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ग्राउंड रिपोर्ट: 21वीं सदी में भी बिहार के अन्नदाताओं का ये है हाल - tractor

सारण जिले के सदर प्रखंड स्थित तेनुआ पंचायत के किसान के पास संसाधनों का घोर अभाव है.

बेटे को हेंगा पर बिठाकर खेत हेंगाता किसान
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Published : Jul 30, 2019, 7:23 AM IST

छपरा: भारत को भले ही कृषि प्रधान देश कहा जाता हो लेकिन बिहार में किसानों को दुर्दशा का शिकार होन पड़ रहा है. यहां केंद्र और राज्य सरकार की योजनाएं सिर्फ कागजों में है. आलम यह है कि किसानों को खेती के लिए बुनियादी संसाधनों का घोर अभाव है.

ताजा मामला सारण जिले के सदर प्रखंड स्थित तेनुआ पंचायत का हैं. जहां विपरीत परिस्थितियों में भी खेती करते किसानों की दुर्दशा सरकार की सभी योजनाओं पर प्रश्नचिन्ह खड़े कर रही है. इस पंचायत में कई ऐसे गरीब किसान हैं जिनके पास संसाधनों का घोर अभाव है.

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खेत में रोपनी करते किसान

संसाधनों का घोर अभाव
संसाधन के अभाव में स्थानीय गरीब किसान अपने खेतों में धान की रोपनी से पहले हेंगा चलाने के लिये बैलों की जगह अपनी कमर में ही हेंगा की रस्सी बांध कर उसका भार खींचने को मजबूर हैं. सरकार की ओर से किसानों को समृद्ध बनाने के लिये उन तक आर्थिक सहायता पहुंचाने के दावे तो बहुत किये जा रहे हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है.

परिवार की जिम्मेदारी खेती पर ही निर्भर
बुजुर्ग महिला किसान का कहना है कि खेती के अलावा कोई भी आधार नहीं है. जिससे परिवार का भरण पोषण हो सके, परिवार की जिम्मेदारी खेती पर ही निर्भर हैं क्योंकि खेती ही हमलोगों के लिए सब कुछ हैं. जिस कारण बारिश नही होने से पम्प से पानी चलवा कर धन की रोपनी की जा रही है.

खेत में हेंगा चलाता किसान

किसान का दर्द
किसानों का कहना है कि आर्थिक तौर पर कमजोर होने और पैसों के कारण कुदाल से खेतों की जुताई करने के बाद बोरिंग से पानी लेकर धान की रोपनी के लिए तैयार किये हैं. मिट्टी बराबर नहीं होने के कारण हम खुद अपने कमर में रस्सी बांधकर बेटा को बैठाए हैं जिससे खेतों की मिट्टी बराबर हो जाये और धान की रोपनी कर सकें.

परेशान हैं अन्नदाता
किसानों को अन्नदाता कहा गया है. किसानों की समृद्धि ही आर्थिक प्रगति का आधार है. किसानों की तरक्की के लिये दर्जनों योजनाएं हैं लेकिन उन योजनाओं के सफल संचालन के अभाव में अन्नदाताओं को कई बार विषम परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है.

छपरा: भारत को भले ही कृषि प्रधान देश कहा जाता हो लेकिन बिहार में किसानों को दुर्दशा का शिकार होन पड़ रहा है. यहां केंद्र और राज्य सरकार की योजनाएं सिर्फ कागजों में है. आलम यह है कि किसानों को खेती के लिए बुनियादी संसाधनों का घोर अभाव है.

ताजा मामला सारण जिले के सदर प्रखंड स्थित तेनुआ पंचायत का हैं. जहां विपरीत परिस्थितियों में भी खेती करते किसानों की दुर्दशा सरकार की सभी योजनाओं पर प्रश्नचिन्ह खड़े कर रही है. इस पंचायत में कई ऐसे गरीब किसान हैं जिनके पास संसाधनों का घोर अभाव है.

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खेत में रोपनी करते किसान

संसाधनों का घोर अभाव
संसाधन के अभाव में स्थानीय गरीब किसान अपने खेतों में धान की रोपनी से पहले हेंगा चलाने के लिये बैलों की जगह अपनी कमर में ही हेंगा की रस्सी बांध कर उसका भार खींचने को मजबूर हैं. सरकार की ओर से किसानों को समृद्ध बनाने के लिये उन तक आर्थिक सहायता पहुंचाने के दावे तो बहुत किये जा रहे हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है.

परिवार की जिम्मेदारी खेती पर ही निर्भर
बुजुर्ग महिला किसान का कहना है कि खेती के अलावा कोई भी आधार नहीं है. जिससे परिवार का भरण पोषण हो सके, परिवार की जिम्मेदारी खेती पर ही निर्भर हैं क्योंकि खेती ही हमलोगों के लिए सब कुछ हैं. जिस कारण बारिश नही होने से पम्प से पानी चलवा कर धन की रोपनी की जा रही है.

खेत में हेंगा चलाता किसान

किसान का दर्द
किसानों का कहना है कि आर्थिक तौर पर कमजोर होने और पैसों के कारण कुदाल से खेतों की जुताई करने के बाद बोरिंग से पानी लेकर धान की रोपनी के लिए तैयार किये हैं. मिट्टी बराबर नहीं होने के कारण हम खुद अपने कमर में रस्सी बांधकर बेटा को बैठाए हैं जिससे खेतों की मिट्टी बराबर हो जाये और धान की रोपनी कर सकें.

परेशान हैं अन्नदाता
किसानों को अन्नदाता कहा गया है. किसानों की समृद्धि ही आर्थिक प्रगति का आधार है. किसानों की तरक्की के लिये दर्जनों योजनाएं हैं लेकिन उन योजनाओं के सफल संचालन के अभाव में अन्नदाताओं को कई बार विषम परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है.

Intro:SLUG:-SUKHAD KE KARAN KISAN PARESHAN
ETV BHARAT NEWS DESK
F.M:-DHARMENDRA KUMAR RASTOGI/SARAN/BIHAR

Anchor:- केंद्र व राज्य सरकार अपने किसानों के लिए कई तरह की योजनाओं को चला रही हैं लेकिन किसानों तक पहुंचते-पहुंचते योजनाएं सिमट कर रह जाती हैं जिसका जीता जागता उदाहरण सारण जिले के सदर प्रखंड स्थित तेनुआ पंचायत का हैं जहां विपरीत परिस्थितियों में भी खेती करते किसानों की दुर्दशा सरकार की सभी योजनाओं पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर रही है.

इस पंचायत में कई ऐसे गरीब किसान हैं जिनके पास संसाधनों का घोर अभाव है. संसाधन के अभाव में स्थानीय गरीब किसान अपने खेतों में धान की रोपनी से पहले हेंगा चलाने के लिये बैलों की जगह अपनी कमर में ही हेंगा की रस्सी बांध कर उसका भार खींचते नजर आ रहे हैं. किसानों को समृद्ध बनाने के लिये उन तक आर्थिक सहायता पहुंचाने के दावे तो बहुत किये जा रहे हैं. वहीं सारण के खेत-खलिहानों में दिख रही यह तसवीरें अपने आप की सबकुछ बयान करने के लिये काफी हैं.


Byte:-one to oneBody:पुराने समय में कृषि कार्यों में बैलों का इस्तेमाल ज्यादा नजर आता था. आधुनिक युग में ट्रैक्टर व अन्य उपकरणों ने पशुओं की जगह लेनी शुरू कर दी है. धान की रोपनी से पहले खेतों के मिट्टी के ढेला को चूर करने के लिये हेंगा किया जाता है. पुराने कृषक बताते हैं कि जिस समय राजा-महाराज या जमींदारी प्रथा का प्रचलन था उस समय खेतों में हेंगा के लिये बैलों की जगह इंसान लगाये जाते थे. तब यह बहुत कष्टप्रद होता था. बाद में किसान बदलायन ( एक दूसरे से बैल का आदान प्रदान कर) हेंगा करते थे. आज के जमाने में ऐसी घटना मानवीय सम्वेदनाओं को तार-तार करती नकर आती हैं.

Byte:-गरीब किसान


बुजुर्ग महिला किसान का कहना है कि खेती के अलावे कोई भी आधार नही है जिससे परिवार का भरण पोषण हो सकें, परिवार की जिम्मेदारी खेती पर ही निर्भर हैं क्योंकि खेती ही हमलोगों के लिए सब कुछ हैं, जिस कारण बारिश नही होने से पम्प से पानी चलवा कर धन की रोपनी की जा रही हैं.

Byte:-फुलपति कुंवर, महिला किसान

Conclusion:धान की रोपनी करने के लिए पानी से लबालब भरे खेत में अपने बेटे को हेंगा पर बैठा कर खेतों की मिट्टी को बराबर करने में लगे सदर प्रखंड के तेनुआ गांव निवासी युवा किसान मोहन का कहना है कि हमलोग नौकरी पेशा लोग नही है और न ही कोई व्यवसायी हैं बल्कि हमलोग एक छोटे से किसान हैं जो मेहनत मजदूरी कर खेतों से अनाज पैदा कर अपना व अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं.

आर्थिक स्थिति से कमजोर होने व पैसों की के कारण कुदाल से खेतों की जुताई करने के बाद बोरिंग से पानी लेकर धान की रोपनी के लिए तैयार किये हैं मिट्टी बराबर नही होने के कारण हम खुद अपने कमर में रस्सी बांधकर बेटा को बैठाए हैं जिससे खेतों की मिट्टी बराबर हो जाये और धान की रोपनी कर सकें.

Byte:-मोहन कुमार साह, किसान

किसानों को अन्नदाता कहा गया है. किसानों की समृद्धि ही आर्थिक प्रगति का आधार है. किसानों की तरक्की के लिये दर्जनों योजनाएं हैं लेकिन उन योजनाओं के सफल संचालन के अभाव में अन्नदाताओं को कई बार विषम परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है.
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