ETV Bharat / state

वृंदावन की होली के नाम से प्रसिद्ध है रोसड़ा के भिरहा की होली, कई राज्यों के लोग होते हैं शामिल - समस्तीपुर के भिरहा में होली

समस्तीपुर के रोसड़ा प्रखंड अंतर्गत भिरहा गांव की होली वृंदावन की होली के नाम से प्रसिद्ध है. कई राज्य से लोग यहां होली का आनंद लेने पहुंचते हैं.

समस्तीपुर में होली
समस्तीपुर में होली
author img

By

Published : Mar 28, 2021, 4:23 PM IST

समस्तीपुर: बिहार के समस्तीपुर में एक ऐसा गांव है, जहां की होली में वृंदावन की होली का नजारा दिखता है. भिरहा में बिहार के कई जिला एवं और राज्यों के लोग यहां की होली देखने आते हैं. कोविड-19 को लेकर यहां व्यवस्था में कुछ बदलाव जरूर दिखेगा. कोविड-19 को लेकर जारी निर्देश के अनुसार यहां तमाम व्यवस्थाएं की जा रही हैं. होली के दौरान यहां आने वाले लोगों को कोविड-19 को लेकर जागरूक भी किया जाएगा. जिसको लेकर तमाम तैयारियां की जा रही हैं.

यह भी पढ़ें- बुरा न मानो होली है! राजद नेता ने तेज-तेजस्वी के गानों पर बार बालाओं को नचाया

ब्रज के तर्ज पर हो रही है होली
जिले के रोसड़ा प्रखंड के भिरहा गांव की होली करीब ढ़ाई सौ वर्षों से आज भी ब्रज के तर्ज पर हो रही है. यहां की होली को देख राष्ट्रकवि दिनकर ने इसे बिहार के वृंदावन का दर्जा दिया था. होली के दो स्प्ताह पूर्व से ही गांव में उत्सव का माहौल कायम रहता है. होली से एक दिन पूर्व होलिका दहन की संध्या से ही पूरब, पश्चिम एवं उत्तर टोले में निर्धारित स्थानों पर अलग-अलग सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन जारी रहता है. दूर-दूर से आए मशहूर बैंड के बीच कलाकारों के बीच कंपीटीशन होता है.

देखें पूरी रिपोर्ट

हजारों लोग रहते हैं उपस्थित
प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले को पुरस्कार से भी नवाजा जाता है. इस दौरान क्षेत्र के हजारों लोग उपस्थित रहते हैं. बड़े-बड़े तोरण द्वार और चमचमाती रोशनी के बीच सम्पूर्ण गांव पूरी रात जगमगाहट रहती है. होली के दिन भी नृत्य का आनंद लेने के पश्चात तीनों टोली दोपहर बाद गांव में स्थित फगुआ पोखर पहुंचते हैं. जहां पूरे गांव के रंगों की पिचकारी से पोखर के पानी को गुलाबी रंग किया जाता है. इसके पश्चात गाने की धुन पर एक-दूसरे को रंग डालकर जश्न मनाते हैं. भिरहा की होली न सिर्फ मिथिलांचल में बल्कि प्रदेश स्तर पर इसकी एक अलग पहचान है.

पवारी टोली होली समिति, भिरहा
पवारी टोली होली समिति, भिरहा

यह भी पढ़ें- बीजेपी प्रदेश कार्यालय में नंदकिशोर यादव और स्वास्थ्य मंत्री मंगल पाण्डेय ने सुनी पीएम के 'मन की बात'

1935 से परंपरा की शुरुआत
गांव के शिक्षक विनय कुमार राय ने बताया कि 1935 में गांव के कई गणमान्य लोग एक साथ होली देखने वृंदावन गए थे. वहां की होली ने उनका मन मोह लिया और वहां से लौटने के पश्चात ग्रामीणों द्वारा कुछ अहम निर्णय लिए गए. निर्णयों पर वर्ष 1936 से भिरहा में ब्रज की तर्ज पर होली उत्सव मनाना प्रारंभ किया. उसके बाद वर्ष 1941 में यह गांव तीन भागों में बंटकर होली मनाने लगा. हालांकि इस बार कोरोना को लेकर जारी गाइडलाइन के मद्देनजर ग्रामीणों के साथ स्थानीय प्रशासन की एक बैठक भी संपन्न हुई है.

जिसमें गृह विभाग द्वारा जारी गाइडलाइन के मद्देनजर होली आयोजन का निर्णय लिया गया है. परंपराओं को निभाने का भरसक प्रयास किया जा रहा है, जिसकी युद्ध स्तर पर तैयारियां जारी है.

समस्तीपुर: बिहार के समस्तीपुर में एक ऐसा गांव है, जहां की होली में वृंदावन की होली का नजारा दिखता है. भिरहा में बिहार के कई जिला एवं और राज्यों के लोग यहां की होली देखने आते हैं. कोविड-19 को लेकर यहां व्यवस्था में कुछ बदलाव जरूर दिखेगा. कोविड-19 को लेकर जारी निर्देश के अनुसार यहां तमाम व्यवस्थाएं की जा रही हैं. होली के दौरान यहां आने वाले लोगों को कोविड-19 को लेकर जागरूक भी किया जाएगा. जिसको लेकर तमाम तैयारियां की जा रही हैं.

यह भी पढ़ें- बुरा न मानो होली है! राजद नेता ने तेज-तेजस्वी के गानों पर बार बालाओं को नचाया

ब्रज के तर्ज पर हो रही है होली
जिले के रोसड़ा प्रखंड के भिरहा गांव की होली करीब ढ़ाई सौ वर्षों से आज भी ब्रज के तर्ज पर हो रही है. यहां की होली को देख राष्ट्रकवि दिनकर ने इसे बिहार के वृंदावन का दर्जा दिया था. होली के दो स्प्ताह पूर्व से ही गांव में उत्सव का माहौल कायम रहता है. होली से एक दिन पूर्व होलिका दहन की संध्या से ही पूरब, पश्चिम एवं उत्तर टोले में निर्धारित स्थानों पर अलग-अलग सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन जारी रहता है. दूर-दूर से आए मशहूर बैंड के बीच कलाकारों के बीच कंपीटीशन होता है.

देखें पूरी रिपोर्ट

हजारों लोग रहते हैं उपस्थित
प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले को पुरस्कार से भी नवाजा जाता है. इस दौरान क्षेत्र के हजारों लोग उपस्थित रहते हैं. बड़े-बड़े तोरण द्वार और चमचमाती रोशनी के बीच सम्पूर्ण गांव पूरी रात जगमगाहट रहती है. होली के दिन भी नृत्य का आनंद लेने के पश्चात तीनों टोली दोपहर बाद गांव में स्थित फगुआ पोखर पहुंचते हैं. जहां पूरे गांव के रंगों की पिचकारी से पोखर के पानी को गुलाबी रंग किया जाता है. इसके पश्चात गाने की धुन पर एक-दूसरे को रंग डालकर जश्न मनाते हैं. भिरहा की होली न सिर्फ मिथिलांचल में बल्कि प्रदेश स्तर पर इसकी एक अलग पहचान है.

पवारी टोली होली समिति, भिरहा
पवारी टोली होली समिति, भिरहा

यह भी पढ़ें- बीजेपी प्रदेश कार्यालय में नंदकिशोर यादव और स्वास्थ्य मंत्री मंगल पाण्डेय ने सुनी पीएम के 'मन की बात'

1935 से परंपरा की शुरुआत
गांव के शिक्षक विनय कुमार राय ने बताया कि 1935 में गांव के कई गणमान्य लोग एक साथ होली देखने वृंदावन गए थे. वहां की होली ने उनका मन मोह लिया और वहां से लौटने के पश्चात ग्रामीणों द्वारा कुछ अहम निर्णय लिए गए. निर्णयों पर वर्ष 1936 से भिरहा में ब्रज की तर्ज पर होली उत्सव मनाना प्रारंभ किया. उसके बाद वर्ष 1941 में यह गांव तीन भागों में बंटकर होली मनाने लगा. हालांकि इस बार कोरोना को लेकर जारी गाइडलाइन के मद्देनजर ग्रामीणों के साथ स्थानीय प्रशासन की एक बैठक भी संपन्न हुई है.

जिसमें गृह विभाग द्वारा जारी गाइडलाइन के मद्देनजर होली आयोजन का निर्णय लिया गया है. परंपराओं को निभाने का भरसक प्रयास किया जा रहा है, जिसकी युद्ध स्तर पर तैयारियां जारी है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.