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पूर्णिया में भोले नाथ का है अनोखा मंदिर, बर्फाभिषेक से होती है शिव की आराधना

महामाया मंदिर में शिवलिंग पर आक-धतूरा, गंगा जल और दूध से पूजा नहीं की जाती है. बल्कि बर्फ की सिल्लियों से ढक कर भोले नाथ की अराधना की जाती है. ऐसी मान्यता है कि सावन की सोमवारी को यहां पूजा करने से मन की रह मुराद पूरी होती है.

पूर्णिया का महामाया मंदिर
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Published : Aug 9, 2019, 5:11 PM IST

Updated : Aug 9, 2019, 7:55 PM IST

पूर्णियाः फूल, बेलपत्र, गंगा जल और दूध से भोले नाथ की पूजा तो बहुत आम है. लेकिन जिले के लाइन बाजार के महामाया मंदिर में भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए शिवलिंग का बर्फाभिषेक किया जाता है. यह मंदिर अपनी अनूठी मान्यताओं के लिए इलाके में प्रसिद्ध है.

पूरी रिपोर्ट

बर्फ की सिल्लियों से होती है पूजा
महामाया मंदिर में महादेव की पूजा की अनूठी परंपरा है. यहां शिवलिंग पर आक-धतूरा, गंगा जल और दूध से पूजा नहीं की जाती है. बल्कि बर्फ की सिल्लियों से ढककर भोले नाथ की अराधना की जाती है. ऐसी मान्यता है कि सावन की सोमवारी को यहां पूजा करने से मन की हर मुराद पूरी होती है. यहां सावन की सोमवारी की संध्या स्तुति देखने दूर-दराज से भक्त आते हैं.

पूर्णिया
महामाया मंदिर

मुरादें होती हैं पूरी
मंदिर के पुजारी अभय कांत झा बताते हैं कि यह मंदिर बहुत प्रचीन है. लेकिन यहां बर्फाभिषेक की परंपरा 1966 से चली आ रही है. उन्होंने बताया कि भोलेनाथ का क्रोध शांत करने के लिए उनका बर्फाभिषेक किया जाता है. इससे शिव भक्तों को भी शांति मिलती है. वहीं, मंदिर में पूजा करने आए श्रद्धालुओं ने बताया कि महामाया मंदिर में शिवलिंग का बर्फाभिषेक करने से मन की सारी मुरादें पूरी होती हैं.

पूर्णियाः फूल, बेलपत्र, गंगा जल और दूध से भोले नाथ की पूजा तो बहुत आम है. लेकिन जिले के लाइन बाजार के महामाया मंदिर में भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए शिवलिंग का बर्फाभिषेक किया जाता है. यह मंदिर अपनी अनूठी मान्यताओं के लिए इलाके में प्रसिद्ध है.

पूरी रिपोर्ट

बर्फ की सिल्लियों से होती है पूजा
महामाया मंदिर में महादेव की पूजा की अनूठी परंपरा है. यहां शिवलिंग पर आक-धतूरा, गंगा जल और दूध से पूजा नहीं की जाती है. बल्कि बर्फ की सिल्लियों से ढककर भोले नाथ की अराधना की जाती है. ऐसी मान्यता है कि सावन की सोमवारी को यहां पूजा करने से मन की हर मुराद पूरी होती है. यहां सावन की सोमवारी की संध्या स्तुति देखने दूर-दराज से भक्त आते हैं.

पूर्णिया
महामाया मंदिर

मुरादें होती हैं पूरी
मंदिर के पुजारी अभय कांत झा बताते हैं कि यह मंदिर बहुत प्रचीन है. लेकिन यहां बर्फाभिषेक की परंपरा 1966 से चली आ रही है. उन्होंने बताया कि भोलेनाथ का क्रोध शांत करने के लिए उनका बर्फाभिषेक किया जाता है. इससे शिव भक्तों को भी शांति मिलती है. वहीं, मंदिर में पूजा करने आए श्रद्धालुओं ने बताया कि महामाया मंदिर में शिवलिंग का बर्फाभिषेक करने से मन की सारी मुरादें पूरी होती हैं.

Intro:ऐसे शिव मंदिरों से तो हम सभी वाकिफ हैं जहां सावन में भगवान शिव की आराधना भांग-धतूरे से की जाती हैं। आराध्य देव शिव प्रसन्न हों और मन मांगी मुरादें पूरी करें। लिहाजा भक्तों द्वारा शिवलिंग पर दूध और जल अर्पण किया जाना भी बीते वक़्त की बात हो चली है। मगर शायद ही आप कभी ऐसे शिवालयों के दर्शन पर गए होंगें। जहां सावन में भगवान शिव को फल-फूल का भोग लगाए जाने के बजाए बर्फाअभिषेक कर शिव की स्तुति करते हैं।


Body:फल-फूल के बजाए बर्फाभिषेक की है परंपरा... यह मंदिर अपनी अनूठी मान्यताओं के लिए समूचे जिले में प्रसिद्ध है। वहीं पूरे होते मुरादों का ही असर है ,कि सावन में इस मंदिर के दर्शन मात्र के लिए दूर-दराज के जिलों से भी लोग पहुंचने लगे हैं। सावन के सोमवारी को लाइन बाजार स्थित महामाया स्थान मंदिर में देश के बाकी शिवालयों में होने वाली भगवान शिव की पूजा-अर्चना से एक अलग और अनोखी परंपरा है। जानकर हैरानी होगी, कि यहां शिव शंभू की स्तुति करने वाले भक्त शिवलिंग पर भांग-धतूरा ,फल-फूल या दूध और जलाभिषेक नहीं करते बल्कि इस मंदिर में बर्फाभिषेक की अनोखी परंपरा है। बर्फ की सिल्लियों से ढक जाते हैं महादेव... मान्यता है कि सावन के सोमवारी को यहां होने वाली संध्या प्रहर की विशेष स्तुति में जो भी भक्त भगवान शिव को बर्फ का अभिषेक कराते हैं। उनकी मुराद कभी खाली नहीं जाती। यही वजह है कि इस विशेष संध्या का शिव भक्त बड़ी बेसब्री से इंतेजार करते हैं। वहीं वैसी स्त्री जो सावन में सोमवारी का व्रत रखकर इस विशेष संध्या पर भगवान शिव की स्तुति भर कर लें तो बिन मांगे सारी मुरादें पूरी हो जाती हैं। लिहाजा सोमवारी की संध्या प्रहर में इस मंदिर की छटा देखती ही बनती है। बर्फ के सिल्लियों से ढका शिवलिंग और हाथों में श्रद्धा -सुमन की थाली लिए यह भक्तिमय नजारा देखते ही बनता है। 1966 से ही चली आ रही यह विशेष परंपरा..... अपनी अनूठी परंपराओं और मुरादी मंदिरों के रूप में प्रसिद्ध इस मंदिर के पुजारी अभय कांत झा के मंदिर से जुड़ी मान्यताओं पर गौर करें। तो बर्फाभिषेक की परंपरा की शुरुआत दशकों पहले 1966 में हुई और तभी से इस परंपरा को जारी रखा गया है। ये बताते हैं कि शिव को अपने क्रोध को शांत रखने के लिए बर्फ से घिरे कैलाश पर्वत को अपना आसन बनाना पड़ा था। वहीं बर्फ शिव को बेहद भाते हैं। इनकी मानें तो सावन के सोमवार के संध्या प्रहर में जो कोई भी भक्त बर्फाभिषेक की विशेष स्तुति के समय सच्चे दिल से मुरादे मांगता है। भगवान शिव उसकी हरेक कामना पूरी करते हैं। आज तक खाली नहीं गई मुराद... इन पूरे होते मनोकामनाओं का ही असर रहा कि समय के बीतने के साथ मंदिर की ख्याति और भी बढ़ती चली गयी। सावन के सोमवार को होने वाली इस विशेष स्तुति को देखने वाले भक्तों की संख्या बढ़ती चली गई। वहीं मंदिर के प्रति अपार आस्था रखने वाले भक्तों की मानें तो जिस-जिस ने इस विशेष स्तुति के समय सच्चे मन से भगवान शिव से मुराद मांगी। उसकी हर एक मुराद भगवान शिव ने पूरी की। वहीं सावन के आखिरी सोमवार को इस मंदिर की खास मान्यता है। इस दिन भगवान शिव के एक दर्श भर के लिए भक्तों को घण्टों का इंतेजार करना पड़ता है।


Conclusion:
Last Updated : Aug 9, 2019, 7:55 PM IST
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