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पूर्णिया सेंट्रल जेल प्रशासन की अनूठी पहल, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए अपनों से मिल रहे कैदी

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Published : Apr 7, 2020, 10:46 PM IST

आईजी विनोद कुमार ने पहल करते हुए बंदियों के लिए कोर्ट में इस्तेमाल किए जाने वाले वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के सेट-अप का इस्तेमाल किया. इसके जरिए कैदियों की उनके परिजनों से मुलाकात कराने का अनूठा रास्ता इजाद किया.

पूर्णिया सेंट्रल जेल
पूर्णिया सेंट्रल जेल

पूर्णिया: कोरोना वायरस के कहर ने आम जनजीवन के साथ ही शासन और प्रशासन को भी प्रभावित किया है. कोरोना वायरस के संक्रमण के मद्देनजर मुलाकातियों के कैदियों से मिलने पर पाबंदी लगा दी गई थी. इस फैसले के बाद से कैदियों और उनके परिजनों में काफी निराशा थी. इसके बाद पूर्णिया सेंट्रल जेल प्रशासन ने कैदियों और उनके परिजनों की मुलाकात के लिए तकनीक का रास्ता अपनाया. अब विडियों कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए कैदियों की मुलाकातियों से मुलाकात कराई जा रही है.

ई प्रिजनर्स ऐप ने मिटाई दूरियां
जेल प्रशासन ने पूर्णिया प्रमंडल के आईजी विनोद कुमार से संपर्क किया. आईजी विनोद कुमार ने पहल करते हुए बंदियों के लिए कोर्ट में इस्तेमाल किए जाने वाले वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के सेट-अप का इस्तेमाल किया. इसके जरिए कैदियों की उनके परिजनों से मुलाकात कराने का अनूठा रास्ता इजाद किया. बीते कुछ वक्त से अपनों से दूर रहे बंदी ई प्रिजनर्स ऐप के जरिए घरवालों से आसानी से मिल पा रहे हैं.

तो ऐप से लिंकअप के लिए ये दस्तावेज हैं जरूरी
ईटीवी भारत से खास बातचीत में जेल सुपरिटेंडेंट जितेंद्र कुमार ने बताया कि इसके लिए ई-प्रिजनर्स नाम का ऐप बंदियों के परिजनों को डाउनलोड करना होता है. इसके बाद आधार कार्ड, पैन कार्ड या इससे संबंधित ऐसे ही कोई दूसरे अहम दस्तावेज, जिसे मुलाकाती बंदियों से मिलने के लिए जेल प्रशासन को उपलब्ध कराते थे, ऐसे दस्तावेजों को ऐप से लिंक करना होता है. यह प्रक्रिया व्यक्ति के बंदी से संबंध को सत्यापित करने के लिए अहम होती है. इससे कोई दूसरा व्यक्ति इसमें सेंध नहीं लगा पाता.

पूर्णिया सेंट्रल जेल
जेल सुपरिटेंडेंट जितेंद्र कुमार

सुबह 8 से शाम 4 बजे के बीच परिजनों से जुड़ सकते हैं बंदी
इस प्रक्रिया के बाद ऐप से बंदी के परिजन लिंक होते हैं. जिसके बाद ऐप को कमांड करने वाले व्यक्ति के पास एक ओटीपी आता है. मोबाइल पर आए ओटीपी के जरिए जैसे ही बंदी के घरवाले लॉगइन करते हैं, इस ऐप की मदद से बंदी अपने परिजन से जुड़ जाते हैं. हालांकि जेल प्रशासन की ओर से दिए गए टाइम पर ही इस ऐप के जरिये बंदी और उनके परिजन वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये अपनों से जुड़ सकते हैं. इसके तहत कोर्ट के समय से पहले या उसके बाद बंदियों को 5 मिनट का स्लॉट दिया जाता है. ये सुबह 8 बजे से शुरू होकर शाम 4 बजे तक चलता है.

जेल सुपरिटेंडेंट से ईटीवी भारत की खास बातचीत
जेल सुपरिटेंडेंट जितेंद्र कुमार कहते हैं कि इसका उद्देश्य कैदियों को शारीरिक स्तर के साथ ही मानसिक रूप से भी स्वस्थ रखना है. बंदी लंबे वक्त से अपनों से नहीं मिल पा रहे थे और निराशाजनक स्थिति में पहुंच गए थे. लिहाजा इस ऐप से जुड़ कर बंदी खुद को अपनों के पास होने का एहसास कर रहे हैं. जेल प्रशासन की तरफ से यूं तो इमोशनल सपोर्ट मिल ही रहा था, लेकिन वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए अपनों से जुड़कर उनकी यह चिंता भी दूर हो गई. अपनों से बिछड़ने के कारण वह मायूसी जो कैदियों के चेहरे पर छा गई थी, जेल प्रशासन की पहल से अब यह खुशियों में बदल गई है.

पहले भी कर चुके हैं कई अनूठी पहल
गौरतलब हो कि पहले भी जेल सुपरिटेंडेंट जितेंद्र कुमार कई अनूठी पहल कर चुके हैं. इसके तहत जल्द ही पूर्णिया में एक ऐसा अनूठा पेट्रोल पंप दिखाई देगा जहां खुद बंदी वाहनों में ईंधन डालते नजर आएंगे. इसके अलावा हाल ही में जितेंद्र कुमार की पहल पर कैदियों ने मास्क बनाने का काम शुरू किया है. अब विभिन्न जिलों की पुलिस मास्क खरीदने को जेल प्रशासन से संपर्क कर रही है.

पूर्णिया: कोरोना वायरस के कहर ने आम जनजीवन के साथ ही शासन और प्रशासन को भी प्रभावित किया है. कोरोना वायरस के संक्रमण के मद्देनजर मुलाकातियों के कैदियों से मिलने पर पाबंदी लगा दी गई थी. इस फैसले के बाद से कैदियों और उनके परिजनों में काफी निराशा थी. इसके बाद पूर्णिया सेंट्रल जेल प्रशासन ने कैदियों और उनके परिजनों की मुलाकात के लिए तकनीक का रास्ता अपनाया. अब विडियों कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए कैदियों की मुलाकातियों से मुलाकात कराई जा रही है.

ई प्रिजनर्स ऐप ने मिटाई दूरियां
जेल प्रशासन ने पूर्णिया प्रमंडल के आईजी विनोद कुमार से संपर्क किया. आईजी विनोद कुमार ने पहल करते हुए बंदियों के लिए कोर्ट में इस्तेमाल किए जाने वाले वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के सेट-अप का इस्तेमाल किया. इसके जरिए कैदियों की उनके परिजनों से मुलाकात कराने का अनूठा रास्ता इजाद किया. बीते कुछ वक्त से अपनों से दूर रहे बंदी ई प्रिजनर्स ऐप के जरिए घरवालों से आसानी से मिल पा रहे हैं.

तो ऐप से लिंकअप के लिए ये दस्तावेज हैं जरूरी
ईटीवी भारत से खास बातचीत में जेल सुपरिटेंडेंट जितेंद्र कुमार ने बताया कि इसके लिए ई-प्रिजनर्स नाम का ऐप बंदियों के परिजनों को डाउनलोड करना होता है. इसके बाद आधार कार्ड, पैन कार्ड या इससे संबंधित ऐसे ही कोई दूसरे अहम दस्तावेज, जिसे मुलाकाती बंदियों से मिलने के लिए जेल प्रशासन को उपलब्ध कराते थे, ऐसे दस्तावेजों को ऐप से लिंक करना होता है. यह प्रक्रिया व्यक्ति के बंदी से संबंध को सत्यापित करने के लिए अहम होती है. इससे कोई दूसरा व्यक्ति इसमें सेंध नहीं लगा पाता.

पूर्णिया सेंट्रल जेल
जेल सुपरिटेंडेंट जितेंद्र कुमार

सुबह 8 से शाम 4 बजे के बीच परिजनों से जुड़ सकते हैं बंदी
इस प्रक्रिया के बाद ऐप से बंदी के परिजन लिंक होते हैं. जिसके बाद ऐप को कमांड करने वाले व्यक्ति के पास एक ओटीपी आता है. मोबाइल पर आए ओटीपी के जरिए जैसे ही बंदी के घरवाले लॉगइन करते हैं, इस ऐप की मदद से बंदी अपने परिजन से जुड़ जाते हैं. हालांकि जेल प्रशासन की ओर से दिए गए टाइम पर ही इस ऐप के जरिये बंदी और उनके परिजन वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये अपनों से जुड़ सकते हैं. इसके तहत कोर्ट के समय से पहले या उसके बाद बंदियों को 5 मिनट का स्लॉट दिया जाता है. ये सुबह 8 बजे से शुरू होकर शाम 4 बजे तक चलता है.

जेल सुपरिटेंडेंट से ईटीवी भारत की खास बातचीत
जेल सुपरिटेंडेंट जितेंद्र कुमार कहते हैं कि इसका उद्देश्य कैदियों को शारीरिक स्तर के साथ ही मानसिक रूप से भी स्वस्थ रखना है. बंदी लंबे वक्त से अपनों से नहीं मिल पा रहे थे और निराशाजनक स्थिति में पहुंच गए थे. लिहाजा इस ऐप से जुड़ कर बंदी खुद को अपनों के पास होने का एहसास कर रहे हैं. जेल प्रशासन की तरफ से यूं तो इमोशनल सपोर्ट मिल ही रहा था, लेकिन वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए अपनों से जुड़कर उनकी यह चिंता भी दूर हो गई. अपनों से बिछड़ने के कारण वह मायूसी जो कैदियों के चेहरे पर छा गई थी, जेल प्रशासन की पहल से अब यह खुशियों में बदल गई है.

पहले भी कर चुके हैं कई अनूठी पहल
गौरतलब हो कि पहले भी जेल सुपरिटेंडेंट जितेंद्र कुमार कई अनूठी पहल कर चुके हैं. इसके तहत जल्द ही पूर्णिया में एक ऐसा अनूठा पेट्रोल पंप दिखाई देगा जहां खुद बंदी वाहनों में ईंधन डालते नजर आएंगे. इसके अलावा हाल ही में जितेंद्र कुमार की पहल पर कैदियों ने मास्क बनाने का काम शुरू किया है. अब विभिन्न जिलों की पुलिस मास्क खरीदने को जेल प्रशासन से संपर्क कर रही है.

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