बेतियाः बिहार में कई मंदिर हैं, जिसकी मान्यताएं और इतिहास अलग-अलग है, लेकिन बेतिया के कालीबाग मंदिर का इतिहास ( Kalibagh Temple In Bettiah) और मान्यता के बारे में जानेंगे तो कुछ देर के लिए विश्वास नहीं होगा, लेकिन यही सच्चाई है. बेतिया का यह मंदिर पूरे भारतवर्ष में विख्यात है. यहां जितनी देवी-देवताओं की प्रतिमा है, शायद देश के किसी भी मंदिर में इतनी देवी देवताओं की प्रतिमा होगी. करीब 10 एकड़ में फैला यह मंदिर 400 साल पुराना है.
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400 साल पुराना है इतिहासः यहां के जानकार बताते हैं कि इस मंदिर की स्थापना 1600 ई. के करीब हुई थी. जिस जगह पर मंदिर का निर्माण किया गया, वहां पहले शमशान घाट था. मंदिर से जुड़ा एक रहस्यमय इतिहास है, जिसपर शायद ही किसी को विश्वास होगा, लेकिन यहां के स्थानीय लोग इसे सच्ची घटना मानते हैं. यहां के स्थानीय बताते हैं कि जिस वक्त मंदिर का निर्माण किया गया था, उस समय यहां 108 नरमुंडों की बली दी गई थी.
बेतिया राजघराने के द्वारा स्थापित है मंदिरः जानकार बताते हैं कि इस मंदिर का निर्माण बेतिया राजघराने के द्वारा कराया गया था. यहां के कई राजाओं ने मंदिरों की स्थापना की, जिसमें सबसे पुरानी और प्रसिद्ध काली धाम का दक्षिणेश्वर मंदिर है. यह मंदिर बिहार के धार्मिक स्थलों में सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है. यहां मां भगवती की पूजा-अर्चना तांत्रिक विधि से की जाती है. माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण भी तांत्रिक विधि से ही की गई थी, इसलिए नरमुंडों की बली की बात कही जाती है.
'मंदिर स्थापना में 108 नरमुंडों की बली': यह देश का ऐसा मंदिर है, जहां दस महाविधा के साथ नव दुर्गा स्थापित हैं. मान्यता है कि 108 नरमुंडों की बली के बाद यहां मां काली की स्थापना की गई थी. इसके अलावा इस मंदिर परिसर में 365 देवी देवताओं की प्रतिमा स्थापित हैं. बात करें तो पूरे हिंदुस्तान में एक साथ एक जगह पर इतनी देवी देवताओं की प्रतिमा कहीं भी देखने के लिए नहीं मिलेगी.
चौसठ योगिन प्रतिमाएं स्थापितः कहा जाता है कि भुवनेश्वर के बाद मंदिरों का शहर बेतिया है. यह परिसर 10 एकड़ में फैला है. 4 एकड़ में प्रतिमाओं के लिए अलग-अलग मंदिर बनाया गया है. बांकी 6 एकड़ में मैदान है. मंदिर के बीचो-बीच तालाब है, जिसके चारों तरफ देवी देवताओं की प्रतिमा है. मंदिर की एक दिशा में चौसठ योगिनी प्रतिमाएं हैं. विशिष्ट रूप से अष्ट भैरव, काल भैरव, माता तारा आदि की प्रतिमाएं हैं. नेपाल नरेश के द्वारा दिए गए बड़ा घंटा आज भी मौजूद है, जो विशेष पूजा पर बजाया जाता है.
अष्टमी को निशा पूजा होती हैः शहर के पश्चिम में बने इस मंदिर का इतिहास है कि यह शमशान घाट पर स्थित है. मंदिर के बीचो बिच तलाब इसका सबूत है. नवरात्र के अष्टमी को यंहा तांत्रिक विधि से निशा पूजा की जाती है. जिसे देखने देश के कोने-कोने से मां के भक्त पहुंचते हैं. शाम में आरती के समय हजारों लोग मां काली के सामने नतमस्तक होते हैं. यह मंदिर खुद में एक अनोखा इतिहास समेटे हुए हैं.