनगर के हरपुर गांव निवासी विजय गिरी और अवधेश सिंह जैसे किसानों ने इस वर्ष पहली बार बिहार में इस मैजिक चावल की खेती की है. किसान विजय गिरी का कहना है कि जिनलोगों को खाना पकाना झंझट का काम लगता है, उसके लिए यह इंस्टेंट राइस कमाल की किस्म है. क्योंकि इसे बिना ईंधन का उपयोग किए ठंढे पानी मे आधे घंटे रख देने पर यह पक जाता है. इसे गुड़, अचार, पका केला, नमक या किसी भी सब्जी के साथ साधारण तरीके से खाया जा सकता है. विजय गिरी बताते हैं कि यह चावल दुर्गम स्थलों पर रहने वाले सैनिकों और आपदा के समय बिना ईंधन के बनाना हो तो वरदान साबित हो सकता है.

कृषि वैज्ञानिक कर रहे हैं रिसर्च
मैजिक राइस की खेती मूलतः असम में ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे माजुली द्वीप पर की जाती है. वहां से इस प्रजाति की खेती पश्चिम बंगाल में शुरू की गई. जिसको वहां की सरकार ने काफी बढ़ावा दिया. वहीं से चम्पारण के किसानों ने किसान मेला से इसका बीज लाया और इसकी खेती शुरू की. कृषि समन्वयक बीएन पांडेय बताते हैं कि अब कृषि वैज्ञानिकों ने इस प्रजाति पर शोध करना शुरू किया है ताकि इसकी खेती को बढ़ावा दिया जा सके.

चमत्कारी गुणों से भरपूर है मैजिक राइस
बता दें कि इस मैजिक चावल की खेती जैविक विधि से की जाती है. इसमें 150 दिनों में धान पककर तैयार हो जाता है. बताया जाता है कि आमतौर पर अन्य चावलों में 20 से 25 प्रतिशत अमायलोज पाया जाता है जबकि इसमें सिर्फ 4 से 5 प्रतिशत ही. यही वजह है कि इसमे कार्बोहाइड्रेट और वसा की मात्रा कम होती है.यह जल्दी पचता है और जिससे मोटापा नहीं बढ़ता. साथ ही पकाने के लिए ईंधन की जरूरत नहीं पड़ती तो प्रदूषण का खतरा भी कम रहता है.

Last Updated : Sep 19, 2020, 11:37 AM IST
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