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46 साल बाद शरणार्थियों को आस, CAA आने के बाद अब मिल जाएगा पुनर्वास

साल 1974 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी इन लोगों को भारत लेकर आई थी कि इनको खेती और रहने के लिए जमीन दी जाएगी. लेकिन यह आज भी रिफ्यूजी कैंप में रहने को मजबूर हैं. इन्हें आज तक पुनर्वास की सुविधा नहीं मिली, लेकिन सीएए आने के बाद इन शरणार्थियों की उम्मीद जगी है कि भारत की मोदी सरकार इनके लिए अब कुछ करेगी.

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शरणार्थियों को नहीं मिली पुनर्वास की सुविधा
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Published : Jan 28, 2020, 7:42 AM IST

Updated : Jan 28, 2020, 7:50 AM IST

बेतिया: 1974 में इंदिरा गांधी सरकार के समय भारत आए शरणार्थी आज बेतिया जिले में गरीबी की जिंदगी जीने को मजबूर है. 46 साल बाद भी इन शरणार्थियों को रिफ्यूजी कैंप में अपनी जिंदगी गुजारनी पड़ रही है. आज तक इन्हें पुनर्वास की सुविधा भी नहीं मिली है, लेकिन सीएए आने के बाद इन शरणार्थियों में एक उम्मीद जगी है कि मोदी सरकार इनके लिए कुछ करेंगी.

मजदूरी कर गुजार रहे जिंदगी
बेतिया के वार्ड नंबर 2 हजारी कैंप में रहने वाले यह भारत लाए गए शरणार्थी हैं. जो कभी सैकड़ों एकड़ जमीन के मालिक हुआ करते थे. आज वह जमीन के एक टुकड़े के लिए तरस रहे हैं. तो वहीं कुछ परिवार रिक्शा चलाकर तो कुछ होटलों में मजदूरी कर अपनी जिंदगी गुजारने को मजबूर है. अपनी बेहतर भविष्य की आस में करीब 24 परिवार पिछले 46 सालों से रिफ्यूजी कैंप में अपनी जिंदगी बिता रहे हैं.

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24 परिवारों को नहीं मिला पुनर्वास

सीएए आने से जगी उम्मीद
साल 1974 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इन लोगों को भारत लेकर आई थी कि इनको खेती और रहने के लिए जमीन दी जाएगी. लेकिन यह आज भी रिफ्यूजी कैंप में रहने को मजबूर है. इन्हें आज तक पुनर्वास की सुविधा नहीं मिली, लेकिन सीएए आने के बाद इन शरणार्थियों की उम्मीद जगी है कि भारत की मोदी सरकार इनके लिए अब कुछ करेगी. वहीं, कुछ शरणार्थियों का कहना है कि अगर सरकार हमारे लिए कुछ नहीं करती है तो हमें वापस हमारे देश भेज दे.

देखें रिपोर्ट

बच्चों को स्कूल में नहीं मिल पा रहा दाखिला
24 जून 1974 में वतन लौटने के बाद सरकार ने इन्हें जमीन का पर्चा भी दिया. लेकिन वह जमीन कहां है आज तक इन शरणार्थियों को पता नहीं चला. नई पीढ़ी को सबसे ज्यादा परेशानी हो रही है उनका कहना है कि जमीन नहीं होने के कारण उन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ भी नहीं मिल पा रहा है. न ही बच्चों को अच्छे स्कूल में दाखिला मिल पा रहा है. लेकिन सीएए आने के बाद इन शरणार्थियों में एक उम्मीद जगी है कि सीएए लागू होने से इन्हें फायदा मिलेगा.

बेतिया: 1974 में इंदिरा गांधी सरकार के समय भारत आए शरणार्थी आज बेतिया जिले में गरीबी की जिंदगी जीने को मजबूर है. 46 साल बाद भी इन शरणार्थियों को रिफ्यूजी कैंप में अपनी जिंदगी गुजारनी पड़ रही है. आज तक इन्हें पुनर्वास की सुविधा भी नहीं मिली है, लेकिन सीएए आने के बाद इन शरणार्थियों में एक उम्मीद जगी है कि मोदी सरकार इनके लिए कुछ करेंगी.

मजदूरी कर गुजार रहे जिंदगी
बेतिया के वार्ड नंबर 2 हजारी कैंप में रहने वाले यह भारत लाए गए शरणार्थी हैं. जो कभी सैकड़ों एकड़ जमीन के मालिक हुआ करते थे. आज वह जमीन के एक टुकड़े के लिए तरस रहे हैं. तो वहीं कुछ परिवार रिक्शा चलाकर तो कुछ होटलों में मजदूरी कर अपनी जिंदगी गुजारने को मजबूर है. अपनी बेहतर भविष्य की आस में करीब 24 परिवार पिछले 46 सालों से रिफ्यूजी कैंप में अपनी जिंदगी बिता रहे हैं.

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24 परिवारों को नहीं मिला पुनर्वास

सीएए आने से जगी उम्मीद
साल 1974 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इन लोगों को भारत लेकर आई थी कि इनको खेती और रहने के लिए जमीन दी जाएगी. लेकिन यह आज भी रिफ्यूजी कैंप में रहने को मजबूर है. इन्हें आज तक पुनर्वास की सुविधा नहीं मिली, लेकिन सीएए आने के बाद इन शरणार्थियों की उम्मीद जगी है कि भारत की मोदी सरकार इनके लिए अब कुछ करेगी. वहीं, कुछ शरणार्थियों का कहना है कि अगर सरकार हमारे लिए कुछ नहीं करती है तो हमें वापस हमारे देश भेज दे.

देखें रिपोर्ट

बच्चों को स्कूल में नहीं मिल पा रहा दाखिला
24 जून 1974 में वतन लौटने के बाद सरकार ने इन्हें जमीन का पर्चा भी दिया. लेकिन वह जमीन कहां है आज तक इन शरणार्थियों को पता नहीं चला. नई पीढ़ी को सबसे ज्यादा परेशानी हो रही है उनका कहना है कि जमीन नहीं होने के कारण उन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ भी नहीं मिल पा रहा है. न ही बच्चों को अच्छे स्कूल में दाखिला मिल पा रहा है. लेकिन सीएए आने के बाद इन शरणार्थियों में एक उम्मीद जगी है कि सीएए लागू होने से इन्हें फायदा मिलेगा.

Intro:एंकर: 1974 में इंदिरा गांधी सरकार के समय वर्मा से भारत आए शरणार्थी आज बेतिया में भिखारी की जिंदगी जीने को मजबूर है, आलम यह है कि 46 साल बाद भी यह शरणार्थी सरकारी उदासीनता का दंश झेल रहे हैं, लेकिन CAA कानून आने के बाद इन शरणार्थियों में एक उम्मीद जगी है कि मोदी सरकार इनके लिए कुछ करेगी।


Body:बेतिया के वार्ड नंबर 2 हजारी कैंप में रहने वाले यह वर्मा देश से भारत लाए गए शरणार्थी हैं जो कभी सैकड़ों एकड़ जमीन के मालिक हुआ करते थे आज वह जमीन के एक अदद टुकड़े के लिए तरस रहे हैं, कुछ परिवार रिक्शा चलाकर तो कुछ होटलों में मजदूरी कर अपनी जिंदगी गुजारने को मजबूर है, अपनी बेहतर भविष्य की आस में करीब 24 परिवार पिछले 46 सालों से रिफ्यूजी कैंप में अपनी जिंदगी बिता रहे हैं, साल 1974 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इन लोगों को वर्मा से भारत लेकर आई थी कि इनको खेती और रहने के लिए जमीन दी जाएगी लेकिन यह आज भी रिफ्यूजी कैंप में रहने को मजबूर है,
इन्हें आज तक पुनर्वास की सुविधा नहीं मिली, लेकिन सीएए कानून आने के बाद इन शरणार्थियों की उम्मीद जगी है कि भारत की मोदी सरकार इनके लिए अब कुछ करेगी, वहीं कुछ शरणार्थियों का कहना है कि अगर सरकार हमारे लिए कुछ नहीं करती है तो हमें वापस हमारे देश वर्मा भेज दे।

बाइट- कलावती देवी, शरणार्थी

बाइट- फुलझरिया देवी, शरणार्थी


Conclusion:24 जून 1974 में वतन लौटने के बाद सरकार ने इन्हें जमीन का पर्चा भी दिया लेकिन वह जमीन कहां है आज तक इन शरणार्थियों को पता नहीं चला, नई पीढ़ी को सबसे ज्यादा परेशानी हो रही है उनका कहना है कि जमीन नहीं होने के कारण उन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ भी नहीं मिल पा रहा है और ना ही बच्चों को अच्छे उस स्कूल में दाखिला मिल पा रहा है, लेकिन सीएए कानून आने के बाद इन शरणार्थियों में एक उम्मीद जगी है कि सीएए कानून लागू होने से इन्हें फायदा मिलेगा, अब देखने वाली बात होगी इन शरणार्थियों के लिए मोदी सरकार क्या करती है ?

जितेंद्र कुमार गुप्ता
ईटीवी भारत बेतिया
Last Updated : Jan 28, 2020, 7:50 AM IST

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