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पूर्णिया सदर अस्पताल के ICU में 8 सालों से जड़ा है ताला, भगवान भरोसे है मरीज की जिंदगी

लोगों का कहना हैं कि यदि आईसीयू की सुविधा हो जाए तो महज पूर्णिया ही नहीं बल्कि सात जिलों के मरीजों को राहत मिलेगी. जिसके बाद ऐसे कई जानें बचाई जा सकेंगी जो आईसीयू की आस में या तो अस्पताल के कॉमन इमरजेंसी वेंटिलेटर पर दम तोड़ देती हैं या फिर पटना या भागलपुर जाते हुए एम्बुलेंस में.

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Published : May 29, 2019, 4:49 PM IST

8 सालों से जड़ा है आईसीयू पर ताला

पूर्णिया: जिले का ये सदर अस्पताल पिछले कई सालों से बंद पड़े आईसीयू के चलते राम भरोसे चल रहा है. हालांकि सीमांचल, कोसी सहित जिले से सटे कई दूसरे राज्यों के मरीज रोजाना यहां एडमिट तो होते हैं, लेकिन आईसीयू पर ताला लटके होने के कारण या तो जान गवां बैठते हैं या फिर उन्हें दूसरे अस्पतालों में रेफर करना पड़ता है.

कई जिलों से यहां आते हैं मरीज
अस्पताल प्रबंधन से मिले आंकड़ों पर एक नजर डालें तो पटना से 350 किलोमीटर का फासला होने के कारण महज जिले से ही नहीं, बल्कि सीमांचल और कोसी के 7 जिले के अलावा सीमावर्ती पश्चिम बंगाल के कुछ जिलों से भी लोग यहां इलाज के लिए पहुंचते हैं.

जिंदगी और मौत के बीच जूझते मरीज
रोजाना तकरीबन सैकड़ों मरीज यहां इलाज के लिए भर्ती होते हैं. इनमें से सभी नाजुक हालत के मरीजों को आईसीयू पर ताला जड़े होने के कारण या तो नजदीकी भागलपुर सदर अस्पताल रेफर कर दिया जाता है या फिर राजधानी पटना स्थित पीएमसीएच. अगर इस महीने की बात करें तो अब तक एडमिट हुए कुल 31 मरीजों में से सभी को कुछ ही घंटे बाद यहां से रेफर कर दिया गया है.

जानकारी देते अस्पताल अधीक्षक

8 सालों से जड़ा है आईसीयू पर ताला
मरीजों में इसको लेकर खासी नाराजगी है. इनकी मानें तो वर्ष 2010-11 में यहां किसी तरह से आईसीयू की तो स्थापना हो गई, मगर 8 साल बीतने के बाद भी अब तक किसी मरीज को आईसीयू की सुविधा उपलब्ध नहीं कराई गई है.

सिर्फ साफ-सफाई के लिए खुलता है ताला
जानकारों की मानें तो शुरुआती दौर में यहां आईसीयू कुछ दिनों तक चला था. आईसीयू की लिस्ट में वीवीआइपी ट्रीटमेंट पाने वालों में मंत्री, विधायक, सांसद जैसे कई दूसरे वीआईपी नाम हैं. इस तरह इन 8 सालों में 30 से भी कम लोगों को आईसीयू के रिकॉर्ड लिस्ट में जगह मिल पाई है. हालांकि आईसीयू खुलता तो हर रोज है मगर सिर्फ साफ-सफाई के लिए.

आईसीयू के आस में दम तोड़ रही कई जिंदगियां
स्थानीय लोगों का कहना हैं कि यदि आईसीयू की सुविधा हो जाए तो महज पूर्णिया ही नहीं बल्कि सात जिलों के मरीजों को राहत मिलेगी. जिसके बाद ऐसे कई जानें बचाई जा सकेंगी जो आईसीयू की आस में या तो अस्पताल के कॉमन इमरजेंसी वेंटिलेटर पर दम तोड़ देती हैं या फिर पटना या भागलपुर जाते हुए एम्बुलेंस में.

जानिये क्या कहते हैं सुपरिटेंडेंट
वहीं, सदर अस्पताल अधीक्षक मधुसूदन प्रसाद आईसीयू बंद होने की अलग ही दलील पेश करते हैं. इनकी माने तो आईसीयू के बंद होने की मुख्य वजह डॉक्टरों की कमी है. आईसीयू में एडमिट होने वाले मरीजों को अनुभवी चिकित्सकों की जरूरत पड़ती है. जबकि यहां ऐसे कुशल चिकित्सकों की खासी कमी है. इस संबंध में कई बार विभाग से बातचीत की गई है लेकिन अभी तक चिकित्सकों की बहाली नहीं हुई है. हालांकि उम्मीद के मुताबिक बहुत जल्द ही इस समस्या से निजात मिलेगी.

पूर्णिया: जिले का ये सदर अस्पताल पिछले कई सालों से बंद पड़े आईसीयू के चलते राम भरोसे चल रहा है. हालांकि सीमांचल, कोसी सहित जिले से सटे कई दूसरे राज्यों के मरीज रोजाना यहां एडमिट तो होते हैं, लेकिन आईसीयू पर ताला लटके होने के कारण या तो जान गवां बैठते हैं या फिर उन्हें दूसरे अस्पतालों में रेफर करना पड़ता है.

कई जिलों से यहां आते हैं मरीज
अस्पताल प्रबंधन से मिले आंकड़ों पर एक नजर डालें तो पटना से 350 किलोमीटर का फासला होने के कारण महज जिले से ही नहीं, बल्कि सीमांचल और कोसी के 7 जिले के अलावा सीमावर्ती पश्चिम बंगाल के कुछ जिलों से भी लोग यहां इलाज के लिए पहुंचते हैं.

जिंदगी और मौत के बीच जूझते मरीज
रोजाना तकरीबन सैकड़ों मरीज यहां इलाज के लिए भर्ती होते हैं. इनमें से सभी नाजुक हालत के मरीजों को आईसीयू पर ताला जड़े होने के कारण या तो नजदीकी भागलपुर सदर अस्पताल रेफर कर दिया जाता है या फिर राजधानी पटना स्थित पीएमसीएच. अगर इस महीने की बात करें तो अब तक एडमिट हुए कुल 31 मरीजों में से सभी को कुछ ही घंटे बाद यहां से रेफर कर दिया गया है.

जानकारी देते अस्पताल अधीक्षक

8 सालों से जड़ा है आईसीयू पर ताला
मरीजों में इसको लेकर खासी नाराजगी है. इनकी मानें तो वर्ष 2010-11 में यहां किसी तरह से आईसीयू की तो स्थापना हो गई, मगर 8 साल बीतने के बाद भी अब तक किसी मरीज को आईसीयू की सुविधा उपलब्ध नहीं कराई गई है.

सिर्फ साफ-सफाई के लिए खुलता है ताला
जानकारों की मानें तो शुरुआती दौर में यहां आईसीयू कुछ दिनों तक चला था. आईसीयू की लिस्ट में वीवीआइपी ट्रीटमेंट पाने वालों में मंत्री, विधायक, सांसद जैसे कई दूसरे वीआईपी नाम हैं. इस तरह इन 8 सालों में 30 से भी कम लोगों को आईसीयू के रिकॉर्ड लिस्ट में जगह मिल पाई है. हालांकि आईसीयू खुलता तो हर रोज है मगर सिर्फ साफ-सफाई के लिए.

आईसीयू के आस में दम तोड़ रही कई जिंदगियां
स्थानीय लोगों का कहना हैं कि यदि आईसीयू की सुविधा हो जाए तो महज पूर्णिया ही नहीं बल्कि सात जिलों के मरीजों को राहत मिलेगी. जिसके बाद ऐसे कई जानें बचाई जा सकेंगी जो आईसीयू की आस में या तो अस्पताल के कॉमन इमरजेंसी वेंटिलेटर पर दम तोड़ देती हैं या फिर पटना या भागलपुर जाते हुए एम्बुलेंस में.

जानिये क्या कहते हैं सुपरिटेंडेंट
वहीं, सदर अस्पताल अधीक्षक मधुसूदन प्रसाद आईसीयू बंद होने की अलग ही दलील पेश करते हैं. इनकी माने तो आईसीयू के बंद होने की मुख्य वजह डॉक्टरों की कमी है. आईसीयू में एडमिट होने वाले मरीजों को अनुभवी चिकित्सकों की जरूरत पड़ती है. जबकि यहां ऐसे कुशल चिकित्सकों की खासी कमी है. इस संबंध में कई बार विभाग से बातचीत की गई है लेकिन अभी तक चिकित्सकों की बहाली नहीं हुई है. हालांकि उम्मीद के मुताबिक बहुत जल्द ही इस समस्या से निजात मिलेगी.

Intro:आकाश कुमार (पूर्णिया)

क्या आपने कभी किसी एम्स को बगैर आईसीयू के चलते देखा है। आपका जवाब होगा बेशक नहीं। मगर सीमांचल के एम्स के नाम से मशहूर लाखों मरीजों का सदर अस्पताल पिछले कई सालों से बंद पड़े आईसीयू के चलते राम भरोसे ही चल रहा है। आलम यह है कि सीमांचल ,कोसी सहित जिले से सटे कई दूसरे राज्यों के मरीज रोजाना यहां एडमिट लिए जाते हैं। हालांकि आईसीयू पर ताला लटके होने से या तो वे जान गवा बैठते हैं। या फिर इन्हें दूसरे बड़े अस्पतालों में रेफर करना पड़ता है।



Body:7 जिलों के लाखों उम्मीदों से जुड़ा है अस्पताल....


दरअसल अस्पताल प्रबंधन से हासिल हुए आंकड़ों पर एक नजर डालें। तो पटना से 350 किलोमीटर का फासला होने के कारण महज जिले से ही नहीं। बल्कि सीमांचल व कोसी के 7 जिले के अलावा सीमावर्ती पश्चिम बंगाल के कुछ जिलों से भी लोग यहां इलाज के लिए पहुंचते हैं। एक अनुमान के मुताबिक ऐसे मरीजों की संख्या जिले के मरीजों की संख्या का 30 फीसद है। बावजूद अबतक यहां दाखिल होने वाले मरीजों को आईसीयू सेवा ठप होने के कारण या तो अपनी जान गबानी पड़ रही है। या फिर रेफर कर दिया जाता है।


बड़े चौकाने वाले हैं अस्पताल के आंकड़े...


अस्पताल के रिकॉर्ड डायरी पर गौर करें। तो रोजाना सैकड़ों मरीज यहां इलाज के लिए भर्ती होते हैं। इनमें से सभी सीरियस पेसेंट्स को आईसीयू पर ताला जड़े होने के कारण या तो नजदीकी भागलपुर सदर अस्पताल रेफर कर दिया जाता है। या फिर राजधानी पटना स्थित पीएमसीएच। इस मई की ही बात करें तो अब तक एडमिट हुए कुल 31 सीरियस पेसेंट में से सभी को कुछ ही घण्टों बाद यहां से रेफर कर दिया गया। वहीं अन्य गंभीर बीमारियों के तकरीबन 3 दर्जन से पेसेंट को बेहतर अस्पतालों के लिए रेफर कर दिया गया।



8 सालों से जरा है आईसीयू पर ताला...


वहीं इसे लेकर मरीजों में भी खासी नाराजगी है। इनकी मानें तो वर्ष 2010-11 में यहां आईसीयू तो किसी तरह स्थापित हो गयी। मगर 8 साल बीतने के बाद अब तक किसी पेसेंट को आईसीयू की सुविधा उपलब्ध नहीं कराई गई। इनकी व जानकारों की मानें तो शुरुआती दौर में यहां आईसीयू कुछ दिनों तक चला भी तो पावर व पैरवीकारों के पेसेंट को आईसीयू की ट्रीटमेंट मिल सकी। अस्पताल के विश्वसनीय सूत्र बताते हैं कि आईसीयू की वीवीआइपी ट्रीटमेंट पाने वालों में मंत्री ,विधायक सांसद जैसे कई दूसरे वीआईपी नाम हैं। इस तरह इन 8 सालों में 30 से भी कम लोगों को आईसीयू के रिकॉर्ड लिस्ट में जगह मिल सकी। इस तरह आईसीयू हर रोज खुलता तो है। मगर साफ-सफाई के लिए।


आईसीयू के आस में दम तोड़ रही कई जिंदगीयां...


वहीं अस्पताल को काफी करीब से जानने वाले स्थानीय बताते हैं कि आईसीयू की सुविधा बहाल हो जाए। तो महज पूर्णिया ही नहीं बल्कि सात जिलों के मरीजों को राहत होगी। ऐसी जानें भी बचाई जा सकेंगी। जो आईसीयू की आश में या तो अस्पताल के कॉमन इमरजेंसी वेंटिलेटर पर लेटे-लेटे दम तोड़ देते हैं। या फिर पटना या भागलपुर जाते हुए एम्बुलेंस में। इनकी मानें तो उन्होंने अक्सर ही यहां गंभीर पेसेंट को समुचित इलाज के इंतेजार में तड़प-तड़पकर दम तोड़ते देखा है।


जानें क्या कहते हैं सुपरिटेंडेंट....


वहीं सदर अस्पताल अधीक्षक मधुसूदन प्रसाद आईसीयू बंद होने की एक अलग ही दलील पेश करते हैं। श्री प्रसाद की मानें तो आईसीयू के बंद होने की मुख्य वजह डॉक्टरों की कमी है। वे बताते हैं कि आईसीयू में एडमिट होने वाले मरीजों को दक्ष व अनुभवी चिकित्सक की जरूरत पड़ती है। जबकि यहां ऐसे कुशल चिकित्सकों की खासी कमी है। इस संबंध में कई बार विभाग को लिखा जा चुका है। मगर जब तक चिकित्सकों की कमी की समस्या नहीं निबटती। इस समस्या से पार नहीं पाया जा सकता। हालांकि उम्मीद के मुताबिक बेहद जल्द यह समस्या सुलझने वाली है।





Conclusion:
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