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जानें क्यों दुनियाभर में मशहूर है सीतामढ़ी का पौराणिक हलेश्वर स्थान मंदिर - सीतामढ़ी में हलेश्वर स्थान मंदिर

मंदिर का निर्माण 17वीं शताब्दी में कराया गया था, जो 1942 के भूकंप में क्षतिग्रस्त हो गया था. जिसके बाद तत्कालीन डीएम अरुण भूषण प्रसाद ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया.

हलेश्वर स्थान मंदिर
हलेश्वर स्थान मंदिर
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Published : Feb 7, 2020, 2:47 PM IST

सीतामढ़ी: जिले के फतेहपुर गिरमिशानी गांव में स्थित भगवान शिव का अति प्राचीन मंदिर देश और दुनिया में विख्यात है. हलेश्वर स्थान के नाम से जाना जाने वाले इस मंदिर में दक्षिण के रामेश्वर से भी प्राचीन और दुर्लभ शिवलिंग है. बता दें कि यहां स्थापित शिवलिंग की स्थापना मिथिला नरेश राजा जनक ने की थी.

क्या है कथा?
पुराणों के अनुसार मंदिर का इलाका मिथिला राज्य के अधीन था. बताया जाता है कि 12 वर्षों तक पूरे मिथिला में अकाल आ गया था. तब ऋषि मुनियों की सलाह पर राजा जनक ने अकाल से मुक्ति के लिए हलेष्ठी यज्ञ किया. यज्ञ शुरू करने से पहले राजा जनक जनकपुर से गिरमिशानी गांव पहुंचे और वहां एक शिवलिंग की स्थापना की. राजा जनक की पूजा से खुश होकर भगवान शिव ने उन्हें आशीर्वाद दिया. उसके बाद राजा जनक ने इसी स्थान से हल चलाना शुरु किया और 7 किलोमीटर की दूरी तय कर जिले के पुनौरा गांव पहुंचे. जहां हल के सिरे से मां जानकी धरती से प्रकट हुई थी.

देखें रिपोर्ट

मंदिर से जुड़ी है लोगों की आस्था
जानकार बताते हैं कि मंदिर का निर्माण 17वीं शताब्दी में कराया गया था, जो 1942 के भूकंप में क्षतिग्रस्त हो गया था. जिसके बाद तत्कालीन डीएम अरुण भूषण प्रसाद ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया. वहीं, इस मंदिर से जुड़ी आस्था लोगों में सदियों से बरकरार है.

सीतामढ़ी: जिले के फतेहपुर गिरमिशानी गांव में स्थित भगवान शिव का अति प्राचीन मंदिर देश और दुनिया में विख्यात है. हलेश्वर स्थान के नाम से जाना जाने वाले इस मंदिर में दक्षिण के रामेश्वर से भी प्राचीन और दुर्लभ शिवलिंग है. बता दें कि यहां स्थापित शिवलिंग की स्थापना मिथिला नरेश राजा जनक ने की थी.

क्या है कथा?
पुराणों के अनुसार मंदिर का इलाका मिथिला राज्य के अधीन था. बताया जाता है कि 12 वर्षों तक पूरे मिथिला में अकाल आ गया था. तब ऋषि मुनियों की सलाह पर राजा जनक ने अकाल से मुक्ति के लिए हलेष्ठी यज्ञ किया. यज्ञ शुरू करने से पहले राजा जनक जनकपुर से गिरमिशानी गांव पहुंचे और वहां एक शिवलिंग की स्थापना की. राजा जनक की पूजा से खुश होकर भगवान शिव ने उन्हें आशीर्वाद दिया. उसके बाद राजा जनक ने इसी स्थान से हल चलाना शुरु किया और 7 किलोमीटर की दूरी तय कर जिले के पुनौरा गांव पहुंचे. जहां हल के सिरे से मां जानकी धरती से प्रकट हुई थी.

देखें रिपोर्ट

मंदिर से जुड़ी है लोगों की आस्था
जानकार बताते हैं कि मंदिर का निर्माण 17वीं शताब्दी में कराया गया था, जो 1942 के भूकंप में क्षतिग्रस्त हो गया था. जिसके बाद तत्कालीन डीएम अरुण भूषण प्रसाद ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया. वहीं, इस मंदिर से जुड़ी आस्था लोगों में सदियों से बरकरार है.

Intro:देश और दुनिया में विख्यात है जिले का हलेश्वर स्थान मंदिर विष्णु पुराण में भी पौराणिक मंदिर का है वर्णन।


Body:जिला मुख्यालय से 7 किलोमीटर उत्तर फतेहपुर गिरमिशानी गांव में स्थित भगवान शिव का अति प्राचीन मंदिर यहां दक्षिण के रामेश्वर से भी प्राचीन व दुर्लभ शिवलिंग है। यहां स्थापित शिवलिंग की स्थापना मिथिला नरेश राजा जनक द्वारा की गई थी। पुराणों के अनुसार यह इलाका मिथिला राज्य के अधीन था। 12 वर्षों तक पूरे मिथिला में अकाल पड़ा था पानी के लिए लोगों में त्राहिमाम मच गया था। तब ऋषि मुनियों की सलाह पर राजा जनक ने अकाल से मुक्ति के लिए हलेष्ठी यज्ञ किया। यज्ञ शुरू करने से पूर्व राजा जनक जनकपुर से गिरमिशानी गांव पहुंचे और यहां अद्भुत शिवलिंग की स्थापना की राजा जनक की पूजा से खुश होकर भगवान शिव माता पार्वती के साथ प्रकट होकर उन्हें आशीर्वाद दिया। राजा जनक ने इसी स्थान से हल चलाना शुरु किया और 7 किलोमीटर की दूरी तय कर सीतामढ़ी पुनौरा गांव पहुंचे जहां हल के सिरे से मां जानकी धरती से प्रकट हुई थी। इसके साथ ही घनघोर बारिश होने लगी और इलाके से अकाल समाप्त हुआ था। इस शिवलिंग से राजा जनक का गहरा संबंध रहा। कहा जाता है कि इस शिवलिंग के गर्भगृह से नदी तक सुरंग थी। जिसके रास्ते मां लक्ष्मी व सरस्वती जल लाकर महादेव का जलाभिषेक करने आती थी। इसका निशान आज भी मंदिर में है यहां स्थापित शिवलिंग अद्भुत व दक्षिण के रामेश्वरम से भी प्राचीन है।
बाइट 1, कौशल किशोर दास। महंत पुनौरा धाम।
ऐसी मान्यता है कि यहां स्थापित शिवलिंग अद्भुत व दक्षिण के रामेश्वरम से भी प्राचीन है। जनकपुर से शादी के बाद अयोध्या लौट रही मां जानकी और भगवान श्रीराम ने भी इस शिवलिंग की पूजा अर्चना की थी। पुराणों के अनुसार इसी स्थान पर खुद भगवान शिव ने उपस्थित होकर परशुराम को शास्त्र की शिक्षा दी थी पुराणों में भी इसका उल्लेख है। इस मंदिर से जुड़ी आस्था लोगों में सदियों से बरकरार है। जानकार बताते हैं कि मंदिर का निर्माण 17वीं शताब्दी में कराया गया था जो 1942 के भूकंप में क्षतिग्रस्त हो गया था। उसके बाद तत्कालीन डीएम अरुण भूषण प्रसाद ने भोलेनाथ की प्रेरणा से इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया।
बाइट 2, महंत कौशल किशोर दास। पुनौरा धाम सीतामढ़ी।


Conclusion:जानकारों का बताना है कि ऋषि की सलाह पर 88 हजार ऋषियों के साथ जब राजा जनक जनकपुर से चले थे तो उन्होंने सबसे पहले वर्तमान का जानकी अस्थान जगह पर अपना कैंप डाला था और वहीं से हलेष्ठी यज्ञ करने गिरमिशानी गांव पहुंचे थे। जहां यज्ञ संपन्न कराने के बाद उन्होंने हल चलाना प्रारंभ किया था। जब मां सीता की उत्पत्ति घरे से हुई तो उन्हें 6 दिनों तक पुनः उसी कैंप में रखा गया। जहां उनका छठी पूजा किया गया जो आज जानकी आस्थान के नाम से प्रसिद्ध है।
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