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Wedding Folk Songs: शादी विवाह में लोकगीत गाने की परंपरा हो रही खत्म, बदले में डीजे और स्टेज शो आ गया - Bihar News

बिहार में शादी विवाह के मौके पर गाए जाने वाले गीत अब धीरे-धीरे विलुप्त हो रहे हैं. गांव घर की महिलाएं विवाह गीत गातीं थी. खासकर शादी में आए दूल्हे के पिता, बड़े भाई आदि को महिलाएं गाली देती थी. यह ऐसी गाली, जिससे सुनकर लोग खुश होते थे. अब धीरे धीरे यह परंपरा खत्म होती जा रही है. कुछ पुराने जमाने की महिलाएं हैं, जो इसे जिंदा रखी हैं. पढ़ें पूरी खबर...

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Published : May 14, 2023, 12:00 AM IST

शादी विवाह में लोकगीत गाने की परंपरा हो रही खत्म

पटनाः 'राम जी से पूछे जनकपुर के नारी बता द बबुआ लोगवा देत काहे गारी बता द बबुआ, लोगवा देत काहे गारी, बता द बबुआ...' यह गाना तो खूब सूना होगा. यह लोकगीत उस समय से चलन में रहा है जब भगवान राम की शादी हुई थी. उस समय जनकपुर की महिलाएं भगवान राम के बहाने उनके पिता तो गाली देती थी. इसके बाद धीरे-धीरे खासकर बिहार में इस गीत का चलन बढ़ गया था. हर शादी विवाह में यह गीत घर गांव की महिलाएं गातीं थी. जैसे जैसे मॉर्डन युग आता गया लोग इस परंपरा को भूलते चले गए. अब यह गीत नहीं के बराबर सुनाई देती है. अब इसके बदले डीजे और ऑर्केस्ट्रा लोग पसंद करने लगे हैं. लोग रुपए खर्च कर कलाकार बुला लेते हैं. महिलाओं के द्वारा गाई जाने वाली गीत विलुप्त होने लगी.

यह भी पढ़ेंः Purnea Patta Mela: इस मेले में लड़की ने पान खा लिया तो रिश्ता पक्का, बिहार के अलावे झारखंड और बंगाल से आते हैं लोग

लोकगीत गाने वाली महिलाओं के खास बातचीत

हंसी मजाक का रहा है रिवाजः बिहार में शादी विवाह के अवसर पर या किसी परिवारिक अनुष्ठान पर जब दूर-दूर से नाते रिश्तेदार जुटते हैं तब माहौल खुशनुमा होता है. महिलाएं गीत संगीत के साथ-साथ एक दूसरे को छेड़ने, हंसी मजाक की रिवाज करती थी. महिलाओं द्वारा गाली गाई जाती थी. ऐसी गाली, जिससे किसी को बुरा नहीं लगता था. जिस शादी विवाद में दूल्हा के पिता और बड़े भाई को गाली नहीं दी जाती थी तो शिकायत हो जाती थी कि यहां के महिलाओं को गीत नहीं आती है. लेकिन बदलते परिवेश में अब यह कल्चर खत्म होते जा रहा है. मॉडर्न महिलाएं शादी विवाह में गीत संगीत नहीं कर रही, बल्कि भाड़े पर गायक को बुलाकर गीत गवाती है.

नए जमाने की महिलाएं नहीं गाती गीतः हलांकि अभी कुछ महिलाएं हैं मौजदू हैं, इस परंपरा जो जिंदा रखी हुई हैं. विवाह में गाए जाने वाले लोकगीत को लेकर ETV Bharat ने खास बातचीत की, जिसमें उन्होंने इस गाने का महत्व को बताया. महिलाओं ने साफ कहा कि अब तो इस जमाने की महिलाएं गीत नहीं गाती है और ना ही सीखने की कोशिश करती है. इसलिए भाड़े पर गायक बुलाया जा रहा है. धीरे धीरे यह परंपरा विलुप्त होती जा रही है. अब शादी विवाह में लोकगीत बहुत कम ही सुनाई देती हैं. खासकर शहर में तो यह पूरी तरह से समाप्त हो गया है.


कम होता जा रहा प्रचलनः पुलिस लाइन की रहने वाली इंदु देवी ने बातचीत के दौरान शादी विवाह के पौराणिक गीत गाकर भी सुनाई. उन्होंने कहा कि "पहले सयुक्त परिवार एक साथ रहते थे तो घर में किसी तरह का सांस्कृति समायोजन हो या पर्व त्यौहार हो उसमें सासू, चाची, ननद, सभी लोग मिलकर गीत संगीत करते थे. मुझे तो गीत गाने आता भी नहीं था, लेकिन परिवार वालों के संग बैठकर सुनने से सीख लिया. अब यह माहौल नहीं रहा. जो नए मॉडल युग की महिलाएं हैं, सीखने की कोशिश भी नहीं कर रही हैं. यह प्रचलन कम होता जा रहा है."


महिलाओं की जगह कलाकार गाते हैंः तार घाट की रहने वाली उषा देवी ने कहा कि "हम लोग पुराने रीति रिवाज को मानते हैं. इसलिए हम लोग आज भी गीत गाते हैं. लेकिन अब की जो महिलाएं हैं वो नहीं गाती है. पुरानी जमाने की महिलाएं अब भी गा रही हैं. नई फैशन की महिलाएं नहीं गा रहीं. बेटी, पतोह किसी को गीत गाने का शौक नहीं है. जिस कारण से प्रचलन खत्म हो रहा है. अब तो शादी के मौके पर गायक बुलाया जा रहा है, जिसमें लाख दो लाख रुपए खर्च किया जाता है."

गायक को बुलाने का प्रचलन बढ़ गयाः हलांकि कुछ लोकगीत कलाकार हैं, जो इस परंपरा को बचाए रखीं है. लोक गायिका मनीषा श्रीवास्तव (folk singer manisha srivastava) ने कहा कि "निश्चित तौर पर कम ही महिलाएं हैं जो कि शादी विवाह में गीत गाती हैं. विवाह के मौके पर गायक को बुलाने का प्रचलन बढ़ गया है. मैं लोक गायिका हूं, लेकिन अब तो प्रचलन ऐसा हो गया है कि शादी विवाह के मौके पर बुलाया जा रहा है, लेकिन मैं कम ही जाती हूं. क्योंकि कम समय मिलता है. बिहार के साथ-साथ आसपास के परोशी राज्यों में भी जाकर शादी विवाह के मौके पर गीत संगीत करती हूं."

शादी विवाह में लोकगीत गाने की परंपरा हो रही खत्म

पटनाः 'राम जी से पूछे जनकपुर के नारी बता द बबुआ लोगवा देत काहे गारी बता द बबुआ, लोगवा देत काहे गारी, बता द बबुआ...' यह गाना तो खूब सूना होगा. यह लोकगीत उस समय से चलन में रहा है जब भगवान राम की शादी हुई थी. उस समय जनकपुर की महिलाएं भगवान राम के बहाने उनके पिता तो गाली देती थी. इसके बाद धीरे-धीरे खासकर बिहार में इस गीत का चलन बढ़ गया था. हर शादी विवाह में यह गीत घर गांव की महिलाएं गातीं थी. जैसे जैसे मॉर्डन युग आता गया लोग इस परंपरा को भूलते चले गए. अब यह गीत नहीं के बराबर सुनाई देती है. अब इसके बदले डीजे और ऑर्केस्ट्रा लोग पसंद करने लगे हैं. लोग रुपए खर्च कर कलाकार बुला लेते हैं. महिलाओं के द्वारा गाई जाने वाली गीत विलुप्त होने लगी.

यह भी पढ़ेंः Purnea Patta Mela: इस मेले में लड़की ने पान खा लिया तो रिश्ता पक्का, बिहार के अलावे झारखंड और बंगाल से आते हैं लोग

लोकगीत गाने वाली महिलाओं के खास बातचीत

हंसी मजाक का रहा है रिवाजः बिहार में शादी विवाह के अवसर पर या किसी परिवारिक अनुष्ठान पर जब दूर-दूर से नाते रिश्तेदार जुटते हैं तब माहौल खुशनुमा होता है. महिलाएं गीत संगीत के साथ-साथ एक दूसरे को छेड़ने, हंसी मजाक की रिवाज करती थी. महिलाओं द्वारा गाली गाई जाती थी. ऐसी गाली, जिससे किसी को बुरा नहीं लगता था. जिस शादी विवाद में दूल्हा के पिता और बड़े भाई को गाली नहीं दी जाती थी तो शिकायत हो जाती थी कि यहां के महिलाओं को गीत नहीं आती है. लेकिन बदलते परिवेश में अब यह कल्चर खत्म होते जा रहा है. मॉडर्न महिलाएं शादी विवाह में गीत संगीत नहीं कर रही, बल्कि भाड़े पर गायक को बुलाकर गीत गवाती है.

नए जमाने की महिलाएं नहीं गाती गीतः हलांकि अभी कुछ महिलाएं हैं मौजदू हैं, इस परंपरा जो जिंदा रखी हुई हैं. विवाह में गाए जाने वाले लोकगीत को लेकर ETV Bharat ने खास बातचीत की, जिसमें उन्होंने इस गाने का महत्व को बताया. महिलाओं ने साफ कहा कि अब तो इस जमाने की महिलाएं गीत नहीं गाती है और ना ही सीखने की कोशिश करती है. इसलिए भाड़े पर गायक बुलाया जा रहा है. धीरे धीरे यह परंपरा विलुप्त होती जा रही है. अब शादी विवाह में लोकगीत बहुत कम ही सुनाई देती हैं. खासकर शहर में तो यह पूरी तरह से समाप्त हो गया है.


कम होता जा रहा प्रचलनः पुलिस लाइन की रहने वाली इंदु देवी ने बातचीत के दौरान शादी विवाह के पौराणिक गीत गाकर भी सुनाई. उन्होंने कहा कि "पहले सयुक्त परिवार एक साथ रहते थे तो घर में किसी तरह का सांस्कृति समायोजन हो या पर्व त्यौहार हो उसमें सासू, चाची, ननद, सभी लोग मिलकर गीत संगीत करते थे. मुझे तो गीत गाने आता भी नहीं था, लेकिन परिवार वालों के संग बैठकर सुनने से सीख लिया. अब यह माहौल नहीं रहा. जो नए मॉडल युग की महिलाएं हैं, सीखने की कोशिश भी नहीं कर रही हैं. यह प्रचलन कम होता जा रहा है."


महिलाओं की जगह कलाकार गाते हैंः तार घाट की रहने वाली उषा देवी ने कहा कि "हम लोग पुराने रीति रिवाज को मानते हैं. इसलिए हम लोग आज भी गीत गाते हैं. लेकिन अब की जो महिलाएं हैं वो नहीं गाती है. पुरानी जमाने की महिलाएं अब भी गा रही हैं. नई फैशन की महिलाएं नहीं गा रहीं. बेटी, पतोह किसी को गीत गाने का शौक नहीं है. जिस कारण से प्रचलन खत्म हो रहा है. अब तो शादी के मौके पर गायक बुलाया जा रहा है, जिसमें लाख दो लाख रुपए खर्च किया जाता है."

गायक को बुलाने का प्रचलन बढ़ गयाः हलांकि कुछ लोकगीत कलाकार हैं, जो इस परंपरा को बचाए रखीं है. लोक गायिका मनीषा श्रीवास्तव (folk singer manisha srivastava) ने कहा कि "निश्चित तौर पर कम ही महिलाएं हैं जो कि शादी विवाह में गीत गाती हैं. विवाह के मौके पर गायक को बुलाने का प्रचलन बढ़ गया है. मैं लोक गायिका हूं, लेकिन अब तो प्रचलन ऐसा हो गया है कि शादी विवाह के मौके पर बुलाया जा रहा है, लेकिन मैं कम ही जाती हूं. क्योंकि कम समय मिलता है. बिहार के साथ-साथ आसपास के परोशी राज्यों में भी जाकर शादी विवाह के मौके पर गीत संगीत करती हूं."

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