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Rohtas News: अपने अस्तित्व को तरस रहा अशोक का शिलालेख, अमित शाह के दौरे से जगी उम्मीद

सासाराम में सम्राट अशोक के शिलालेख ( inscription of Ashoka at Sasaram) को अतिक्रमण कर मजार बना दिया गया था. गत वर्ष सितंबर माह में यह मामला काफी तूल पकड़ा था. इसे जल्द से जल्द मुक्त कराने को लेकर आंदोलन भी किया था. भाजपा के कद्दावर नेता सम्राट चौधरी भी सासाराम में आकर धरने पर बैठे थे. एक बार फिर सासाराम में सम्राट अशोक का शिलालेख चर्चा में है. सम्राट अशोक की जयंती पर केंद्रीय गृह मंत्री सासाराम आने वाले हैं. यहां हम आपको बताने जा रहे हैं, क्यों अशोक का शिलालेख चर्चा में है. क्या है इसका इतिहास.

अशोक का शिलालेख
अशोक का शिलालेख
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Published : Mar 12, 2023, 7:26 PM IST

Updated : Mar 12, 2023, 8:47 PM IST

सासाराम: सम्राट अशोक की जयंती पर 2 अप्रैल को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का आगमन सासाराम में होने जा रहा है. इस दौरान वह एक जनसभा को संबोधित करेंगे. ऐसे में यहां के लोगों को सासाराम में पुराने शिलालेख के संरक्षण को लेकर एक बार फिर आस जग गई है. बता दें कि सासाराम के चंदन पहाड़ी पर स्थित सम्राट अशोक के लघु शिलालेख को कजरिया बाबा का मजार (Tomb on inscription of Emperor Ashoka) बता कर उसमें ताला लगा दिया गया था. कुछ लोगों ने इस शिलालेख के ऊपर हरे रंग की चादर चढ़ा दी थी.

इसे भी पढ़ेंः रोहतास में सम्राट अशोक का शिलालेख हुआ कब्जा मुक्त, सम्राट चौधरी ने पीएम मोदी को दिया धन्यवाद

क्या कहते हैं इतिहासकार : जानकार बताते हैं कि कलिंग युद्ध के बाद जब सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म को अपना लिया और देश और दुनिया में बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार करने लगे, उसी दौरान सारनाथ की ओर जाने के क्रम में सम्राट अशोक इसी पहाड़ी के पास रुके थे. इतिहासकार श्यामसुंदर तिवारी बताते हैं कि अपने धर्म प्रचार के 256 दिन पूरे होने पर यह शिलालेख चंदन पहाड़ी पर लिखा गया था. इस तरह के लघु शिलालेख सासाराम के अलावे उत्तर प्रदेश एवं कैमूर जिला में भी है. जिसमें बौद्ध धर्म के प्रचार के संबंध में शिलालेख अंकित किया गया है. बताया कि फिलहाल अभी एक चाबी आर्किलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया इंडिया व दूसरी चाबी मजार कमिटी के पास है.

क्या है इतिहास : 1875 में अलेक्जेंडर कनिंघम जब भारत यात्रा पर आया था, उस समय उसने इस शिलालेख को देखा. अपनी पुस्तक में भी इसे वर्णित किया था. शोधकर्ताओं एवं इतिहासकारों ने अपनी किताबों में इसे स्थान दिया है. इस शिलालेख में अंकित शब्दों को पढ़ा भी गया था, जिसमें धार्मिक एवं सामाजिक सद्भाव की बात लिखी गई है. स्थानीय एसपी जैन कॉलेज के हिंदी के विभागाध्यक्ष डॉ. राजेंद्र सिंह बताते हैं कि आर्किलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के द्वारा कई बार बिहार सरकार एवं स्थानीय प्रशासन को पत्राचार किया गया. लेकिन कोई भी कारगर कदम नहीं उठाया जा सका.

इसे भी पढ़ेंः सम्राट अशोक के शिलालेख पर बनी मजार, 20 साल में 2300 वर्षों का इतिहास बदलने के खिलाफ BJP देगी धरना

क्या है विवाद: 2300 साल पहले सम्राट अशोक ने सासाराम में एक शिलालेख उत्कीर्ण कराया था. यह शिलालेख पुरानी जीटी रोड और नए बाइपास के मध्य स्थित कैमूर पहाड़ी में अवस्थित है. ब्राह्मी लिपि में सामाजिक और धार्मिक सौहार्द के संदेश लिखे देश में ऐसे मात्र आठ शिलालेख हैं. बिहार में यह एकमात्र शिलालेख है. फिर भी सरकार और शासन के नाक के नीचे 2300 साल पुरानी विरासत को मात्र 20 साल में मिटा दिया गया. 2008, 2012 और 2018 में शिलालेख के पास अतिक्रमण हटाने के लिए DM ने SDM सासाराम को निर्देशित किया था. आज यहां बड़ी इमारत बन गई है.

पर्यटन स्थल का दर्जा मिले: वर्षों पहले एएसआई द्वारा लगाए गए बोर्ड को लोगों ने उखाड़ कर फेंक दिया है. अशोक के शिलालेख तक जाने का सुगम रास्ता भी नहीं है. चक्रवर्ती सम्राट अशोक के लघु शिलालेख पर संकट दिख रहा है. जिसे कभी उन्होंने बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार के लिए लिखवाया था. ऐसे में अब जरूरत है कि पर्यटन की दृष्टि से सम्राट अशोक के शिलालेख को पर्यटन स्थल का दर्जा मिले ताकि दूर-दूर से लोग यहां आकर ऐतिहासिक धरोहर को देख सके.

"धर्म प्रचार के 256 दिन पूरे होने पर यह शिलालेख चंदन पहाड़ी पर लिखा गया था. इस तरह के लघु शिलालेख सासाराम के अलावे उत्तर प्रदेश एवं कैमूर जिला में भी है. जिसमें बौद्ध धर्म के प्रचार के संबंध में शिलालेख अंकित किया गया है"- श्यामसुंदर तिवारी, इतिहासकार

सासाराम: सम्राट अशोक की जयंती पर 2 अप्रैल को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का आगमन सासाराम में होने जा रहा है. इस दौरान वह एक जनसभा को संबोधित करेंगे. ऐसे में यहां के लोगों को सासाराम में पुराने शिलालेख के संरक्षण को लेकर एक बार फिर आस जग गई है. बता दें कि सासाराम के चंदन पहाड़ी पर स्थित सम्राट अशोक के लघु शिलालेख को कजरिया बाबा का मजार (Tomb on inscription of Emperor Ashoka) बता कर उसमें ताला लगा दिया गया था. कुछ लोगों ने इस शिलालेख के ऊपर हरे रंग की चादर चढ़ा दी थी.

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क्या कहते हैं इतिहासकार : जानकार बताते हैं कि कलिंग युद्ध के बाद जब सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म को अपना लिया और देश और दुनिया में बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार करने लगे, उसी दौरान सारनाथ की ओर जाने के क्रम में सम्राट अशोक इसी पहाड़ी के पास रुके थे. इतिहासकार श्यामसुंदर तिवारी बताते हैं कि अपने धर्म प्रचार के 256 दिन पूरे होने पर यह शिलालेख चंदन पहाड़ी पर लिखा गया था. इस तरह के लघु शिलालेख सासाराम के अलावे उत्तर प्रदेश एवं कैमूर जिला में भी है. जिसमें बौद्ध धर्म के प्रचार के संबंध में शिलालेख अंकित किया गया है. बताया कि फिलहाल अभी एक चाबी आर्किलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया इंडिया व दूसरी चाबी मजार कमिटी के पास है.

क्या है इतिहास : 1875 में अलेक्जेंडर कनिंघम जब भारत यात्रा पर आया था, उस समय उसने इस शिलालेख को देखा. अपनी पुस्तक में भी इसे वर्णित किया था. शोधकर्ताओं एवं इतिहासकारों ने अपनी किताबों में इसे स्थान दिया है. इस शिलालेख में अंकित शब्दों को पढ़ा भी गया था, जिसमें धार्मिक एवं सामाजिक सद्भाव की बात लिखी गई है. स्थानीय एसपी जैन कॉलेज के हिंदी के विभागाध्यक्ष डॉ. राजेंद्र सिंह बताते हैं कि आर्किलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के द्वारा कई बार बिहार सरकार एवं स्थानीय प्रशासन को पत्राचार किया गया. लेकिन कोई भी कारगर कदम नहीं उठाया जा सका.

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क्या है विवाद: 2300 साल पहले सम्राट अशोक ने सासाराम में एक शिलालेख उत्कीर्ण कराया था. यह शिलालेख पुरानी जीटी रोड और नए बाइपास के मध्य स्थित कैमूर पहाड़ी में अवस्थित है. ब्राह्मी लिपि में सामाजिक और धार्मिक सौहार्द के संदेश लिखे देश में ऐसे मात्र आठ शिलालेख हैं. बिहार में यह एकमात्र शिलालेख है. फिर भी सरकार और शासन के नाक के नीचे 2300 साल पुरानी विरासत को मात्र 20 साल में मिटा दिया गया. 2008, 2012 और 2018 में शिलालेख के पास अतिक्रमण हटाने के लिए DM ने SDM सासाराम को निर्देशित किया था. आज यहां बड़ी इमारत बन गई है.

पर्यटन स्थल का दर्जा मिले: वर्षों पहले एएसआई द्वारा लगाए गए बोर्ड को लोगों ने उखाड़ कर फेंक दिया है. अशोक के शिलालेख तक जाने का सुगम रास्ता भी नहीं है. चक्रवर्ती सम्राट अशोक के लघु शिलालेख पर संकट दिख रहा है. जिसे कभी उन्होंने बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार के लिए लिखवाया था. ऐसे में अब जरूरत है कि पर्यटन की दृष्टि से सम्राट अशोक के शिलालेख को पर्यटन स्थल का दर्जा मिले ताकि दूर-दूर से लोग यहां आकर ऐतिहासिक धरोहर को देख सके.

"धर्म प्रचार के 256 दिन पूरे होने पर यह शिलालेख चंदन पहाड़ी पर लिखा गया था. इस तरह के लघु शिलालेख सासाराम के अलावे उत्तर प्रदेश एवं कैमूर जिला में भी है. जिसमें बौद्ध धर्म के प्रचार के संबंध में शिलालेख अंकित किया गया है"- श्यामसुंदर तिवारी, इतिहासकार

Last Updated : Mar 12, 2023, 8:47 PM IST
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