सारण: जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर कुतुबपुर गांव की सड़क की स्थिति अब तक सुधर नहीं पाई है. ये गांव भोजपुरी के शेक्सपियर भिखारी ठाकुर की जन्मस्थली है. लेकिन अब तक इस ओर सरकार की तरफ से कोई पहल नहीं हो पाई है. नतीजतन ग्रामीणों को कीचड़ भरी सड़क से आना-जाना पड़ रहा है.
किसी पहचान की मोहताज नहीं शख्सियत
भिखारी ठाकुर जिन्हें भोजपुरी का शेक्सपियर कहा जाता है. वो शख्स जिसकी शख्सियत किसी पहचान की मोहताज नहीं है. भोजपुरी की संस्कृति, लोक-संगीत, को अलग आयाम देने वाले, लौंडा नाच के जनक जिन्होंने रंगमंच पर पुरुषों को महिला का वेश बनाकर कला का एक ऐसा रूप पेश किया जिसका कोई सानी नहीं है.
रचनाओं के जरिए भोजपुरी को मिली अलग पहचान
भिखारी ठाकुर का जन्म 18 दिसंबर को बिहार के सारण जिले के कुतुबपुर दियारा गांव में हुआ. इस लोककवि ने अपनी रचनाओं के जरिए भोजपुरी को पूरे विश्व में एक अलग पहचान दी, भोजपुरी रंगमंच को एक नया आयाम दिया. भिखारी ठाकुर ने अपने दौर में जीवंत रचनाओं के जरिए, बेबाकी से सामाजिक बुराइयों की ओर ध्यान खींचा.
बदहाली का शिकार गांव की सड़के
भिखारी ठाकुर के बताए रास्तों पर आज स्थानीय से लेकर मुंबई की मायानगरी के कलाकार भी उसी लौंडा नाच के कॉन्सेप्ट के जरिए अपनी कला का प्रदर्शन करते और लोगों को अपनी प्रशंसक बना लेते हैं. विडंबना है कि उसी कलाकार के गांव तक जाने के लिए ही आपको कीचड़ से सने रास्तों से गुजरना पड़ेगा.
भिखारी ठाकुर के गांव में सरकार ने नहीं दिया ध्यान
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की हर एक गांव को मुख्य सड़क से जोड़ने की योजना भिखारी ठाकुर के गांव में लागू नहीं हो रही है. लोक कवि भिखारी ठाकुर के पैतृक गांव कुतुबपुर तक जाने के लिए लोगों को सड़क तक नसीब नहीं है.
इसे भी पढ़ें- लोककवि भिखारी ठाकुर आज भी उपेक्षित, घर को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने की मांग अब तक अधूरी
पानी और कीचड़ भरे सड़कों पर आवागमन
लोक कवि का यह गांव छपरा सदर प्रखंड में है. छपरा-आरा पथ करीब तीन किलोमीटर की दूरी पर है. ग्रामीणों ने कई बार इस सड़क के जीर्णोद्धार की मांग की लेकिन इसके बाद भी अब तक सड़क की सूरत नहीं बदल पाई है. ग्रामीण आज भी पानी और कीचड़ भरे सड़कों पर आवागमन कर रहे हैं.
सड़क नहीं होने से ग्रामीणों को हो रही परेशानी
ग्रामीणों ने बताया कि तीन पंचयात में लाखों की आबादी है, लेकिन सरकार कि ओर से अभी तक कोई पहल नहीं की गई है. ाया कि अगर गांव में किसी की तबियत बिगड़ जाए तो अस्पताल तक पहुंचने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. ग्रामीणों का आरोप है कि चुनाव आने पर जनप्रतिनिधि आश्वासन देते हैं और जीतने के बाद भूल जाते हैं.