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जानिए कैसे बदली ग्रामीण महिलाओं की तस्वीर और तकदीर, अब रोजाना कर रही 500 से अधिक की कमाई - women are being self dependent

भारत सरकार की ओर से वेणु शिल्प हैंडीक्राफ्ट प्रशिक्षण के जरिए उन्हें प्रशिक्षण दिया गया. बांस से अलग-अलग तरह की कलाकृतियां सिखाई गई. जिससे अब वह आत्मनिर्भर बनी हैं.

कलाकृतियां तैयार करती महिलाएं
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Published : Jul 15, 2019, 7:23 PM IST

समस्तीपुर: कल तक घरों के पर्दे में छिप कर रहने वाली महिलाएं आज आत्मनिर्भर बन रही हैं. सरकार की कोशिश समस्तीपुर जिले के रोसरा अनुमंडल स्थित मिर्जापुर गांव में कामयाब होती दिख रही है. इस गांव की महिलाएं आज घर की दहलीज को लांघकर पुरूषों से कंधे-से-कंधा मिलाकर घर को आगे बढ़ा रही हैं. यह महिलाएं रोसड़ा बांस से अनोखी कलाकृति तैयार कर गांव की तस्वीर बदल रही हैं.

ईटीवी भारत संवाददाता की रिपोर्ट

3 महीने की ट्रेनिंग के बाद हुई हुनरमंद
समस्तीपुर के मिर्जापुर गांव में महिलाओं की टोली एकसाथ बैठकर बांस की कलाकृतियां तैयार कर रही हैं. महिलाएं कहती हैं कि कल तक इनका परिवार और बच्चे गरीबी से जूझ रहे थे. लेकिन, सरकारी मदद के बाद अब हालात कुछ और हैं. 3 महीने की ट्रेनिंग लेने के बाद अब वे हुनरमंद हो गई हैं और इनके अंदर ऐसी कला समा गई है कि वह रोसड़ा बांस से कई प्रकार का सामान बना रही हैं.

samastipur
कलाकृतियां तैयार करती महिलाएं

'वेणु शिल्प हैंडीक्राफ्ट प्रशिक्षण' के तहत मिला गुर
समस्तीपुर महिलाओं की टोली बांस से जहाज, पेन स्टैंड, झूला जैसे सामान बना रही हैं. इससे उन्हें 400 से 500 प्रतिदिन की कमाई हो जाती है. अब उनकी जिंदगी खुशहाल बीत रही है. महिलाओं का कहना है कि गरीबी के कारण उन लोगों को काफी परेशानी होती थी. लेकिन, भारत सरकार की ओर से 'वेणु शिल्प हैंडीक्राफ्ट प्रशिक्षण' के जरिए उन्हें प्रशिक्षण दिया गया. बांस से अलग-अलग तरह की कलाकृतियां सिखाई गईं. जिससे अब वह आत्मनिर्भर बनी हैं.

samastipur
दर्जनों महिलाएं बनी आत्मनिर्भर

राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिलेगी पहचान
हैंडीक्राफ्ट के क्लस्टर एग्जीक्यूटिव का कहना है कि गांव देहात में गरीबी को लेकर सर्वे किया गया. यह जाना गया कि बांस से सामान बनाने को लेकर कौन-कौन सी महिलाएं इच्छुक हैं. उस सर्वे के आधार पर मिर्जापुर गांव में एक ट्रेनिंग सेंटर डाला गया. जहां दर्जनों महिलाओं ने ट्रेनिंग ली. उन्होंने यह भी कहा कि अब वह दिन दूर नहीं जब रोसड़ा बांस कलाकृति राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी एक अलग पहचान हासिल कर लेगी.

समस्तीपुर: कल तक घरों के पर्दे में छिप कर रहने वाली महिलाएं आज आत्मनिर्भर बन रही हैं. सरकार की कोशिश समस्तीपुर जिले के रोसरा अनुमंडल स्थित मिर्जापुर गांव में कामयाब होती दिख रही है. इस गांव की महिलाएं आज घर की दहलीज को लांघकर पुरूषों से कंधे-से-कंधा मिलाकर घर को आगे बढ़ा रही हैं. यह महिलाएं रोसड़ा बांस से अनोखी कलाकृति तैयार कर गांव की तस्वीर बदल रही हैं.

ईटीवी भारत संवाददाता की रिपोर्ट

3 महीने की ट्रेनिंग के बाद हुई हुनरमंद
समस्तीपुर के मिर्जापुर गांव में महिलाओं की टोली एकसाथ बैठकर बांस की कलाकृतियां तैयार कर रही हैं. महिलाएं कहती हैं कि कल तक इनका परिवार और बच्चे गरीबी से जूझ रहे थे. लेकिन, सरकारी मदद के बाद अब हालात कुछ और हैं. 3 महीने की ट्रेनिंग लेने के बाद अब वे हुनरमंद हो गई हैं और इनके अंदर ऐसी कला समा गई है कि वह रोसड़ा बांस से कई प्रकार का सामान बना रही हैं.

samastipur
कलाकृतियां तैयार करती महिलाएं

'वेणु शिल्प हैंडीक्राफ्ट प्रशिक्षण' के तहत मिला गुर
समस्तीपुर महिलाओं की टोली बांस से जहाज, पेन स्टैंड, झूला जैसे सामान बना रही हैं. इससे उन्हें 400 से 500 प्रतिदिन की कमाई हो जाती है. अब उनकी जिंदगी खुशहाल बीत रही है. महिलाओं का कहना है कि गरीबी के कारण उन लोगों को काफी परेशानी होती थी. लेकिन, भारत सरकार की ओर से 'वेणु शिल्प हैंडीक्राफ्ट प्रशिक्षण' के जरिए उन्हें प्रशिक्षण दिया गया. बांस से अलग-अलग तरह की कलाकृतियां सिखाई गईं. जिससे अब वह आत्मनिर्भर बनी हैं.

samastipur
दर्जनों महिलाएं बनी आत्मनिर्भर

राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिलेगी पहचान
हैंडीक्राफ्ट के क्लस्टर एग्जीक्यूटिव का कहना है कि गांव देहात में गरीबी को लेकर सर्वे किया गया. यह जाना गया कि बांस से सामान बनाने को लेकर कौन-कौन सी महिलाएं इच्छुक हैं. उस सर्वे के आधार पर मिर्जापुर गांव में एक ट्रेनिंग सेंटर डाला गया. जहां दर्जनों महिलाओं ने ट्रेनिंग ली. उन्होंने यह भी कहा कि अब वह दिन दूर नहीं जब रोसड़ा बांस कलाकृति राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी एक अलग पहचान हासिल कर लेगी.

Intro:स्पेशल रिपोर्ट
रोसड़ा बांस कला की होगी अलग पहचान
समस्तीपुर कल तक अपने घर के अंदर पर्दानशी रहने वाली महिलाएं आज घर के दलीज से बाहर निकल कर खुद और गांव की महिलाएं के साथ बदल रही है तकदीर । यह महिलाएं बांस से अनोखी कलाकृति बनाकर बदल रही गांव की तस्वीर ।


Body:महिलाएं की टोली एक साथ बैठकर बांस से अलग-अलग सामान का निर्माण करती ।यह सभी महिलाएं रोसरा अनुमंडल के मिर्जापुर के गांव की रहने वाली हैं ।कल तक यह गरीबी से जूझ रही थी ।लेकिन 3 महीने की ट्रेनिंग लेने के बाद अब यह हुनरमंद हो गई। और इनके अंदर ऐसा कला समा गया कि बांस से कई प्रकार का समान निर्माण कर अपनी तकदीर और तस्वीर बदलने में लग गई है ।ये महिलाएं की टोली बांस से जहाज पेन स्टैंड झूला जैसे सामान का निर्माण कर 400 से ₹500 प्रतिदिन कमा लेती है मअब इनकी जिंदगी खुशहाली से बीत रही है ।वहीं महिलाओं का बताना है कि गरीबी के कारण हम लोगों को काफी परेशानी होती थी मलेकिन भारत सरकार के द्वारा वेणु शिल्प हैंडीक्राफ्ट प्रशिक्षण के जरिए हम लोगों ने प्रशिक्षण प्राप्त कर बांस से अलग अलग तरह का कलाकृति बनाकर बाजार में बेचते हैं जिस पैसे से हम लोगों का घर परिवार चलता है ।अब हम लोग गरीब नहीं है बल्कि गरीबी हम लोगों से दूर भाग गया है।


Conclusion:वहीं हैंडीक्राफ्ट के फेसिलेटर का बताना है कि गांव देहात में गरीबी को लेकर सर्वे किया गया ।और साथ ही यह सर्वे किया गया कि बांस से सामान बनाने को कौन-कौन से महिला इच्छुक हैं। और उस सर्वे के आधार पर मिर्जापुर गांव में एक ट्रेनिंग सेंटर डाला गया। जहां दर्जनों महिला आकर ट्रेनिंग ली और आज बांस से सामान बनाकर अपनी गरीबी दूर करने में लगी हुई है ।अब वह दिन दूर नहीं जब रोसरा की बांस कला राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना एक अलग पहचान बना लेगा।
बाईट: कलाकार महिला
बाईट:कमल देव पाठक
पीटीसी
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