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पारंपारिक खेल ग्रामीण इलाकों में आज भी है जीवित, गांवों में संसाधनों की है कमी - Dhobaval village of Saran

आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में पारंपारिक खेल खेलते छोटे बच्चे नजर आते हैं. उनके पास संसाधन की कमी है. सरकार ध्यान देती, तो ये बच्चे देश के लिए अच्छे खिलाड़ी बन सकते हैं.

पारंपारिक खेल
पारंपारिक खेल
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Published : Aug 29, 2020, 10:21 PM IST

सारण: देश में हर साल 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस मनाया जाता है. खेल दिवस के मौके पर बड़े-बड़े शहरों में खिलाड़ी खेल के मैदान में खेलते हुए दिख जाते हैं. लेकिन ग्रामीण इलाकों में आज भी बच्चे बांस- बल्ले के विकेट और बैट बनाकर खेलते हैं. साथ ही साथ खेल में रुचि रखने वाले बच्चे गुल्ली- डंडा, बैट बॉल और गोली खेलते नजर आते हैं.

सारण के सुदूर ग्रामीण इलाकों में इनडोर-आउटडोर स्टेडियम और खेल मैदान देखने तक को नहीं मिलता है. हालांकि ग्रामीण इलाकों में प्रतिभाओं की कमी नहीं है. खेल की रुचि रखने वाले बच्चे अपने घर और खेतों में खेलते हैं. पहले ग्रामीण इलाकों में कबड्डी और कुश्ती जैसे खेल देखने को मिलती थी. आज भी ग्रामीण इलाकों में खेल के क्षेत्र में प्रतिभाओं की कमी नहीं है. शहर से 20 किलोमीटर की दूरी पर नगरा प्रखंड के धोबवल गांव की रहने वाली सुहानी का चयन खेलों इंडिया खेल में चयन हुआ है.

पेश है रिपोर्ट

'अभिभावकों के पास पैसा नहीं'

खेल में रुचि रखने वाले ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों ने बताया कि अभी तो बाढ़ है और अभिभावकों के पास पैसा भी नहीं है. इस वजह से बांस का विकेट और बैट बनाकर क्रिकेट खेलते हैं. खेल में बहुत रुचि है. वहीं छोटे बच्चे शीशे की गोली से खेलते नज़र आए. उन्होंने कहा कि स्कूल बंद है. इसलिए खेल रहे हैं. हलांकि जब बच्चों से पूछा गया कि गोली क्यों खेल रहे हो? दूसरा खेल भी तो खेल सकते हो, तो उन्होंने कहा कि पैसा नहीं है.

गुल्ली- डंडा खेलते बच्चे
गुल्ली- डंडा खेलते बच्चे

खेल में प्रोत्साहन को लेकर सरकार सुस्त

ग्रामीण इलाकों में पढ़ने और खेलने वाले प्रतिभावान बच्चों की कमी नहीं है. हर तरह की प्रतिभा है. लेकिन सरकार ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों के लिए खेल में प्रोत्साहन के लिए कुछ खास नहीं करती है. उनको संसाधन मिले, तो ये बच्चे देश के लिए अच्छे खिलाड़ी बन सकते हैं. बता दें कि खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद की जयंती के अवसर पर खेल दिवस मनाया जाता है.

सारण: देश में हर साल 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस मनाया जाता है. खेल दिवस के मौके पर बड़े-बड़े शहरों में खिलाड़ी खेल के मैदान में खेलते हुए दिख जाते हैं. लेकिन ग्रामीण इलाकों में आज भी बच्चे बांस- बल्ले के विकेट और बैट बनाकर खेलते हैं. साथ ही साथ खेल में रुचि रखने वाले बच्चे गुल्ली- डंडा, बैट बॉल और गोली खेलते नजर आते हैं.

सारण के सुदूर ग्रामीण इलाकों में इनडोर-आउटडोर स्टेडियम और खेल मैदान देखने तक को नहीं मिलता है. हालांकि ग्रामीण इलाकों में प्रतिभाओं की कमी नहीं है. खेल की रुचि रखने वाले बच्चे अपने घर और खेतों में खेलते हैं. पहले ग्रामीण इलाकों में कबड्डी और कुश्ती जैसे खेल देखने को मिलती थी. आज भी ग्रामीण इलाकों में खेल के क्षेत्र में प्रतिभाओं की कमी नहीं है. शहर से 20 किलोमीटर की दूरी पर नगरा प्रखंड के धोबवल गांव की रहने वाली सुहानी का चयन खेलों इंडिया खेल में चयन हुआ है.

पेश है रिपोर्ट

'अभिभावकों के पास पैसा नहीं'

खेल में रुचि रखने वाले ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों ने बताया कि अभी तो बाढ़ है और अभिभावकों के पास पैसा भी नहीं है. इस वजह से बांस का विकेट और बैट बनाकर क्रिकेट खेलते हैं. खेल में बहुत रुचि है. वहीं छोटे बच्चे शीशे की गोली से खेलते नज़र आए. उन्होंने कहा कि स्कूल बंद है. इसलिए खेल रहे हैं. हलांकि जब बच्चों से पूछा गया कि गोली क्यों खेल रहे हो? दूसरा खेल भी तो खेल सकते हो, तो उन्होंने कहा कि पैसा नहीं है.

गुल्ली- डंडा खेलते बच्चे
गुल्ली- डंडा खेलते बच्चे

खेल में प्रोत्साहन को लेकर सरकार सुस्त

ग्रामीण इलाकों में पढ़ने और खेलने वाले प्रतिभावान बच्चों की कमी नहीं है. हर तरह की प्रतिभा है. लेकिन सरकार ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों के लिए खेल में प्रोत्साहन के लिए कुछ खास नहीं करती है. उनको संसाधन मिले, तो ये बच्चे देश के लिए अच्छे खिलाड़ी बन सकते हैं. बता दें कि खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद की जयंती के अवसर पर खेल दिवस मनाया जाता है.

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