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समस्तीपुर के कई स्कूलों में इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी, एक ही भवन में चलते हैं दो-दो स्कूल

बिहार में प्राथमिक शिक्षा (Primary Education In Bihar) का हाल बद से बदतर होता जा रहा है. सरकारी स्कूलों से पढ़कर निकलने वाले बच्चों का भविष्य क्या होगा, चिंता है तो सिर्फ इसी बात की. बिहार के समस्तीपुर में कई सरकारी स्कूल ऐसे हैं, जहां इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी के कारण बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है....

समस्तीपुर के सरकारी स्कूल
समस्तीपुर के सरकारी स्कूल
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Published : Oct 5, 2022, 7:02 AM IST

समस्तीपुरः बिहार में शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए सरकार बड़े-बड़े दावे और वादे करती है. सालाना बजट का एक बड़ा हिस्सा भी इस पर खर्च भी किया जाता है. लेकिन सरकारी स्कूलों (Bad Condition Of Schools In Samastipur) की हकीकत तो स्कूल में पहुंचने के बाद ही पता चलती है. आज हम आपको बताएंगे समस्तीपुर जिले के सरकारी स्कूलों (Government Schools Of Samastipur) का हाल. जहां इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी के कारण विद्यालय के बच्चे और शिक्षक दोनों परेशान हैं. यहां शिक्षा व्यवस्था का हाल बद से बदतर है.

ये भी पढ़ेंः ये हैं बिहार के सरकारी स्कूल, एक तरफ स्मार्ट क्लासेज से पढ़ाई तो दूसरी तरफ छात्राएं खेत में जाती हैं शौच

जिले के 213 स्कूल भवनहीन और भूमिहीनः बिहार में सरकार शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए पैसे पानी की तरह बहा रही है. इंफ्रास्ट्रक्चर से लेकर स्कूलों में शिक्षक नियुक्ति को लेकर सरकारी दावों की कमी नहीं. वैसे इन दावों की हकीकत देखनी हो तो जिले में स्कूलों से जुड़े कुछ आंकड़ो पर गौर करना होगा. विभागीय आंकड़ो के अनुसार जिले में आज भी करीब 213 स्कूल भवनहीन और भूमिहीन है. बीते 23 वर्षो से अपनी जमीन और अपना भवन का सपना शिक्षा विभाग स्कूल के शिक्षकों और बच्चों को दिखा रहा. लेकिन इक्के दुक्के सफलता के अलावे धरातल पर कुछ विशेष कुछ नहीं हुआ. जाहिर सी बात है, जब शिक्षा का मंदिर ही माकूल नहीं तो वहां बेहतर शिक्षा कैसे संभव होगी.

आरएसबी इंटर स्कूल की हालत बदतरः जिला मुख्यालय के केंद्र में बसे आरएसबी इंटर स्कूल का हाल ये है कि इसके एक कोने में टूटा-फूटा एक छोटा सरकारी आवास है, जंहा वर्षो से एक नहीं दो-दो स्कूलों का संचलान हो रहा है. एक कमरे में राजकीय कन्या प्राथमिक विद्यालय और दूसरे में राजकीय प्राथमिक विद्यालय. जब छोटे छोटे दो कमरों के इस जर्जर रूम में दो-दो विद्यालय हों तो वहां शिक्षा और बच्चों को सुविधा कैसी होगी इसकी कल्पना की जा सकती है. यहां न पढ़ने की जगह है ना खेलने की, न बच्चों के लिए बाथरूम न पीने का पानी मुहैया है.

दो रूम में एक से आठ तक की पढ़ाईः वहीं, बात अगर मुख्यालय के ही कचहरी कैम्पस के एक स्कूल की करें जो डीएम कार्यालय के ठीक पीछे है, यहां एक खंडर में राजकीय बालिका मध्य विद्यालय का संचालन होता है. दो रूम में एक से आठ तक की क्लास चलती है. न बैठने का सही इंतजाम और न ही रौशनी की व्यवस्था है. उसी में मध्यान्ह भोजन का सामान, बर्तन और पढ़ाई लिखाई की सभी चीजें रखीं रहती हैं. वैसे ये सिर्फ कुछ उदाहरण हैं, अन्य स्कूलों का हाल तो इससे भी बदतर है. जिले में 2527 प्रारंभिक विद्यालय हैं, जंहा करीब 7 लाख 13 हजार से अधिक बच्चे नामांकित हैं.

बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर की है कमीः कोढ़ लगी इस व्यवस्था में भी छात्रों का भविष्य संवारने में लगे कुछ शिक्षकों का मानना है कि बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी के कारण छात्रों को बेहतर शिक्षा देना संभव नहीं. वैसे शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय समाजसेवी सी के मिश्रा का मानना है कि सरकार के भरोसे रहने से नहीं होगा. भूमिहीन स्कूलों के शिक्षक भूमिदान के लिए लोगों को जागरूक करें. तभी अपनी जमीन संभव हो पाएगी.

"बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी है. इससे छात्रों को बेहतर शिक्षा देना संभव नहीं. काफी दिक्कतें होती हैं. एक ही कमरे में दो क्लास चलती है. ऐसे में दोनों क्लास के बच्चों को एक ही सब्जेक्ट पढ़ाना पड़ता है. अगर हमें भी बेहतर सुविधा मिले तो हमारे यहां भी कॉन्वेंट स्कूल जैसी पढ़ाई हो सकती है"- वीरेंद्र चौधरी, शिक्षक

लाचार दिख रहा शिक्षा विभाग: वैसे इन परिस्थितियों पर शिक्षा विभाग भी लाचार दिख रहा है. जिला शिक्षा पदाधिकारी ने भी माना है की यहां वर्तमान में 213 स्कूलों के पास खुद की जमीन नहीं है. हालांकि उन्होंने ये भी कहा कि सभी विद्यालयों को अपनी जमीन अपना भवन हो इसको लेकर विभाग प्रयास में जुटा है. वर्तमान में करीब 89 स्कूलों के जमीन की स्वीकृति के लिए भारत सरकार के पास भेजा गया है. इसके अलावे स्कूल के लिए जमीन दानकर्ता आगे आएं इसको लेकर भी विभाग काम कर रहा है.

"213 स्कूलों ऐसे हैं जिनकी खुद की जमीन नहीं है. किसी तरह स्कूलों का संचालन हो रहा है. हमारी कोशिश है कि सभी विद्यालयों को अपनी जमीन अपना भवन हो जाए. इसका प्रयास जारी है. 89 स्कूलों के जमीन की स्वीकृति के लिए भारत सरकार के पास भेजा गया है. हमलोग हर स्तर से स्कूल के इंफ्रास्ट्रक्चर को ठीक करने का प्रयास कर रहे हैं"- मदन राय , जिला शिक्षा पदाधिकारी

ये भी पढ़ेंः बिहार के सरकारी स्कूलों में बच्चों के शैक्षणिक कौशल में आई गिरावट, कोरोना ने पढ़ाई से किया दूर

समस्तीपुरः बिहार में शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए सरकार बड़े-बड़े दावे और वादे करती है. सालाना बजट का एक बड़ा हिस्सा भी इस पर खर्च भी किया जाता है. लेकिन सरकारी स्कूलों (Bad Condition Of Schools In Samastipur) की हकीकत तो स्कूल में पहुंचने के बाद ही पता चलती है. आज हम आपको बताएंगे समस्तीपुर जिले के सरकारी स्कूलों (Government Schools Of Samastipur) का हाल. जहां इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी के कारण विद्यालय के बच्चे और शिक्षक दोनों परेशान हैं. यहां शिक्षा व्यवस्था का हाल बद से बदतर है.

ये भी पढ़ेंः ये हैं बिहार के सरकारी स्कूल, एक तरफ स्मार्ट क्लासेज से पढ़ाई तो दूसरी तरफ छात्राएं खेत में जाती हैं शौच

जिले के 213 स्कूल भवनहीन और भूमिहीनः बिहार में सरकार शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए पैसे पानी की तरह बहा रही है. इंफ्रास्ट्रक्चर से लेकर स्कूलों में शिक्षक नियुक्ति को लेकर सरकारी दावों की कमी नहीं. वैसे इन दावों की हकीकत देखनी हो तो जिले में स्कूलों से जुड़े कुछ आंकड़ो पर गौर करना होगा. विभागीय आंकड़ो के अनुसार जिले में आज भी करीब 213 स्कूल भवनहीन और भूमिहीन है. बीते 23 वर्षो से अपनी जमीन और अपना भवन का सपना शिक्षा विभाग स्कूल के शिक्षकों और बच्चों को दिखा रहा. लेकिन इक्के दुक्के सफलता के अलावे धरातल पर कुछ विशेष कुछ नहीं हुआ. जाहिर सी बात है, जब शिक्षा का मंदिर ही माकूल नहीं तो वहां बेहतर शिक्षा कैसे संभव होगी.

आरएसबी इंटर स्कूल की हालत बदतरः जिला मुख्यालय के केंद्र में बसे आरएसबी इंटर स्कूल का हाल ये है कि इसके एक कोने में टूटा-फूटा एक छोटा सरकारी आवास है, जंहा वर्षो से एक नहीं दो-दो स्कूलों का संचलान हो रहा है. एक कमरे में राजकीय कन्या प्राथमिक विद्यालय और दूसरे में राजकीय प्राथमिक विद्यालय. जब छोटे छोटे दो कमरों के इस जर्जर रूम में दो-दो विद्यालय हों तो वहां शिक्षा और बच्चों को सुविधा कैसी होगी इसकी कल्पना की जा सकती है. यहां न पढ़ने की जगह है ना खेलने की, न बच्चों के लिए बाथरूम न पीने का पानी मुहैया है.

दो रूम में एक से आठ तक की पढ़ाईः वहीं, बात अगर मुख्यालय के ही कचहरी कैम्पस के एक स्कूल की करें जो डीएम कार्यालय के ठीक पीछे है, यहां एक खंडर में राजकीय बालिका मध्य विद्यालय का संचालन होता है. दो रूम में एक से आठ तक की क्लास चलती है. न बैठने का सही इंतजाम और न ही रौशनी की व्यवस्था है. उसी में मध्यान्ह भोजन का सामान, बर्तन और पढ़ाई लिखाई की सभी चीजें रखीं रहती हैं. वैसे ये सिर्फ कुछ उदाहरण हैं, अन्य स्कूलों का हाल तो इससे भी बदतर है. जिले में 2527 प्रारंभिक विद्यालय हैं, जंहा करीब 7 लाख 13 हजार से अधिक बच्चे नामांकित हैं.

बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर की है कमीः कोढ़ लगी इस व्यवस्था में भी छात्रों का भविष्य संवारने में लगे कुछ शिक्षकों का मानना है कि बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी के कारण छात्रों को बेहतर शिक्षा देना संभव नहीं. वैसे शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय समाजसेवी सी के मिश्रा का मानना है कि सरकार के भरोसे रहने से नहीं होगा. भूमिहीन स्कूलों के शिक्षक भूमिदान के लिए लोगों को जागरूक करें. तभी अपनी जमीन संभव हो पाएगी.

"बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी है. इससे छात्रों को बेहतर शिक्षा देना संभव नहीं. काफी दिक्कतें होती हैं. एक ही कमरे में दो क्लास चलती है. ऐसे में दोनों क्लास के बच्चों को एक ही सब्जेक्ट पढ़ाना पड़ता है. अगर हमें भी बेहतर सुविधा मिले तो हमारे यहां भी कॉन्वेंट स्कूल जैसी पढ़ाई हो सकती है"- वीरेंद्र चौधरी, शिक्षक

लाचार दिख रहा शिक्षा विभाग: वैसे इन परिस्थितियों पर शिक्षा विभाग भी लाचार दिख रहा है. जिला शिक्षा पदाधिकारी ने भी माना है की यहां वर्तमान में 213 स्कूलों के पास खुद की जमीन नहीं है. हालांकि उन्होंने ये भी कहा कि सभी विद्यालयों को अपनी जमीन अपना भवन हो इसको लेकर विभाग प्रयास में जुटा है. वर्तमान में करीब 89 स्कूलों के जमीन की स्वीकृति के लिए भारत सरकार के पास भेजा गया है. इसके अलावे स्कूल के लिए जमीन दानकर्ता आगे आएं इसको लेकर भी विभाग काम कर रहा है.

"213 स्कूलों ऐसे हैं जिनकी खुद की जमीन नहीं है. किसी तरह स्कूलों का संचालन हो रहा है. हमारी कोशिश है कि सभी विद्यालयों को अपनी जमीन अपना भवन हो जाए. इसका प्रयास जारी है. 89 स्कूलों के जमीन की स्वीकृति के लिए भारत सरकार के पास भेजा गया है. हमलोग हर स्तर से स्कूल के इंफ्रास्ट्रक्चर को ठीक करने का प्रयास कर रहे हैं"- मदन राय , जिला शिक्षा पदाधिकारी

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