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Chhath Puja 2022: समस्तीपुर के इस गांव में महिलाएं नहीं, पुरुष करते हैं छठ महापर्व - छठ पूजा 2022

समस्तीपुर के मोरवा प्रखंड के रघुनाथपुर गांव में छठ पूजा (Chhath Puja in Raghunathpur Village) को लेकर एक अलग ही परंपरा देखने को मिलती है. इस गांव में छठ व्रती महिलाएं नहीं ब्लकि पुरूष होते हैं. ऐसा इस गांव में कई सालों से होता आ रहा है. छठ पूजा का उपवास परिवार के पुरूष द्वारा रखा जाता है और सूर्य देवता को वह अर्घ्य देकर इसे आस्था के साथ निभाते हैं. आगे पढ़ें पूरी खबर...

लोक आस्था का महापर्व छठ
लोक आस्था का महापर्व छठ
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Published : Oct 30, 2022, 1:36 PM IST

समस्तीपुर: समस्तीपुर के मोरवा प्रखंड स्थित रघुनाथपुर गांव में लोक आस्था के महापर्व छठ (Chhath Puja in Samastipur) को लेकर अपनी अलग ही आस्था और पहचान है. यहां हर घर में महिलाएं नहीं सिर्फ पुरुष ही इस महापर्व को आस्था से निभा रहे हैं. वैसे अर्घ्य के प्रसाद और अन्य कामों में महिलाएं जरूर मदद करती, लेकिन भगवान भास्कर को अर्घ्य पुरुष व्रती ही देते हैं. इसे लेकर स्थानीय लोगों कहना है कि यह परंपरा कब से चल रही है इसका उन्हें कुछ खास पता नहीं है, लेकिन आज भी इसे निभाया जा रहा है. हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि आसपास कोई पोखर नहीं होने के कारण महिलाओं को दिक्कत का सामना करना परता था इसलिए इस प्रथा की शुरुआत की गई.

पढ़ें-Chhath Puja: बिहार का एक ऐसा गांव जहां सिर्फ पुरुष करते हैं छठ व्र

छठ पूजा से यश, धन, वैभव की प्राप्तिः मान्यता के अनुसार संध्या अर्घ्य देने और सूर्य की पूजा अर्चना करने से जीवन में तेज बना रहता है और यश, धन, वैभव की प्राप्ति होती है. शाम को अस्ताचलगामी सूर्यदेव को पहला अर्घ्य दिया जाता है, इसलिए इसे संध्या अर्घ्य कहा जाता है. इसके पश्चात विधि-विधान के साथ पूजा अर्चना की जाती है. संध्या को अर्घ्य देने के लिए छठ व्रती पूरे परिवार के साथ घाटों की ओर रवाना होते हैं. इस दौरान पूरे रास्ते व्रती दंडवत करते जाते हैं. सूर्य देव को अर्घ्य देने से पहले रास्ते भर उन्हें जमीन पर लेटकर व्रती प्रणाम करते हैं. दंडवत करने के दौरान आस-पास मौजूद लोग छठव्रती को स्पर्श कर प्रणाम करते हैं, ताकि उन्हें भी पूण्य की प्राप्ति हो सके.

इस तरह देते हैं भागवान भास्कर को अर्घ्यः अर्घ्य देने के लिए शाम के समय सूप और बांस की टोकरियों में ठेकुआ, चावल के लड्डू और फल ले जाया जाता है. पूजा के सूप को व्रती बेहतर से बेहतर तरीके से सजाते हैं. कलश में जल एवं दूध भरकर इसी से सूर्यदेव को संध्या अर्घ्य दिया जाता है. इसके साथ ही सूप की सामग्री के साथ भक्त छठी मईया की भी पूजा अर्चना करते हैं. छठ व्रती पूरे परिवार के साथ छठ घाट पर दउरा में प्रसाद लेकर पहुंचते हैं और डूबते सूर्य की उपासना के लिए जल एवं दूध लेकर तालाब, नदी या पोखर में खड़े हो जाते हैं. अस्ताचलगामी सूर्य पूजन के बाद सभी लोग घर लौट आते हैं. वहीं, रात में छठी माई के भजन गाये जाते हैं और व्रत कथा का श्रवण किया जाता है. साथ ही चौथे दिन सुबह में उगते सुर्य को अर्घ्य देने की तैयारी भी की जाती है.

क्या है छठ पूजा से जुड़ी पौराणिक कथा? एक पौराणिक कथा के मुताबिक, प्रियव्रत नाम के एक राजा थे. उनकी पत्नी का नाम मालिनी था. दोनों के कोई संतान नहीं थी. इस वजह से दोनों दुःखी रहते थे. एक दिन महर्षि कश्यप ने राजा प्रियव्रत से पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ करने को कहा. महर्षि की आज्ञा मानते हुए राजा ने यज्ञ करवाया, जिसके बाद रानी ने एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया. लेकिन दुर्भाग्यवश वह बच्चा मृत पैदा हुआ. इस बात से राजा और दुखी हो गए. उसी दौरान आसमान से एक विमान उतरा जिसमें माता षष्ठी विराजमान थीं. राजा के प्रार्थना करने पर उन्होंने अपना परिचय दिया. उन्होंने बताया कि मैं ब्रह्मा की मानस पुत्री षष्ठी हूं. मैं संसार के सभी लोगों की रक्षा करती हूं और निःसंतानों को संतान प्राप्ति का वरदान देती हूं. तभी देवी ने मृत शिशु को आशीर्वाद देते हुए हाथ लगाया, जिससे वह पुन: जीवित हो गया. देवी की इस कृपा से राजा बेहद खुश हुए और षष्ठी देवी की आराधना की. इसके बाद से ही इस पूजा का प्रसार हो गया.

पढ़ें-छठ महापर्व का 'पहला अर्घ्य' आज, जानें अस्ताचलगामी सूर्य पूजन का महत्व

समस्तीपुर: समस्तीपुर के मोरवा प्रखंड स्थित रघुनाथपुर गांव में लोक आस्था के महापर्व छठ (Chhath Puja in Samastipur) को लेकर अपनी अलग ही आस्था और पहचान है. यहां हर घर में महिलाएं नहीं सिर्फ पुरुष ही इस महापर्व को आस्था से निभा रहे हैं. वैसे अर्घ्य के प्रसाद और अन्य कामों में महिलाएं जरूर मदद करती, लेकिन भगवान भास्कर को अर्घ्य पुरुष व्रती ही देते हैं. इसे लेकर स्थानीय लोगों कहना है कि यह परंपरा कब से चल रही है इसका उन्हें कुछ खास पता नहीं है, लेकिन आज भी इसे निभाया जा रहा है. हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि आसपास कोई पोखर नहीं होने के कारण महिलाओं को दिक्कत का सामना करना परता था इसलिए इस प्रथा की शुरुआत की गई.

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छठ पूजा से यश, धन, वैभव की प्राप्तिः मान्यता के अनुसार संध्या अर्घ्य देने और सूर्य की पूजा अर्चना करने से जीवन में तेज बना रहता है और यश, धन, वैभव की प्राप्ति होती है. शाम को अस्ताचलगामी सूर्यदेव को पहला अर्घ्य दिया जाता है, इसलिए इसे संध्या अर्घ्य कहा जाता है. इसके पश्चात विधि-विधान के साथ पूजा अर्चना की जाती है. संध्या को अर्घ्य देने के लिए छठ व्रती पूरे परिवार के साथ घाटों की ओर रवाना होते हैं. इस दौरान पूरे रास्ते व्रती दंडवत करते जाते हैं. सूर्य देव को अर्घ्य देने से पहले रास्ते भर उन्हें जमीन पर लेटकर व्रती प्रणाम करते हैं. दंडवत करने के दौरान आस-पास मौजूद लोग छठव्रती को स्पर्श कर प्रणाम करते हैं, ताकि उन्हें भी पूण्य की प्राप्ति हो सके.

इस तरह देते हैं भागवान भास्कर को अर्घ्यः अर्घ्य देने के लिए शाम के समय सूप और बांस की टोकरियों में ठेकुआ, चावल के लड्डू और फल ले जाया जाता है. पूजा के सूप को व्रती बेहतर से बेहतर तरीके से सजाते हैं. कलश में जल एवं दूध भरकर इसी से सूर्यदेव को संध्या अर्घ्य दिया जाता है. इसके साथ ही सूप की सामग्री के साथ भक्त छठी मईया की भी पूजा अर्चना करते हैं. छठ व्रती पूरे परिवार के साथ छठ घाट पर दउरा में प्रसाद लेकर पहुंचते हैं और डूबते सूर्य की उपासना के लिए जल एवं दूध लेकर तालाब, नदी या पोखर में खड़े हो जाते हैं. अस्ताचलगामी सूर्य पूजन के बाद सभी लोग घर लौट आते हैं. वहीं, रात में छठी माई के भजन गाये जाते हैं और व्रत कथा का श्रवण किया जाता है. साथ ही चौथे दिन सुबह में उगते सुर्य को अर्घ्य देने की तैयारी भी की जाती है.

क्या है छठ पूजा से जुड़ी पौराणिक कथा? एक पौराणिक कथा के मुताबिक, प्रियव्रत नाम के एक राजा थे. उनकी पत्नी का नाम मालिनी था. दोनों के कोई संतान नहीं थी. इस वजह से दोनों दुःखी रहते थे. एक दिन महर्षि कश्यप ने राजा प्रियव्रत से पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ करने को कहा. महर्षि की आज्ञा मानते हुए राजा ने यज्ञ करवाया, जिसके बाद रानी ने एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया. लेकिन दुर्भाग्यवश वह बच्चा मृत पैदा हुआ. इस बात से राजा और दुखी हो गए. उसी दौरान आसमान से एक विमान उतरा जिसमें माता षष्ठी विराजमान थीं. राजा के प्रार्थना करने पर उन्होंने अपना परिचय दिया. उन्होंने बताया कि मैं ब्रह्मा की मानस पुत्री षष्ठी हूं. मैं संसार के सभी लोगों की रक्षा करती हूं और निःसंतानों को संतान प्राप्ति का वरदान देती हूं. तभी देवी ने मृत शिशु को आशीर्वाद देते हुए हाथ लगाया, जिससे वह पुन: जीवित हो गया. देवी की इस कृपा से राजा बेहद खुश हुए और षष्ठी देवी की आराधना की. इसके बाद से ही इस पूजा का प्रसार हो गया.

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