सिवान: कई साल पहले राजेंद्र नामक एक छात्र कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज में पढ़ता था. बिहार के एक छोटे से गांव का यह छात्र जब कोलकाता यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करने पहुंचा था, तब किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि उसकी किसी परीक्षा का परिणाम कभी पूरी दुनिया में एक नजीर बन जाएगा. राजेंद्र ने कॉलेज की परीक्षा दी और उसके प्रोफेसर को जब कॉपी दी गई जांच करने के लिए तो प्रोफेसर कोई नंबर नहीं दे पाए. पूरी कॉपी जांचने के बाद उन्होंने बस इतना लिख दिया था 'परीक्षार्थी परीक्षक से अधिक योग्य है.' आखिर यह छात्र कौन था.
शहर से 18 किमी दूर है जीरादेई
बिहार के सिवान शहर से 18 किमी दूर देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की जन्मभूमि सीवान का जीरादेई गांव. जी हां, देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद का गांव. यहां कैसी है विकास की कहानी है और लोगों का क्या कहना है, वे कितने खुश हैं और क्या चाहते हैं?
आज भी विकास की राह देख रहा गांव
देश के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद का गांव आज 70 सालों बाद भी अपने विकास की राह देख रहा है. इलाके की कई सड़कें कच्ची हैं. बिजली, अस्पताल जैसी बुनियादी सुविधाएं भी नहीं मिल रही है.
क्या कहते हैं जीरादेई के ग्रामीण
इतना ही नहीं जीरादेई में डॉ राजेंद्र प्रसाद की एक पुरानी मूर्ति धूल फांक रही है. राजेन्द्र प्रसाद की पत्नी के नाम पर बना आर्युवेदिक अस्पताल खण्डहर में तब्दील हो गया है. स्थानीय लोग कहते हैं कि इस क्षेत्र के नाम पर केवल राजनीति हुई है.
देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद से जुड़ी बड़ी बातें
- डॉ. राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर 1884 में बिहार के सीवान जिले के जीरादेई गांव में हुआ था. उनके पिता का नाम महादेव सहाय और माता का नाम कमलेश्वरी देवी था.
- राजेंद्र प्रसाद की प्रारंभिक शिक्षा छपरा के जिला स्कूल से हुई. उन्होंने 18 साल की उम्र में कोलकाता विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा प्रथम स्थान से पास की.
- साल 1915 में राजेंद्र बाबू ने कानून में मास्टर की डिग्री हासिल की. साथ ही उन्होंने कानून में ही डाक्टरेट भी किया.
- राजेंद्र प्रसाद पढ़ाई लिखाई में अच्छे थे, उन्हें अच्छा स्टूडेंट माना जाता था. उनकी एग्जाम शीट को देखकर एक एग्जामिनर ने कहा था कि ‘The Examinee is better than Examiner'.
- साल 1957 में वह दोबारा राष्ट्रपति चुने गए. राजेंद्र प्रसाद एकमात्र नेता रहे, जिन्हें 2 बार राष्ट्रपति के लिए चुना गया. 12 साल तक पद पर बने रहने के बाद वे 1962 में राष्ट्रपति पद से हटे.
- राजेंद्र प्रसाद की बहन भगवती देवी का निधन 25 जनवरी 1950 को हो गया था.
- साल 1962 में राष्ट्रपति पद से हट जाने के बाद राजेंद्र प्रसाद को भारत सरकार द्वारा सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाज़ा गया.
- अपने जीवन के आख़िरी महीने बिताने के लिए उन्होंने पटना के निकट सदाकत आश्रम चुना. यहां पर ही 28 फरवरी 1963 में उनका निधन हुआ.
राजेंद्र प्रसाद ने कई पुस्तकें लिखीं
राजेंद्र प्रसाद ने अपनी आत्मकथा के आलावा कई पुस्तकें लिखीं, इनमें इण्डिया डिवाइडेड, सत्याग्रह एट चम्पारण, गांधीजी की देन, भारतीय संस्कृति एवं खादी का अर्थशास्त्र इत्यादि उल्लेखनीय हैं. आज पूरा देश उन पर गर्व करता है. उन्होंने अपने जीवन में श्रेष्ठ भारतीय मूल्यों और परंपरा को कायम रखा. आज भी उनका जीवन राष्ट्र को प्रेरणा देता है और देता रहेगा.