छपरा: भारत को भले ही कृषि प्रधान देश कहा जाता हो लेकिन बिहार में किसानों को दुर्दशा का शिकार होन पड़ रहा है. यहां केंद्र और राज्य सरकार की योजनाएं सिर्फ कागजों में है. आलम यह है कि किसानों को खेती के लिए बुनियादी संसाधनों का घोर अभाव है.
ताजा मामला सारण जिले के सदर प्रखंड स्थित तेनुआ पंचायत का हैं. जहां विपरीत परिस्थितियों में भी खेती करते किसानों की दुर्दशा सरकार की सभी योजनाओं पर प्रश्नचिन्ह खड़े कर रही है. इस पंचायत में कई ऐसे गरीब किसान हैं जिनके पास संसाधनों का घोर अभाव है.
संसाधनों का घोर अभाव
संसाधन के अभाव में स्थानीय गरीब किसान अपने खेतों में धान की रोपनी से पहले हेंगा चलाने के लिये बैलों की जगह अपनी कमर में ही हेंगा की रस्सी बांध कर उसका भार खींचने को मजबूर हैं. सरकार की ओर से किसानों को समृद्ध बनाने के लिये उन तक आर्थिक सहायता पहुंचाने के दावे तो बहुत किये जा रहे हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है.
परिवार की जिम्मेदारी खेती पर ही निर्भर
बुजुर्ग महिला किसान का कहना है कि खेती के अलावा कोई भी आधार नहीं है. जिससे परिवार का भरण पोषण हो सके, परिवार की जिम्मेदारी खेती पर ही निर्भर हैं क्योंकि खेती ही हमलोगों के लिए सब कुछ हैं. जिस कारण बारिश नही होने से पम्प से पानी चलवा कर धन की रोपनी की जा रही है.
किसान का दर्द
किसानों का कहना है कि आर्थिक तौर पर कमजोर होने और पैसों के कारण कुदाल से खेतों की जुताई करने के बाद बोरिंग से पानी लेकर धान की रोपनी के लिए तैयार किये हैं. मिट्टी बराबर नहीं होने के कारण हम खुद अपने कमर में रस्सी बांधकर बेटा को बैठाए हैं जिससे खेतों की मिट्टी बराबर हो जाये और धान की रोपनी कर सकें.
परेशान हैं अन्नदाता
किसानों को अन्नदाता कहा गया है. किसानों की समृद्धि ही आर्थिक प्रगति का आधार है. किसानों की तरक्की के लिये दर्जनों योजनाएं हैं लेकिन उन योजनाओं के सफल संचालन के अभाव में अन्नदाताओं को कई बार विषम परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है.