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सारण में धूमधाम से मनी प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र बाबू की जयंती, DM-SP ने प्रतिमा पर किया माल्यार्पण

देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की 137वीं जयंती के अवसर पर मौके पर छपरा के राजेंद्र पालिका चौक पर स्थित प्रतिमा पर डीएम-एसपी समेत माल्यापर्ण कर उन्हें श्रद्धांजलि दी. आगे पढ़ें पूरी खबर...

प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की 137वीं जयंती
प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की 137वीं जयंती
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Published : Dec 3, 2021, 2:14 PM IST

सारण: आज भारत के प्रथम राष्ट्रपति (First President of India) डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की 137वीं जयंती (137th Birth Anniversary of Dr Rajendra Prasad) है. इस मौके पर पर देश उन्हें याद कर रहा है. इस मौके पर छपरा समेत कई जगहों पर कई कार्यक्रमों का आयोजन किया गया है. सबसे मुख्य कार्यक्रम शहर के राजेन्द्र चौक पर आयोजित किया गया. जहां सारण डीएम-एसपी ने राजेंद्र प्रसाद की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उन्हें श्रद्धांजलि दी.

इसे भी पढ़ें : देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की जयंती पर राज्यपाल और मुख्यमंत्री ने दी श्रद्धांजलि

सबसे पहले राजेन्द्र स्मारक भवन पर सबसे पहले राष्ट्र ध्वजारोहण किया गया और तिरंगे को सलामी दी गयी. उसके बाद जिले के वरीय अधिकारियों और राजेंद्र स्मारक समिति के अध्यक्ष कामेश्वर प्रसाद सिंह, पूर्व सारण जिला परिषद अध्यक्ष बैजनाथ प्रसाद विकल, वरीय कांग्रेस नेता जयराम सिंह सहित कई गणमान्य लोगों ने राजेंद्र बाबू की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उन्हें नमन किया. वहीं पहली बार इस कार्यक्रम में भाग ले रहे सारण के नए जिलाधिकारी राजेश मीणा ने सबसे पहले राजेंद्र स्मारक समिति के सबसे बुजुर्ग सदस्य और अध्यक्ष कामेश्वर सिंह विद्वान से प्रतिमा स्थल की पूरी जानकारी ली.

सारण में धूमधाम से मनी प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र बाबू की जयंती

वहीं बिहार के राज्यपाल फागू चौहान और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राजेन्द्र चौक पर राजभवन के सामने डॉ. राजेंद्र प्रसाद (CM Nitish Kumar Pays Tribute To Dr Rajendra Prasad) के समाधि स्थल पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि दी. इसके साथ ही बिहार विधान परिषद के सभापति अवधेश नारायण सिंह ने भी श्रद्धांजलि दी. इस दौरान पटना जिलाधिकारी और एसपी के साथ-साथ बड़ी संख्या में बुद्धिजीवियों ने राजेंद्र बाबू की आदमकद प्रतिमा पर माल्यार्पण किया.

राजेन्द्र बाबू का जन्म 3 दिसम्बर 1884 को बिहार के तत्कालीन सारण जिले (अब सिवान) के जीरादेई नामक गांव में हुआ था. राष्ट्रपति के रूप में उनका कार्यकाल 26 जनवरी 1950 से 14 मई 1962 तक का रहा था. राजेन्द्र प्रसाद के पिता महादेव सहाय संस्कृत एवं फारसी के विद्वान थे और उनकी माता कमलेश्वरी देवी एक धर्मपरायण महिला थीं. राजेन्द्र बाबू की वेशभूषा बड़ी सरल थी. उनके चेहरे-मोहरे को देखकर पता ही नहीं लगता था कि वे इतने प्रतिभासम्पन्न और उच्च व्यक्तित्ववाले सज्जन हैं. देखने में वे सामान्य किसान जैसे लगते थे.

ये भी पढ़ें: शराबबंदी पर Action में दरभंगा SSP बाबूराम, दारोगा सहित 5 पुलिसवालों को किया सस्पेंड

मात्र 12 साल की उम्र में उनका विवाह राजवंशी देवी से हो गया था. डॉ. राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपति महात्मा गांधी से काफी प्रभावित थे. गांधीजी के संपर्क में आने के बाद वह आजादी की लड़ाई में पूरी तरह से मशगूल हो गए. उन्होंने असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया. उनको 1930 में नमक सत्याग्रह में भाग लेने के दौरान गिरफ्तार कर लिया गया. 15 जनवरी 1934 को जब बिहार में एक विनाशकारी भूकम्प आया, तब वह जेल में थे. जेल से रिहा होने के दो दिन बाद ही राजेंद्र प्रसाद धन जुटाने और राहत के कार्यों में लग गए. 1939 में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के इस्तीफे के बाद कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित किया गया.

जुलाई 1946 को जब संविधान सभा को भारत के संविधान के गठन की जिम्मेदारी सौंपी गयी, तब डॉ. राजेंद्र प्रसाद को इसका अध्यक्ष नियुक्त किया गया. आजादी के ढाई साल बाद 26 जनवरी 1950 को स्वतंत्र भारत का संविधान लागू किया गया और डॉ. राजेंद्र प्रसाद को भारत के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में चुना गया. राष्ट्रपति के रूप में अपने अधिकारों का प्रयोग उन्होंने काफी सूझ-बूझ से किया और दूसरों के लिए एक नई मिशाल कायम की. राष्ट्रपति के रूप में 12 साल के कार्यकाल के बाद वर्ष 1962 में डॉ. राजेंद्र प्रसाद सेवानिवृत्त हो गए और उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया.

सेवानिवृत्ति के बाद अपने जीवन के कुछ महीने उन्होंने पटना के सदाक़त आश्रम में बिताए. 28 फरवरी 1963 को डॉ. राजेंद्र प्रसाद का देहांत हो गया. हर साल की तरह इस बार भी डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की 137वीं जयंती पर कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है. वहीं सिवान के जीरादेई स्थित उनके पैतृक आवास पर जोर-शोर से तैयारी चल रही है. जहां प्रशासनिक अधिकारी और कई बड़े नेता उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण करने पहुंचेंगे.

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सारण: आज भारत के प्रथम राष्ट्रपति (First President of India) डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की 137वीं जयंती (137th Birth Anniversary of Dr Rajendra Prasad) है. इस मौके पर पर देश उन्हें याद कर रहा है. इस मौके पर छपरा समेत कई जगहों पर कई कार्यक्रमों का आयोजन किया गया है. सबसे मुख्य कार्यक्रम शहर के राजेन्द्र चौक पर आयोजित किया गया. जहां सारण डीएम-एसपी ने राजेंद्र प्रसाद की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उन्हें श्रद्धांजलि दी.

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सबसे पहले राजेन्द्र स्मारक भवन पर सबसे पहले राष्ट्र ध्वजारोहण किया गया और तिरंगे को सलामी दी गयी. उसके बाद जिले के वरीय अधिकारियों और राजेंद्र स्मारक समिति के अध्यक्ष कामेश्वर प्रसाद सिंह, पूर्व सारण जिला परिषद अध्यक्ष बैजनाथ प्रसाद विकल, वरीय कांग्रेस नेता जयराम सिंह सहित कई गणमान्य लोगों ने राजेंद्र बाबू की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उन्हें नमन किया. वहीं पहली बार इस कार्यक्रम में भाग ले रहे सारण के नए जिलाधिकारी राजेश मीणा ने सबसे पहले राजेंद्र स्मारक समिति के सबसे बुजुर्ग सदस्य और अध्यक्ष कामेश्वर सिंह विद्वान से प्रतिमा स्थल की पूरी जानकारी ली.

सारण में धूमधाम से मनी प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र बाबू की जयंती

वहीं बिहार के राज्यपाल फागू चौहान और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राजेन्द्र चौक पर राजभवन के सामने डॉ. राजेंद्र प्रसाद (CM Nitish Kumar Pays Tribute To Dr Rajendra Prasad) के समाधि स्थल पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि दी. इसके साथ ही बिहार विधान परिषद के सभापति अवधेश नारायण सिंह ने भी श्रद्धांजलि दी. इस दौरान पटना जिलाधिकारी और एसपी के साथ-साथ बड़ी संख्या में बुद्धिजीवियों ने राजेंद्र बाबू की आदमकद प्रतिमा पर माल्यार्पण किया.

राजेन्द्र बाबू का जन्म 3 दिसम्बर 1884 को बिहार के तत्कालीन सारण जिले (अब सिवान) के जीरादेई नामक गांव में हुआ था. राष्ट्रपति के रूप में उनका कार्यकाल 26 जनवरी 1950 से 14 मई 1962 तक का रहा था. राजेन्द्र प्रसाद के पिता महादेव सहाय संस्कृत एवं फारसी के विद्वान थे और उनकी माता कमलेश्वरी देवी एक धर्मपरायण महिला थीं. राजेन्द्र बाबू की वेशभूषा बड़ी सरल थी. उनके चेहरे-मोहरे को देखकर पता ही नहीं लगता था कि वे इतने प्रतिभासम्पन्न और उच्च व्यक्तित्ववाले सज्जन हैं. देखने में वे सामान्य किसान जैसे लगते थे.

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मात्र 12 साल की उम्र में उनका विवाह राजवंशी देवी से हो गया था. डॉ. राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपति महात्मा गांधी से काफी प्रभावित थे. गांधीजी के संपर्क में आने के बाद वह आजादी की लड़ाई में पूरी तरह से मशगूल हो गए. उन्होंने असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया. उनको 1930 में नमक सत्याग्रह में भाग लेने के दौरान गिरफ्तार कर लिया गया. 15 जनवरी 1934 को जब बिहार में एक विनाशकारी भूकम्प आया, तब वह जेल में थे. जेल से रिहा होने के दो दिन बाद ही राजेंद्र प्रसाद धन जुटाने और राहत के कार्यों में लग गए. 1939 में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के इस्तीफे के बाद कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित किया गया.

जुलाई 1946 को जब संविधान सभा को भारत के संविधान के गठन की जिम्मेदारी सौंपी गयी, तब डॉ. राजेंद्र प्रसाद को इसका अध्यक्ष नियुक्त किया गया. आजादी के ढाई साल बाद 26 जनवरी 1950 को स्वतंत्र भारत का संविधान लागू किया गया और डॉ. राजेंद्र प्रसाद को भारत के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में चुना गया. राष्ट्रपति के रूप में अपने अधिकारों का प्रयोग उन्होंने काफी सूझ-बूझ से किया और दूसरों के लिए एक नई मिशाल कायम की. राष्ट्रपति के रूप में 12 साल के कार्यकाल के बाद वर्ष 1962 में डॉ. राजेंद्र प्रसाद सेवानिवृत्त हो गए और उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया.

सेवानिवृत्ति के बाद अपने जीवन के कुछ महीने उन्होंने पटना के सदाक़त आश्रम में बिताए. 28 फरवरी 1963 को डॉ. राजेंद्र प्रसाद का देहांत हो गया. हर साल की तरह इस बार भी डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की 137वीं जयंती पर कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है. वहीं सिवान के जीरादेई स्थित उनके पैतृक आवास पर जोर-शोर से तैयारी चल रही है. जहां प्रशासनिक अधिकारी और कई बड़े नेता उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण करने पहुंचेंगे.

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