समस्तीपुर: कल तक घरों के पर्दे में छिप कर रहने वाली महिलाएं आज आत्मनिर्भर बन रही हैं. सरकार की कोशिश समस्तीपुर जिले के रोसरा अनुमंडल स्थित मिर्जापुर गांव में कामयाब होती दिख रही है. इस गांव की महिलाएं आज घर की दहलीज को लांघकर पुरूषों से कंधे-से-कंधा मिलाकर घर को आगे बढ़ा रही हैं. यह महिलाएं रोसड़ा बांस से अनोखी कलाकृति तैयार कर गांव की तस्वीर बदल रही हैं.
3 महीने की ट्रेनिंग के बाद हुई हुनरमंद
समस्तीपुर के मिर्जापुर गांव में महिलाओं की टोली एकसाथ बैठकर बांस की कलाकृतियां तैयार कर रही हैं. महिलाएं कहती हैं कि कल तक इनका परिवार और बच्चे गरीबी से जूझ रहे थे. लेकिन, सरकारी मदद के बाद अब हालात कुछ और हैं. 3 महीने की ट्रेनिंग लेने के बाद अब वे हुनरमंद हो गई हैं और इनके अंदर ऐसी कला समा गई है कि वह रोसड़ा बांस से कई प्रकार का सामान बना रही हैं.
'वेणु शिल्प हैंडीक्राफ्ट प्रशिक्षण' के तहत मिला गुर
समस्तीपुर महिलाओं की टोली बांस से जहाज, पेन स्टैंड, झूला जैसे सामान बना रही हैं. इससे उन्हें 400 से 500 प्रतिदिन की कमाई हो जाती है. अब उनकी जिंदगी खुशहाल बीत रही है. महिलाओं का कहना है कि गरीबी के कारण उन लोगों को काफी परेशानी होती थी. लेकिन, भारत सरकार की ओर से 'वेणु शिल्प हैंडीक्राफ्ट प्रशिक्षण' के जरिए उन्हें प्रशिक्षण दिया गया. बांस से अलग-अलग तरह की कलाकृतियां सिखाई गईं. जिससे अब वह आत्मनिर्भर बनी हैं.
राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिलेगी पहचान
हैंडीक्राफ्ट के क्लस्टर एग्जीक्यूटिव का कहना है कि गांव देहात में गरीबी को लेकर सर्वे किया गया. यह जाना गया कि बांस से सामान बनाने को लेकर कौन-कौन सी महिलाएं इच्छुक हैं. उस सर्वे के आधार पर मिर्जापुर गांव में एक ट्रेनिंग सेंटर डाला गया. जहां दर्जनों महिलाओं ने ट्रेनिंग ली. उन्होंने यह भी कहा कि अब वह दिन दूर नहीं जब रोसड़ा बांस कलाकृति राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी एक अलग पहचान हासिल कर लेगी.