ETV Bharat / state

पक्षी प्रेम हो तो ऐसा: एक घटना से प्रेरित होकर अपने पक्के मकान को ही बनवा दिया 'गौरैया घर'

अर्जुन सिंह जिले के करगहर प्रखंड स्थित मेरड़ी गांव के निवासी हैं. अर्जुन गौरैया पक्षियों के लिए भगवान बनकर आएं हैं. बीते 18 सालों से वह गौरैया को बचाने की मुहिम में जुटे हुए हैं.

डिजाइन इमेज
author img

By

Published : Jul 1, 2019, 2:49 PM IST

रोहतास: घर आंगन में चहकने, फुदकने वाली गौरैया आज लुप्त होती जा रही है. शहरों और महानगरों में तो इसकी झलक बहुत मुश्किल से नसीब होती है. आधुनिक प्रयोग जैसे टावर, बिजली के तार से हो रहे रेडियेशन के कारण इनकी संख्या कम होती जा रही है.

एक वक्त था जब लोग अपने आंगन में दाना डालकर पक्षियों को न्योता देते थे, ताकि उनकी अठखेलियां निहार सकें. लेकिन, अब यह सब महज किस्सों तक ही सीमित रह गया है. क्योंकि अब ना लोगों के पास उतना समय है और ना पक्षियां इतनी दिखाई पड़ती हैं.

rohtas
घर में कराया छेद

18 सालों से कर रहे कोशिश
विलुप्त हो रही गौरैया पक्षी के संरक्षण के लिए रोहतास जिले का एक पक्षी प्रेमी जी तोड़ कोशिश कर रहा है. अर्जुन सिंह जिले के करगहर प्रखंड स्थित मेरड़ी गांव के निवासी हैं. अर्जुन गौरैया पक्षियों के लिए भगवान बनकर आएं हैं. बीते 18 सालों से वह गौरैया को बचाने की मुहिम में जुटे हुए हैं. सालों पहले घटी एक घटना ने उन्हें ऐसा करने की प्रेरणा दी.

ईटीवी भारत संवाददाता की रिपोर्ट

क्या थी वह घटना?
अपनी पत्नी के निधन के बाद अर्जुन अपनी जिंदगी बिताने के लिए गांव पहुंचे थे. वह बताते हैं कि एक दिन वह अपने घर के आंगन में बैठे थे. तभी एक गौरैया का बच्चा चोटिल अवस्था में उनके पास गिरा. अर्जुन सिंह ने गौरैया के बच्चे को उठाकर उसका इलाज किया और उसे दाना पानी देना शुरू कर दिया. धीरे-धीरे चिड़ियों का आना-जाना वहां शुरू होने लगा. देखते ही देखते अर्जुन सिंह के आंगन में सैकड़ों चिड़ियों का जमावड़ा दिखने लगा. उन्होंने दाना पानी देकर चिड़ियों से दोस्ती की और खुद का अकेलापन दूर कर लिया.

rohtas
अर्जुन सिंह

चिड़ियों ने आंगन को बना लिया घर
घर के आंगन में चिड़ियों ने घोंसला बनाना शुरू कर दिया. लेकिन, असुरक्षित जगह होने के कारण पक्षियों पर अन्य जीव-जंतुओं का हमला होने लगा. जिससे उनके बच्चों और अंडों को नुकसान पहुंचने लगा. इस हालात को देखकर अर्जुन सिंह काफी दुखी हुए और निर्णय लिया कि अब उनके रहने के स्थान को सुरक्षित बनाएंगे. उन्होंने अपने पक्के मकान को गौरैया का घर बना दिया.

rohtas
गौरैया

पक्के मकान में करवाया छेद
अर्जुन ने मकान को ऐसा डिजाइन करवाया जिसमें घोंसला बनाया जा सके. उन्होंने अपने घर की दीवारों में गौरैया को रहने के लिए इस तरह से छेद कराया, जिसमें सिर्फ गौरैया ही अंदर प्रवेश कर सकती है. यहां कोई अन्य पक्षी या कोई जीव प्रवेश नहीं कर सकता. फिलहाल, अर्जुन सिंह को बिहार वन्य प्राणी परिषद का सदस्य बनाया गया है. हालांकि, गौरैया संरक्षण के लिए इन्हें कई बार पुरस्कारों से भी नवाजा जा चुका है.

हजारों गौरैया का है वास
अर्जुन सिंह के घर में आज हजारों गौरैया बड़े आराम से चहकती और फुदकती है. उन्होंने बताया कि वह गौरैया के रहने, खाने का पूरा इंतजाम देखते हैं. उन्होंने इन हजारों पक्षियों को ही अपना परिवार मान लिया है.

रोहतास: घर आंगन में चहकने, फुदकने वाली गौरैया आज लुप्त होती जा रही है. शहरों और महानगरों में तो इसकी झलक बहुत मुश्किल से नसीब होती है. आधुनिक प्रयोग जैसे टावर, बिजली के तार से हो रहे रेडियेशन के कारण इनकी संख्या कम होती जा रही है.

एक वक्त था जब लोग अपने आंगन में दाना डालकर पक्षियों को न्योता देते थे, ताकि उनकी अठखेलियां निहार सकें. लेकिन, अब यह सब महज किस्सों तक ही सीमित रह गया है. क्योंकि अब ना लोगों के पास उतना समय है और ना पक्षियां इतनी दिखाई पड़ती हैं.

rohtas
घर में कराया छेद

18 सालों से कर रहे कोशिश
विलुप्त हो रही गौरैया पक्षी के संरक्षण के लिए रोहतास जिले का एक पक्षी प्रेमी जी तोड़ कोशिश कर रहा है. अर्जुन सिंह जिले के करगहर प्रखंड स्थित मेरड़ी गांव के निवासी हैं. अर्जुन गौरैया पक्षियों के लिए भगवान बनकर आएं हैं. बीते 18 सालों से वह गौरैया को बचाने की मुहिम में जुटे हुए हैं. सालों पहले घटी एक घटना ने उन्हें ऐसा करने की प्रेरणा दी.

ईटीवी भारत संवाददाता की रिपोर्ट

क्या थी वह घटना?
अपनी पत्नी के निधन के बाद अर्जुन अपनी जिंदगी बिताने के लिए गांव पहुंचे थे. वह बताते हैं कि एक दिन वह अपने घर के आंगन में बैठे थे. तभी एक गौरैया का बच्चा चोटिल अवस्था में उनके पास गिरा. अर्जुन सिंह ने गौरैया के बच्चे को उठाकर उसका इलाज किया और उसे दाना पानी देना शुरू कर दिया. धीरे-धीरे चिड़ियों का आना-जाना वहां शुरू होने लगा. देखते ही देखते अर्जुन सिंह के आंगन में सैकड़ों चिड़ियों का जमावड़ा दिखने लगा. उन्होंने दाना पानी देकर चिड़ियों से दोस्ती की और खुद का अकेलापन दूर कर लिया.

rohtas
अर्जुन सिंह

चिड़ियों ने आंगन को बना लिया घर
घर के आंगन में चिड़ियों ने घोंसला बनाना शुरू कर दिया. लेकिन, असुरक्षित जगह होने के कारण पक्षियों पर अन्य जीव-जंतुओं का हमला होने लगा. जिससे उनके बच्चों और अंडों को नुकसान पहुंचने लगा. इस हालात को देखकर अर्जुन सिंह काफी दुखी हुए और निर्णय लिया कि अब उनके रहने के स्थान को सुरक्षित बनाएंगे. उन्होंने अपने पक्के मकान को गौरैया का घर बना दिया.

rohtas
गौरैया

पक्के मकान में करवाया छेद
अर्जुन ने मकान को ऐसा डिजाइन करवाया जिसमें घोंसला बनाया जा सके. उन्होंने अपने घर की दीवारों में गौरैया को रहने के लिए इस तरह से छेद कराया, जिसमें सिर्फ गौरैया ही अंदर प्रवेश कर सकती है. यहां कोई अन्य पक्षी या कोई जीव प्रवेश नहीं कर सकता. फिलहाल, अर्जुन सिंह को बिहार वन्य प्राणी परिषद का सदस्य बनाया गया है. हालांकि, गौरैया संरक्षण के लिए इन्हें कई बार पुरस्कारों से भी नवाजा जा चुका है.

हजारों गौरैया का है वास
अर्जुन सिंह के घर में आज हजारों गौरैया बड़े आराम से चहकती और फुदकती है. उन्होंने बताया कि वह गौरैया के रहने, खाने का पूरा इंतजाम देखते हैं. उन्होंने इन हजारों पक्षियों को ही अपना परिवार मान लिया है.

Intro:br_roh_ssm_save_sparrow_arjun_singh_nest_
बिहार_रोहतास_सासाराम _ गौरैया_ संरक्षण_ घोंसला_ अर्जुन सिंह

रोहतास। घर आंगन में चहकने फुदकने ने वाली छोटी चिड़िया गौरैया कभी नई नवेली बहू के लिए अठखेलियां का माध्यम बनती थी। लेकिन आज यही गोरिया लोगों के आंगन से पूरी तरह विलुप्त हो चुकी है।


Body:विलुप्त होते गौरैया ने लोगों के घर आंगन से चहकने फुदकने देखने की खुशियां छीन ली है। एक वक्त में लोग अपने आंगन में दाना डाल कर सुप के पल्ले से नन्हीं चिड़ियों को फंसा कर उनके पोरों पंखों और चोंच को महावर से रंग चढ़ा कर खिलखिलाना अब किसी घर में नहीं हो पा रहा है। यह भूली बिसरी यादें बनकर रह गई है। क्योंकि गौरैया कहीं गुम हो गई है। गौरैया कहीं खत्म तो नहीं हो गई गौरैया कहीं विलुप्ती के कगार पर तो नहीं पहुंच गई है। यह सवाल हर किसी के जेहन में कौंध रहा है। लेकिन विलुप्त होते गौरैया के लिए रोहतास जिले के करगहर प्रखंड के मेरा मेरड़ी गांव के निवासी अर्जुन सिंह भगवान बनकर सामने आए और विलुप्त हो रही गौरैया के संरक्षक बन गए। अर्जुन सिंह गौरैया को बचाने की मुहिम में पिछले 18 साल जुटे हुए है। अपनी पत्नी के निधन के बाद वह अपनी जिंदगी बिताने के लिए अपने गांव पहुंचे। गांव की आबोहवा ने उन्हें एक ऐसा संरक्षक बना दिया जिसे देखते ही देखते पूरे बिहार में अपनी पहचान दे दी। अर्जुन बताते हैं कि वह अपने घर के आंगन में बैठे थे तभी एक गौरैया का बच्चा चोटिल अवस्था में उनके घर में आ गिरा। लिहाजा अर्जुन सिंह ने गौरैया के बच्चे को उठाकर उसका इलाज किया और उसे दाना पानी देना शुरू कर दिया। लिहाजा धीरे धीरे गोरियों का आना जाना वहां शुरू होने लगा। देखते ही देखते अर्जुन सिंह गौरैया को दाना पानी देकर दोस्ती भी कर ली और खुद का अकेलापन भी दूर कर लिया। लिहाज़ा धीरे धीरे गौरैया की तादाद भी बढ़ने लगी। हालांकि घर में असुरक्षित जगह गौरैया ने घोंसला बढ़ाना शुरू कर दिया। लेकिन असुरक्षित घोंसला होने की वजह से उस पर पक्षियों व सांपों का हमला होने लगा और बच्चे और उसके अंडे को नुकसान तक पहुंचने लगा। इस हालात को देखकर अर्जुन सिंह काफी दुखी हुए और खुद निर्णय लिया कि अब उनके रहने के स्थान को सुरक्षित बनाएंगे। उन्होंने अपने पक्के मकान में गौरैया के लिए ऐसा डिजाइन करके घोंसला बनाया जिसमें गौरैया के अंडे बच्चे सुरक्षित रह सके। लिहाजा अपने घर के दीवारों में गौरैया को रहने के लिए इस तरह से छेद कराया जिसमें सिर्फ गौरैया ही अंदर प्रवेश कर सकती है। अन्य पक्षी या कोई बड़ा चीज़ उसमे प्रवेश न कर सके। फिलहाल अर्जुन सिंह को बिहार वन्य प्राणी परिषद का सदस्य बनाया गया है। हालांकि कई बार इन्हें गौरैया संरक्षण के लिए पुरस्कारों से भी नवाजा जा चुका है। आज इनके घरों में कई हजार गौरैया बड़े आराम से चहकती और फुदकती है। वहीं अर्जुन सिंह ने बताया कि गौरैया बरसात के दिनों में अधिक दिखाई पड़ती है। लेकिन यहां सालों भर ही आपको गौरैया बड़ी आसानी से देखने को मिल जाएगी। उन्होंने ने बताय कि खाने-पीने का सारा इंतजाम गौरैया को यहीं मिल पाता है। जाहिर है अर्जुन सिंह गौरैया संरक्षण कर पूरे बिहार का नाम रोशन किया।


Conclusion:बहरहाल अर्जुन सिंह गौरैया संरक्षण के लिए अब रोहतास के लिए गौरैया के ब्रांड अंबेसडर कहे जाने लगे हैं। वहीं कई अधिकारी और वन विभाग के पदाधिकारी भी इन संरक्षण को देखने इनके घरों पर आ चुके हैं।

बाइट। अर्जुन सिंह
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.