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पूर्णिया पुस्तक मेला: लोगों में किताबों को लेकर घटी दिलचस्पी, जानकार बोले- सोशल मीडिया का है प्रभाव

पूर्णिया कॉलेज की प्रोफेसर सविता ओझा ने कहा कि पुस्तक मेले में से मंदी जैसी तस्वीर का सामने आना, सोशल मीडिया का इफेक्ट है. लोग अब अपना ज्यादातर समय फेसबुक ,टि्वटर ,व्हाट्सएप और दूसरे सोशल नेटवर्किंग साइट पर बिताते हैं.

People are not going to book fair in purnea
पूर्णिया में पुस्तक मेला
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Published : Feb 10, 2020, 5:47 PM IST

पूर्णिया: पुस्तक मेले से जुड़े आयोजनों पर सोशल मीडिया का खासा प्रभाव पड़ रहा है. इसी वजह से जिले के ठाकुरबारी ग्राउंड में आयोजित पुस्तक मेले से इस बार लोगों की भीड़ नदारद रही. ये आयोजन 8 वर्ष बाद किया गया है. इसके बावजूद पुस्तक प्रेमियों की भीड़ यहां देखने को नहीं मिली.

पुस्तक मेले के संचालक मृलांक शेखर ने बताया कि मेले के आयोजन को आज 3 दिन हो चुके हैं. 8 वर्ष बाद इस तरह का कोई आयोजन किया गया था. जिससे उन्हें उम्मीद थी कि इस बार बाजार अच्छा होगा, लेकिन सोशल मीडिया के प्रभाव ने इस तरह के आयोजनों पर खासा प्रभाव डाला है. उन्होंने कहा कि यहां 10 से भी अधिक प्रकाशकों ने अपने स्टॉल लगाए हैं. लेकिन अब तक मेले में पाठकों की चहलकदमी नदारद है. लगातार सक्रिय होते सोशल मीडिया की वजह से पुस्तकों के प्रति लोगों की दिलचस्पी तेजी से घटी है.

book fair in purnea
पुस्तक मेले में लगाए गए स्टॉल

सोशल मीडिया का गहरा प्रभाव
पूर्णिया कॉलेज की प्रोफेसर सविता ओझा ने कहा कि पुस्तक मेले से मंदी जैसी तस्वीर का सामने आना, सोशल मीडिया का इफेक्ट है. लोग अब अपना ज्यादातर समय फेसबुक, टि्वटर, व्हाट्सएप और दूसरे सोशल नेटवर्किंग साइट पर बीताते हैं. खासकर युवाओं का क्रेज ऐसे आयोजनों के प्रति मृत हो गई है. जो रचनात्मकता के साथ ही हमारी संस्कृति और संस्कारों पर खतरा है. उन्होंने कहा कि किताबों से मौलिक और नैतिक ज्ञान होता है. हम कृतियों के जरिये संस्कारों और संस्कृति से जुड़ते हैं. लेकिन बीते कुछ सालों में सोशल मीडिया का गहरा प्रभाव हमारे ऊपर पड़ा है.

People are not going to book fair in purnea
पुस्तक मेले में नहीं पहुंच रहे लोग

लेखक नहीं ले रहे दिलचस्पी
मेले में पहुंची शहर की जानी-मानी लेखक की मानें तो सोशल मीडिया के प्रभाव इसके कारकों में शामिल हैं. लेकिन इस तरह के आयोजन की सफलता इस बात पर भी निर्भर करती है कि ऐसे आयोजनों को सफल बनाने में लोकल लेखकों की कितनी अहम भूमिका है. इनसे एक बड़ा समाज जुड़ा होता है. जो इनकी बातों को फॉलो करता है. इन्हें रोल मॉडल मानने वाले पाठक इन्हें देखने और सुनने पहुंचते है. लेकिन जिले में लोकल लेखक ही इस आयोजन में कोई दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं.

देखें पूरी रिपोर्ट

10 प्रकाशकों ने लगाए स्टॉल
स्टॉल संचालक ने बताया कि बदलते वक्त के साथ ही पाठकों की किताबों के प्रति दिलचस्पी खत्म होती जा रही है. जिसकी वजह से मुनाफे के बजाए प्रकाशक और स्टॉल संचालकों को घाटा होता जा रहा है. यही कारण है कि प्रकाशक भी अब पुस्तक मेले में अपनी दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं. इसलिए सिर्फ 10 प्रकाशकों ने ही यहां अपने स्टॉल लगाए हैं. उन्होंने कहा कि राजकमल जैसे बड़े प्रकाशक ट्रांसपोर्टिंग की वजह से लौट गए.

ये भी पढ़ें: RJD ने पूछा- आखिर तेजस्वी को देखकर क्यों भड़क जाते हैं नीतीश-सुशील

आयोजन का प्रचार-प्रसार जरूरी
मेले में आए स्थानीय लोगों ने बताया कि एकांत स्थान पर पुस्तक मेले का आयोजन किया गया है. जिसकी उन्हें जानकारी नहीं थी. वे इत्तेफाक से इस रास्ते से गुजरते हुए यहां पहुंचे. वहीं 10 साल के लंबे अंतराल के बाद ऐसे आयोजनों की सफलता के लिए यह जरूरी है कि आयोजन को लेकर शहर में ज्यादा से ज्यादा प्रचार हो. शहर से हटकर होने की वजह से लोग यहां तक नहीं पहुंच पा रहे हैं. जिसकी वजह से लोगों की भीड़ मेले में नदारद है.

पूर्णिया: पुस्तक मेले से जुड़े आयोजनों पर सोशल मीडिया का खासा प्रभाव पड़ रहा है. इसी वजह से जिले के ठाकुरबारी ग्राउंड में आयोजित पुस्तक मेले से इस बार लोगों की भीड़ नदारद रही. ये आयोजन 8 वर्ष बाद किया गया है. इसके बावजूद पुस्तक प्रेमियों की भीड़ यहां देखने को नहीं मिली.

पुस्तक मेले के संचालक मृलांक शेखर ने बताया कि मेले के आयोजन को आज 3 दिन हो चुके हैं. 8 वर्ष बाद इस तरह का कोई आयोजन किया गया था. जिससे उन्हें उम्मीद थी कि इस बार बाजार अच्छा होगा, लेकिन सोशल मीडिया के प्रभाव ने इस तरह के आयोजनों पर खासा प्रभाव डाला है. उन्होंने कहा कि यहां 10 से भी अधिक प्रकाशकों ने अपने स्टॉल लगाए हैं. लेकिन अब तक मेले में पाठकों की चहलकदमी नदारद है. लगातार सक्रिय होते सोशल मीडिया की वजह से पुस्तकों के प्रति लोगों की दिलचस्पी तेजी से घटी है.

book fair in purnea
पुस्तक मेले में लगाए गए स्टॉल

सोशल मीडिया का गहरा प्रभाव
पूर्णिया कॉलेज की प्रोफेसर सविता ओझा ने कहा कि पुस्तक मेले से मंदी जैसी तस्वीर का सामने आना, सोशल मीडिया का इफेक्ट है. लोग अब अपना ज्यादातर समय फेसबुक, टि्वटर, व्हाट्सएप और दूसरे सोशल नेटवर्किंग साइट पर बीताते हैं. खासकर युवाओं का क्रेज ऐसे आयोजनों के प्रति मृत हो गई है. जो रचनात्मकता के साथ ही हमारी संस्कृति और संस्कारों पर खतरा है. उन्होंने कहा कि किताबों से मौलिक और नैतिक ज्ञान होता है. हम कृतियों के जरिये संस्कारों और संस्कृति से जुड़ते हैं. लेकिन बीते कुछ सालों में सोशल मीडिया का गहरा प्रभाव हमारे ऊपर पड़ा है.

People are not going to book fair in purnea
पुस्तक मेले में नहीं पहुंच रहे लोग

लेखक नहीं ले रहे दिलचस्पी
मेले में पहुंची शहर की जानी-मानी लेखक की मानें तो सोशल मीडिया के प्रभाव इसके कारकों में शामिल हैं. लेकिन इस तरह के आयोजन की सफलता इस बात पर भी निर्भर करती है कि ऐसे आयोजनों को सफल बनाने में लोकल लेखकों की कितनी अहम भूमिका है. इनसे एक बड़ा समाज जुड़ा होता है. जो इनकी बातों को फॉलो करता है. इन्हें रोल मॉडल मानने वाले पाठक इन्हें देखने और सुनने पहुंचते है. लेकिन जिले में लोकल लेखक ही इस आयोजन में कोई दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं.

देखें पूरी रिपोर्ट

10 प्रकाशकों ने लगाए स्टॉल
स्टॉल संचालक ने बताया कि बदलते वक्त के साथ ही पाठकों की किताबों के प्रति दिलचस्पी खत्म होती जा रही है. जिसकी वजह से मुनाफे के बजाए प्रकाशक और स्टॉल संचालकों को घाटा होता जा रहा है. यही कारण है कि प्रकाशक भी अब पुस्तक मेले में अपनी दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं. इसलिए सिर्फ 10 प्रकाशकों ने ही यहां अपने स्टॉल लगाए हैं. उन्होंने कहा कि राजकमल जैसे बड़े प्रकाशक ट्रांसपोर्टिंग की वजह से लौट गए.

ये भी पढ़ें: RJD ने पूछा- आखिर तेजस्वी को देखकर क्यों भड़क जाते हैं नीतीश-सुशील

आयोजन का प्रचार-प्रसार जरूरी
मेले में आए स्थानीय लोगों ने बताया कि एकांत स्थान पर पुस्तक मेले का आयोजन किया गया है. जिसकी उन्हें जानकारी नहीं थी. वे इत्तेफाक से इस रास्ते से गुजरते हुए यहां पहुंचे. वहीं 10 साल के लंबे अंतराल के बाद ऐसे आयोजनों की सफलता के लिए यह जरूरी है कि आयोजन को लेकर शहर में ज्यादा से ज्यादा प्रचार हो. शहर से हटकर होने की वजह से लोग यहां तक नहीं पहुंच पा रहे हैं. जिसकी वजह से लोगों की भीड़ मेले में नदारद है.

Intro:आकाश कुमार ( पूर्णिया)
Exclusive report .

सोशल मीडिया का पुस्तक मेले से जुड़े आयोजनों पर खासा प्रभाव पड़ा है। कुछ यही वजह है कि जिले के ठाकुरबारी ग्राउंड में आयोजित पुस्तक मेले से इस बार आगंतुकों की भीड़ नदारद दिखाई दे रही है। हैरत की बात है इस तरह का आयोजन 8 वर्ष संभव हो सका है बावजूद इसके पुस्तक प्रेमियों की भीड़ दूर-दूर तक नजर नहीं आ रही है। लिहाजा ऐसे ही कई जटिल सवालों की पड़ताल में ईटीवी भारत की टीम पुस्तक मेले में पहुंची ।


Body:बकायदा ईटीवी भारत की टीम ने इस गंभीर सवाल के साथ पुस्तक मेले के आयोजक ,शहर के जाने-माने लेखक ,प्रोफेसर स्टॉल संचालक के साथ ही पुस्तक मेले में पहुंचे आम लोगों से पुस्तक मेले के आयोजन से दूर होती जा रही पाठकों की दिलचस्पी को लेकर बातचीत की और ऐसे ही कई गंभीर सवालों के जड़ में जाने की कोशिश की।


आयोजन के 3 दिन गुजरे, नदारद हैं मेले से आगंतुक...


पुस्तक मेले के संचालक मृलांक शेखर कहते हैं कि मेले के आयोजन को आज 3 दिन हो चले हैं। 8 वर्ष बाद इस तरह का कोई आयोजन किया गया था जिससे उन्हें उम्मीद थी, कि इस बार बाजार अच्छा होगा। मगर तस्वीर बिल्कुल उलट नजर आ रही है। सोशल मीडिया के प्रभाव ने इस तरह के आयोजनों पर खासा प्रभाव डाला है। यहां 10 से भी अधिक प्रकाशकों ने अपने स्टाल लगाए हैं। मगर अब तक मेले में पाठकों की चहलकदमी नदारद है। लगातार सक्रिय होते सोशल मीडिया के चलते पुस्तकों के प्रति पुस्तक प्रेमीयों की दिलचस्पी तेजी से घटी है।


80 फीसद लोग सोशल मीडिया के डीप चपेट में....


पूर्णिया कॉलेज की प्रोफेसर इसके पीछे की कारण टटोलते हुए कहती हैं कि पुस्तक मेले में से मंदी जैसी तस्वीर का सामने आना। सोशल मीडिया इफेक्ट है। लोग अब अपना ज्यादातर समय फेसबुक ,टि्वटर ,व्हाट्सएप और दूसरे सोशल नेटवर्किंग साइट पर बिताते हैं। खासकर युवाओं का क्रेज़ ऐसे आयोजनों के प्रति मृत सा हो गया है। जो रचनात्मकता के साथ ही हमारी संस्कृति और संस्कारों पर खतरा है। किताबों से मौलिक और नैतिक ज्ञान होता है। हम कृतियों के जरिये संस्कारों और संस्कृति से जुड़ते हैं। मगर बीते कुछ सालों में सोशल मीडिया का गहरा प्रभाव हमारे ऊपर पड़ा है। 80 फीसद लोग खासकर युवा फेसबुक ,व्हाट्सएप जैसे सोशल मीडिया साइट पर लगातार सक्रिय रहते हैं। जिनका किताबों से नाता पिछड़ता जा रहा है।


शून्य है लोकल लेखकों का सपोर्ट....

वहीं मेले में पहुंची शहर की जानी मानी लेखक की मानें तो सोशल मीडिया के प्रभाव इसके कारकों में शामिल हैं। मगर इस तरह के आयोजन की सफलता इस बात पर भी निर्भर करती है ऐसे आयोजनों को सफल बनाने में लोकल लेखकों की कितनी अहम भूमिका है। इनसे एक बड़ा समाज जुटा होता है। जो इनकी बातों को फॉलो करता है। इन्हें रोल मॉडल मानने वाले पाठक इन्हें देखने और सुनने पहुंचता है। मगर जिले में लोकल लेखक ही इस आयोजन में कोई दिलचस्पी नहीं ले रह। कुछ यही वजह है कि पुस्तक मेले मैं इस बार कई अच्छे और बड़े लेखकों की कृति मौजूद होने के बावजूद मेले में सन्नाटा है।


वक़्त के साथ खत्म हो रही है किताबों में दिलचस्पी....

वहीं स्टोन संचालक बताते हैं इस तरह के आयोजनों में उन्होंने अपनी आधी जिंदगी खफा दी। बदलते वक्त के साथ ही पाठकों की किताबों के प्रति बची -कूची दिलचस्पी खत्म होती जा रही है।
जिसके चलते मुनाफे के बजाए प्रकाशक और स्टॉल संचालकों को घाटा होता जा रहा है। जिसके कारण प्रकाशक भी अब पुस्तक मेले में भागेदारी में अपनी दिलचस्पी नहीं ले रहे। यही वजह है कि सिर्फ 10 प्रकाशकों ने ही यहां अपने स्टॉल लगाए हैं।
वहीं राजकमल जैसे बड़े प्रकाशक ट्रांसपोर्टिंग की वजह से लौट गए। कुल मिलाकर अनेक वजहों से प्रकाशकों ,लेखकों व स्टॉल संचालकों को होता है। लिहाजा ऐसे खतरों को कोई भी बार-बार उठाना नहीं चाहता।


एकांत स्थान होने से आयोजन की जानकारी से लोग महरूम...


वहीं मेले तक पहुंचने वाले आगंतुकों की मानें तो एंकात स्थान पर पुस्तक मेले का आयोजन किया गया है। जिसकी उन्हें जानकारी नहीं थी। वे इत्तेफाक से इस रास्ते से गुजरते हुए यहां पहुंचे। वहीं
10 साल के लंबे अंतराल के बाद ऐसे आयोजनों की सफलता के लिए यह महतीआवश्यक है कि आयोजन को ले शहर में ज्यादा से ज्यादा प्रचार हो। शहर से हटकर होने की वजह से लोग यहां तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। जिसके कारण मेले से आगंतुक नदारद दिखाई दे रहे हैं।

1 बाईट- पुस्तक मेला संचालक ,मृलांक शेखर
2 बाईट- पूर्णिया कॉलेज प्रोफेसर, सविता ओझा
3 बाईट- लेखक ,मंजुला उपाध्याय
4 बाईट- स्टॉल संचालक ,विजय कु सिंह
5 बाईट- केशव प्रसाद सिंह ,आगंतुक





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