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दिल्ली से बेगूसराय के लिए पैदल चले 'रामजी', बनारस में मौत...अखिरी दर्शन भी नहीं कर पाया परिवार

बिहार के बेगूसराय जिले के रामजी महतो दिल्ली में मजदूरी करते थे. लॉकडाउन के दौरान दिल्ली से पैदल ही बेगूसराय के ​लिए निकल पड़े, लेकिन बनारस पहुंचते-पहुंचते उनके कदम शिथिल पड़ गए, सांसें जवाब दे गईं और उनकी मौत हो गई.

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Published : Apr 22, 2020, 4:15 PM IST

पटना: देश कोरोना महामारी से जंग लड़ रहा है. इस जंग में लॉकडाउन को अहम हथियार माना जा रहा है, लेकिन इस बंदी का सबसे ज्यादा असर गरीब मजदूरों पर हो रहा है.

लॉकडाउन के ऐलान के बाद घर लौटते प्रवासी मजदूरों की कई दर्दनाक कहानियां सामने आई है. बिहार के बेगूसराय जिले रामजी महतो दिल्ली में मजदूरी करते थे. लॉकडाउन के दौरान दिल्ली से पैदल ही बेगूसराय के ​लिए निकल पड़े, लेकिन रामजी महतो की बनारस पहुंचते-पहुंचते उनकी सांसें जवाब दे गईं और उनकी मौत हो गई.

शव लेने नहीं आ पाए परिजन, रिश्तेदारों ने मुंह फेरा
बनारस जनपद के रोहनिया चौकी इंचार्ज गौरव पांडेय ने बताया कि इस गरीब परिवार के पास पैसे नहीं थे. इसलिए उन्होंने बनारस आ पाने में असमर्थता जताई. उन्होंने बताया कि महतो के परिजनों को आर्थिक मदद देने की बात भी कही, मगर लॉकडाउन के बीच दोनों का बनारस पहुंचना संभव नहीं था. रामजी की मां और बहन ने उन्हें बताया कि उनके कुछ रिश्तेदार बनारस में ही रहते हैं और वह पोस्टमार्टम के समय पहुंचेंगे. हालांकि 16 अप्रैल की देर रात तक रोहनिया थाने की पुलिस से किसी ने संपर्क नहीं किया और जब पुलिस ने उनसे संपर्क साधा तो मौत की बात सुनते ही फोन स्विच ऑफ कर दिया.

पुलिस ने किया अंतिम संस्कार
पुलिस को ही परिजनों और रिश्तेदारों की अनुपस्थिति में रामजी का अंतिम संस्कार करना पड़ा. रोहनिया चौकी इंचार्ज गौरव पांडेय ने कहा, ‘हमने पूरी कोशिश की कि रामजी के परिजन ही उनकी अंत्येष्टि करें, मगर जब वो लोग नहीं आ पाए तो हमने आज सोमवार (20 अप्रैल) की शाम को पोस्टमार्टम के बाद उनका अंतिम संस्कार कर दिया.

उन्होंने आगे कहा कि रामजी महतो के मामले में शक जताया जा रहा था कि शायद वह कोरोना पॉजिटिव हो, मगर उसकी रिपोर्ट नेगेटिव आयी है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, जब पैदल चलते-चलते रामजी महतो गिर गया तो उसकी सांसें तेज चल रही थीं. लोगों ने एंबुलेंस को फोन किया, मगर एंबुलेंसकर्मियों ने उसे हाथ नहीं लगाया. एंबुलेंस कर्मियों का कहना था कि क्या पता रामजी कोरोना संदिग्ध हो और उनके पास सुरक्षा किट भी नहीं है. इस दौरान रामजी सड़क पर तड़पता रहा. सूचना पाकर मौके पर पहुंचे मोहनसराय चौकी के प्रभारी ने एंबुलेंस कर्मियों को फटकारा और उसे अस्पताल की तरफ ले गये, मगर तब तक रामजी की मौत हो चुकी थी.

बहन को रामजी महतो ने किया था फोन
रामजी महतो की बहन नीला देवी ने बताया कि मेरा भाई फोन पर कह रहा था कि उसे भूख नहीं लग रही है, घर आ रहा हूं. रामजी की बहन नीला देवी ने मोहनसराय चौकी इंचार्ज को फोन पर बताया कि वह पानी सप्लाई करने की कोई गाड़ी चलाता था. 3 दिन पहले यानी 13 अप्रैल को फोन कर कहा था कि बहन तबीयत ठीक नहीं लग रही है. भूख भी नहीं लग रही है, तो हमने उससे कहा था कि लॉकडाउन में मत आना. वहीं, सरकारी अस्पताल में डॉक्टर को दिखाकर इलाज करा लेना. मगर उसने हमारी बात नहीं मानी और पैदल ही घर के लिए निकल पड़ा.

इस घटना को लेकर पुलिस के मानवीय पहलू की तारीफ हो रही है. जब एक मजदूर सड़क पर तड़प रहा था, लोग तमाशबीन बने खड़े थे और एंबुलेंस वाले उसे हाथ तक नहीं लगा रहे थे तो रोहनिया चौकी इंचार्ज गौरव पांडेय ने इंसानियत दिखाते हुए उसे अस्पताल ले गए, मगर बीच रास्ते में ही रामजी की मौत हो गयी.

पटना: देश कोरोना महामारी से जंग लड़ रहा है. इस जंग में लॉकडाउन को अहम हथियार माना जा रहा है, लेकिन इस बंदी का सबसे ज्यादा असर गरीब मजदूरों पर हो रहा है.

लॉकडाउन के ऐलान के बाद घर लौटते प्रवासी मजदूरों की कई दर्दनाक कहानियां सामने आई है. बिहार के बेगूसराय जिले रामजी महतो दिल्ली में मजदूरी करते थे. लॉकडाउन के दौरान दिल्ली से पैदल ही बेगूसराय के ​लिए निकल पड़े, लेकिन रामजी महतो की बनारस पहुंचते-पहुंचते उनकी सांसें जवाब दे गईं और उनकी मौत हो गई.

शव लेने नहीं आ पाए परिजन, रिश्तेदारों ने मुंह फेरा
बनारस जनपद के रोहनिया चौकी इंचार्ज गौरव पांडेय ने बताया कि इस गरीब परिवार के पास पैसे नहीं थे. इसलिए उन्होंने बनारस आ पाने में असमर्थता जताई. उन्होंने बताया कि महतो के परिजनों को आर्थिक मदद देने की बात भी कही, मगर लॉकडाउन के बीच दोनों का बनारस पहुंचना संभव नहीं था. रामजी की मां और बहन ने उन्हें बताया कि उनके कुछ रिश्तेदार बनारस में ही रहते हैं और वह पोस्टमार्टम के समय पहुंचेंगे. हालांकि 16 अप्रैल की देर रात तक रोहनिया थाने की पुलिस से किसी ने संपर्क नहीं किया और जब पुलिस ने उनसे संपर्क साधा तो मौत की बात सुनते ही फोन स्विच ऑफ कर दिया.

पुलिस ने किया अंतिम संस्कार
पुलिस को ही परिजनों और रिश्तेदारों की अनुपस्थिति में रामजी का अंतिम संस्कार करना पड़ा. रोहनिया चौकी इंचार्ज गौरव पांडेय ने कहा, ‘हमने पूरी कोशिश की कि रामजी के परिजन ही उनकी अंत्येष्टि करें, मगर जब वो लोग नहीं आ पाए तो हमने आज सोमवार (20 अप्रैल) की शाम को पोस्टमार्टम के बाद उनका अंतिम संस्कार कर दिया.

उन्होंने आगे कहा कि रामजी महतो के मामले में शक जताया जा रहा था कि शायद वह कोरोना पॉजिटिव हो, मगर उसकी रिपोर्ट नेगेटिव आयी है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, जब पैदल चलते-चलते रामजी महतो गिर गया तो उसकी सांसें तेज चल रही थीं. लोगों ने एंबुलेंस को फोन किया, मगर एंबुलेंसकर्मियों ने उसे हाथ नहीं लगाया. एंबुलेंस कर्मियों का कहना था कि क्या पता रामजी कोरोना संदिग्ध हो और उनके पास सुरक्षा किट भी नहीं है. इस दौरान रामजी सड़क पर तड़पता रहा. सूचना पाकर मौके पर पहुंचे मोहनसराय चौकी के प्रभारी ने एंबुलेंस कर्मियों को फटकारा और उसे अस्पताल की तरफ ले गये, मगर तब तक रामजी की मौत हो चुकी थी.

बहन को रामजी महतो ने किया था फोन
रामजी महतो की बहन नीला देवी ने बताया कि मेरा भाई फोन पर कह रहा था कि उसे भूख नहीं लग रही है, घर आ रहा हूं. रामजी की बहन नीला देवी ने मोहनसराय चौकी इंचार्ज को फोन पर बताया कि वह पानी सप्लाई करने की कोई गाड़ी चलाता था. 3 दिन पहले यानी 13 अप्रैल को फोन कर कहा था कि बहन तबीयत ठीक नहीं लग रही है. भूख भी नहीं लग रही है, तो हमने उससे कहा था कि लॉकडाउन में मत आना. वहीं, सरकारी अस्पताल में डॉक्टर को दिखाकर इलाज करा लेना. मगर उसने हमारी बात नहीं मानी और पैदल ही घर के लिए निकल पड़ा.

इस घटना को लेकर पुलिस के मानवीय पहलू की तारीफ हो रही है. जब एक मजदूर सड़क पर तड़प रहा था, लोग तमाशबीन बने खड़े थे और एंबुलेंस वाले उसे हाथ तक नहीं लगा रहे थे तो रोहनिया चौकी इंचार्ज गौरव पांडेय ने इंसानियत दिखाते हुए उसे अस्पताल ले गए, मगर बीच रास्ते में ही रामजी की मौत हो गयी.

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