ETV Bharat / state

पूर्णियाः किसानों के सिर पर बढ़ा लोन का बोझ, कर्ज माफी की कर रहे हैं मांग

महाराष्ट्र जैसे राज्यों के तर्ज पर बिहार के किसान भी कर्ज माफी की मांग कर रहे हैं. किसानों का कहना है कि सिर पर बढ़ते बैंक लोन का असल जिम्मेदार सरकार और उसकी सुस्त सिस्टम है.

purnea
कर्ज के बोझ तले दबे किसान
author img

By

Published : Mar 17, 2020, 11:44 AM IST

पूर्णियाः प्रदेश के किसानों के लिए चलाई जा रही सुशासन की योजनाएं दम तोड़ती नजर आ रही है. एक तरफ सीएम नीतीश कुमार किसानों से जुड़ी कई योजनाएं गिना रहे हैं. तो वहीं दूसरी तरफ जमीनी हकीकत ये है कि ये योजनाएं किसानों से कोसो दूर हैं. जिले के किसान कर्ज के बोझ तले दबते जा रहे हैं.

purnea
अपने खेत में खड़ा किसान

समय पर नहीं होती फसलों की खरीददारी
ईटीवी भारत की टीम विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सरकार के जरिए चलाई जा रही योजनाओं की पड़ताल के लिए कर्ज के बोझ तले कराहते किसानों के बीच पहुंची. जहां किसानों ने कैमरे पर अपने दर्द बयां किए. बैंकों के दबाव तले दबे किसानों का कहना है कि सरकार की तरफ से फसलों की खरीद के लिए सरकारी मूल्य की घोषणा हुई. लेकिन हर साल की तरह इस बार भी पैक्सों से फसलों की खरीदी नहीं की जा सकी.

purnea
अनाज के ढेर पर बैठा किसान

बिचौलिये से फसल बेचेने को मजबूर किसान
वहीं, बिचौलिये किसानों की बेचारगी का फायदा उठाकर फसलों को औने-पौने दाम पर खरीद लेते हैं. जिससे लोन का पैसा साल दर साल बढ़ता चला जाता है. आज आलम ये है कि बैंकों की ओर से किसानों को रोजाना तंग करने का सिलसिला जारी है. 15 फीसद किसानों तक ही फसल क्षति योजना पहुंची है. जल त्रासदी शुरुआत से ही कोसी के किसानों के लिए बिना अमावस्या वाली ग्रहण साबित हुई है. लिहाजा हर साल काल बनकर आने वाली बाढ़ त्रासदी और सुखाड़ भी किसानों के ऊपर बढ़ते कर्ज की बड़ी वजहों में से एक है.

नहीं मिला फसल क्षति योजना का लाभ मिल
हर साल अगस्त-अक्टूबर का महीना भीषण जल त्रासदी लिए आता है. जो किसानों की फसल को पूरी तरह तहस-नहस कर जाता है. वहीं, 2018 में स्थितियां इसके ठीक उलट रही. इस साल कम वर्षा होने के चलते किसानों को सुखाड़ का सामना करना पड़ा. वहीं, फसल क्षति योजना के नाम पर किसानों को बड़े-बड़े वादे के अलावा कुछ अधिक हाथ नहीं लग सका. नुकसान का सामना करने वाली 15 फीसद आबादी को ही फसल क्षति योजना का लाभ मिल सका.

purnea
अपने खेत में खड़ा किसान

बढ़ रहा किसानों के सिर कर्ज का बोझ
दरसअल वित्तीय वर्ष 2017-19 तक में तकरीबन 1,78 हजार किसानों ने केसीसी ऋण के लिए आवेदन किया. जिनमें से 87 हजार किसानों के ऋण स्वीकृत हुए. कृषि विभाग से प्राप्त आंकड़े बताते हैं कि इनमें से महज 13 फीसद किसान ही ऋण पूरा करने में कामयाब रहे. बिहार किसान मजदूर संघ के प्रेसिडेंट अनिरुद्ध मेहता इसके पीछे जल त्रासदी ,फसल जनित नए रोग व सरकार की उदासीन नीतियों को जिम्मेदार मानते हैं. अनिरुद्ध बताते हैं कि साल दर साल किसानों की माली हालत ढ़ीली पड़ती जा रही है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

मौत को गले लगा रहे कर्जदार किसान
वहीं, बीते कुछ सालों में बैंकों के कर्ज चुकाने के डर से मौत को गले लगाने वाले किसानों की तादाद बेहद तेजी से बढ़ी है. निर्दयता की तस्वीर कुछ ऐसी है कि केसीसी ऋण की वसूली के लिए किसानों के मवेशियों तक को लोन कर्मी उठा ले गए. प्रदेश के किसानों की मानें तो अगर अब भी सरकार कृषि बजट बिल पर विचार करके इसे लागू नहीं करती है, तो किसान थक हारकर खेती से जुड़े कार्यों से किनारा करने लगेंगे.

purnea
हरा भरा खेत

सवालों से बचते सुशासन के अधिकारी
इस संबंध में कृषि पदाधिकारी और सहकारिता पदाधिकारी दोनों ही सवालों से बचते दिखाई दिए. पूछे गए सवालों के जवाब में जहां सहकारिता पदाधिकारी कवींद्र नाथ ठाकुर ने कृषि विभाग को जवाबदेह ठहराया, तो वहीं कृषि पदाधिकारी ने कहा कि अब ऐसी स्थितियां नहीं रह गई हैं. किसान चौपाल लगाकर किसानों की समस्याएं सुनी जा रहीं हैं. साथ ही सभी प्रखंड के किसानों तक सरकार की सभी योजनाएं पहुंचाई जा रही हैं.

पूर्णियाः प्रदेश के किसानों के लिए चलाई जा रही सुशासन की योजनाएं दम तोड़ती नजर आ रही है. एक तरफ सीएम नीतीश कुमार किसानों से जुड़ी कई योजनाएं गिना रहे हैं. तो वहीं दूसरी तरफ जमीनी हकीकत ये है कि ये योजनाएं किसानों से कोसो दूर हैं. जिले के किसान कर्ज के बोझ तले दबते जा रहे हैं.

purnea
अपने खेत में खड़ा किसान

समय पर नहीं होती फसलों की खरीददारी
ईटीवी भारत की टीम विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सरकार के जरिए चलाई जा रही योजनाओं की पड़ताल के लिए कर्ज के बोझ तले कराहते किसानों के बीच पहुंची. जहां किसानों ने कैमरे पर अपने दर्द बयां किए. बैंकों के दबाव तले दबे किसानों का कहना है कि सरकार की तरफ से फसलों की खरीद के लिए सरकारी मूल्य की घोषणा हुई. लेकिन हर साल की तरह इस बार भी पैक्सों से फसलों की खरीदी नहीं की जा सकी.

purnea
अनाज के ढेर पर बैठा किसान

बिचौलिये से फसल बेचेने को मजबूर किसान
वहीं, बिचौलिये किसानों की बेचारगी का फायदा उठाकर फसलों को औने-पौने दाम पर खरीद लेते हैं. जिससे लोन का पैसा साल दर साल बढ़ता चला जाता है. आज आलम ये है कि बैंकों की ओर से किसानों को रोजाना तंग करने का सिलसिला जारी है. 15 फीसद किसानों तक ही फसल क्षति योजना पहुंची है. जल त्रासदी शुरुआत से ही कोसी के किसानों के लिए बिना अमावस्या वाली ग्रहण साबित हुई है. लिहाजा हर साल काल बनकर आने वाली बाढ़ त्रासदी और सुखाड़ भी किसानों के ऊपर बढ़ते कर्ज की बड़ी वजहों में से एक है.

नहीं मिला फसल क्षति योजना का लाभ मिल
हर साल अगस्त-अक्टूबर का महीना भीषण जल त्रासदी लिए आता है. जो किसानों की फसल को पूरी तरह तहस-नहस कर जाता है. वहीं, 2018 में स्थितियां इसके ठीक उलट रही. इस साल कम वर्षा होने के चलते किसानों को सुखाड़ का सामना करना पड़ा. वहीं, फसल क्षति योजना के नाम पर किसानों को बड़े-बड़े वादे के अलावा कुछ अधिक हाथ नहीं लग सका. नुकसान का सामना करने वाली 15 फीसद आबादी को ही फसल क्षति योजना का लाभ मिल सका.

purnea
अपने खेत में खड़ा किसान

बढ़ रहा किसानों के सिर कर्ज का बोझ
दरसअल वित्तीय वर्ष 2017-19 तक में तकरीबन 1,78 हजार किसानों ने केसीसी ऋण के लिए आवेदन किया. जिनमें से 87 हजार किसानों के ऋण स्वीकृत हुए. कृषि विभाग से प्राप्त आंकड़े बताते हैं कि इनमें से महज 13 फीसद किसान ही ऋण पूरा करने में कामयाब रहे. बिहार किसान मजदूर संघ के प्रेसिडेंट अनिरुद्ध मेहता इसके पीछे जल त्रासदी ,फसल जनित नए रोग व सरकार की उदासीन नीतियों को जिम्मेदार मानते हैं. अनिरुद्ध बताते हैं कि साल दर साल किसानों की माली हालत ढ़ीली पड़ती जा रही है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

मौत को गले लगा रहे कर्जदार किसान
वहीं, बीते कुछ सालों में बैंकों के कर्ज चुकाने के डर से मौत को गले लगाने वाले किसानों की तादाद बेहद तेजी से बढ़ी है. निर्दयता की तस्वीर कुछ ऐसी है कि केसीसी ऋण की वसूली के लिए किसानों के मवेशियों तक को लोन कर्मी उठा ले गए. प्रदेश के किसानों की मानें तो अगर अब भी सरकार कृषि बजट बिल पर विचार करके इसे लागू नहीं करती है, तो किसान थक हारकर खेती से जुड़े कार्यों से किनारा करने लगेंगे.

purnea
हरा भरा खेत

सवालों से बचते सुशासन के अधिकारी
इस संबंध में कृषि पदाधिकारी और सहकारिता पदाधिकारी दोनों ही सवालों से बचते दिखाई दिए. पूछे गए सवालों के जवाब में जहां सहकारिता पदाधिकारी कवींद्र नाथ ठाकुर ने कृषि विभाग को जवाबदेह ठहराया, तो वहीं कृषि पदाधिकारी ने कहा कि अब ऐसी स्थितियां नहीं रह गई हैं. किसान चौपाल लगाकर किसानों की समस्याएं सुनी जा रहीं हैं. साथ ही सभी प्रखंड के किसानों तक सरकार की सभी योजनाएं पहुंचाई जा रही हैं.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.