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सारण: दो जून की रोटी के लिए जद्दोजहद करते मजदूर, घर चलाना हो रहा मुश्किल

कभी 300 तो कभी 350 पर मजदूरों की कीमत तय की जाती है. मजदूरों का कहना है कि नेता सिर्फ वोट के लिए मजदूरों के हित की बात करती है. लेकिन, मतलब निकलते ही वे हमारी जरूरतों को भूल जाते हैं.

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Published : Jun 3, 2019, 12:01 PM IST

निराश मजदूर

सारण: कहते हैं कि दो जून की रोटी हर किसी को नसीब नहीं होती हैं. यह एक प्रचलित कहावत है. ये कहावत उन मजदूरों पर सटीक बैठती है जो मजदूरी के लिए घर से निकलते हैं. लेकिन, जब उन्हें काम नहीं मिलता और वापस निराश होकर घर लौट आते हैं.

मौना चौक पर बेबस मजदूर
दरअसल, प्रमंडलीय मुख्यालय सारण के छपरा शहर स्थित मौना चौक पर कई मजदूर हर सुबह अपनी रोजगार के लिए भीड़ में खड़े मिलते हैं. मजदूर बिकने के लिए अपने खरीददार का इंतजार करते हैं. ताकि उन्हें और उनके परिवार को दो वक्त की रोटी नसीब हो सके.

मजदूरी के इंतजार में मजदूर

काम की खोज में फिर रहे दर-दर
इस बारे में नगरा निवासी मदन पासवान ने कहा कि वे घर से प्रतिदिन काम की खोज में छपरा आते हैं. लेकिन, काम नहीं मिलने के कारण उदास वापस लौटना पड़ता है. उन्होंने कहा कि 300 से 400 के लिए कड़ी धूप में घर छोड़ देते हैं. लेकिन, काम नहीं मिलने से सारी उम्मीद टूट जाती है. दूसरे लोगों से कर्ज लेकर घर चलाना पड़ता है.

saran
काम की तालाश में मजदूर

मजदूरों पर सरकार दे ध्यान
वहीं, अवतार नगर निवासी रणधीर कुमार सिंह का कहना है कि हर कोई अपने घर में काम कराने के लिए मजदूरों को ले जाते हैं. कभी 300 तो कभी 350 पर हमारी कीमत तय की जाती है. लेकिन, जब मजदूरों की संख्या ज्यादा होती है तो काम के लिए उन्हें भटकना पड़ता है. उन्होंने कहा कि सरकार सिर्फ वोट के लिए मजदूरों के हित के बारे में बातें करती हैं. लेकिन, मतलब निकलते ही हर कोई भूल जाता है. रणधीर के मुताबिक जिस दिन काम मिलता है, उस दिन घर का खर्च आसानी से निकल जाता है. लेकिन, जिस दिन काम नहीं मिलता, उस दिन दाने- दाने को मोहताज होना पड़ता है.

सरकार दे स्थाई काम
जिस प्रकार देश में मंहगाई तेजी से बढ़ रही है. ऐसे में मजदूर वर्ग के लोगों के काम नहीं मिले तो इनका जीवन सही तरीके से चलना मुश्किल हो जाता है. ऐसे में मजदूरों की सरकार से गुजारिश है कि सरकार मजदूरों के लिए स्थाई काम देने की योजना बनाए.

सारण: कहते हैं कि दो जून की रोटी हर किसी को नसीब नहीं होती हैं. यह एक प्रचलित कहावत है. ये कहावत उन मजदूरों पर सटीक बैठती है जो मजदूरी के लिए घर से निकलते हैं. लेकिन, जब उन्हें काम नहीं मिलता और वापस निराश होकर घर लौट आते हैं.

मौना चौक पर बेबस मजदूर
दरअसल, प्रमंडलीय मुख्यालय सारण के छपरा शहर स्थित मौना चौक पर कई मजदूर हर सुबह अपनी रोजगार के लिए भीड़ में खड़े मिलते हैं. मजदूर बिकने के लिए अपने खरीददार का इंतजार करते हैं. ताकि उन्हें और उनके परिवार को दो वक्त की रोटी नसीब हो सके.

मजदूरी के इंतजार में मजदूर

काम की खोज में फिर रहे दर-दर
इस बारे में नगरा निवासी मदन पासवान ने कहा कि वे घर से प्रतिदिन काम की खोज में छपरा आते हैं. लेकिन, काम नहीं मिलने के कारण उदास वापस लौटना पड़ता है. उन्होंने कहा कि 300 से 400 के लिए कड़ी धूप में घर छोड़ देते हैं. लेकिन, काम नहीं मिलने से सारी उम्मीद टूट जाती है. दूसरे लोगों से कर्ज लेकर घर चलाना पड़ता है.

saran
काम की तालाश में मजदूर

मजदूरों पर सरकार दे ध्यान
वहीं, अवतार नगर निवासी रणधीर कुमार सिंह का कहना है कि हर कोई अपने घर में काम कराने के लिए मजदूरों को ले जाते हैं. कभी 300 तो कभी 350 पर हमारी कीमत तय की जाती है. लेकिन, जब मजदूरों की संख्या ज्यादा होती है तो काम के लिए उन्हें भटकना पड़ता है. उन्होंने कहा कि सरकार सिर्फ वोट के लिए मजदूरों के हित के बारे में बातें करती हैं. लेकिन, मतलब निकलते ही हर कोई भूल जाता है. रणधीर के मुताबिक जिस दिन काम मिलता है, उस दिन घर का खर्च आसानी से निकल जाता है. लेकिन, जिस दिन काम नहीं मिलता, उस दिन दाने- दाने को मोहताज होना पड़ता है.

सरकार दे स्थाई काम
जिस प्रकार देश में मंहगाई तेजी से बढ़ रही है. ऐसे में मजदूर वर्ग के लोगों के काम नहीं मिले तो इनका जीवन सही तरीके से चलना मुश्किल हो जाता है. ऐसे में मजदूरों की सरकार से गुजारिश है कि सरकार मजदूरों के लिए स्थाई काम देने की योजना बनाए.

Intro:डे प्लान वाली ख़बर हैं
MOJO KIT NUMBER:-577
SLUG:-DO JUNE KI ROTI HAR KISI KO NASIB NAHI HOTI
ETV BHARAT NEWS DESK
F.M:-DHARMENDRA KUMAR RASTOGI/SARAN/BIHAR

Anchor:-कहते हैं कि दो जून की रोटी हर किसी को नसीब नही होती हैं लेकिन यह कहावत नही बल्कि एक सच्चाई भी हैं.
प्रमंडलीय मुख्यालय सारण के छपरा शहर स्थित मौना चौक पर खड़े मेहनत करने वाले मजदूर बिकने के लिए अपने खरीददार का इंतजार कर रहे है कि कोई न कोई तो आएगा और मुझें खरीद कर अपने साथ ले जाएगा.


Body:नगरा निवासी मदन पासवान का कहना हैं कि घर से प्रतिदिन छपरा आते हैं कि कोई काम मिलेगा लेकिन मिलता नही है जिस कारण वापस वैरंग लौटना पड़ता हैं.

350 से 4 सौ रुपये तय कर हमलोगों को ले जाया जाता हैं लेकिन काम करा लेने के बाद कम पैसे देकर कहा जाता हैं कि लेना है तो लो नही तो जाओ.

byte:-मदन पासवान, मजदूर

वही अवतार नगर निवासी रणधीर कुमार सिंह का कहना है कि हर कोई अपने घरों में काम कराने के लिए ले जाता है और काम भी कराता हैं लेकिन जब मजदूरी देने की बात सामने आती है तो तरह तरह के बहाने बनाकर कम पैसे दिया जाता हैं.

जिस दिन काम मिलता हैं उस दिन घर के खर्चे आसानी से चल जाता है लेकिन जिस दिन काम नही मिलता हैं उस दिन पॉकेट खर्च भी नसीब नही होता हैं साथ ही घर से छपरा आने जाने का खर्च भी घर से निकल जाता हैं.

byte:-रणधीर कुमार सिंह, मजदूर


Conclusion:नई सरकार से मजदूरों का मांग हैं कि हमलोगों को भी दूसरे के समान जीने का अधिकार है तो फिर वैसा हमलोगों के साथ क्यों नही किया जाता है.

सरकार तो घोषणाएं करती हैं लेकिन धरातल पर कोई हकीकत दिखाई नही देती हैं, हमलोगों को अगर स्किल डेवलपमेंट करा दिया जाए तो अच्छे अच्छे कंपनियों में नौकरी कर सकते है गरीबी के कारण हमलोगों को कोई स्थायी जगह नही मिलती है.
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