वैशाली: बिहार के वैशाली का इतिहास समृद्ध रहा है. भगवान बुद्ध और भगवान महावीर ने जो रास्ता यहां से दिखाया था उसका आज भी पूरी दुनिया अनुसरण करती है. क्यों वैशाली दुनिया के लिए अनुसरणीय है इसे इस बात से भी समझा जा सकता है कि 1800 साल (1800 Year Old Toilet Found In Vaishali) पहले भी यहां के लोग स्वच्छता को लेकर जागरूक थे. दरअसल वैशाली के संग्रहालय में 1800 साल पुराना टॉयलेट पैन (1800 Year Old Toilet Pan In Bihar) रखा गया है जो लोगों के लिए कौतूहल का विषय बना हुआ है.
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सदियों पुराना शौचालय देख रह जाएंगे हैरान: वैशाली पुरातत्व संग्रहालय में देश विदेश के लोग इस 1800 साल पुराने शौचालय को देखने के लिए आते हैं. एक तरफ देश और राज्य में स्वच्छता अभियान (Swachh Bharat Mission) के तहत खुले में शौच से मुक्ति को लेकर सरकार कार्यक्रम चला रही है. लोगों को जागरूक किया जा रहा है. वहीं पहली शताब्दी से दूसरी शताब्दी के बीच का यह शौचालय विश्व को गणतंत्र का पाठ पढ़ाने वाली वैशाली के समृद्ध इतिहास को दर्शाता है. पहली सदी से दूसरी सदी के बीच का यह शौचालय कौतूहल का विषय बना हुआ है. देश और विदेशों के कोने-कोने से लोग यहां पुरातत्व संग्रहालय में रखे वस्तुओं को देखने आते हैं, जिसमें रखा शौचालय लोगों को खासा आकर्षित करता है.
ऐसा है 1800 साल पुरान टॉयलेट पैन: इस टॉयलेट पैन में कई खासियत पायी गई है. हालांकि अभी भी इसपर रिसर्च चल रहा है. जानकारी के मुताबिक यह पैन टेराकोटा से निर्मित है और तीन हिस्सों में टूटा हुआ है. इसका अधिकतम व्यास 88 सेंटीमीटर और मोटाई 7 सेंटीमीटर है. टॉयलेट पैन में दो छेद हैं. एक छेद यूरिन और दूसरा छेद मानव मल (व्यास 18 सेंटीमीटर) के निकासी के लिए बनाया गया होगा. पांव रखने की जगह या फुटरेस्ट की लंबाई 24 सेंटीमीटर और चौड़ाई 13 सेंटीमीटर है. आज के इंडियन टॉयलेट पैन की तरह ही उसमें भी बैठकर शौच करने की व्यवस्था थी. अनुमान है कि इस टॉयलेट पैन के नीचे रिंग वेल होगा और उसी के जरिए पानी, मल आदि की निकासी होती होगी. पैन को डिजाइन भी इस तरह से किया गया है कि उसमें से पानी बाहर ना निकले और निर्धारित स्थान पर ही उसकी निकासी हो.
'वैशाली के इतिहास से जुड़ीं मिल सकती हैं अहम जानकारियां': एलएनटी कॉलेज मुजफ्फरपुर के प्रोफेसर डॉ जयप्रकाश ने बताया कि यह काफी गौरवान्वित करने वाला है. विश्व की पहली गणतंत्र वैशाली में सब लोग तब काफी समृद्ध रहे होंगे. सिंधु घाटी सभ्यता में समृद्ध नगर की बात जो सामने आती है वह इस टॉयलेट पैन से पता चलता है कि इतने साल पहले भी लोग कितने जागरूक थे. स्वच्छता को लेकर आज भारत सरकार और बिहार सरकार स्वच्छता अभियान को जिस मुकाम पर पहुंचाना चाहती है. वह तब भी हासिल था. रिसर्च करने से वैशाली के इतिहास से जुड़ी और भी कई जानकारी प्राप्त की जा सकेगी.
"टेराकोटा के इस टॉयलेट पैन को लेकर काफी सारे रिसर्च हुए हैं और आगे भी इस परिसर की आवश्यकता है. इससे कई बातें और भी निकल कर सामने आएंगे. इस मामले में अगर अच्छे से रिसर्च हुआ तो उस सिंधु घाटी सभ्यता में विकसित शहर के रूप में वैशाली की पहचान भी हो सकती है. इस बारे में और रिसर्च की आवश्यकता है." - डॉ जयप्रकाश, प्रोफेसर, एलएनटी कॉलेज, मुजफ्फरपुर
स्वास्तिक आकार की मॉनेस्ट्री से मिला टॉयलेट पैन: बताया जाता है कि 1971 में वैशाली में खुदाई के दौरान मिले अद्भुत वस्तुओं को सहेजने के लिए पुरातत्व संग्रहालय वैशाली का निर्माण करवाया गया था जहां महात्मा बुध, भगवान महावीर और राजा विशाल से जुड़े कई तत्वों को संग्रहित किया गया है. वहीं वैशाली के कुआं में मिले शौचालय को ही इस संग्रहालय में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है. संग्रहालय में रखे टॉयलट पैन के नीचे संबंधित जानकारी भी अंकित की गई है, जिसके मुताबिक उत्खनन के दौरान एक स्वास्तिक आकार की मॉनेस्ट्री से यह मिला है.
स्वच्छता संदेश का वैशाली से हुआ था आगाज!: इस टॉयलेट पैन के आकार के आधार पर यह अनुमान लगाया जा रहा है कि यह रियल टेराकोटा टॉयलेट पैन है. जानकारों का मानना है कि बौद्ध भिक्षु की मॉनेस्ट्री जिसमें 12 कमरे हैं, इनसे जुड़ा हुआ एक बरामदा है और दक्षिणी हिस्से में शौचालय है. यह वही शौचालय हो सकता है. यानी ऐतिहासिक काल में शौचालय का प्रचार प्रसार का साक्ष्य वैशाली में है. बताया जाता है कि बौद्ध भिक्षु के आचार विचार संबंधित कई तरह के नियम थे जो कि पाली भाषा में लिखे गए थे. इनमें बुद्ध के उपदेश भी लिखे हैं. इसके अनुसार जीवन जीने के नियमों का अनुशासन है जिसके तहत यह शौचालय आता है. इस विषय में पूर्णिया से आई शिवानी कुमारी ने बताया कि संग्रहालय में काफी सारी वस्तुएं देखने लायक हैं, जिनको देखकर अच्छा लगता है. भगवान बुद्ध के समय के शौचालय का टुकड़ा भी खासा महत्वपूर्ण है. कई और पर्यटकों ने भी इस शौचालय को दार्शनिक और अद्भुत बताया है.
"मैं अपनी फैमिली के साथ म्यूजियम आई हूं. बुद्ध भगवान का शौचालय, सिक्का, बर्तन सारी चीजें मैंने देखी. बहुत अच्छा लग रहा है."- निधि कुमारी, पर्यटक
"प्राचीन काल से मॉडर्न काल आ गया है. लेकिन आज भी देखने से आश्चर्य होता है कि उस काल में इतने बेहतरीन तरीके का शौचालय मानव के द्वारा निर्मित किया गया था. जिसका उस समय पर उपयोग होता था. यह काफी अच्छा अनुभव है. यह शौचालय 1800 साल पहले का है जिससे साफ पता चलता है तब लोग कितने समृद्ध थे."- नागमणि जयसवाल, पर्यटक
"शौचालय अट्ठारह सौ साल पुराना है. यहां अट्ठारह सौ साल पहले भी साफ सफाई का खासा ध्यान देते थे. स्वच्छता की सारी व्यवस्थाएं तब की गई थी. यह वैशाली के लिए बेहद गौरव की बात है. इसको लेकर हम सभी काफी गौरवान्वित होते हैं."- रूपेश कुमार सिंह, पर्यटक
"वैशाली के लिए यह बेहद गौरव की बात है. यहां संग्रहालय में अट्ठारह सौ साल पुराना शौचालय रखा हुआ है. यहां देश से ही नहीं विदेशों से भी लोग लोकतंत्र की जन्मभूमि वैशाली को घूमने आते हैं. सभी के बीच इस टॉयलेट पैन को देखने की उत्सुकता रहती है."- संतोष द्विवेदी, संग्रहालय कर्मी
शौचालय का इतिहास: भारत में शौचालय का इतिहास 3000 साल पुराना है. सिन्धु घाटी सभ्यता में इसके साक्ष्य लोथल में मिलते है. लेकिन इसके बाद चार्कोलिथिक काल में शौचालय होने के कोई साक्ष्य नहीं मिलते हैं. इसके बाद आरंभिक ऐतिहासिक काल में शौचालयों के साक्ष्य फिर से मिलते हैं. लेकिन शौचालय कैसे रहे होंगे उसका भौतिक सुबूत हमें कुषाण काल (पहली से दूसरी शती ईस्वी) में मिलता है. वैशाली संग्रहालय में रखा टॉयलेट पैन कुषाण काल का है. बाद में शौचालयों की परंपरा खत्म होती गई थी. लेकिन आधुनिकता के समय में शौचालय सभ्यता और संपन्नता का प्रतीक बन गया.
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