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कुछ ऐसा रहा है उपेन्द्र कुशवाहा का सियासी सफर... तीसरी बार हुई है 'घर वापसी' - बिहार की सियासत में उपेंद्र कुशवाहा

उपेंद्र कुशवाहा बिहार सियासत में पिछले 4 दशकों से सक्रिय हैं. कभी नीतीश कुमार के सबसे खासम खास रहे. लेकिन बाद में दुश्मनी भी हुई, अब तीसरी बार जदयू में वापसी हो गई है.

पटना
उपेंद्र कुशवाहा
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Published : Mar 14, 2021, 11:48 AM IST

Updated : Mar 14, 2021, 4:08 PM IST

पटना: बिहार की सियासत में उपेंद्र कुशवाहा हमेशा चर्चा में बने रहते हैं. कभी नीतीश कुमार के खासम-खास भी रहे तो कभी उनके कट्टर दुश्मन भी बन गये. अब एक बार फिर से नीतीश के साथ उपेंद्र कुशवाहा की मित्रता बढ़ रही है. मंत्रिमंडल विस्तार से पहले ही उपेंद्र कुशवाहा के जदयू में शामिल होने की चर्चा हो रही थी. लेकिन कुछ पेंच फंसा रहा और इसके कारण फैसला नहीं हो पा रहा था.

लेकिन शनिवार देर शाम मुलाकात के बाद बात बनती दिख रही है. आज जदयू में विलय हो गया है. ऐसे में माना जा रहा है कि जदयू में उन्हें बड़ी जिम्मेदारी मिल सकती है. हालाकि उपेन्द्र कुशवाहा ऐसे वक्त पार्टी में शामिल हो रहे हैं, जब जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह पटना में मौजूद नहीं है.

ये भी पढ़ें..एंटीलिया मामला : 12 घंटे की पूछताछ के बाद वाजे गिरफ्तार, कोर्ट में पेश करने की तैयारी

खास रिपोर्ट :-

उपेंद्र कुशवाहा की दूसरी बार होगी घर वापसी
चार दशक से सक्रिय हैं बिहार की सियासत में उपेंद्र कुशवाहाउपेंद्र कुशवाहा बिहार की सियासत में पिछले 4 दशकों से सक्रिय हैं. कभी नीतीश कुमार के सबसे खासम खास रहे लेकिन बाद में दुश्मनी भी हुई अब दूसरी बार जदयू में वापसी हो रही है. जदयू के वरिष्ठ नेता वशिष्ठ नारायण सिंह इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं.

ये भी पढ़ें..पर्यवेक्षकों ने ईसी को सौंपी रिपोर्ट, ममता पर हमले का सबूत नहीं, हादसे में लगी चोट

बिहार की सियासत में उपेंद्र कुशवाहा का सफर
  • लोक दल के महासचिव 1985 से 1988.
  • लोक दल राष्ट्रीय महासचिव 1993 तक.
  • 1995 वैशाली के जंदाहा से विधानसभा चुनाव लड़े और हारे.
  • 2000 में पहली बार जंदाहा से ही विधायक बने.
  • 2004 में विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बने.
  • फरवरी 2005 का चुनाव जनता से हार गए.
  • अक्टूबर 2005 का चुनाव समस्तीपुर के दलसिंगसराय से हारे.
  • 2008 में नीतीश कुमार से अलग होकर एनसीपी में शामिल हुए और प्रदेश अध्यक्ष बने.
  • 2009 राष्ट्रीय समता पार्टी का गठन करते हैं और उसी साल उसे जदयू में विलय कर देते हैं. उन्हें नीतीश कुमार ने राज्यसभा भी भेज दिया.
  • 2012 फिर नीतीश कुमार से झंझट हुआ और राज्यसभा के साथ पार्टी से भी इस्तीफा दे दिया. जबकि 3 साल से अधिक समय राज्यसभा का बचा हुआ था.
  • 2013 में उपेंद्र कुशवाहा ने रालोसपा नाम से नई पार्टी बनाई, 3 मार्च को गांधी मैदान में रैली भी की.
  • 2014 के लोकसभा चुनाव में एनडीए में शामिल हो गए और 3 सीटों पर चुनाव लड़े, तीनों पर जीत मिली.
  • लेकिन 2015 विधानसभा चुनाव में केवल दो ही सीट पर जीत मिल सकी.
  • नीतीश कुमार के महागठबंधन छोड़ NDA में आने के बाद से उपेंद्र कुशवाहा की मुश्किलें बढ़ी और 2019 के चुनाव में महागठबंधन के साथ हो गए.
  • 2019 लोकसभा चुनाव में एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं हुई.
  • रालोसपा के दोनों विधायक और एक विधान पार्षद जदयू में शामिल हो गए. पार्टी का बड़ा हिस्सा जदयू में शामिल हो गया.
  • 2020 विधानसभा चुनाव में महागठबंधन से भी अलग हो गया और नया गठबंधन बना लिया. जिसमें खुद मुख्यमंत्री उम्मीदवार बने लेकिन एक भी सीट जीत नहीं पाए.
  • विधानसभा चुनाव के बाद नीतीश से नजदीकियां बढ़ीं. अब जदयू में एक बार फिर से अपनी महत्वपूर्ण पारी खेलने वाले हैं. नीतीश कुमार जदयू में उन्हें महत्वपूर्ण जिम्मेवारी दे सकते हैं.
  • पिछले दिनों उपेंद्र कुशवाहा के फैसले को लेकर रालोसपा का एक बड़ा हिस्सा आरजेडी में शामिल हो गया तब नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने कहा कि अब रालोसपा में केवल उपेंद्र कुशवाहा ही बच गए हैं. पार्टी के नेताओं ने उन्हें पार्टी से अलग कर पूरी पार्टी को आरजेडी में विलय कर दिया है.
  • 14 मार्च 2021 को आरएलएसपी का तीसरी बार जेडीयू में विलय हो गया.

'आरजेडी उपेंद्र कुशवाहा से डर रही है. उपेंद्र कुशवाहा बड़े नेता हैं. पार्टी पदाधिकारी और कुछ नेताओं के जाने से उन पर कोई असर पड़ने वाला नहीं है. जदयू में विलय से जदयू की ताकत बढ़ेगी और इसी से आरजेडी घबराई हुई है'.- विनोद शर्मा, बीजेपी प्रवक्ता

'नीतीश कुमार विधानसभा चुनाव के बाद जिस प्रकार से तीसरे नंबर पर पहुंचे हैं. तो दूसरे दलों के नेताओं को लाकर अपनी पार्टी मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन उपेंद्र कुशवाहा शामिल भी हो जाएंगे तो कुछ होने वाला अब नहीं है'.-मृत्युंजय तिवारी, आरजेडी प्रवक्ता

'उपेंद्र कुशवाहा की विचारधारा हम लोगों से मिलती है और उनके आने से निश्चित रूप से पार्टी को मजबूती मिलेगी'.- वशिष्ठ नारायण सिंह, वरिष्ठ नेता जदयू

लव-कुश समीकरण पर सबसे ज्यादा जोर
बिहार में विधानसभा चुनाव के बाद से जदयू लव कुश समीकरण पर सबसे ज्यादा जोर दे रही है. लव-कुश समीकरण नीतीश कुमार का कोर वोट माना जाता रहा है. कुशवाहा समाज से आने वाले एक के बाद एक बड़े नेता नीतीश कुमार का साथ छोड़ते गए. जिसका असर इस वोट बैंक पर पड़ा और नीतीश को अब लग रहा है एक बार फिर से इसे मजबूत किया जाए. क्योंकि जहां लव यानी कुर्मी का वोट 2:5 से 3% है तो वहीं, कुशवाहा का चार से 5% और दोनों मिलाकर 7 से 8% के बीच वोट बैंक हो जाता है और नीतीश इसे एक बार फिर से अपने पक्ष में करने में लगे हैं और इसीलिए उपेंद्र कुशवाहा जो कुश यानी कुशवाहा समाज के बड़े नेता माने जाते हैं, उसे अपने साथ जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं.

रालोसपा सबसे अधिक टूटने वाली पार्टी
बिहार में रालोसपा सबसे अधिक टूटने वाली पार्टी है. उपेंद्र कुशवाहा ने 2013 में पार्टी का गठन किया था. उसके बाद से कई बार पार्टी टूट चुकी है. पार्टी के सांसद सभी विधायक और सभी विधान पार्षद उपेंद्र कुशवाहा को छोड़कर जदयू में शामिल हुए थे. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पिछले विधानसभा चुनाव में आरजेडी में शामिल हुए थे. अभी हाल में कार्यकारी अध्यक्ष महासचिव सहित पार्टी का बड़ा हिस्सा फिर से आरजेडी में शामिल हुआ है .

उससे पहले भी कई दफा पार्टी टूटी और जदयू में रालोसपा के लोग शामिल हुए. कुल मिलाकर देखें तो रालोसपा में अब उपेंद्र कुशवाहा अकेले बचे दिखते हैं. ऐसे में देखना दिलचस्प है कि शामिल होने के बाद इस बार जदयू को कितनी मजबूत कर पाते हैं. साथ ही उपेंद्र कुशवाहा महत्वाकांक्षी नेताओं में से माने जाते हैं. ऐसे में इस बार शामिल होने के बाद कितने दिन जदयू में टिके रहेंगे यह भी देखना दिलचस्प होगा.

पटना: बिहार की सियासत में उपेंद्र कुशवाहा हमेशा चर्चा में बने रहते हैं. कभी नीतीश कुमार के खासम-खास भी रहे तो कभी उनके कट्टर दुश्मन भी बन गये. अब एक बार फिर से नीतीश के साथ उपेंद्र कुशवाहा की मित्रता बढ़ रही है. मंत्रिमंडल विस्तार से पहले ही उपेंद्र कुशवाहा के जदयू में शामिल होने की चर्चा हो रही थी. लेकिन कुछ पेंच फंसा रहा और इसके कारण फैसला नहीं हो पा रहा था.

लेकिन शनिवार देर शाम मुलाकात के बाद बात बनती दिख रही है. आज जदयू में विलय हो गया है. ऐसे में माना जा रहा है कि जदयू में उन्हें बड़ी जिम्मेदारी मिल सकती है. हालाकि उपेन्द्र कुशवाहा ऐसे वक्त पार्टी में शामिल हो रहे हैं, जब जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह पटना में मौजूद नहीं है.

ये भी पढ़ें..एंटीलिया मामला : 12 घंटे की पूछताछ के बाद वाजे गिरफ्तार, कोर्ट में पेश करने की तैयारी

खास रिपोर्ट :-

उपेंद्र कुशवाहा की दूसरी बार होगी घर वापसी
चार दशक से सक्रिय हैं बिहार की सियासत में उपेंद्र कुशवाहाउपेंद्र कुशवाहा बिहार की सियासत में पिछले 4 दशकों से सक्रिय हैं. कभी नीतीश कुमार के सबसे खासम खास रहे लेकिन बाद में दुश्मनी भी हुई अब दूसरी बार जदयू में वापसी हो रही है. जदयू के वरिष्ठ नेता वशिष्ठ नारायण सिंह इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं.

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बिहार की सियासत में उपेंद्र कुशवाहा का सफर
  • लोक दल के महासचिव 1985 से 1988.
  • लोक दल राष्ट्रीय महासचिव 1993 तक.
  • 1995 वैशाली के जंदाहा से विधानसभा चुनाव लड़े और हारे.
  • 2000 में पहली बार जंदाहा से ही विधायक बने.
  • 2004 में विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बने.
  • फरवरी 2005 का चुनाव जनता से हार गए.
  • अक्टूबर 2005 का चुनाव समस्तीपुर के दलसिंगसराय से हारे.
  • 2008 में नीतीश कुमार से अलग होकर एनसीपी में शामिल हुए और प्रदेश अध्यक्ष बने.
  • 2009 राष्ट्रीय समता पार्टी का गठन करते हैं और उसी साल उसे जदयू में विलय कर देते हैं. उन्हें नीतीश कुमार ने राज्यसभा भी भेज दिया.
  • 2012 फिर नीतीश कुमार से झंझट हुआ और राज्यसभा के साथ पार्टी से भी इस्तीफा दे दिया. जबकि 3 साल से अधिक समय राज्यसभा का बचा हुआ था.
  • 2013 में उपेंद्र कुशवाहा ने रालोसपा नाम से नई पार्टी बनाई, 3 मार्च को गांधी मैदान में रैली भी की.
  • 2014 के लोकसभा चुनाव में एनडीए में शामिल हो गए और 3 सीटों पर चुनाव लड़े, तीनों पर जीत मिली.
  • लेकिन 2015 विधानसभा चुनाव में केवल दो ही सीट पर जीत मिल सकी.
  • नीतीश कुमार के महागठबंधन छोड़ NDA में आने के बाद से उपेंद्र कुशवाहा की मुश्किलें बढ़ी और 2019 के चुनाव में महागठबंधन के साथ हो गए.
  • 2019 लोकसभा चुनाव में एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं हुई.
  • रालोसपा के दोनों विधायक और एक विधान पार्षद जदयू में शामिल हो गए. पार्टी का बड़ा हिस्सा जदयू में शामिल हो गया.
  • 2020 विधानसभा चुनाव में महागठबंधन से भी अलग हो गया और नया गठबंधन बना लिया. जिसमें खुद मुख्यमंत्री उम्मीदवार बने लेकिन एक भी सीट जीत नहीं पाए.
  • विधानसभा चुनाव के बाद नीतीश से नजदीकियां बढ़ीं. अब जदयू में एक बार फिर से अपनी महत्वपूर्ण पारी खेलने वाले हैं. नीतीश कुमार जदयू में उन्हें महत्वपूर्ण जिम्मेवारी दे सकते हैं.
  • पिछले दिनों उपेंद्र कुशवाहा के फैसले को लेकर रालोसपा का एक बड़ा हिस्सा आरजेडी में शामिल हो गया तब नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने कहा कि अब रालोसपा में केवल उपेंद्र कुशवाहा ही बच गए हैं. पार्टी के नेताओं ने उन्हें पार्टी से अलग कर पूरी पार्टी को आरजेडी में विलय कर दिया है.
  • 14 मार्च 2021 को आरएलएसपी का तीसरी बार जेडीयू में विलय हो गया.

'आरजेडी उपेंद्र कुशवाहा से डर रही है. उपेंद्र कुशवाहा बड़े नेता हैं. पार्टी पदाधिकारी और कुछ नेताओं के जाने से उन पर कोई असर पड़ने वाला नहीं है. जदयू में विलय से जदयू की ताकत बढ़ेगी और इसी से आरजेडी घबराई हुई है'.- विनोद शर्मा, बीजेपी प्रवक्ता

'नीतीश कुमार विधानसभा चुनाव के बाद जिस प्रकार से तीसरे नंबर पर पहुंचे हैं. तो दूसरे दलों के नेताओं को लाकर अपनी पार्टी मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन उपेंद्र कुशवाहा शामिल भी हो जाएंगे तो कुछ होने वाला अब नहीं है'.-मृत्युंजय तिवारी, आरजेडी प्रवक्ता

'उपेंद्र कुशवाहा की विचारधारा हम लोगों से मिलती है और उनके आने से निश्चित रूप से पार्टी को मजबूती मिलेगी'.- वशिष्ठ नारायण सिंह, वरिष्ठ नेता जदयू

लव-कुश समीकरण पर सबसे ज्यादा जोर
बिहार में विधानसभा चुनाव के बाद से जदयू लव कुश समीकरण पर सबसे ज्यादा जोर दे रही है. लव-कुश समीकरण नीतीश कुमार का कोर वोट माना जाता रहा है. कुशवाहा समाज से आने वाले एक के बाद एक बड़े नेता नीतीश कुमार का साथ छोड़ते गए. जिसका असर इस वोट बैंक पर पड़ा और नीतीश को अब लग रहा है एक बार फिर से इसे मजबूत किया जाए. क्योंकि जहां लव यानी कुर्मी का वोट 2:5 से 3% है तो वहीं, कुशवाहा का चार से 5% और दोनों मिलाकर 7 से 8% के बीच वोट बैंक हो जाता है और नीतीश इसे एक बार फिर से अपने पक्ष में करने में लगे हैं और इसीलिए उपेंद्र कुशवाहा जो कुश यानी कुशवाहा समाज के बड़े नेता माने जाते हैं, उसे अपने साथ जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं.

रालोसपा सबसे अधिक टूटने वाली पार्टी
बिहार में रालोसपा सबसे अधिक टूटने वाली पार्टी है. उपेंद्र कुशवाहा ने 2013 में पार्टी का गठन किया था. उसके बाद से कई बार पार्टी टूट चुकी है. पार्टी के सांसद सभी विधायक और सभी विधान पार्षद उपेंद्र कुशवाहा को छोड़कर जदयू में शामिल हुए थे. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पिछले विधानसभा चुनाव में आरजेडी में शामिल हुए थे. अभी हाल में कार्यकारी अध्यक्ष महासचिव सहित पार्टी का बड़ा हिस्सा फिर से आरजेडी में शामिल हुआ है .

उससे पहले भी कई दफा पार्टी टूटी और जदयू में रालोसपा के लोग शामिल हुए. कुल मिलाकर देखें तो रालोसपा में अब उपेंद्र कुशवाहा अकेले बचे दिखते हैं. ऐसे में देखना दिलचस्प है कि शामिल होने के बाद इस बार जदयू को कितनी मजबूत कर पाते हैं. साथ ही उपेंद्र कुशवाहा महत्वाकांक्षी नेताओं में से माने जाते हैं. ऐसे में इस बार शामिल होने के बाद कितने दिन जदयू में टिके रहेंगे यह भी देखना दिलचस्प होगा.

Last Updated : Mar 14, 2021, 4:08 PM IST
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