ETV Bharat / state

बिहार का खजुराहो: लकड़ी के 17 खंभों पर उकेरी गई है कामकला के आसन वाली मूर्तियां.. 500 साल पुराना है इतिहास

बिहार के कई ऐसे ऐतिहासिक धरोहर हैं, जो अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहे हैं. उन्हीं में एक नाम बिहार के नेपाली मंदिर का भी है, जो बर्बादी के कगार पर पहुंच चुका है. इसकी खासियत जानकार आपको मध्य प्रदेश के खजुराहो मंदिर की याद आ जाएगी. देखिये ये रिपोर्ट....

बिहार का खजुराहो
बिहार का खजुराहो
author img

By

Published : Apr 11, 2022, 1:44 PM IST

Updated : Apr 11, 2022, 2:03 PM IST

वैशालीः भारत का खजुराहो मंदिर अपनी अद्भूत कला के लिए विश्व प्रसिद्ध है. जहां हर साल लाखों पर्यटक इसके दर्शन के लिए आते हैं. लेकिन आपको जानकर ये हैरानी होगी कि अपने बिहार में भी एक मिनी खजुराहो मंदिर है. जिसे बहुत कम ही लोग जानते हैं. बिहार की राजधानी पटना से महज 26 किलोमीटर दूर हाजीपुर के कौनहारा घाट में स्थित है नेपाली मंदिर. जहां कामकला (Sexuality) का व्यापक चित्रण मौजूद है. मंदिर में लगे लकड़ी के खंभों पर कामकला के अलग-अलग आसनों का चित्रण है. यही कारण है कि इसे बिहार का खजुराहो कहा जता है. इस मंदिर को देखने कभी दूर-दूर से पर्यटक आया करते थे. लेकिन आज इसकी हालत देखकर स्थानीय लोग मायूस हैं.

ये भी पढ़ेंः बिहार में छात्र बनेंगे रामयाण के पंडित, इस जिले में खुलेगा पहला Ramayan University

18 वीं शताब्दी में नेपाल के राजा के आदेश पर बनी थी मंदिरः बताया जाता है कि नेपाल के राजा ने भारत के लिए यह अद्भुत मंदिर बनवाई थी. हालांकि मंदिर को लेकर कई तरह की बातें कहीं जाती हैं. कई पुस्तकों में अलग-अलग उल्लेख मिलता है. मान्यता है कि 18 वीं शताब्दी में नेपाल के राजा के आदेश पर नेपाली सेना के कमांडर मातबर सिंह थापा ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था. इसलिए आम लोगों में यह 'नेपाली छावनी' के तौर पर भी लोकप्रिय है. नेपाली वस्तु कला शैली के इस मंदिर में कामकला के अलग-अलग आसनों का चित्र लकड़ी पर किया गया है. भगवान शिव के इस मंदिर में कष्ट कला का खूबसूरत कारीगरी की गई है.

550 वर्ष पूर्व हुआ था निर्माणः मंदिर के निर्माण में एक लौह स्तंभ, पत्थरों की चट्टाने और लकड़ियों की पट्टियों का भरपूर इस्तेमाल हुआ है. मंदिर के गर्भ गृह में पत्थर का शिवलिंग विद्यमान है. बताया यह भी जाता है कि इस मंदिर में उत्तर की नागर शैली, दक्षिण की द्रविड़ शैली, के साथ बेलसर शैली और स्थानीय शिल्प कौशल का भी प्रयोग किया गया है. कई अभिलेखों के मुताबिक यह मंदिर लगभग 550 वर्ष पूर्व निर्माण कराया गया था. जिसमें नेपाल के महाराज हरि सिंह के दादा रणजीत सिंह के द्वारा भी मंदिर निर्माण की बात कहीं गई है.

बिहार का  खजुराहो
बिहार का खजुराहो

कार्तिक माह में भक्तों की लगती है भीड़ः यहां श्रवण मास और कार्तिक माह में भक्तों का ज्यादा आना होता है. खासकर कार्तिक पूर्णिमा के दिन लगने वाले गंगा स्नान मेले के दौरान पर्यटकों की काफी भीड़ देखी जाती है. मंदिर के ऊपर लगे 17 खम्बो में काम कला के विभिन्न मुद्राओं का चित्रण है. मंदिर के पास बुटन दास मठ है. यहा रहने वाले महंथ अर्जुन दास ने बताया कि 18 वीं शताब्दी का यह मंदिर है. इस मंदिर में कई अष्टधातु की मूर्तियां थी. साथ ही एक अद्भुत शिवलिंग भी था, जो 2008 में गायब हो गया.

अर्जुन दास बताते हैं- कामशास्त्र के बारे में पूरी जानकारी इस मंदिर में दी गई है. साथ में नियंत्रित रहना भी सीखाया गया है. उन्होंने आगे बताया कि शिवपुराण में वर्णित है कि चारों दिशा में दरवाजा होने वाले शिव मंदिर बेहद महत्वपूर्ण होते हैं. इस मंदिर में भी चारों दिशा में दरवाजे खुलते हैं.

'बचपन से देख रहा हूं. लकड़ी पर जो कशीदाकारी है, वह अद्भुत है. सरकार के साथ-साथ आम लोगों को भी जागरूक होकर इस धरोहर को बचाना चाहिए. मंदिर में कामकला की तस्वीरें यह बताती है कि काम वासना को छोड़कर मंदिर में आइए'- निशांत कुमार, स्थानीय

गार्ड को नहीं मिलती सेलेरीः नेपाली छावनी शिव मंदिर में तैनात एक गार्ड विजय शाह की तैनाती की गई है. लेकिन उनको पैसा नहीं मिलता है तो वे मंदिर के गेट पर ही भूंजा बेचते हैं. उनका कहना है कि उनके आने से पहले मंदिर की मूर्तियां चोरी हुई हैं. उनके आने के बाद ऐसा कुछ नहीं हुआ है. भूंजा भेचने के सवाल पर उन्होंने कहा कि उन्हें कुछ मिलता ही नहीं है तो वह क्या करेंगे.

मंदिर बना जुआरियों और नशेड़ियों का अड्डाः स्थानीय लोग बताते हैं कि मंदिर से थोड़ी दूरी पर चिता भी जलाई जाती है. पास में ही एक घाट भी है जहां लोग स्नान करते हैं. चंद कदमों पर यहां नारायणी और गंगा का संगम होता है. मान्यता है कि इसी घाट पर गज और ग्राह की लड़ाई हुई थी. इसलिए इस घाट का नाम कौनहारा घाट रखा गया है. लेकिन आज ये मंदिर जुआरियों और नशेड़ियों का अड्डा बन गया है. कई जगहों पर लोग जुआ खेलते नजर आते हैं. तो कुछ लोग इसी मंदिर में छुपकर गांजा पीते हैं. हालात ये है कि मंदिर के चारों तरफ गंदगी फैली हुई है.

ये भी पढ़ें: पटना महावीर मंदिर में धूमधाम से मनेगी रामनवमी, 25 हजार किलो नैवेद्यम किए जा रहे तैयार

पुरातात्विक निदेशालय ने की थी पहलः हालांकि इसके संरक्षण को लेकर पुरातात्विक निदेशालय (बिहार सरकार) द्वारा 2018 में भवन निर्माण विभाग को इसके सुधार के लिए राशि आवंटित की गई थी. मगर उनके पास इस काम के लिए दक्ष अभियंताओं की कमी के कारण वह इसके लिए तैयार नहीं हुए. पुरातात्विक निदेशालय की ओर से उस समय ये भी कहा क गया था कि नेपाली मंदिर के संरक्षण को लेकर सरकार गंभीर है और इसके लिए इनटैक (इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हैरिटेज) से संपर्क साधा गया है. ताकि संरक्षण का काम प्रारंभ किया जा सके. लेकिन ये सारी बातें हवा हवाई ही साबित हुई, ना मंदिर का संरक्षण हुआ ना विकास का कोई कार्य.

अब सवाल ये है कि राजधानी से महज कुछ दूरी पर स्थित इस आकर्षक मंदिर को सहेज कर रखना क्या सरकार और प्रशासन की जिम्मेदारी नहीं, सुशासन बाबू सिर्फ अपने गृह जिले नालंदा को चमकाने में लगे हैं, लेकिन मुख्यालय से सटे वैशाली जिले की इस अद्भूत मंदिर पर उनकी नजर क्यों नहीं पड़ी. अगर सरकार इस ऐतिहासिक धरोहर पर ध्यान दे, तो ये मंदिर बिहार के पर्यटन की दिशा और दशा दोनों बदल सकती है.

विश्वसनीय खबरों को देखने के लिए डाउनलोड करें ETV BHARAT APP

वैशालीः भारत का खजुराहो मंदिर अपनी अद्भूत कला के लिए विश्व प्रसिद्ध है. जहां हर साल लाखों पर्यटक इसके दर्शन के लिए आते हैं. लेकिन आपको जानकर ये हैरानी होगी कि अपने बिहार में भी एक मिनी खजुराहो मंदिर है. जिसे बहुत कम ही लोग जानते हैं. बिहार की राजधानी पटना से महज 26 किलोमीटर दूर हाजीपुर के कौनहारा घाट में स्थित है नेपाली मंदिर. जहां कामकला (Sexuality) का व्यापक चित्रण मौजूद है. मंदिर में लगे लकड़ी के खंभों पर कामकला के अलग-अलग आसनों का चित्रण है. यही कारण है कि इसे बिहार का खजुराहो कहा जता है. इस मंदिर को देखने कभी दूर-दूर से पर्यटक आया करते थे. लेकिन आज इसकी हालत देखकर स्थानीय लोग मायूस हैं.

ये भी पढ़ेंः बिहार में छात्र बनेंगे रामयाण के पंडित, इस जिले में खुलेगा पहला Ramayan University

18 वीं शताब्दी में नेपाल के राजा के आदेश पर बनी थी मंदिरः बताया जाता है कि नेपाल के राजा ने भारत के लिए यह अद्भुत मंदिर बनवाई थी. हालांकि मंदिर को लेकर कई तरह की बातें कहीं जाती हैं. कई पुस्तकों में अलग-अलग उल्लेख मिलता है. मान्यता है कि 18 वीं शताब्दी में नेपाल के राजा के आदेश पर नेपाली सेना के कमांडर मातबर सिंह थापा ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था. इसलिए आम लोगों में यह 'नेपाली छावनी' के तौर पर भी लोकप्रिय है. नेपाली वस्तु कला शैली के इस मंदिर में कामकला के अलग-अलग आसनों का चित्र लकड़ी पर किया गया है. भगवान शिव के इस मंदिर में कष्ट कला का खूबसूरत कारीगरी की गई है.

550 वर्ष पूर्व हुआ था निर्माणः मंदिर के निर्माण में एक लौह स्तंभ, पत्थरों की चट्टाने और लकड़ियों की पट्टियों का भरपूर इस्तेमाल हुआ है. मंदिर के गर्भ गृह में पत्थर का शिवलिंग विद्यमान है. बताया यह भी जाता है कि इस मंदिर में उत्तर की नागर शैली, दक्षिण की द्रविड़ शैली, के साथ बेलसर शैली और स्थानीय शिल्प कौशल का भी प्रयोग किया गया है. कई अभिलेखों के मुताबिक यह मंदिर लगभग 550 वर्ष पूर्व निर्माण कराया गया था. जिसमें नेपाल के महाराज हरि सिंह के दादा रणजीत सिंह के द्वारा भी मंदिर निर्माण की बात कहीं गई है.

बिहार का  खजुराहो
बिहार का खजुराहो

कार्तिक माह में भक्तों की लगती है भीड़ः यहां श्रवण मास और कार्तिक माह में भक्तों का ज्यादा आना होता है. खासकर कार्तिक पूर्णिमा के दिन लगने वाले गंगा स्नान मेले के दौरान पर्यटकों की काफी भीड़ देखी जाती है. मंदिर के ऊपर लगे 17 खम्बो में काम कला के विभिन्न मुद्राओं का चित्रण है. मंदिर के पास बुटन दास मठ है. यहा रहने वाले महंथ अर्जुन दास ने बताया कि 18 वीं शताब्दी का यह मंदिर है. इस मंदिर में कई अष्टधातु की मूर्तियां थी. साथ ही एक अद्भुत शिवलिंग भी था, जो 2008 में गायब हो गया.

अर्जुन दास बताते हैं- कामशास्त्र के बारे में पूरी जानकारी इस मंदिर में दी गई है. साथ में नियंत्रित रहना भी सीखाया गया है. उन्होंने आगे बताया कि शिवपुराण में वर्णित है कि चारों दिशा में दरवाजा होने वाले शिव मंदिर बेहद महत्वपूर्ण होते हैं. इस मंदिर में भी चारों दिशा में दरवाजे खुलते हैं.

'बचपन से देख रहा हूं. लकड़ी पर जो कशीदाकारी है, वह अद्भुत है. सरकार के साथ-साथ आम लोगों को भी जागरूक होकर इस धरोहर को बचाना चाहिए. मंदिर में कामकला की तस्वीरें यह बताती है कि काम वासना को छोड़कर मंदिर में आइए'- निशांत कुमार, स्थानीय

गार्ड को नहीं मिलती सेलेरीः नेपाली छावनी शिव मंदिर में तैनात एक गार्ड विजय शाह की तैनाती की गई है. लेकिन उनको पैसा नहीं मिलता है तो वे मंदिर के गेट पर ही भूंजा बेचते हैं. उनका कहना है कि उनके आने से पहले मंदिर की मूर्तियां चोरी हुई हैं. उनके आने के बाद ऐसा कुछ नहीं हुआ है. भूंजा भेचने के सवाल पर उन्होंने कहा कि उन्हें कुछ मिलता ही नहीं है तो वह क्या करेंगे.

मंदिर बना जुआरियों और नशेड़ियों का अड्डाः स्थानीय लोग बताते हैं कि मंदिर से थोड़ी दूरी पर चिता भी जलाई जाती है. पास में ही एक घाट भी है जहां लोग स्नान करते हैं. चंद कदमों पर यहां नारायणी और गंगा का संगम होता है. मान्यता है कि इसी घाट पर गज और ग्राह की लड़ाई हुई थी. इसलिए इस घाट का नाम कौनहारा घाट रखा गया है. लेकिन आज ये मंदिर जुआरियों और नशेड़ियों का अड्डा बन गया है. कई जगहों पर लोग जुआ खेलते नजर आते हैं. तो कुछ लोग इसी मंदिर में छुपकर गांजा पीते हैं. हालात ये है कि मंदिर के चारों तरफ गंदगी फैली हुई है.

ये भी पढ़ें: पटना महावीर मंदिर में धूमधाम से मनेगी रामनवमी, 25 हजार किलो नैवेद्यम किए जा रहे तैयार

पुरातात्विक निदेशालय ने की थी पहलः हालांकि इसके संरक्षण को लेकर पुरातात्विक निदेशालय (बिहार सरकार) द्वारा 2018 में भवन निर्माण विभाग को इसके सुधार के लिए राशि आवंटित की गई थी. मगर उनके पास इस काम के लिए दक्ष अभियंताओं की कमी के कारण वह इसके लिए तैयार नहीं हुए. पुरातात्विक निदेशालय की ओर से उस समय ये भी कहा क गया था कि नेपाली मंदिर के संरक्षण को लेकर सरकार गंभीर है और इसके लिए इनटैक (इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हैरिटेज) से संपर्क साधा गया है. ताकि संरक्षण का काम प्रारंभ किया जा सके. लेकिन ये सारी बातें हवा हवाई ही साबित हुई, ना मंदिर का संरक्षण हुआ ना विकास का कोई कार्य.

अब सवाल ये है कि राजधानी से महज कुछ दूरी पर स्थित इस आकर्षक मंदिर को सहेज कर रखना क्या सरकार और प्रशासन की जिम्मेदारी नहीं, सुशासन बाबू सिर्फ अपने गृह जिले नालंदा को चमकाने में लगे हैं, लेकिन मुख्यालय से सटे वैशाली जिले की इस अद्भूत मंदिर पर उनकी नजर क्यों नहीं पड़ी. अगर सरकार इस ऐतिहासिक धरोहर पर ध्यान दे, तो ये मंदिर बिहार के पर्यटन की दिशा और दशा दोनों बदल सकती है.

विश्वसनीय खबरों को देखने के लिए डाउनलोड करें ETV BHARAT APP

Last Updated : Apr 11, 2022, 2:03 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.