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आधुनिकता की चकाचौंध में दीयों की घटी मांग, मायूस कुम्हार बोले- अगली पीढ़ी को इससे दूर रखेंगे - दीये के बाजार पड़े फिके

कुम्हारों को सरकार से काफी शिकायत है. इनके मुताबिक केंद्रीय मंंत्री नितिन गडकरी ने हमें इलेक्ट्रिक चाक देने की बात कही थी, लेकिन अब तक हमें इलेक्ट्रिक चाक नहीं मिले.

खो रही कुम्हारों की कला
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Published : Oct 26, 2019, 10:18 AM IST

रोहतास: दीपावली का त्यौहार आते ही जिला मुख्यालय के सासाराम में कुम्हारों के चाक की रफ्तार तेज हो गई है. ताकि मिट्टी के दीये की रोशनी वह लोगों तक पहुंचा सके. लेकिन बदलती जीवन शैली और आधुनिक परिवेश में मिट्‌टी को आकार देने वाला कलाकार की कला आज की आधुनिकता की चकाचौंध में लुप्त होती जा रही है.

वहीं, सासाराम के शेरगंज के रहने वाले कुम्हार गोपाल प्रसाद भी 40 सालों से दीये बनाने का काम कर रहे हैं. लेकिन अब उन्हें इस दीये की रोशनी से मायूस होना पड़ रहा है.

rohtas
खो रही कुम्हारों की कला

चाइनीज लाइटों ने किया कब्जा
कुम्हार गोपाल प्रसाद ने बताया कि बाजार में चाइनीज लाइटों का कब्जा है. ऐसे में उनकी मिट्टी के दीये की डिमांड काफी कम हो गई है. उन्होंने बताया कि वह और उनका परिवार पिछले 40 सालों से मिट्टी का बर्तन बनाने का काम कर रहा है. दीपावली आते ही उन्हें एक उम्मीद रहती है कि मिट्टी के दीये से काफी आमदनी होगी. लेकिन बाजार पर चाइनीज लाइटों के कब्जों ने उनके इस व्यवसाय को धराशायी
कर दिया है.

सरकार से भी नाराजगी
वहीं, कुम्हारों ने सरकार के प्रति नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि प्रजापतियों के लिए केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने इलेक्ट्रिक चाक देने की बात कही थी. लेकिन अब तक हम लोगों को इलेक्ट्रिक चाक नहीं मिले. अगर इलेक्ट्रिक चाक मिल जाते तो वे उत्पादन दोगुना बढ़ जाता, जिससे उनके व्यवसाय में फायदा होता.

आधुनिकता की चकाचौंध में लुप्त हो रही है कुम्हारों की कला

'आने वाले पीढ़ी को रखेंगे दूर'
कुम्हारों ने कहा एक तरफ सरकार चाइना जैसे देशों से लड़ने की बात करता है. तो वहीं, बाजार में उसका सामान भी बिकने के लिए अनुमति देता है. ऐसे में हम कुम्हारों का क्या हाल होगा, यह तो वक्त बता ही रहा है. उन्होंने कहा कि वह महज इस व्यवस्था को परंपरा के तौर पर निभा रहे हैं. इससे दो वक्त की रोटी भी जुटाना मुश्किल हो गया है. साथ ही उन्होंने कहा कि वह अपने आने वाले पीढ़ी को ऐसे कामों से दूर रखेंगे.

रोहतास: दीपावली का त्यौहार आते ही जिला मुख्यालय के सासाराम में कुम्हारों के चाक की रफ्तार तेज हो गई है. ताकि मिट्टी के दीये की रोशनी वह लोगों तक पहुंचा सके. लेकिन बदलती जीवन शैली और आधुनिक परिवेश में मिट्‌टी को आकार देने वाला कलाकार की कला आज की आधुनिकता की चकाचौंध में लुप्त होती जा रही है.

वहीं, सासाराम के शेरगंज के रहने वाले कुम्हार गोपाल प्रसाद भी 40 सालों से दीये बनाने का काम कर रहे हैं. लेकिन अब उन्हें इस दीये की रोशनी से मायूस होना पड़ रहा है.

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खो रही कुम्हारों की कला

चाइनीज लाइटों ने किया कब्जा
कुम्हार गोपाल प्रसाद ने बताया कि बाजार में चाइनीज लाइटों का कब्जा है. ऐसे में उनकी मिट्टी के दीये की डिमांड काफी कम हो गई है. उन्होंने बताया कि वह और उनका परिवार पिछले 40 सालों से मिट्टी का बर्तन बनाने का काम कर रहा है. दीपावली आते ही उन्हें एक उम्मीद रहती है कि मिट्टी के दीये से काफी आमदनी होगी. लेकिन बाजार पर चाइनीज लाइटों के कब्जों ने उनके इस व्यवसाय को धराशायी
कर दिया है.

सरकार से भी नाराजगी
वहीं, कुम्हारों ने सरकार के प्रति नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि प्रजापतियों के लिए केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने इलेक्ट्रिक चाक देने की बात कही थी. लेकिन अब तक हम लोगों को इलेक्ट्रिक चाक नहीं मिले. अगर इलेक्ट्रिक चाक मिल जाते तो वे उत्पादन दोगुना बढ़ जाता, जिससे उनके व्यवसाय में फायदा होता.

आधुनिकता की चकाचौंध में लुप्त हो रही है कुम्हारों की कला

'आने वाले पीढ़ी को रखेंगे दूर'
कुम्हारों ने कहा एक तरफ सरकार चाइना जैसे देशों से लड़ने की बात करता है. तो वहीं, बाजार में उसका सामान भी बिकने के लिए अनुमति देता है. ऐसे में हम कुम्हारों का क्या हाल होगा, यह तो वक्त बता ही रहा है. उन्होंने कहा कि वह महज इस व्यवस्था को परंपरा के तौर पर निभा रहे हैं. इससे दो वक्त की रोटी भी जुटाना मुश्किल हो गया है. साथ ही उन्होंने कहा कि वह अपने आने वाले पीढ़ी को ऐसे कामों से दूर रखेंगे.

Intro:रोहतास। दीपावली का त्यौहार आते ही जिला मुख्यालय के सासाराम में कुम्हारों की चाक की रफ्तार तेज हो गई है। ताकि मिट्टी के दीए कि रोशनी वह लोगों तक पहुंचा सके।


Body:दीपावली पर धन लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए मिट्टी के दीपक बनाने वाले कुम्हारों की चाक तेजी से चलने लगी है। सासाराम के शेरगंज के रहने वाले कुम्हार गोपाल प्रसाद भी पिछले 40 सालों से दीए बनाने का काम कर रहे हैं। लेकिन अब उन्हें इस दीए की रोशनी से मायूस होना पड़ रहा है। कुम्हार गोपाल प्रसाद बताते हैं कि बाजार में चाइनीज दीयों का कब्जा है। ऐसे में उनकी मिट्टी के दीये की डिमांड काफी कम हो गई है। गोपाल प्रसाद ने बताया कि वह पिछले 40 साल से उनका परिवार मिट्टी का बर्तन बनाने का काम कर रहा है। दीपावली आते ही उन्हें एक उम्मीद होती है कि उन्हें मिट्टी के दिये से काफी आमदनी होगी। लेकिन बाजार पर चाइनीज दियों के कब्जे से उनके इस व्यवसाय को धराशाई कर दिया है। तो वहीं उन्होंने सरकार पर भी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि प्रजापतियों के लिए नितिन गडकरी ने इलेक्ट्रिक चाक देने की बात कही थी। लेकिन अब तक हम लोगों को इलेक्ट्रिक चाक नहीं मिला अगर इलेक्ट्रिक चाक मिल जाता तो वे उत्पादन को दोगुनी और बढ़ाते। जिससे उनके व्यवसाय में फायदा होता। उन्होंने यह भी कहा एक तरफ सरकार चाइना जैसे देशों से लड़ने की बात करता है तो वहीं बाजार में उसका सामान भी बिकने के लिए अनुमति देता है। ऐसे में हम कुम्हारों का क्या हाल होगा यह तो वक्त बता ही रहा है । उन्होंने कहा की महज़ इस व्यवस्था को परंपरा के तौर पर निभा रहे हैं। इससे 2 जून की रोटी भी जुटाना मुश्किल हो गया है। वहीं उन्होंने कहा कि वह अपने आने वाले पीढ़ी को ऐसे कामों से दूर रखेंगे।


Conclusion:बहरहाल कुम्हार गोपाल प्रसाद जिस तरह से परंपरिक व्यवसाय को निभाने का काम कर रहे हैं। तो वहीं सरकार को भी प्रजापतियों से किए गए वादों को पूरा करना चाहिए। अगर उन्हें इलेक्ट्रिक चाक दे दिए जाते तो शायद उनकी आज उत्पादन में भारी वृद्धि होती और मुनाफा भी होता।

बाइट। कुम्हार गोपाल प्रसाद
पीटीसी
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