समस्तीपुर: शिक्षण संस्थानों में छात्र-छात्राओं को बसंत पंचमी माह में ज्ञान की देवी मां सरस्वती पूजा का इंतजार रहता है. जिसको लेकर मूर्ति बनाने वाले मूर्तिकारों में भी खासा उत्साह देखा जाता है. लेकिन मूर्ति कला को पेशा बनाने वाले कुम्हार कोरोना महामारी की मार से बेदम हो चुके है. कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामले को देख सरकार बिहार ने नाइट कर्फ्यू (Night Curfew In Bihar) लगाया है. धार्मिक स्थल, कोचिंग संस्थान, कॉलेज, स्कूल, पार्क, सिनेमा हॉल बंद कर दिये हैं. ऐसे में आने वाले सरस्वती पूजा के लिए मूर्ति बना रहे कलाकारों का दर्द किसी से छिपी नहीं है. कोरोना के कारण मूर्तिकारों को पिछले साल भारी नुकसान उठाना पड़ा था.
मिट्टी में जान फूंकने वाले मूर्तिकारों का हाल बदहाल कर दिया है. अपने पारंपरिक काम को रोजगार बनाने वाले इन कलाकारों के लिए अपना और परिवारों का पेट पालना मुश्किल होता जा रहा है. दरअसल दूसरे साल भी कोरोना का कहर इस कलाकारों पर आफत बनकर टूटा है. कोरोना संक्रमण नियंत्रण को लेकर प्रभावी पाबंदियों के तहत शिक्षण संस्थान बंद होने के कारण इस बार सरस्वती पूजा में महंगी व बड़ी मूर्तियों की मांग न के बराबर है. वहीं सरस्वती पूजा के बीच इंटरमीडिएट परीक्षा होने के कारण मूर्ति का आर्डर भी अन्य वर्षो की तुलना में काफी कम है. जिससे मूर्ति बनाने के पेशे से जुड़े लोगों के लिये दो वक्त की रोटी का जुगाड़ कर पाना भारी पड़ रहा है.
जिला मुख्यालय के काशीपुर में दशकों से मूर्ति कारोबार से जुड़े मूर्तिकारों की माने तो बीते वर्ष से भी ज्यादा इस वर्ष हाल खराब है. स्कूल कोचिंग बंद रहने के कारण सामान्य वर्ष की तुलना में महज 25 फीसदी ऑर्डर मिला है. वहीं जो भी ऑर्डर मिल रहा, वह सिर्फ व सिर्फ कम कीमत की छोटी मूर्तियों के लिए मिल रहा है. हालांकि, कई मूर्तिकारों ने पूर्व वर्ष के हालात से सबक लेते हुए, इस साल बहुत कम व छोटी मूर्ति ही बनाया है. लेकिन उसका भी सही तरीके से आर्डर नहीं मिल रहा.
कुम्हारों के मुताबिक, उन्हें कोरोना के पहले ही मूर्तियों का उचित मूल्य नहीं मिल पाता था. कोरोना महामाही ने कुम्हार का ओर कमर तोड़ दिया है. आने वाले सरस्वती पूजा को देखते हुए दिन-रात एक कर मूर्ति गढ़ने में लगे हुए हैं. लेकिन इतनी मेहनत करने के बाद भी उन्हें उन मूर्तियों का उचित मूल्य नहीं मिलता है. कारीगरों के मुताबिक आज प्राचीन मूर्ति कला को बचाने की जरूरत है. कुम्हारों को उनकी मेहनत का उचित मूल्य मिलना चाहिए. नहीं तो वो दिन दूर नहीं जब मूर्ति निर्माण में मल्टीनेशनल कंपनियों का बोलबाला हो जाएगा.
बताया जाता है कि हिंदू धर्म और सनातन संस्कृति में मिट्टी की मूर्तियों का काफी महत्व है. प्रमुख त्योहारों दुर्गा पूजा, गणपति पूजा और सरस्वती पूजा जैसे प्रमुख त्योहारों में मिट्टी की मूर्ति की पूजा की परंपरा है. इस पूजा में बड़े-बड़े पंडाल सजाए जाते हैं. दुर्गा की प्रतिमा को स्थापित किया जाता है. पूजा कमिटी के सदस्य सब जगह पैसे खर्च करते हैं. लेकिन मूर्तियों का उचित मूल्य नहीं देते हैं. जिससे इन मूर्तियों को बनाने वाले कुम्हार घाटे में चला जाता है.
बता दें कि कोरोना के खतरे को देखते हुए राज्यभर में पाबंदियां लागू है. इसका असर इस बार सरस्वती पूजा के आयोजन पर भी देखने को मिल रहा है. इस साल सरस्वती पूजा 5 फरवरी को है. लोगों मानना है की आस्था के अनुरूप लोग पूजा जरूर कर रहे हैं. लेकिन व्यवस्था में थोड़ी कमी की गई है. मूर्तियों की मांग कम होने से मूर्तिकार काफी चिंतित हैं. वहीं आने वाले समय में मूर्तिकारों को यह उम्मीद है कि बचे वक्त में उन्हें कुछ और ऑर्डर मिल सकते हैं.
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