सीतामढ़ी: जिले के बेलसंड प्रखंड के चंदौली घाट सरकार और जिला प्रशासन की उदासीनता के कारण हर साल नाव हादसे होते हैं. इस घाट पर आवागमन का सहज और सुलभ साधन नहीं है. जिसके कारण कई गांवों के लोग निजी नाव के सहारे उफनती बागमती नदी की धारा को पार करने को विवश होते हैं. प्रदेश में कई सरकारें आई और गई. लेकिन इस घाट पर मौत के तांडव को नहीं रोक पाई. बाढ़ के दौरान इस नदी की धारा को पार करने के दौरान हर साल नाव हादसे होते हैं. जिसमें कई लोग अपनी जान गवा देते हैं, लेकिन किसी सरकार ने इनके समाधान के लिए मानवीय स्तर पर विचार नहीं किया.
4 महीने चचरी पुल और 8 महीने नाव का सहारा
यह नदी घाट सीतामढ़ी को मुजफ्फरपुर से जोड़ती है. इस घाट से रोजाना 20 से अधिक गांवों के लोगों का आना-जाना होता है, लेकिन पुल का निर्माण नहीं हो पाने के कारण साल के 4 महीने चचरी पुल के सहारे लोग आते-जाते हैं और बाकी के बचे 8 महीने निजी नाव से आवागमन करते हैं. वहीं, नाविक मोहम्मद जफीर ने कहा कि हर रोज एक नाव के सहारे करीब 2,000 से अधिक लोग नदी पार करते हैं. उसी दौरान जब क्षमता से अधिक लोग नाव में सवार होते हैं, तो नाव पलट जाती हैं और उसमें कई निर्दोष की जान चली जाती है. इसके बावजूद आज तक सरकार की ओर से किसी सरकारी नाव की व्यवस्था नहीं कराएगी जा सकी है.
घर से निकलते ही लगता है डर
रोज अपने खेतों में काम करने के लिए नदी की धारा को पार करने वाले लोगों ने बताया कि हर साल होने वाले नाव हादसे को लेकर घर से निकलते ही दिल की धड़कन डर से काफी बढ़ जाती है. भगवान और अल्लाह को याद कर डरते-डरते नाव पर सवार होते हैं, क्योंकि हर साल जो हादसे होते हैं. उस कारण दिल और दिमाग में वह हादसा बैठा हुआ है. वहीं, लोगों ने कहा कि न जाने कब इस मौत की सवारी से छुटकारा मिलेगा. तबीयत खराब होने पर इलाज के लिए जाना हो या बच्चों को पढ़ाई के लिए या फिर बैंक का काम हो या न्यायालय का हर जगह जाने के लिए निजी और छोटी नाव ही एकमात्र सहारा है.
अब तक हुए नाव हादसे
चंदौली घाट पर हुए नाव हादसे को लेकर जनप्रतिनिधि ने कहा कि बीते 6 सालों में 4 से अधिक नाव हादसे हुए हैं. जिसमें करीब सात लोगों की जान जा चुकी है. वर्ष 2014 में हुए नाव हादसे में दरियापुर गांव के 2 लोगों की मौत हो गई थी. वर्ष 2017 में हुए नाव हादसे में एक लड़की की मौत हो गई थी. वर्ष 2018 में अर्ध निर्मित पुल के पाए से टकराकर बागमती की बीच धारा में नाव डूब गई थी. उस हादसे में दरियापुर गांव और चंदौली गांव के 3 लोगों की डूबकर मौत हो गई थी. करीब 20 लोगों को स्थानीय लोगों और गोताखोर की मदद से जान बचाई गई थी.
चंदौली पंचायत के मुखिया मनीष कुमार और वार्ड सदस्य प्रतिनिधि मोहम्मद तबरेज ने बताया कि वर्ष 2019 में भी नाव हादसा हुआ था. जिसमें पूर्व वार्ड सदस्य बेचनी देवी सहित नाव पर सवार करीब 15 लोग पानी में डूब गए थे. स्थानीय लोगों की मदद से सभी को सुरक्षित बाहर निकाला गया, लेकिन उसमें पूर्व वार्ड सदस्य सहित छह लोगों की स्थिति ज्यादा खराब थी. इसलिए सभी को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था, तब जाकर उनकी जान बचाई जा सकी थी.
अधर में पुल का निर्माण
बागमती नदी के ऊपर आवागमन को सुलभ और सहज बनाने के लिए बिहार राज्य पुल निर्माण निगम की ओर से वर्ष 2016 फरवरी से 75 करोड़ की लागत से 443 मीटर लंबी पुल का निर्माण प्रारंभ किया गया. इस निर्माण कार्य को अप्रैल 2018 तक पूरा कर लेना था, लेकिन जिला भू-अर्जन कार्यालय की उदासीनता के कारण निर्माण कार्य अधर में लटका है.
जमीन के अभाव में हो रही देरी
बिहार राज्य पुल निर्माण निगम के सहायक अभियंता राजेंद्र कुमार सिंह का आरोप है कि पुल निर्माण के लिए जिला भू-अर्जन विभाग से भूमि का भू-अर्जन करने के लिए पत्राचार किया गया था, लेकिन आज तक जिला भू-अर्जन कार्यालय की ओर से भू-अर्जन का काम नहीं कराया गया और ना ही स्थानीय अंचल कार्यालय द्वारा किसानों की भूमि का सत्यापन का काम पूरा किया गया. लिहाजा जमीन के अभाव में इस परियोजना में देरी हो रही है.
सहायक अभियंता ने बताया कि पुल निर्माण के साथ-साथ बिहार राज्य पुल निर्माण निगम को 1100 मीटर सड़क का निर्माण पुल के दोनों तरफ करना है. इसके लिए चंदौली, भरवारी और भरवारी ननकार के किसानों की जमीन का भू-अर्जन करना है. लेकिन भू-अर्जन का काम 4 वर्षों बाद भी नहीं किया जा सका. लिहाजा पुल का काम दिसंबर 2020 तक पूरा कर लिया जाएगा. लेकिन अप्रोच रोड नहीं होने के कारण इस पुल का कोई औचित्य नहीं रह जाएगा और यह पुल आम लोगों के उद्देश्य को पूरा करने में विफल होगा.
घाट पर नहीं है सरकारी नाव
नाव हादसे को लेकर चर्चित इस चंदौली घाट पर इतनी समस्याओं के बावजूद सरकार की ओर से आम लोगों के आवागमन के लिए सरकारी नाव की व्यवस्था नहीं कराई गई है. लिहाजा नदी के दोनों तरफ निवास करने वाले सैकड़ों की आबादी निजी नाव के सहारे नदी की उफनती धारा को सालों भर पार करते हैं. इसी दौरान कई लोगों को नाव हादसे का शिकार हो जाना पड़ता है.
इस समस्या के संबंध में पूछे जाने पर अंचलाधिकारी अरविंद प्रताप शाही ने बताया कि नदी घाट पर आम लोगों के आने-जाने के लिए सरकारी नाव की व्यवस्था नहीं कराई जाती है. लोग निजी नाव से ही आवागमन करते हैं. सरकारी नियमानुसार केवल बाढ़ के दौरान बचाव और राहत कार्य के लिए सरकारी नाव दिया जाता है. उसके बाद आम लोगों का जनजीवन निजी नाव के सहारे चलता है.