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वैशाली: विश्व प्रसिद्ध च्वयन कुंड बदहाल, कभी ठीक हो जाता था कुष्ठ रोग

स्थानीय ग्रामीण सहनी ने कुंड की महत्ता बताते हुए कहा कि पुराणों में भी कुंड का जिक्र किया गया है. देशभर से कुष्ठ रोगी यहां आकर स्नान करने के बाद ठीक होकर जाते थे. साथ ही उन्होंने बताया कि कुंड की विधियों का पालन न होने पर इसकी विशेषता और प्रभाव धीरे-धीरे खत्म हो गया.

च्वयन कुंड हुआ बदहाल
च्वयन कुंड हुआ बदहाल
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Published : Feb 28, 2020, 5:46 PM IST

वैशाली: सोनपुर के हरिहर क्षेत्र को देव भूमि कहा जाता है. स्थानीय बाबा हरिहरनाथ का मंदिर बहुत ही प्रसिद्ध है. मंदिर परिसर से महज थोड़ी ही दूरी पर सैकड़ों वर्ष पुराना च्यवन कुंड स्थित है. बता दें कि प्रशासन की उपेक्षा के कारण ऐतिहासिक कुंड की दशा बहुत ही जर्जर है. साथ ही लोगों के आस्था से जुड़े होने के कारण कुंड की स्थिती को लेकर स्थानीय लोगों में रोष का भाव है.

वैशाली
कुंड की बदहाली बताता ग्रामीण

कुष्ठ रोगियों को मिलती थी चंगाई
लोक मान्यता है कि च्यवन ऋषि ने यह कुंड बनवाया था. जिसके कारण इसका नाम च्यवन कुंड पड़ गया. कुंड का विशेष महत्व बताया जाता है. लोक मान्यताओं के अनुसार कुंड में जो भी कुष्ठ रोगी स्नान करता था उसको रोग से मुक्ति मिल जाती थी. स्थानीय लोगों ने बताया कि पहले यहां दूर-दूराज से चर्म रोग के मरीज से आकर विधिवत पूजा अर्चना करते थे.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

'विलुप्त होने की कगार पर है कुंड'
स्थानीय ग्रामीण सहनी ने कुंड की महत्ता बताते हुए कहा कि पुराणों में भी कुंड का जिक्र किया गया है. देशभर से कुष्ठ रोगी यहां आकर स्नान करने के बाद ठीक होकर जाते थे. साथ ही उन्होंने बताया कि कुंड की विधियों का पालन न होने पर इसकी विशेषता और प्रभाव धीरे-धीरे खत्म हो गया. उन्होंने आगे बताया किसी भी सरकार और स्थानीय प्रशासन ने कुंड की सफाई और सौंदर्यीकरण के प्रति कभी ध्यान नहीं दिया. जिस कारण कुंड अपनी आखिरी सांसें गिन रहा है.

वैशाली: सोनपुर के हरिहर क्षेत्र को देव भूमि कहा जाता है. स्थानीय बाबा हरिहरनाथ का मंदिर बहुत ही प्रसिद्ध है. मंदिर परिसर से महज थोड़ी ही दूरी पर सैकड़ों वर्ष पुराना च्यवन कुंड स्थित है. बता दें कि प्रशासन की उपेक्षा के कारण ऐतिहासिक कुंड की दशा बहुत ही जर्जर है. साथ ही लोगों के आस्था से जुड़े होने के कारण कुंड की स्थिती को लेकर स्थानीय लोगों में रोष का भाव है.

वैशाली
कुंड की बदहाली बताता ग्रामीण

कुष्ठ रोगियों को मिलती थी चंगाई
लोक मान्यता है कि च्यवन ऋषि ने यह कुंड बनवाया था. जिसके कारण इसका नाम च्यवन कुंड पड़ गया. कुंड का विशेष महत्व बताया जाता है. लोक मान्यताओं के अनुसार कुंड में जो भी कुष्ठ रोगी स्नान करता था उसको रोग से मुक्ति मिल जाती थी. स्थानीय लोगों ने बताया कि पहले यहां दूर-दूराज से चर्म रोग के मरीज से आकर विधिवत पूजा अर्चना करते थे.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

'विलुप्त होने की कगार पर है कुंड'
स्थानीय ग्रामीण सहनी ने कुंड की महत्ता बताते हुए कहा कि पुराणों में भी कुंड का जिक्र किया गया है. देशभर से कुष्ठ रोगी यहां आकर स्नान करने के बाद ठीक होकर जाते थे. साथ ही उन्होंने बताया कि कुंड की विधियों का पालन न होने पर इसकी विशेषता और प्रभाव धीरे-धीरे खत्म हो गया. उन्होंने आगे बताया किसी भी सरकार और स्थानीय प्रशासन ने कुंड की सफाई और सौंदर्यीकरण के प्रति कभी ध्यान नहीं दिया. जिस कारण कुंड अपनी आखिरी सांसें गिन रहा है.

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