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कहते हैं स्वर्ग को जाती हैं इस मुक्तिधाम की सीढ़ियां, लेकिन नहीं मिली श्मशान घाट की 'तकदीर' - Purnea

कप्तान पुल स्थित सौरा श्मशान घाट पर सुविधा नहीं होने के कारण लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. सरकार और प्रशासन की लापरवाही के कारण श्मशान घाट की स्थिति खराब है.

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Published : May 26, 2020, 3:43 PM IST

पूर्णिया: एक तरफ जहां लॉकडाउन के बीच प्रदेश भर से नदियों और उससे लगे मुक्तिधामों की स्वच्छता से जुड़ी तस्वीरें सामने आ रही हैं. तो वहीं, जिले का सबसे प्रमुख सौरा मुक्तिधाम दशकों से अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है. निगम और नेताओं की अनदेखी के कारण लॉकडाउन में भी इसकी तस्वीर नहीं बदली जा सकी.

कप्तान पुल स्थित सौरा मुक्तिधाम जिले का सबसे प्रमुख मुक्तिधाम है. सौरा ही वह नदी है, जो पवित्र गंगा में जाकर मिलती है. वहीं, सौरा नदी शहर के सबसे प्रमुख सिटी स्थित काली मंदिर से होकर गुजरती है. श्मशान घाट से काली मंदिर की दूरी महज चंद कदमों की है. लिहाजा ऐसी मान्यता है कि मृत्युपरांत सौरा श्मशान घाट पर दाह-संस्कार किया जाए और अस्थियों को सौरा नदी में प्रवाहित कर दी जाए, तो पुण्य की प्राप्ति होती है. साथ ही आत्मा को स्वर्ग में जगह मिलती है, लेकिन सरकार और प्रशासन की लापरवाही के कारण श्मशान घाट की स्थिति खराब है.

crematorium
मुक्तिधाम का हाल बदहाल

श्मशान घाट पर शुद्ध पेयजल की व्यवस्था नहीं
सिटी काली मंदिर से श्मशान आने वाली सड़क इतनी सिकड़ी हैं कि हर समय बड़ी दुर्घटना की आशंका बनी रहती है. स्थानीय लोगों ने बताया कि श्मशान घाट पर गार्ड और किसी निगम कर्मी की तैनाती नहीं रहती है. इस कारण यहां आने वाले लोग दाह-संस्कार में प्रयोग होने वाली वस्तुएं इधर-उधर फेंक कर चले जाते हैं. न तो यहां लोगों के लिए पीने के लिए शुद्ध पेयजल की व्यवस्था और न ही शौचालय और न ही प्रकाश की है. चापाकल लगा भी है. तो उससे निकला आर्सेनिक और आयरनयुक्त पानी पीने योग्य नहीं. वहीं, प्रकाश की व्यवस्था न होने से 7 बजते ही मोमबत्ती के सहारे दाह-संस्कार की प्रक्रियाएं पूरी की जाती हैं.

crematorium
मुक्तिधाम

मुक्तिधाम से लगा है डंपिंग जोन
मगर मुक्तिधाम से शहर के सबसे बड़े अनाधिकृत डंपिंग जोन के लगे होने के कारण आने वाली दुर्गंध के कारण यहां ठहरना मुश्किल हो जाता है. वहीं, अक्सर ही डंपिंग से कचड़े तेज हवाओं के साथ उड़कर या फिर आवारा कुत्तों द्वारा श्मशान घाट तक पहुंच जाते हैं. कई बार इसकी शिकायत स्थानीय प्रतिनिधि और निगमकर्मी से भी की गई है, लेकिन इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है.

देखें रिपोर्ट

फेंकें जाते हैं अधजले शव
सौरा नदी की सफाई को लेकर काम करने वाले शहर के जाने माने एक्टविस्ट व स्थानीय बताते हैं कि तीन साल पहले 36 लाख की लागत से विद्युत शवदाह गृह बनकर तैयार हुआ, लेकिन निगम और विधायक की आपसी खिंचतान में इसका उदघाटन तक नहीं हो सका. इसके बाद हर साल आने-वाली जल त्रासदी इसे अपने आगोश में समा लिया. साथ ही गुणवत्ता से जुड़े सवाल इसके पीछे छोड़ गई. लिहाजा विद्युत शवदाह गृह न होने से आर्थिक परेशानी से जूझते लोग शव को अधजली अवस्था में छोड़कर ही चले जाते हैं, जो बाद में नदियों में तैरती दिखाई देती हैं.

पूर्णिया: एक तरफ जहां लॉकडाउन के बीच प्रदेश भर से नदियों और उससे लगे मुक्तिधामों की स्वच्छता से जुड़ी तस्वीरें सामने आ रही हैं. तो वहीं, जिले का सबसे प्रमुख सौरा मुक्तिधाम दशकों से अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है. निगम और नेताओं की अनदेखी के कारण लॉकडाउन में भी इसकी तस्वीर नहीं बदली जा सकी.

कप्तान पुल स्थित सौरा मुक्तिधाम जिले का सबसे प्रमुख मुक्तिधाम है. सौरा ही वह नदी है, जो पवित्र गंगा में जाकर मिलती है. वहीं, सौरा नदी शहर के सबसे प्रमुख सिटी स्थित काली मंदिर से होकर गुजरती है. श्मशान घाट से काली मंदिर की दूरी महज चंद कदमों की है. लिहाजा ऐसी मान्यता है कि मृत्युपरांत सौरा श्मशान घाट पर दाह-संस्कार किया जाए और अस्थियों को सौरा नदी में प्रवाहित कर दी जाए, तो पुण्य की प्राप्ति होती है. साथ ही आत्मा को स्वर्ग में जगह मिलती है, लेकिन सरकार और प्रशासन की लापरवाही के कारण श्मशान घाट की स्थिति खराब है.

crematorium
मुक्तिधाम का हाल बदहाल

श्मशान घाट पर शुद्ध पेयजल की व्यवस्था नहीं
सिटी काली मंदिर से श्मशान आने वाली सड़क इतनी सिकड़ी हैं कि हर समय बड़ी दुर्घटना की आशंका बनी रहती है. स्थानीय लोगों ने बताया कि श्मशान घाट पर गार्ड और किसी निगम कर्मी की तैनाती नहीं रहती है. इस कारण यहां आने वाले लोग दाह-संस्कार में प्रयोग होने वाली वस्तुएं इधर-उधर फेंक कर चले जाते हैं. न तो यहां लोगों के लिए पीने के लिए शुद्ध पेयजल की व्यवस्था और न ही शौचालय और न ही प्रकाश की है. चापाकल लगा भी है. तो उससे निकला आर्सेनिक और आयरनयुक्त पानी पीने योग्य नहीं. वहीं, प्रकाश की व्यवस्था न होने से 7 बजते ही मोमबत्ती के सहारे दाह-संस्कार की प्रक्रियाएं पूरी की जाती हैं.

crematorium
मुक्तिधाम

मुक्तिधाम से लगा है डंपिंग जोन
मगर मुक्तिधाम से शहर के सबसे बड़े अनाधिकृत डंपिंग जोन के लगे होने के कारण आने वाली दुर्गंध के कारण यहां ठहरना मुश्किल हो जाता है. वहीं, अक्सर ही डंपिंग से कचड़े तेज हवाओं के साथ उड़कर या फिर आवारा कुत्तों द्वारा श्मशान घाट तक पहुंच जाते हैं. कई बार इसकी शिकायत स्थानीय प्रतिनिधि और निगमकर्मी से भी की गई है, लेकिन इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है.

देखें रिपोर्ट

फेंकें जाते हैं अधजले शव
सौरा नदी की सफाई को लेकर काम करने वाले शहर के जाने माने एक्टविस्ट व स्थानीय बताते हैं कि तीन साल पहले 36 लाख की लागत से विद्युत शवदाह गृह बनकर तैयार हुआ, लेकिन निगम और विधायक की आपसी खिंचतान में इसका उदघाटन तक नहीं हो सका. इसके बाद हर साल आने-वाली जल त्रासदी इसे अपने आगोश में समा लिया. साथ ही गुणवत्ता से जुड़े सवाल इसके पीछे छोड़ गई. लिहाजा विद्युत शवदाह गृह न होने से आर्थिक परेशानी से जूझते लोग शव को अधजली अवस्था में छोड़कर ही चले जाते हैं, जो बाद में नदियों में तैरती दिखाई देती हैं.

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