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पूर्णिया: सरकारी छात्रावास की खुली कलई, यहां साइकिल स्टैंड में रहते हैं छात्र

छात्रों की संख्या बढ़ती जा रही है लेकिन कई बार बेड और बिल्डिंग की मांग करने के बाद भी अब तक कोई सुनवाई नहीं हुई है. किताबें पढ़ने की जगह में 40 लोगों का बेड लगा है.

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Published : Jun 1, 2019, 4:56 PM IST

छात्रावास

पूर्णिया: अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति को सरकार की ओर से दी जा रही छात्रावास की सुविधा पर भाषण देते हुए सरकारी अमला अक्सर ही अपनी पीठ थपथपाता नजर आता है. मगर सच्चाई यह है कि यहां होनहार छात्र साइकिल स्टैंड को कमरा बनाकर रहने और पढ़ने को मजबूर हैं. ईटीवी भारत कल्याण विभाग द्वारा संचालित कल्याण हॉस्टल की पड़ताल करने पहुंचा, जिसमें सारी व्यवस्थाओं की कलई खुल गई.

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जर्जर भवन

राजकीय बैद्यनाथ कल्याण छात्रावास में रहकर न जाने कितने छाओं ने सफलता के झंडे गाड़े हैं. अब तक यहां रहने वाले छात्रों ने यूपीएससी और बीपीएससी में बेहतरीन में प्रदर्शन किया है. यहां की चार दीवारियों में दिन-रात सेल्फ स्टडी कर कोई बैंक ऑफिसर बन गया तो किसी ने दारोगा, रेलवे, एसएससी समेत तमाम प्रतियोगी परीक्षाएं निकाली हैं. लेकिन, सरकार की अनदेखी और विभाग की उपेक्षा के कारण यहां की हालत बेहद अस्त-व्यस्त हो गई है.

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लाइब्रेरी

100 की जगह रह रहे 350 छात्र
प्रभात कॉलोनी रोड स्थित कल्याण विभाग द्वारा संचालित छात्रावास में बदइंतजामी ऐसी है कि 100 छात्रों वाले हॉस्टल में 350 छात्र रह रहे हैं. कल्याण छात्रावास के नियमों के पन्ने पलटें तो हर कमरे को दो स्टूडेंट्स के लिए बनाया गया था, लेकिन एक बेड पर 4 छात्र रह रहे हैं. छात्रों की संख्या बढ़ती जा रही है लेकिन कई बार बेड और बिल्डिंग की मांग करने के बाद भी अबतक कोई सुनवाई नहीं हुई है.

आपबीती सुनाते छात्र

साइकिल स्टैंड में रहने को मजबूर छात्र
कुव्यवस्था इस तरह व्याप्त है कि छात्रों को मजबूरी में साइकिल स्टैंड के लिए बनाई गई जगह को कमरा बनाकर रहना पढ़ रहा है. एक कमरे में 8 से 12 बेड लगे हैं और एक बेड पर 4 बच्चे गुजारा कर रहे हैं. इस हिसाब से एक कमरे में कितने बच्चे रह रहे हैं इसका अंदाजा आप लगा सकते हैं. पढ़ाई के माहौल के हिसाब से भी यह सही नहीं है.

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हॉस्टल कमरा

खाना बनाने की भी आ पड़ी जिम्मेदारी
इतना नहीं रसोइए के सेवानिवृत हो जाने के बाद खाना भी ये खुद ही बनाते हैं. इनका कहना है कि पढ़ाई के टाइम में से खाना बनाने के लिए 3-4 घंटा निकालना काफी खलता है लेकिन मेस में ताला लगने के बाद खुद से खाना बनाना मजबूरी है.

एक ही कमरे में रहते हैं कई छात्र
छात्रों की मानें तो कमरों में अब और जगह नहीं है कि नए छात्रों को जगह दी जाए. केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने एक बार यहां का दौरा किया था. तब यहां वाचनालय बनाया गया था कि छात्रों के साथ एक जगह बैठकर मीटिंग करके उनकी समस्याओं को सुना जाए. लेकिन, वो कमरा और समस्याएं धूल फांकती रहीं. कोई कुछ सुनने नहीं आया. छात्रों की संख्या वृद्धि होने के बाद मजबूरन उसे भी कमरा बनाना पड़ा.

पुस्तकालय का भी कुछ यही हाल है. जहां सकारात्मक विचारों पर बहस छेड़ी जानी थी, वहां छात्र एक कोने के लिए तरस रहे हैं.

पूर्णिया: अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति को सरकार की ओर से दी जा रही छात्रावास की सुविधा पर भाषण देते हुए सरकारी अमला अक्सर ही अपनी पीठ थपथपाता नजर आता है. मगर सच्चाई यह है कि यहां होनहार छात्र साइकिल स्टैंड को कमरा बनाकर रहने और पढ़ने को मजबूर हैं. ईटीवी भारत कल्याण विभाग द्वारा संचालित कल्याण हॉस्टल की पड़ताल करने पहुंचा, जिसमें सारी व्यवस्थाओं की कलई खुल गई.

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जर्जर भवन

राजकीय बैद्यनाथ कल्याण छात्रावास में रहकर न जाने कितने छाओं ने सफलता के झंडे गाड़े हैं. अब तक यहां रहने वाले छात्रों ने यूपीएससी और बीपीएससी में बेहतरीन में प्रदर्शन किया है. यहां की चार दीवारियों में दिन-रात सेल्फ स्टडी कर कोई बैंक ऑफिसर बन गया तो किसी ने दारोगा, रेलवे, एसएससी समेत तमाम प्रतियोगी परीक्षाएं निकाली हैं. लेकिन, सरकार की अनदेखी और विभाग की उपेक्षा के कारण यहां की हालत बेहद अस्त-व्यस्त हो गई है.

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लाइब्रेरी

100 की जगह रह रहे 350 छात्र
प्रभात कॉलोनी रोड स्थित कल्याण विभाग द्वारा संचालित छात्रावास में बदइंतजामी ऐसी है कि 100 छात्रों वाले हॉस्टल में 350 छात्र रह रहे हैं. कल्याण छात्रावास के नियमों के पन्ने पलटें तो हर कमरे को दो स्टूडेंट्स के लिए बनाया गया था, लेकिन एक बेड पर 4 छात्र रह रहे हैं. छात्रों की संख्या बढ़ती जा रही है लेकिन कई बार बेड और बिल्डिंग की मांग करने के बाद भी अबतक कोई सुनवाई नहीं हुई है.

आपबीती सुनाते छात्र

साइकिल स्टैंड में रहने को मजबूर छात्र
कुव्यवस्था इस तरह व्याप्त है कि छात्रों को मजबूरी में साइकिल स्टैंड के लिए बनाई गई जगह को कमरा बनाकर रहना पढ़ रहा है. एक कमरे में 8 से 12 बेड लगे हैं और एक बेड पर 4 बच्चे गुजारा कर रहे हैं. इस हिसाब से एक कमरे में कितने बच्चे रह रहे हैं इसका अंदाजा आप लगा सकते हैं. पढ़ाई के माहौल के हिसाब से भी यह सही नहीं है.

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हॉस्टल कमरा

खाना बनाने की भी आ पड़ी जिम्मेदारी
इतना नहीं रसोइए के सेवानिवृत हो जाने के बाद खाना भी ये खुद ही बनाते हैं. इनका कहना है कि पढ़ाई के टाइम में से खाना बनाने के लिए 3-4 घंटा निकालना काफी खलता है लेकिन मेस में ताला लगने के बाद खुद से खाना बनाना मजबूरी है.

एक ही कमरे में रहते हैं कई छात्र
छात्रों की मानें तो कमरों में अब और जगह नहीं है कि नए छात्रों को जगह दी जाए. केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने एक बार यहां का दौरा किया था. तब यहां वाचनालय बनाया गया था कि छात्रों के साथ एक जगह बैठकर मीटिंग करके उनकी समस्याओं को सुना जाए. लेकिन, वो कमरा और समस्याएं धूल फांकती रहीं. कोई कुछ सुनने नहीं आया. छात्रों की संख्या वृद्धि होने के बाद मजबूरन उसे भी कमरा बनाना पड़ा.

पुस्तकालय का भी कुछ यही हाल है. जहां सकारात्मक विचारों पर बहस छेड़ी जानी थी, वहां छात्र एक कोने के लिए तरस रहे हैं.

Intro:आकाश कुमार (पूर्णिया)

अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति को सरकार की ओर से दी जा रही छात्रावास की सुविधा पर बोलते हुए सरकारी अमला अक्सर ही अपनी पीठ थपथपाता नजर आ जाता है। मगर क्या आपने कभी किसी साइकिल स्टैंड ,पुस्तकालय या फिर मीटिंग रूम में बच्चों को सोते हुए देखा है। दरअसल जंग खाई सरकारी अमले की यह पोल तब खुली। जब ईटीवी भारत आईएएस, आईपीएस जैसे पदों पर नियुक्त होने वाले कल्याण विभाग द्वारा संचालित कल्याण होस्टल पहुंचा। पेश है पूर्णिया से ईटीवी भारत की एक चौकाने वाली रिपोर्ट ।




Body:यहां पढ़ कोई बना ias तो कोई है ips..


दरअसल जंग खाई सिस्टम की पोल खोलती यह तस्वीरें उस राजकीय बैधनाथ कल्याण छात्रावास की है। जहां से पढ़कर किसी ने आईएसआईएस बनने का सपना साकार किया। तो किसी ने बीपीएससी की परीक्षा में बाजी मारी। अब तक का सबसे बुरा दौर देखने वाले यह हालात एक ऐसे नामचीन छात्रावास की है। जिसकी चाहरदीवारियों में दिन रात एक कर अपनी सेल्फ स्टडी से कोई बैंक में अफसर बना। तो किसी ने दारोगा, रेलवे ,एसएससी समेत दूसरी प्रतियोगिता परीक्षाएं निकाली।



बदहाली पर आंसू बहा रहा st-sc छात्रों का यह सरकारी हॉस्टल..


मगर हैरत की बात यह है। कि प्रभात कॉलोनी रोड स्थित कल्याण विभाग द्वारा संचालित अनुसूचित जाति एवं जनजाति के छात्रों के लिए बना यह छात्रावास आज अपनी बदहाली पर आसूं बहाने को मजबूर है। वजह है 100 छात्रों वाले इस होस्टल में तीन गुना अधिक तकरीबन 350 छात्रों का रहना। दरअसल छात्रों की मानें तो शुरुआती दौर में छात्रावास की सुविधा के मुताबिक छात्रों की जो संख्या तय की गई थी। उसे वक़्त के साथ उसे बदला नहीं गया। नतीजतन बीते कुछ सालों में यह संख्या तकरीबन 350 हो चुकी है।



क्षमता 100 की रह रहे 350 छात्र.....


दरअसल कल्याण छात्रावास के नियमों के पन्ने पलटे तो हर कमरे को दो स्टूडेंट्स के लिए बनाया गया था। इस तरह कल्याण छात्रावास के नए व पुराने भवन में कुल 100 लड़कों के लिए बनाया गया था। समय के साथ इसके संख्या बढ़ने के बाद भी नए छात्रावास का मामला अधर में लटके रहने का ही नतीजा रहा ,कि एससी/एसटी समुदाय से आने वाले आर्थिक रूप से कमजोर इन 100 छात्रों को ही सरकार की ओर से खाद्यान्न की राशि समेत 1000 हजार रुपये सरकार की ओर से मिलते हैं। जबकि इस वक़्त छात्रावास में 350 छात्र रहते हैं। परिणामतः ऐसे 250 छात्रों को सरकार की इस सुविधा का लाभ नहीं मिल पा रहा। जिनके नाम पर कमरा आवंटित नहीं। वजह है कल्याण छात्रावास का 100 छात्रों वाला प्रावधान।



महकमे ने मुंदी आंखें ,एक बेड पर सो रहे 2 छात्र..


मगर वक़्त बीतने के साथ ही छात्रों की संख्या बढ़ी। नतीजतन जिस कमरे को 2 बेड के लिए बनाया गया था। अब हर ऐसे कमरे में कुल 4 बेड हैं। एक बेड पर कुल 2 छात्र सोते हैं। इस तरह एक कमरे में 8-10 छात्र रहने को मजबूर हैं। चौकाने वाली बात यह है छात्रों के मुताबिक इस संबंध में कई मर्तबे विभाग को लिखित शिकायत दी गयी है । मगर हर बार ही इस मांग पर टालमटोल का टेप चिपकाया जाता रहा है।



साईकल स्टैंड ,पुस्तकालय-वाचनालय में छात्र रहने को मजबूर..



यही वजह रही कि जो जगह साईकल स्टैंड के लिए बनाई गई थी। आज वह साईकल स्टैंड 10 बेड वाला 20-30 छात्रों का रूम बन गया है। जहां वे सोते हैं। पढ़ते हैं। और रसोइए के सेवानिवृत्त हो जाने की वजह से मेस की सुविधा पर ताला लग जाने से एक दिन का 3-4 घंटा खाना बनाने में जाया करते हैं। कुछ ऐसा ही हाल इस छात्रावास के पुस्तकालय व वाचनालय का भी है। छात्रों की मानें तो कमरे में अब और जगह नहीं। कि नए छात्रों को जगह दी जाए। मजबूरन विपत्तियों के आगे हार न मानकर कुछ कर गुजरने की सीख दे रही बाबा साहेब की तस्वीरों वाला यह पुस्तकालय अब छात्रों की सोने की जगह बन चुकी है। वहीं कुछ ऐसा ही हाल वाचनालय का भी है। जहां सकारात्मक विचारों पर बहस छेड़ी जानी थी। आज 18 बेड वाला 40 छात्रों वाला एक कमरा बन गया है।




Conclusion:
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