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अनूठी प्रेम कहानी : 27 साल से पत्नी की अस्थियों को संजोए हैं भोलानाथ

भोलानाथ ने कहा, 'हमारी शादी कम उम्र में हो गई थी और तभी हम दोनों ने साथ जीने-मरने की कसमें खाई थी. वह (पत्नी) तो चली गई लेकिन मैं मर नहीं सका. मैंने उनकी यादें संजोकर रखी हैं.'

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Published : Sep 6, 2019, 7:01 PM IST

पूर्णिया: आम तौर पर वट सावित्री पर्व हो या करवाचौथ या तीज पर्व हो, महिला अपने पति के प्रति अपने प्रेम और उनकी लंबी आयु की कामना के साथ उपवास रखती हैं. पति भी कई मौके पर अपनी पत्नी से प्रेम का इजहार करते हैं. लेकिन बिहार में एक ऐसे पति भी हैं, जिन्होंने अपनी पत्नी से प्रेम का इजहार करने के लिए अनूठा प्रण लिया है.

पूर्णिया के रूपौली के रहने वाले 87 वर्षीय बुजुर्ग भोलानाथ आलोक 27 सालों से अपनी पत्नी की अस्थियां संजोकर अपने मरने का इंतजार कर रहे हैं. उनकी चाहत इतनी है कि उनकी मौत के बाद उनकी अंतिम यात्रा के समय ये अस्थियां भी उनके सीने से लगी हों.

मैं जिंदा हूं...
भोलानाथ ने कहा, 'हमारी शादी कम उम्र में हो गई थी और तभी हम दोनों ने साथ जीने-मरने की कसमें खाई थी. वह (पत्नी) तो चली गई लेकिन मैं मर नहीं सका. मैंने उनकी यादें संजोकर रखी हैं.'

प्रेम कहानी सुनाते भोलानाथ
प्रेम कहानी सुनाते भोलानाथ

उन्होंने घर के बगीचे में एक पेड़ पर लटकी पोटली दिखाते हुए कहा कि 27 सालों से पत्नी की अस्थियों को टहनी से टांगकर सुरक्षित रखा है. भोलानाथ ने बताया कि, 'मेरी पद्मा (पत्नी का नाम) भले ही नहीं हैं, लेकिन ये अस्थियां उनकी यादें मिटने नहीं देतीं. जब भी किसी परेशानी में होता हूं, तो लगता है वह यहीं हैं. बच्चों को भी कह रखा है कि मेरी अंतिम यात्रा में पत्नी की अस्थियों की पोटली साथ ले जाना और चिता पर मेरी छाती से लगाकर ही अंतिम संस्कार करना.'

कैसे निभाता वादा- भोलानाथ
नम आंखों से भोलानाथ ने कहा कि अपने वादे को निभाने के लिए उन्हें कोई और तरीका नहीं दिखा. इसलिए उन्होंने यही तरीका अपनाया. भोलानाथ प्रतिदिन इन अस्थियों को देखते और सहलाते हैं. पत्नी की बात करने पर आज भी भोलानाथ की आंखों से आंसुओं के रूप में पत्नी का प्रेम छलक पड़ता है. वे बताते हैं, 'पद्मा का भगवान पर बड़ा विश्वास था. हम दोनों की जिंदगी बढ़िया से कट रह थी लेकिन करीब 27 साल पहले पत्नी बीमार हुईं.

वादा तोड़कर गईं पद्मा-भोलानाथ
भोलानाथ ने बताया कि इलाज और दवा में कोई कमी नहीं हुई पर कहते हैं ना कि अच्छे व्यक्ति को भगवान जल्दी अपने पास बुला लेते हैं. भगवान ने पद्मा को भी बुला लिया और पद्मा अपना वादा तोड़कर चली गई. इसके बाद हमने अपनी बच्ची की परवरिश की.'

भोलानाथ से खास बातचीत

'पद्मा को नहीं भूल पाया'
भोलानाथ गर्व से कहते हैं, 'इस सामाजिक जीवन के उधेड़बुन में भी मैं पद्मा को नहीं भूला. पत्नी के साथ मर तो नहीं सकता था. उनके छोड़ जाने का गम मैं अब तक नहीं भूल पाया.'

उन्होंने कहा, 'बगीचे के एक आम के पेड़ में उनकी अस्थियां एक कलश में समेट कर रखा हूं. वहीं नीचे तुलसी का पौधा लगा हुआ है.'

'साथ मरने का सुकून तो मिलेगा'
आज भोलानाथ की यह प्रेम कहानी लोगों के लिए चर्चा का विषय बनी हुई है. भोलानाथ गर्व से कहते हैं, 'यहां ना सही परंतु ऊपर जब पद्मा से मिलूंगा, तब यह तो बता सकूंगा कि मैंने अपना वादा निभाया.' उन्होंने कहा कि पृथ्वीलोक में हम दोनों साथ जी भले ही नहीं सके पर साथ मरने का सुकून तो जरूर मिलेगा.

  • बिहार में NRC की मांग तेज, 'केंद्र सरकार जल्द उठा सकती है बड़ा कदम'#NRC #NrcInBihar
    https://t.co/3VoUAEJkir

    — ETV Bharat Bihar (@etvbharatbihar) September 6, 2019 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

पानी और धूप से बचने के लिए की ये व्यवस्था
भोलानाथ के दामाद अशोक सिंह कहते हैं कि यह प्रेम का अनूठा उदाहरण है. उन्होंने कहा कि उनकी अंतिम इच्छा हमलोग जरूर पूरी करेंगे. उन्होंने कहा कि ऐसे बिरले ही होता है. उन्होंने कहा कि पानी, धूप से बचने के लिए इस कलश को प्लास्टिक और फिर ऊपर से कपड़े से बांधकर रखा गया है.

पूर्णिया: आम तौर पर वट सावित्री पर्व हो या करवाचौथ या तीज पर्व हो, महिला अपने पति के प्रति अपने प्रेम और उनकी लंबी आयु की कामना के साथ उपवास रखती हैं. पति भी कई मौके पर अपनी पत्नी से प्रेम का इजहार करते हैं. लेकिन बिहार में एक ऐसे पति भी हैं, जिन्होंने अपनी पत्नी से प्रेम का इजहार करने के लिए अनूठा प्रण लिया है.

पूर्णिया के रूपौली के रहने वाले 87 वर्षीय बुजुर्ग भोलानाथ आलोक 27 सालों से अपनी पत्नी की अस्थियां संजोकर अपने मरने का इंतजार कर रहे हैं. उनकी चाहत इतनी है कि उनकी मौत के बाद उनकी अंतिम यात्रा के समय ये अस्थियां भी उनके सीने से लगी हों.

मैं जिंदा हूं...
भोलानाथ ने कहा, 'हमारी शादी कम उम्र में हो गई थी और तभी हम दोनों ने साथ जीने-मरने की कसमें खाई थी. वह (पत्नी) तो चली गई लेकिन मैं मर नहीं सका. मैंने उनकी यादें संजोकर रखी हैं.'

प्रेम कहानी सुनाते भोलानाथ
प्रेम कहानी सुनाते भोलानाथ

उन्होंने घर के बगीचे में एक पेड़ पर लटकी पोटली दिखाते हुए कहा कि 27 सालों से पत्नी की अस्थियों को टहनी से टांगकर सुरक्षित रखा है. भोलानाथ ने बताया कि, 'मेरी पद्मा (पत्नी का नाम) भले ही नहीं हैं, लेकिन ये अस्थियां उनकी यादें मिटने नहीं देतीं. जब भी किसी परेशानी में होता हूं, तो लगता है वह यहीं हैं. बच्चों को भी कह रखा है कि मेरी अंतिम यात्रा में पत्नी की अस्थियों की पोटली साथ ले जाना और चिता पर मेरी छाती से लगाकर ही अंतिम संस्कार करना.'

कैसे निभाता वादा- भोलानाथ
नम आंखों से भोलानाथ ने कहा कि अपने वादे को निभाने के लिए उन्हें कोई और तरीका नहीं दिखा. इसलिए उन्होंने यही तरीका अपनाया. भोलानाथ प्रतिदिन इन अस्थियों को देखते और सहलाते हैं. पत्नी की बात करने पर आज भी भोलानाथ की आंखों से आंसुओं के रूप में पत्नी का प्रेम छलक पड़ता है. वे बताते हैं, 'पद्मा का भगवान पर बड़ा विश्वास था. हम दोनों की जिंदगी बढ़िया से कट रह थी लेकिन करीब 27 साल पहले पत्नी बीमार हुईं.

वादा तोड़कर गईं पद्मा-भोलानाथ
भोलानाथ ने बताया कि इलाज और दवा में कोई कमी नहीं हुई पर कहते हैं ना कि अच्छे व्यक्ति को भगवान जल्दी अपने पास बुला लेते हैं. भगवान ने पद्मा को भी बुला लिया और पद्मा अपना वादा तोड़कर चली गई. इसके बाद हमने अपनी बच्ची की परवरिश की.'

भोलानाथ से खास बातचीत

'पद्मा को नहीं भूल पाया'
भोलानाथ गर्व से कहते हैं, 'इस सामाजिक जीवन के उधेड़बुन में भी मैं पद्मा को नहीं भूला. पत्नी के साथ मर तो नहीं सकता था. उनके छोड़ जाने का गम मैं अब तक नहीं भूल पाया.'

उन्होंने कहा, 'बगीचे के एक आम के पेड़ में उनकी अस्थियां एक कलश में समेट कर रखा हूं. वहीं नीचे तुलसी का पौधा लगा हुआ है.'

'साथ मरने का सुकून तो मिलेगा'
आज भोलानाथ की यह प्रेम कहानी लोगों के लिए चर्चा का विषय बनी हुई है. भोलानाथ गर्व से कहते हैं, 'यहां ना सही परंतु ऊपर जब पद्मा से मिलूंगा, तब यह तो बता सकूंगा कि मैंने अपना वादा निभाया.' उन्होंने कहा कि पृथ्वीलोक में हम दोनों साथ जी भले ही नहीं सके पर साथ मरने का सुकून तो जरूर मिलेगा.

  • बिहार में NRC की मांग तेज, 'केंद्र सरकार जल्द उठा सकती है बड़ा कदम'#NRC #NrcInBihar
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    — ETV Bharat Bihar (@etvbharatbihar) September 6, 2019 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

पानी और धूप से बचने के लिए की ये व्यवस्था
भोलानाथ के दामाद अशोक सिंह कहते हैं कि यह प्रेम का अनूठा उदाहरण है. उन्होंने कहा कि उनकी अंतिम इच्छा हमलोग जरूर पूरी करेंगे. उन्होंने कहा कि ऐसे बिरले ही होता है. उन्होंने कहा कि पानी, धूप से बचने के लिए इस कलश को प्लास्टिक और फिर ऊपर से कपड़े से बांधकर रखा गया है.

Intro:आकाश कुमार (पूर्णिया) आज कल जहां पति -पत्नी के रिश्तों में कटास बढ़ती जा रही है। सात जन्म दूर रिश्तों की मजबूत गांठ इस जन्म में संभाल पाना दांपत्य जीवन के लिए मुश्किल सा हो गया है। बिहार के पूर्णिया जिले से पति-पत्नी के शाश्वत संबंध की एक ऐसी प्रेम कहानी सामने आई है। जिसके आगे प्रेम की हर कहानी फीकी पड़ जाए। ढलती उम्र के दहलीज पर कदम रख चुके 87 वर्षीय भोला नाथ आलोक की ऐसी प्रेम कहानी ,कि जीवनसाथी के गुजरे 27 सालों बाद भी पत्नी की अस्थियों सहेज रखा है। वह भी सिर्फ इस इंतेजार में कि जिस रोज इनके प्राण छूटे दोनों को एक साथ एक ही चिता पर जलाया जाए। इस तरह दोनों के साथ मरने का वादा पूरा हो। और तब एक पौधा लगाया जाए जिसके नीचे अस्थियां बिछी हों ,ताकि जैसे -जैसे पौधा खिले इन्हें एक नया जीवन मिल सके। इस तरह एक पति-पत्नी का साथ जीने-मरने का वर्षों पहले किया वादा पूरा हो।


Body:87 वर्षीय बुजुर्ग के आगे फीकी पड़ रही प्यार की हर एक दास्तां.. लिहाजा ईटीवी भारत आपको एक ऐसी सच्ची कहानी बताने जा रहा है जहां संग जीने और संग मरने की सिर्फ कसमें ही नहीं खाई गई। बल्कि उसे पूरा करने के लिए समर्पण की सारी सीमाएं पार कर दी गई। आज जब दांपत्य जीवन जटिलताओं के चलते और भी पेंचीदा होता जा रहा है। संबंधों में बढ़ते खटास और नौबत न्यायालय के चौखट तक पहुंच चुके हैं। एक दूसरे के जितेती गैर स्त्र -पुरुष के साथ विवाहित दंपत्ति के प्रेम संबंध खबर बनकर समाज के सामने आ रहे हैं। जीवन साथी के गुजरते ही पति ब्याह कर दूसरी पत्नी घर ले आते हैं। जीवन के अंतिम पड़ाव पर कदम रख चुके पत्नी प्रेम में डूबे 87 वर्षीय भोला नाथ आलोक की कहानी के आगे दुनिया की बाकी सारी प्यार और मिशाल की कहानियां फीकी मालूम पड़ती हैं। वह रिश्ता जो शारीरिक भाषाओं से रहा परे..... दरअसल पत्रकार, शिक्षक और सामाजिक कार्यकर्ता रहे भोला नाथ आलोक की शादी युवावस्था में कदम रखते ही हो गयी थी। शादी के बंधन में बंधा यह रिश्ता महज शारीरिक जरूरतों और देह की भाषा तक सीमित नहीं था। यही वजह रही कि अग्नि को साक्षी मानकर सात जन्मों में बंधे भोला नाथ आलोक और उनकी धर्म परायण व पतिव्रता जीवनसाथी ने गुजरे 42 वर्षों तक हर मोड़ पर एक दूजे का साथ निभाते हुए उन्होंने संग जीने और संग मरने की कसमें खा ली। जब दुनिया को अलविदा कह गई भोला की प्रेम दीवानी ... मगर शायद ऊपरवाले को कुछ और मंजूर था 90 के दशक में भोला नाथ आलोक का हमेशा -हमेशा के लिए उनकी पत्नी से साथ छूट गया पारसियल हार्ट से जूझते वे भोला नाथ आलोक और अपनी एकलौती बेटी को अकेला छोड़ इस दुनिया से अलविदा कह गई। कहने को दुनिया के लिए तो अब वे इस दुनिया में नही रहीं। मगर इस पति ने एक पल के लिए भी अपनी पत्नी को पलकों और ख्यालों से दूर नहीं किया। वे कहते हैं कि सही मायनों में मैनें उनकी यादों में अपना आशियाना बसाया है। मैं दुनिया में रहता हूं। उनकी अस्थियों को स्पर्श करता हूं और हर रोज खुद के मरने का अहसास करता हूं। 27 सालों से आज भी सहेज रखी है पत्नी की अस्थियां... इस तरह वे मरने के बाद भी हर लम्हा बुजुर्ग भोला नाथ आलोक के साथ रहीं। लिहाजा 87 वर्षीय बुजुर्ग ने पत्नी को दिया वचन पूरा करने के लिए पत्नी की अस्थियों को विशालकाय आम के वृक्ष की शाखाओं तले सहेज रखा है। लिहाजा पत्नी के गुजरे 27 सालों बाद भी आज ये अस्थियां इनके माता स्थान चौक स्थित निवास स्थल के बगीचे में लगे आम के पेड़ पर सहेज कर रखा देखा जा सकता है। वहीं घर की कोई पूजा हो या फंक्शन हर एक मौके पर घर के सभी सदस्य पहले इस स्थान पर भोग लगाते हैं। वहीं घर से निकलने से पहले यहां नमन कर ही लोग घर से बाहर निकलते हैं। कितना भी जरूरी काम क्यों न हो वचन पूरा करने को एक पति कर रहा मौत का इंतेजार.... दरअसल जीवन साथी के प्रति प्रेम की इस अमर्त्य कहानी का चैप्टर यहीं क्लोज नहीं होता। यकीन मानिए जीवन के 87 वर्ष के दहलीज पर कदम रख चुके भोला नाथ आलोक के जीवित रहने का एकमात्र कारण दशकों पहले पत्नी के साथ खाए कसम और वर्षों पहले किया वचन है। बकायदा पत्नी प्रेम में सराबोर इस पति की बातों पर गौर करें तो वे अब तलक जीवित हैं तो सिर्फ अपनी पत्नी के लिए और मरेंगे भी तो उनके के लिए। सीने से पत्नी की अस्थियां लगा साथ मरने की अनोखी हसरत... यही वजह है कि भोला नाथ आलोक ने अपनी बेटी-दामाद और तीनों ही डॉक्टर नतनियों से ये कह रखा है। कि उनके दुनिया छोड़ जाने के बाद आम के वृक्ष से उनकी पत्नी की अस्थियां उतार उनके सीने से लगा दिया जाए। कप्तान पुल स्थित सौरा नदी घाट पर जब उन्हें चिता पर लिटाया जाए तो पत्नी की अस्थियां सीने पर रखी हो। ताकि वे एक साथ जले और साथ मर सके। इस अनोखी ख्वाहिश के लिए 27 सालों से जी रहा एक पति.... इस तरह जब इनके संग मरने का वचन पूरा हो। तो ब्रह्भोज की सुबह मंत्रोच्चार के विधि-विधानों के साथ घर के आंगन में एक पौधा लगाया जाए। पति-पत्नी के इन अस्थियों को पौधे के जड़ के नीचे मिट्टी की परत पर रख दिया जाए। इस तरह जैसे -जैसे यह पौधा पानी और हवा सींच फले-फुलेगा। दोनों ही पति-पत्नी को पौधे के साथ एक नया जीवन की प्राप्ति होगी। इस तरह एक पति-पत्नी का साथ जीने-मरने का वर्षों पहले किया वादा पूरा हो। जब कमजोर वक़्त में भी साथ रही धर्म परायण पत्नी... दरसअल ऐसा नहीं कि इस जोड़े के जीवन में सिर्फ सुख और ख़ुशी की रसधाराएं ही बही। कभी दुख और गम के बादल छाए ही नहीं। दरअसल भोला नाथ आलोक शुरुआती दौर में पेशे से कुछ सालों तक पत्रकार रहे और तब के सबसे चर्चित स्कूलों में हिंदी व सामाजिक विज्ञान के शिक्षक। इस दौरान न सरकारी पेशे में मोटी तनख्वाह थी न पत्रकारिता में। लिहाजा माली हालत खराब होने और पैसे की तंगी से बेटे का इलाज वक़्त रहते न हो सका। इस तरह इनके पहले संतान ने दम तोड़ दिया। हालांकि की वह बात जो सबसे खास रही। धर्म परायण इस पत्नी ने पति को समझा। बतौर मां खुद को संभालने के साथ ही टूट चुके पति का ढांढस बढ़ाया। ऐसे ही कई छोटी-बड़ी समस्याएं साथ रहते हुए आती रहीं। मगर इस पत्नी ने हर सुख-दुख में अपने पति का साथ दिया। पति को बचाने पत्नी ने बेंच दिए मां के दिए गहने और जमीन... इतना ही नहीं ट्यूबरक्लोसिस की गंभीर बीमारी से जूझते हुए जब खुद भोला नाथ आलोक चिंताजनक हालातों में अस्पताल में भर्ती हुए पत्नी ने एक सिंहनी की भांति मोर्चा संभाला। पति परायणता की मिसाल पेश करते हुए मां द्वारा दी गयी सारे गहने-जेवरात यहां तक कि दान में दी गयी जमीन भी पति के इलाज के लिए बेंच दिया। पति की जान बचाई। इसी तरह एक सफर के दौरान ट्रेन की यात्रा कर रहे भोला नाथ आलोक उस रोज बुरी तरह चोटिल हो जाते। जब रफ्तार पकड़ते ट्रेन के बाहरी डब्बे से खुले विंडो के भीतर किसी ने भारी भरकम गठरी फेंकी। पति ने सिंहनी साहस का परिचय देते हुए एक हाथ से भोला नाथ आलोक के चेहरे की ओर तेज रफ्तार में बढ़ रही गठरी को झपटे हाथों से मारा। गठरी फेंकने वाले पर सिंहनी की भांति दहाड़ने लगी। इस अमर्त्य प्रेम कहानी को ईटीवी का सलाम... लिहाजा आज जब तमाम रिश्तों की गांठ कमजोर होती जा रही है। रोजाना अखबारों के पन्ने हो या टेलीविजन स्क्रीन ,खबर बांटते वेबसाइटों पर दागदार हो चली पति -पत्नी के रिश्तों से जुड़ी खबरें सने पड़े हैं। 87 वर्ष के बुजुर्ग हो चले इस पति की प्रेम और समर्पण की कहानी दुनिया भर की सारी प्रेम कहानियों पर भारी मालूम पड़ती है। एक ऐसी प्रेम कहानी जिसके आगे हर दास्तां फीकी पड़ जाए और हर प्रेम कहानियां मानों साबित हो कोई धुंआ ।


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