पूर्णिया: अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति को सरकार की ओर से दी जा रही छात्रावास की सुविधा पर भाषण देते हुए सरकारी अमला अक्सर ही अपनी पीठ थपथपाता नजर आता है. मगर सच्चाई यह है कि यहां होनहार छात्र साइकिल स्टैंड को कमरा बनाकर रहने और पढ़ने को मजबूर हैं. ईटीवी भारत कल्याण विभाग द्वारा संचालित कल्याण हॉस्टल की पड़ताल करने पहुंचा, जिसमें सारी व्यवस्थाओं की कलई खुल गई.
राजकीय बैद्यनाथ कल्याण छात्रावास में रहकर न जाने कितने छाओं ने सफलता के झंडे गाड़े हैं. अब तक यहां रहने वाले छात्रों ने यूपीएससी और बीपीएससी में बेहतरीन में प्रदर्शन किया है. यहां की चार दीवारियों में दिन-रात सेल्फ स्टडी कर कोई बैंक ऑफिसर बन गया तो किसी ने दारोगा, रेलवे, एसएससी समेत तमाम प्रतियोगी परीक्षाएं निकाली हैं. लेकिन, सरकार की अनदेखी और विभाग की उपेक्षा के कारण यहां की हालत बेहद अस्त-व्यस्त हो गई है.
100 की जगह रह रहे 350 छात्र
प्रभात कॉलोनी रोड स्थित कल्याण विभाग द्वारा संचालित छात्रावास में बदइंतजामी ऐसी है कि 100 छात्रों वाले हॉस्टल में 350 छात्र रह रहे हैं. कल्याण छात्रावास के नियमों के पन्ने पलटें तो हर कमरे को दो स्टूडेंट्स के लिए बनाया गया था, लेकिन एक बेड पर 4 छात्र रह रहे हैं. छात्रों की संख्या बढ़ती जा रही है लेकिन कई बार बेड और बिल्डिंग की मांग करने के बाद भी अबतक कोई सुनवाई नहीं हुई है.
साइकिल स्टैंड में रहने को मजबूर छात्र
कुव्यवस्था इस तरह व्याप्त है कि छात्रों को मजबूरी में साइकिल स्टैंड के लिए बनाई गई जगह को कमरा बनाकर रहना पढ़ रहा है. एक कमरे में 8 से 12 बेड लगे हैं और एक बेड पर 4 बच्चे गुजारा कर रहे हैं. इस हिसाब से एक कमरे में कितने बच्चे रह रहे हैं इसका अंदाजा आप लगा सकते हैं. पढ़ाई के माहौल के हिसाब से भी यह सही नहीं है.
खाना बनाने की भी आ पड़ी जिम्मेदारी
इतना नहीं रसोइए के सेवानिवृत हो जाने के बाद खाना भी ये खुद ही बनाते हैं. इनका कहना है कि पढ़ाई के टाइम में से खाना बनाने के लिए 3-4 घंटा निकालना काफी खलता है लेकिन मेस में ताला लगने के बाद खुद से खाना बनाना मजबूरी है.
एक ही कमरे में रहते हैं कई छात्र
छात्रों की मानें तो कमरों में अब और जगह नहीं है कि नए छात्रों को जगह दी जाए. केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने एक बार यहां का दौरा किया था. तब यहां वाचनालय बनाया गया था कि छात्रों के साथ एक जगह बैठकर मीटिंग करके उनकी समस्याओं को सुना जाए. लेकिन, वो कमरा और समस्याएं धूल फांकती रहीं. कोई कुछ सुनने नहीं आया. छात्रों की संख्या वृद्धि होने के बाद मजबूरन उसे भी कमरा बनाना पड़ा.
पुस्तकालय का भी कुछ यही हाल है. जहां सकारात्मक विचारों पर बहस छेड़ी जानी थी, वहां छात्र एक कोने के लिए तरस रहे हैं.