पटना: बिहार में चार चरणों में जिन 19 सीटों पर वोटिंग हुई है. उनमें 2014 के चुनाव की तुलना में वोटिंग प्रतिशत लगभग एक समान रहा है. यानी वोटिंग ट्रेंड में ज्यादा बदलाव अब तक नजर नहीं आया है. ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या इस बार लोग बदलाव नहीं चाहते और क्या एक समान वोटिंग से केंद्र की मोदी सरकार को फायदा होगा.
वोटिंग प्रतिशत में कोई बदलाव नहीं
पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी बड़े बहुमत से सत्ता में वापस आई थी. चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक 2014 के लोकसभा चुनाव में करीब 66 फीसदी लोगों ने मतदान किया था. इस बार अब तक के 4 चरणों के चुनाव में कमोबेश यही वोट प्रतिशत रहा है. यानी इतने ही लोगों ने करीब-करीब वोटिंग में भाग लिया है.
मोदी सरकार की वापसी तय!
पारंपरिक रूप से यह माना गया है कि जब लोग बदलाव चाहते हैं तब ज्यादा वोटिंग देखने को मिलती है. ऐसे में यह सवाल उठ रहे हैं कि क्या इस बार लोग केंद्र की सरकार का चेहरा बदलने के पक्ष में नहीं हैं. इस बारे में भारतीय जनता पार्टी का दावा है कि मोदी ने जितना कुछ देश के लिए किया है और आम लोगों के लिए किया है. उससे लोग काफी संतुष्ट हैं. विशेष रूप से महिलाएं खुलकर वोट कर रही हैं और दोबारा मोदी सरकार की वापसी तय है.
विपक्ष की अलग राय
हालांकि विपक्ष इससे इत्तेफाक नहीं रखता. राजद नेता रामनारायण मंडल ने कहा कि जो साइलेंट वोटर हैं. वह इस बार मोदी की गलत नीतियों और एक भी वादा पूरा नहीं करने के कारण खासे नाराज हैं और 23 मई को इसका परिणाम देखने को मिलेगा.
सामाजिक विशेषज्ञ का राय
वहीं सामाजिक और आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ डॉक्टर डीएम दिवाकर ने कहा कि पारंपरिक रूप से जरूर ऐसा ही माना जाता है कि अगर वोटिंग पैटर्न में बदलाव नहीं हो रहा तो परिणाम पहले जैसे ही हो सकते हैं. लेकिन कई बार इसमें अपवाद भी होता है, और कुछ मामलों में परिणाम अलग हो सकते हैं. उन्होंने कहा कि वोटिंग परसेंट में एक से दो परसेंट का बदलाव भी बड़ा परिवर्तन ला सकता है.
चार चरणों का वोटिंग प्रतिशत
चार चरणों में जो वोटिंग का प्रतिशत रहा है. वह पिछले लोकसभा चुनाव के इर्द-गिर्द ही है. अब बाकी बचे चरणों में भी इसमें ज्यादा बदलाव की गुंजाइश नहीं देखती. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि 23 मई को जो नतीजे आते हैं. उसमें इस वोटिंग पैटर्न का कितना बड़ा रोल होता है.