ETV Bharat / state

सर्वोदय आश्रम में कभी होता था करोड़ों का कारोबार, आज खंडहर में तब्दील हैं यादें - खंडर में तबदील रानीपतरा सर्वोदय आश्रम

गांधी की यादों से जुड़े कई आश्रम और संस्थाएं आज बदहाली के आंसू बहा रहे हैं. उन्हीं संस्थाओं में से एक है रानीपतरा सर्वोदय आश्रम जो अब खंडहर में तब्दील हो चुका है. पढ़िये इस अनमोल धरोहर की पूरी कहानी.

purnea
रानीपतरा सर्वोदय आश्रम
author img

By

Published : Jan 20, 2020, 9:05 AM IST

Updated : Jan 20, 2020, 3:25 PM IST

पूर्णियाः किसी जमाने में गांधी की संस्थाओं में सर्वोपरि रहा रानीपतरा सर्वोदय आश्रम इन दिनों बदहाली के आंसू बहा रहा है. 1934 के प्रलयकारी भूकंप के दौरान बापू ने यहीं से भूकंप पीड़ितों के लिए लोगों से दान की अपील की थी. विनोबा भावे ने तो यहां रहकर भूदान और ग्रामदान परंपरा की शुरुआत की थी. लेकिन आज ये अनमोल धरोहर खंडहर में तबदील हो चुकी है.

purnea
खंडर में तब्दील सर्वोदय आश्रम

आज भी बापू की यादें हो जाती हैं ताजा
जिला मुख्यालय से 8 किलोमीटर दूर स्थित रानीपतरा सर्वोदय आश्रम आकर आज भी बापू की यादों को ताजा किया जा सकता है. इस संस्थान में रचनात्मक सहयोग के लिए इस सर्वोदय आश्रम का समूचे देश में सर्वोपरि स्थान था. लेकिन समय बीतने के साथ ही सरकार और सिस्टम की बेरूखी के कारण बापू और विनोबा भावे की बुनियाद अब खंडहर में तब्दील हो चुकी है.

purnea
रानीपतरा सर्वोदय आश्रम की दीवारें

1934 के भूकंप के दौरान यहां पहुंचे थे बापू
आश्रम की देखरेख करते हुए 6 दशक गुजार चुके 80 वर्षीय सारदानंद मिश्र बताते हैं- बापू 1934 की भयानक भूकंप त्रासदी के दौरान यहां पंहुचे थे. वीरान पड़ा वह चबूतरा आज भी यहां मौजूद है. जहां खड़े होकर बापू ने भूकंप पीड़ितों के लिए लोगों से दान करने की अपील की थी. सारदानंद मिश्र बताते हैं कि उन्होंने सीमांचल-कोसी समेत दो दर्जन जिलों से आए लाखों लोगों को संबोधित करते हुए घण्टे भर में लाखों का चंदा इकट्ठा किया था.

स्पेशल रिपोर्ट

आश्रम से होता था 1.5 करोड़ का कारोबार
आश्रम से जोड़े लोगों की मानें तो 80 के दशक में यानी कि 1984-85 तक इस आश्रम का सालाना कारोबार 1.5 करोड़ तक का रहा. तब यह आश्रम पूरे सीमांचल और कोसी में खादी ग्रामोद्योग का सेंट्रल गोदाम था. रेशम ,खादी वस्त्र, चरखा, जुट ,कपास ,चर्म, बेंत, तेल पेराई समेत यहां से कुल 22 छोटे-बड़े उद्योग चलते थे. कहते हैं कि इसकी गुणवत्ता के कायल केवल बिहार में ही नहीं बल्कि काश्मीर ,राजस्थान ,पंजाब ,उत्तरप्रदेश जैसे दर्जनों राज्य थे. हजारों लोगों को यहां रोजगार मिला करता था.

खंडहर बन गया सर्वोदय आश्रम
मेंटेनेंस की कमी से दीवारें जर्जर और खंडहर में तब्दील हो चुकी हैं. इस दीवार पर अब गोईठा सुखाया करते हैं. वहीं दस्तावेज ,लेखा व उधोग सेंटरों में रखे चरखे और दूसरे देशी मशीन पूरी तरह रद्दी हो चुकी हैं. आश्रम की ज्यादातर दीवारों की पपड़ियां छूट चुकी हैं. वहीं, सालों से साफ-सफाई नहीं होने के चलते कमरे में कचरे और मकड़ियों के जाल की भरमार है.

purnea
खराब हो चुकी मशीनें

ये भी पढ़ेंः तरकारी महोत्सव: सब्जियों की ऐसी प्रदर्शनी कि हो जाएंगे दंग, किसानों को किया गया पुरस्कृत

कई महान लोगों का हुआ आगमन
24 एकड़ में फैले इस आश्रम की माटी में बापू के बाद विनोबा भावे ,देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ,जय प्रकाश नारायण ,गुलजारी लाल नंदा, बिहार के पहले मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह समेत कई बड़े स्वतंत्रता सेनानियों और नेताओं का यहां आगमन हुआ था.

purnea
दीवारों पर लगीं गांधी और विनोबा भावे की तस्वीर

यहीं से हुई भूदान आंदोलन की शुरुआत
यहां इस बात का भी प्रमाण मिलता है कि महान संत विनोबा भावे तकरीबन 6 माह तक यहां रहे. यहां रहते हुए उन्होंने यहीं से भूदान और ग्रामदान आंदोलन की शुरुआत की. कहते हैं कि जय प्रकाश नारायण इसके प्राकृतिक चिकित्सालय में 3 महीने तक रहे. उन्होंने यहां रहकर अपनी पत्नी का इलाज करवाया था. वहीं, बिहार के पहले सीएम श्रीकृष्ण सिंह के हाथों स्थापित पुस्तकालय पर ताला लटका हुआ है.

purnea
वीरान पड़ा आश्रम

पूर्व सासंद वैद्यनाथ चौधरी ने की थी स्थापना
आश्रम की देखभाल करने वाले जानकार बताते हैं कि बापू के आगमन के बाद पूर्व सांसद वैद्यनाथ चौधरी ने अपनी 24 एकड़ जमीन आश्रम के नाम दान की. बापू की याद में यहां सर्वोदय आश्रम की स्थापना की गई थी. इसके बाद यहां खादी ग्रामोद्योग विभाग की स्थापना की गई. ताकि गांधी के सपनों को सीमांचल और कोसी समेत बिहार में जिंदा रखा जा सके. लेकिन दो गुटों की आपसी लड़ाई के बीच यह अपने उद्देश्यों को पूरा नहीं रह सका. इसके बाद सरकार ने अनुदान पर अंकुश लगा दी. इसके बाद यहां संचालित सभी उधोग पूरी तरह बंद हो गए.

purnea
रानीपतरा सर्वोदय आश्रम

आश्रम को गांधी सर्किट से जोड़ने की मांग
स्थानीय लोगों की मांग है कि इसे फिर से पुनर्जीवित किया जाए. जिससे हजारों लोगों को रोजगार मिले. साथ ही इन व्यपारों में दिलचस्पी लेने वालों को लोन मिले. स्थानीय लोग बतातें हैं कि स्थल को गांधी सर्किट से जोड़कर दो गुटों की लड़ाई को खत्म किया जा सकता है. साथ हा इसे बतौर टूरिस्ट प्लेस विकसित किया जा सकता है.

पूर्णियाः किसी जमाने में गांधी की संस्थाओं में सर्वोपरि रहा रानीपतरा सर्वोदय आश्रम इन दिनों बदहाली के आंसू बहा रहा है. 1934 के प्रलयकारी भूकंप के दौरान बापू ने यहीं से भूकंप पीड़ितों के लिए लोगों से दान की अपील की थी. विनोबा भावे ने तो यहां रहकर भूदान और ग्रामदान परंपरा की शुरुआत की थी. लेकिन आज ये अनमोल धरोहर खंडहर में तबदील हो चुकी है.

purnea
खंडर में तब्दील सर्वोदय आश्रम

आज भी बापू की यादें हो जाती हैं ताजा
जिला मुख्यालय से 8 किलोमीटर दूर स्थित रानीपतरा सर्वोदय आश्रम आकर आज भी बापू की यादों को ताजा किया जा सकता है. इस संस्थान में रचनात्मक सहयोग के लिए इस सर्वोदय आश्रम का समूचे देश में सर्वोपरि स्थान था. लेकिन समय बीतने के साथ ही सरकार और सिस्टम की बेरूखी के कारण बापू और विनोबा भावे की बुनियाद अब खंडहर में तब्दील हो चुकी है.

purnea
रानीपतरा सर्वोदय आश्रम की दीवारें

1934 के भूकंप के दौरान यहां पहुंचे थे बापू
आश्रम की देखरेख करते हुए 6 दशक गुजार चुके 80 वर्षीय सारदानंद मिश्र बताते हैं- बापू 1934 की भयानक भूकंप त्रासदी के दौरान यहां पंहुचे थे. वीरान पड़ा वह चबूतरा आज भी यहां मौजूद है. जहां खड़े होकर बापू ने भूकंप पीड़ितों के लिए लोगों से दान करने की अपील की थी. सारदानंद मिश्र बताते हैं कि उन्होंने सीमांचल-कोसी समेत दो दर्जन जिलों से आए लाखों लोगों को संबोधित करते हुए घण्टे भर में लाखों का चंदा इकट्ठा किया था.

स्पेशल रिपोर्ट

आश्रम से होता था 1.5 करोड़ का कारोबार
आश्रम से जोड़े लोगों की मानें तो 80 के दशक में यानी कि 1984-85 तक इस आश्रम का सालाना कारोबार 1.5 करोड़ तक का रहा. तब यह आश्रम पूरे सीमांचल और कोसी में खादी ग्रामोद्योग का सेंट्रल गोदाम था. रेशम ,खादी वस्त्र, चरखा, जुट ,कपास ,चर्म, बेंत, तेल पेराई समेत यहां से कुल 22 छोटे-बड़े उद्योग चलते थे. कहते हैं कि इसकी गुणवत्ता के कायल केवल बिहार में ही नहीं बल्कि काश्मीर ,राजस्थान ,पंजाब ,उत्तरप्रदेश जैसे दर्जनों राज्य थे. हजारों लोगों को यहां रोजगार मिला करता था.

खंडहर बन गया सर्वोदय आश्रम
मेंटेनेंस की कमी से दीवारें जर्जर और खंडहर में तब्दील हो चुकी हैं. इस दीवार पर अब गोईठा सुखाया करते हैं. वहीं दस्तावेज ,लेखा व उधोग सेंटरों में रखे चरखे और दूसरे देशी मशीन पूरी तरह रद्दी हो चुकी हैं. आश्रम की ज्यादातर दीवारों की पपड़ियां छूट चुकी हैं. वहीं, सालों से साफ-सफाई नहीं होने के चलते कमरे में कचरे और मकड़ियों के जाल की भरमार है.

purnea
खराब हो चुकी मशीनें

ये भी पढ़ेंः तरकारी महोत्सव: सब्जियों की ऐसी प्रदर्शनी कि हो जाएंगे दंग, किसानों को किया गया पुरस्कृत

कई महान लोगों का हुआ आगमन
24 एकड़ में फैले इस आश्रम की माटी में बापू के बाद विनोबा भावे ,देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ,जय प्रकाश नारायण ,गुलजारी लाल नंदा, बिहार के पहले मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह समेत कई बड़े स्वतंत्रता सेनानियों और नेताओं का यहां आगमन हुआ था.

purnea
दीवारों पर लगीं गांधी और विनोबा भावे की तस्वीर

यहीं से हुई भूदान आंदोलन की शुरुआत
यहां इस बात का भी प्रमाण मिलता है कि महान संत विनोबा भावे तकरीबन 6 माह तक यहां रहे. यहां रहते हुए उन्होंने यहीं से भूदान और ग्रामदान आंदोलन की शुरुआत की. कहते हैं कि जय प्रकाश नारायण इसके प्राकृतिक चिकित्सालय में 3 महीने तक रहे. उन्होंने यहां रहकर अपनी पत्नी का इलाज करवाया था. वहीं, बिहार के पहले सीएम श्रीकृष्ण सिंह के हाथों स्थापित पुस्तकालय पर ताला लटका हुआ है.

purnea
वीरान पड़ा आश्रम

पूर्व सासंद वैद्यनाथ चौधरी ने की थी स्थापना
आश्रम की देखभाल करने वाले जानकार बताते हैं कि बापू के आगमन के बाद पूर्व सांसद वैद्यनाथ चौधरी ने अपनी 24 एकड़ जमीन आश्रम के नाम दान की. बापू की याद में यहां सर्वोदय आश्रम की स्थापना की गई थी. इसके बाद यहां खादी ग्रामोद्योग विभाग की स्थापना की गई. ताकि गांधी के सपनों को सीमांचल और कोसी समेत बिहार में जिंदा रखा जा सके. लेकिन दो गुटों की आपसी लड़ाई के बीच यह अपने उद्देश्यों को पूरा नहीं रह सका. इसके बाद सरकार ने अनुदान पर अंकुश लगा दी. इसके बाद यहां संचालित सभी उधोग पूरी तरह बंद हो गए.

purnea
रानीपतरा सर्वोदय आश्रम

आश्रम को गांधी सर्किट से जोड़ने की मांग
स्थानीय लोगों की मांग है कि इसे फिर से पुनर्जीवित किया जाए. जिससे हजारों लोगों को रोजगार मिले. साथ ही इन व्यपारों में दिलचस्पी लेने वालों को लोन मिले. स्थानीय लोग बतातें हैं कि स्थल को गांधी सर्किट से जोड़कर दो गुटों की लड़ाई को खत्म किया जा सकता है. साथ हा इसे बतौर टूरिस्ट प्लेस विकसित किया जा सकता है.

Intro:आकाश कुमार (पूर्णिया)
special report ।

किसी जमाने में गांधीयन संस्था में सर्वोपरि रानीपतरा सर्वोदय आश्रम इन दिनों बदहाली के आंसू बहाता नजर आ रहा है। 1934 के प्रलयकारी भूकंप के दौरान बापू ने यहीं से भूकंप पीड़ितों के लिए लोगों से दान की अपील की थी। तो वहीं विनोवा भावे यहां रहते हुए भूदान और ग्रामदान परंपरा की शुरुआत की थी। कहा जाता है कि 80 के दशक में इस आश्रम का 1.5 करोड़ तक का कारोबार था। मगर वक़्त बीतने के साथ ही सरकार और सिस्टम की बेरुखी के कारण बापू व विनोवा की बुनियाद खंडहर में तब्दील होता नजर आ रहा है।




Body:1934 के भूकंप के दौरान यहां पहुंचे थे बापू.....

जिला मुख्यालय से 8 किलोमीटर दूर स्थित रानीपतरा सर्वोदय आश्रम में आकर आज भी बापू की यादों को साफ महसूस किया जा सकता है। आश्रम की देखरेख करने करते हुए 6 दशक गुजार चुके 80 वर्षीय सारदानंद मिश्र बताते हैं कि बापू 1934 की भयानक भूकंप त्रासदी के दौरान यहां पंहुचे थे। वीरान पड़ा वह चबूतरा आज भी यहां मौजूद है। जहां खड़े होकर बापू ने भूकंप पीड़ितों के सेवार्थ लोगों से दान करने की अपील की थी। कहा जाता है कि इस दौरान उन्होंने सीमांचल-कोसी समेत दो दर्जन जिलों से आए लाखों लोगों को संबोधित करते हुए घण्टे भर में
लाखों का चंदा इकट्ठा किया था।


आज बहा रहा बदहाली के आंसू....


हैरत की बात है कि जिस आश्रम को बतौर टूरिस्ट प्लेस व खादी ग्रामोद्योग को सेंट्रल सेंटर के तौर ओर विकसित करने की जरूरत थी। वे आज अपने कायाकल्प के इंतेजार में बाट जोहते दिखाई दे रहे हैं। मेंटेनेंस की कमी से दीवारें जर्जर और खंडहर में तब्दील हो चुकी हैं। जहां जड़ने के गोबर सूखा करते हैं। तो वहीं दस्तावेज ,लेखा व उधोग सेंटरों में रखे चरखे और दूसरे देशी मशीन पूरी तरह रद्दी हो चुके हैं। आश्रम ज्यादातर दीवारों की पपडियां छूट चुकी है, तो वहीं सालों से साफ-सफाई नहीं हुई। जिसके चलते कमरे में कचड़े और मकड़ियों के जाल की भरमार है।


यहां हुई विनोवा के भूदान और ग्रामदान आंदोलन की शुरुआत...


आश्रम के फटेहाल रजिस्टरों पर पैनी नजर दौड़ाए तो 24 एकड़ में फैले आश्रम की माटी में बापू के बाद विनोवा भावे ,देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ,जय प्रकाश नारायण ,गुलजारी लाल नंदा, बिहार के पहले मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह समेत कई बड़े स्वतंत्रता सेनानियों व सियासी ताकतों का पहुंचना हुआ। बापू के बाद देश के प्रथम राष्ट्रपति यहां पंहुचे। प्रमाण हैं कि महान संत विनोवा भावे तकरीबन 6 माह तक यहां रहे। यहां रहते हुए उन्होंने यहीं से भूदान और ग्रामदान आंदोलन की शुरुआत की। कहते हैं कि जय प्रकाश नारायण इसके प्राकृतिक चिकित्सालय में 3 महीने तक रहे। यहां रहकर अपनी पत्नी का इलाज करवाया था।



सीएम श्रीकृष्ण सिंह के हाथों स्थापित पुस्तकालय पर लटका है ताला...


दरअसल जिस ऐतिहासिक स्थल को एक धरोहर की तरह साजो कर रखने की जरूरत थी। आज वह सिस्टम ,सरकार और दो गुटों की लारटपकी के कारण बदहाली के दिन गुजरता नजर आ रहा है। वह चबूतरा जहां खड़े होकर कभी बापू ने संबोधन किया था। आज वीरान और बेसुध पड़े स्थल पर बापू की मूर्ति है। जहां बुजुर्ग समाज के लोग सुबह-शाम शीश नवाने पहुंचते हैं। 1957 में यहां बिहार के पहले मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह पंहुचे और पुस्तकालय की स्थापना की। हालांकि दो गुटों की लड़ाई के कारण कृष्ण सदन नाम का यह पुस्तकालय वर्षों से बंद पड़ा है। यहां रखे वर्षों पुरानी पांडुलिपियां और किताबों बर्बाद हो चुकी है।



बिहार के गांधी वैद्यनाथ चौधरी ने की थी स्थापना....


आश्रम की देखभाल करने वाले जानकार कहते हैं कि बापू के आगमन के बाद पूर्व सांसद बिहार के गांधी नाम से मशहूर वैद्यनाथ चौधरी ने अपनी 24 एकड़ जमीन आश्रम के नाम करते हुए बापू की याद में सर्वोदय आश्रम की स्थापना की थी। इसके बाद ही यहां खादी ग्रामोद्योग विभाग की स्थापना की गई। जिससे गांधी के सपनों को सीमांचल और कोसी समेत बिहार में जिंदा रखा जा सके। मगर दो गुटों की लारटपकी व पद की लालसा को ले जारी लड़ाई के बीच यह अपने उद्देश्यों पर कायम नहीं रह सका। जिसके बाद सरकार ने अनुदान पर अंकुश लगा दी इस तरह यहां संचालित सभी उधोग पूरी तरह बंद हो गए।



1.5 करोड़ का था कारोबार.....


कहते हैं कि गांधीयन संस्थान में रचनात्मक सहयोग के लिए इस सर्वोदय आश्रम का समूचे देश भर में सर्वोपरि स्थान रहा। आश्रम से जोड़े लोगों की मानें तो कहा जाता है कि 80 के दशक में यानी कि 1984-85 तक इस आश्रम का सालाना कारोबार 1.5 करोड़ तक का रहा। तब यह आश्रम पूरे सीमांचल और कोसी में खादी ग्रामोद्योग की सेंट्रल गोदाम थी। रेशम ,खादी वस्त्र ,चरखा, जुट ,बेंत ,कपास ,चर्म, तेल पेराई समेत तब यहां से कुल 22 छोटे-बड़े उद्योग चलते थे। कहते हैं कि इसकी गुणवत्ता के कायल केवल बिहार में रहने वाले खादी के शौकीन ही नहीं बल्कि काश्मीर ,राजस्थान ,पंजाब ,उत्तरप्रदेश जैसे दजनों राज्य थे। तो वहीं हजारों लोगों को यहां कारोबार मिला करता था।


गांधी सर्किट से जोड़ने की स्थानीय कर रहे मांग....


लिहाजा स्थानीयों की मांग है कि इसे पुनः पुनर्जीवित किया जाए। जिससे हजारों लोगों को एक साथ रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के साथ ही इन व्यपारों में दिलचस्पी लेने वालों को अनुदान ,लोंन मिले। स्थानीय बतातें हैं कि स्थल को गांधी सर्किट से जोड़ दो गुटों की लड़ाई को खत्म किया जा सकता है। लिहाजा स्थानीय इस स्थल को गांधी सर्किट से जोड़ इसे बतौर टूरिस्ट प्लेस विकसित किया जा सके।

1 bite- सारदानंद मिश्र ,आश्रम प्रमुख
2 bite- स्थानीय ,विजय कु साह
3 bite- स्थानीय , धीरू यादव


Conclusion:बहरहाल जरूरत है सरकार के हस्तक्षेप की। जिससे गांधी और दूसरे विभूतियों से जुड़ी इस अमूल्य धरोहर की ढहती दीवारों को जिंदा रखा जा सके। गांधी सर्किट से जोड़ जहां सरकार पर्यटकों के पैकेट से इसके मेंटेनेंस के खर्चे निकाल सकती है। वहीं सरकार की पहल से खादी का कारोबार खड़ा होने से हजार उम्मीदों के घर एक बार फिर खुशहाली के चूल्हे जल पाएंगे।
Last Updated : Jan 20, 2020, 3:25 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.