छपरा: अब जमाना बदल गया है. बेटियां भी बेटों से किसी भी तरह से पीछे नहीं है. अगर उन्हें शिक्षा मिले और परिवार का सपोर्ट मिले तो वो किसी भी क्षेत्र में अपनी पहचान बना सकती हैं. काजल और ज्योति ने भी ऐसा ही मुकाम हासिल किया है, जिससे न केवल उनके माता-पिता को गर्व हो रहा है, बल्कि वे अन्य लड़कियों के लिए भी मिसाल बन गई हैं.
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सिपाही से बनी सहायक जेल अधीक्षक
जिले के रसूलपुर गांव की रहने वाली काजल तीन साल पहले पुलिस कांस्टेबल बनी थी. सिपाही बनने के बाद उसके अंदर आगे बढ़ने की इच्छा ने उसे और पढ़ने के लिए प्रेरित किया. उसने अपनी तैयारी को जारी रखा. कड़ी मेहनत और सच्ची लगन की बदौलत उसने आखिरकार पुलिस सब आर्डनेंस सर्विस कमीशन का एग्जाम पास कर लिया. काजल अब सिपाही से सहायक जेल अधीक्षक बन गई है.
गांव में खुशी का माहौल
काजल के पिता गांंव-गांव घूमकर अनाज की खरीदारी करते हैं. साधारण व्यवसायी की बेटी काजल अब सहायक जेल अधीक्षक बन गई है. पति और परिवार के लोग बेहद खुश हैं. काजल की कामयाबी से पूरा गांव गौरवान्वित महसूस कर रहा है. स्थानीय समाजसेवी मिथिलेश प्रसाद कहते हैं कि रसूलपुर की इस बेटी पर आज पूरे गांव को फक्र हो रहा है.
सफर आसान नहीं रहा
पुलिस कांस्टेबल से सहायक जेल अधीक्षक तक का सफर इतना भी आसान नहीं था. काजल ने योगियां स्थित रामनंदन उच्च विद्यालय से मैट्रिक और घुरापाली स्थित एसटीडी कालेज से इंटरमीडिएट किया. उसके बाद छपरा के राजेंद्र कालेज से भौतिकी विषय से स्नातक किया. तमाम मुश्किलों और कठिनाइयों के बीच वो अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित रहीं, नतीजा आज सामने है.
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ज्योति बनीं दारोगा
वहीं, नवादा उच्चतर विद्यालय से मैट्रिक और जेपीयू से गणित से स्नातक करने वाली ज्योति भी दारोगा बन गई है. उसकी सफलता से गांव में खुशी की लहर है. दिलीप सिंह और संध्या सिंह की बेटी ज्योति के दारोगा बनने पर गांव में खुशी की लहर है. उसने गांव में ही रहकर सीमित संसाधनों के बीच सेल्फ स्टडी कर दारोगा का पद हासिल किया है. समाजसेवी पंकज सिंह कहते हैं कि गांव की बेटी की इस सफलता पर पूरे गांव में खुशी की लहर है. ये बेटियां गांव की अन्य बेटियों के लिए प्रेरणा बन गई हैं.