सारण: कहते हैं कि दो जून की रोटी हर किसी को नसीब नहीं होती हैं. यह एक प्रचलित कहावत है. ये कहावत उन मजदूरों पर सटीक बैठती है जो मजदूरी के लिए घर से निकलते हैं. लेकिन, जब उन्हें काम नहीं मिलता और वापस निराश होकर घर लौट आते हैं.
मौना चौक पर बेबस मजदूर
दरअसल, प्रमंडलीय मुख्यालय सारण के छपरा शहर स्थित मौना चौक पर कई मजदूर हर सुबह अपनी रोजगार के लिए भीड़ में खड़े मिलते हैं. मजदूर बिकने के लिए अपने खरीददार का इंतजार करते हैं. ताकि उन्हें और उनके परिवार को दो वक्त की रोटी नसीब हो सके.
काम की खोज में फिर रहे दर-दर
इस बारे में नगरा निवासी मदन पासवान ने कहा कि वे घर से प्रतिदिन काम की खोज में छपरा आते हैं. लेकिन, काम नहीं मिलने के कारण उदास वापस लौटना पड़ता है. उन्होंने कहा कि 300 से 400 के लिए कड़ी धूप में घर छोड़ देते हैं. लेकिन, काम नहीं मिलने से सारी उम्मीद टूट जाती है. दूसरे लोगों से कर्ज लेकर घर चलाना पड़ता है.
मजदूरों पर सरकार दे ध्यान
वहीं, अवतार नगर निवासी रणधीर कुमार सिंह का कहना है कि हर कोई अपने घर में काम कराने के लिए मजदूरों को ले जाते हैं. कभी 300 तो कभी 350 पर हमारी कीमत तय की जाती है. लेकिन, जब मजदूरों की संख्या ज्यादा होती है तो काम के लिए उन्हें भटकना पड़ता है. उन्होंने कहा कि सरकार सिर्फ वोट के लिए मजदूरों के हित के बारे में बातें करती हैं. लेकिन, मतलब निकलते ही हर कोई भूल जाता है. रणधीर के मुताबिक जिस दिन काम मिलता है, उस दिन घर का खर्च आसानी से निकल जाता है. लेकिन, जिस दिन काम नहीं मिलता, उस दिन दाने- दाने को मोहताज होना पड़ता है.
सरकार दे स्थाई काम
जिस प्रकार देश में मंहगाई तेजी से बढ़ रही है. ऐसे में मजदूर वर्ग के लोगों के काम नहीं मिले तो इनका जीवन सही तरीके से चलना मुश्किल हो जाता है. ऐसे में मजदूरों की सरकार से गुजारिश है कि सरकार मजदूरों के लिए स्थाई काम देने की योजना बनाए.