पूर्णिया: आजादी की लड़ाई की लौ सीमांचल में तेज करने वाले स्वतंत्रता सेनानी, बिहार के पूर्णिया से चार बार विधायक व बिहार विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष रामनारायण मंडल का परिवार आज दूध बेचकर पेट पालने को मजबूर है. पूर्णिया के मधुबनी स्थित अमला टोला बड़ी ठाकुरबाड़ी में अवस्थित सेनानी का घर भी जर्जर हो चुका है. महज 3 गायों के भरोसे किसी तरह इस परिवार का गुजारा हो रहा है.
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दूध बेचने को मजबूर परिवार
रेल मंत्री रहते हुए राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने स्वतंत्रता सेनानी के परिवार से सरकारी नौकरी देने का वादा किया था. लेकिन वादे को आज तक पूरा नहीं किया गया. देश की आजादी में अपना सबकुछ न्योछावर करने वाले स्वतंत्रता सेनानी रामनारायण मंडल का परिवार दूध बेचने को मजबूर है. इस परिवार की माली हालत इतनी खस्ताहाल है कि पूर्णिया कॉलेज में बीसीए में दाखिला लेने वाले ऋषभ कुमार को घर की तंगहाली के कारण बीच में ही अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी.
स्वतंत्रता सेनानी रामनारायण मंडल
महान स्वतंत्रता सेनानी व पूर्व विधानसभा अध्यक्ष रामनारायण मंडल का जन्म सन 1904 में धमदाहा अनुमंडल के रंगपुरा गांव में हुआ था.कहते हैं कि वे बचपन से ही मेधावी और निडर थे. उन्होंने बीएचयू से स्नातक की पढ़ाई पूरी की. वहीं लॉ करने के लिए वापस बिहार लौट आए और पटना लॉ कॉलेज में दाखिला लिया. इस दौरान वे बतौर छात्र, स्वतंत्रता आंदोलनों में भी सक्रिय रहे. यही वह संघर्षकाल था जब वे महात्मा गांधी, डॉ राजेंद्र प्रसाद सरीखे बड़े स्वंतत्रता सेनानियों के संपर्क में आए.
'पढ़ाई में अच्छा था, सो पूर्णिया कॉलेज में बीसीए में दाखिला मिल गया. मगर पिता के गुजरते ही घर की माली हालत बेहद खराब हो गई. जिसके बाद पढ़ाई बीच में छोड़नी पड़ी. आज दूध बेचकर अपना और अपने परिवार का गुजारा करना पड़ रहा है.'- ऋषभ कुमार, स्वतंत्रता सेनानी के पोते
आजादी की लड़ाई में निभाई अहम जिम्मेदारी
स्वतंत्रता आंदोलन की लौ तेज होते ही राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और डॉ राजेंद्र प्रसाद सरीखे नेताओं का आगमन पूर्णिया की धरती पर हुआ. कांग्रेस पार्टी की ओर से रामनारायण मंडल को सीमांचल और कोसी में आंदोलन की धार मजबूत करने की जिम्मेदारी मिली. जिसके बाद वे खुलकर स्वतंत्रता आंदोलनों की मेजबानी करते रहे.
झेलनी पड़ी कई यातनाएं
आंदोलन की मसाल जलाने के लिए रामनारायण मंडल को कई यातनाएं भी झेलनी पड़ी. वहीं वकालत का जाना-माना नाम होने के कारण उन्होंने किसान हितार्थ आए बटाईदारी कानून के प्रति किसानों को जागरूक करना शुरू किया. साथ ही वे बगैर फीस लिए किसानों के मुकदमे लड़ते रहे.
'मेरे दादा एक ईमानदार और स्वाभिमानी नेता थे. उन्होंने सदैव सादगी भरा जीवन जीया. इसी तरह दादा के दिखाए रास्ते पर ही उनके पिता भी सादगी और ईमानदारी भरा जीवन व्यतीत करते हुए दुनिया को अलविदा कह गए. घर की माली हालत तब भी वैसी ही थी जैसी की आज है. बस फर्क इतना था कि तब उन्हें संभालने और उनका साहस बढ़ाने को वे स्वयं जीवित थे.'- संजीव कुमार, स्वतंत्रता सेनानी के पोते
निभाई कई अहम जिम्मेदारियां
उनके देशप्रेम को देखते हुए सन 1952 में पहले आम चुनाव में स्वतंत्रा सेनानी रामनारायण मंडल को कांग्रेस पार्टी ने बिहार विधानसभा के लिए बनमनखी और रानीगंज संयुक्त क्षेत्र से सदस्य निर्वाचित किया. सन 1957 में उन्होंने रानीगंज विधानसभा सीट से चुनाव जीता. इसके बाद सन 1967, 1969, और 1972 में कसबा विधानसभा सीट से लगातार 3 बार विधायक बने. गांधीवादी विचारधारा, सर्व साधारण में गहरी पकड़ और विलक्षण प्रतिभा के बूते वे विधानसभा अध्यक्ष के पद पर आसीन हुए. 11 मार्च 1969 को उन्हें बिहार विधानसभा का अध्यक्ष निर्वाचित किया गया. इस अवधि में वे कार्य मंत्रणा समिति, आवास समिति और नियम समिति जैसे सर्वप्रमुख जिम्मेदारियों को बतौर सभापति संभालते रहे.
'18 अगस्त 1983 को राम नारायण मंडल की पूर्णिया स्थित उनके निजी आवास में अकाल मृत्यु हो गई थी. वे जिस घर में रहते थे वह खंडहर में तब्दील हो गया है. परिवार की तंगहाली देखते हुए तत्कालिन रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव ने परिवार से पूर्णिया जंक्शन स्टेशन पर मुलाकात कर मदद का भरोसा दिया था. इंटर पास पोते को सरकारी नौकरी देने का वायदा किया था. लेकिन कोई मदद नहीं मिली.'- भोला नाथ आलोक, वरिष्ठ समाजसेवी व साहित्यकार
जमीन पर भू माफियाओं का कब्जा
जाने-माने अधिवक्ता होने के कारण रामनारायण मंडल जब तक जीवित रहे बगैर फीस के ही गरीबों और आमजनों की कानूनी लड़ाई लड़ते रहे. मगर आज उनकी सारी पुस्तैनी जमीनें भू माफियाओं ने हड़प ली है. खेतों तक पर जमीन माफियाओं ने कब्जा कर लिया है. परिजनों ने इसके लिए जनप्रतिनिधियों से लेकर अधिकारियों तक से मदद की गुहार लगाई लेकिन कुछ नहीं हुआ. यहां तक की सीएम नीतीश कुमार को भी इस बाबत आवेदन दिया गया है.
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