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Republic Day: 74वें गणतंत्र दिवस पर मिलिए स्वतंत्रता सेनानियों से.. जिनसे कांपते थे अंग्रेज

पूरा देश 74 वां गणतंत्र दिवस मना रहा है. हर भारतवासियों के दिल में जोश और जुनून के साथ उत्साह देखते बन रहा है. 26 जनवरी का दिन आजाद भारत में बहुत ही अहम तारीख है. आज के दिन ही भारत एक गणतंत्र राष्ट्र बना था. ऐसे में आज उन सभी आजादी के दीवानों को याद करने का दिन है, जिनके बलियादान और योगदान को भुलाया नहीं जा सकता. पटना के मसौढ़ी अनुमंडल में कुल 23 स्वतंत्रता सेनानी रहे हैं, जिन्होंने अंग्रेजों की बोलती बंद कर रखी थी.

Republic Day 2023
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Published : Jan 26, 2023, 8:08 AM IST

देश क्रांतिकारियों से सुनिए कैसे मिली आजादी

पटना : बिहार की राजधानी पटना के मसौढ़ी अनुमंडल में कुल 23 स्वतंत्रता सेनानी अंग्रेजी हुकूमत के छक्के छुड़ा दिए थे. जिसमें कई महिला स्वतंत्रता सेनानियों ने भी बढ़-चढ़कर अपना अमूल्य योगदान दिया था. वैसे तो कई लोगों का निधन हो चुका है लेकिन अभी भी कुछ ऐसे भी क्रांतिकारी हैं जो आज भी जिंदा हैं. खास बात ये भी है कि स्वतंत्रता संघर्ष की पूरी कहानी उनके जेहन में आज भी ताजा हैं. जैसे ही 15 अगस्त या 26 जनवरी का दिन आता है उनके रग-रग में एक बार फिर से आजादी के गीत गूंजने लगते हैं.

ये भी पढ़ें- 26 January Republic Day: जानिए, गणतंत्र दिवस पर किन-किन पुरस्कारों की होती है घोषणा

पर्चे बांटकर जगातीं थीं देशभक्ति का जुनून: पर्चे बांटकर आजादी की लड़ाई में मैसेंजर का काम करने वाली स्वतंत्रता सेनानी बरती देवी (83 वर्ष) गांव-गांव जाकर लोगों को पर्चे बांटा करती थीं. उस वक्त लोगों में देशभक्ति का जुनून पैदा करती थीं. अंग्रेजी हुकूमत से लड़ने के लिए उनके अंदर एक नई ताकत और ऊर्जा भरतीं थीं. ये देश वासियों के लिए सौभाग्य की बात है कि वो आज भी जिंदा हैं. मसौढ़ी थाना के डोरीपार गांव में अपने परिवार के साथ आजाद भारत की हवा में सांस लेते हुए उन्हें अच्छा लगता है.

''हम तब गली-गली गांव-गांव पर्चा बांटा करते थे. जहां कहीं भी सभा होती थी तो जाकर वहां लोगों को संबोधित भी करते थे. जंतरमंतर पर भी हम लोग गए हैं. रेल की पटरी उखाड़ने के लिए हमलोगों को 6 महीने की जेल ब्रिटिश शासन में हुई थी''- बरती देवी, स्वतंत्रता सेनानी

जोशीले नारों से जगाई क्रांति की अलख: ऐसे ही छोटकी बेरा गांव के स्वतंत्रता सेनानी योगा देवी (105 वर्ष) भी क्रांतिकारियों में जोश भरने का काम करतीं थीं. उनके लिखे नारे स्वतंत्रता सेनानियों की नस-नस में बारूद भरने का काम करते थे. इनके नारे इतने जोशीले होते थे कि क्रांतिकारियों का उत्साह चरम पर पहुंच जाता था. इनके टोली के उग्र तेवर को देखकर अंग्रेज भी थर-थर कांपते थे.

जिनके सामने आने में कांपते थे फिरंगी: वहीं, घोरहुआ के स्वतंत्रता सेनानी रामचंद्र सिंह (98 वर्ष) आजादी से पहले महात्मा गांधी के साथ मिलकर देश को स्वतंत्र करने की लड़ाई लड़ी. मसौढ़ी में जब गांधी जी आए थे तो उनका नेतृत्व रामचंद्र सिंह ने ही किया था. अपने इलाके में ये घूम-घूमकर क्रांतिकारियों को इकट्ठा करते थे, अंग्रेजों के खिलाफ योजनाएं बनाते थे. कई बार अंग्रेजों की लाठियां तक खाईं, गोलियां चलतीं थी लेकिन इनके पैर हमेशा आगे ही बढ़ते थे. इनकी प्लानिंग इतनी बेजोड़ थी कि अंग्रेज भी डरते थे. इन्हें 6 महीने के लिए रेल की पटरी उखाड़ने के आरोप में जेल जाना पड़ा.

"स्वतंत्रता सेनानी जब अंग्रेजों के खिलाफ लड़ते थे तो उनकी गोलियों से कई लोग जख्मी हो जाते थे. लाठियां भी चलाते थे लेकिन हम लोग पीछे नहीं हटते थे. हम सभी छिपकर प्लानिंग करके अंग्रेजों के पांव उखाड़ने का काम करते थे."- रामचंद्र सिंह, स्वतंत्रता सेनानी

युवाओं को क्रांतिकारियों का संदेश : स्वतंत्रता सेनानियों ने कहा कि आज की युवा पीढ़ी को इस आजाद मुल्क में एक स्वच्छ राजनीति में आना चाहिए. जब युवा बढ़ेंगे तभी देश आगे बढ़ेगा. यह देश युवाओं का ही देश रहा है. युवा के अंदर जोश, जुनून और उमंग होता है. किसी भी कार्य को लेकर और वह मेहनती होते हैं. इसलिए युवाओं को अपने देश के खातिर आगे आना होगा.

देश क्रांतिकारियों से सुनिए कैसे मिली आजादी

पटना : बिहार की राजधानी पटना के मसौढ़ी अनुमंडल में कुल 23 स्वतंत्रता सेनानी अंग्रेजी हुकूमत के छक्के छुड़ा दिए थे. जिसमें कई महिला स्वतंत्रता सेनानियों ने भी बढ़-चढ़कर अपना अमूल्य योगदान दिया था. वैसे तो कई लोगों का निधन हो चुका है लेकिन अभी भी कुछ ऐसे भी क्रांतिकारी हैं जो आज भी जिंदा हैं. खास बात ये भी है कि स्वतंत्रता संघर्ष की पूरी कहानी उनके जेहन में आज भी ताजा हैं. जैसे ही 15 अगस्त या 26 जनवरी का दिन आता है उनके रग-रग में एक बार फिर से आजादी के गीत गूंजने लगते हैं.

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पर्चे बांटकर जगातीं थीं देशभक्ति का जुनून: पर्चे बांटकर आजादी की लड़ाई में मैसेंजर का काम करने वाली स्वतंत्रता सेनानी बरती देवी (83 वर्ष) गांव-गांव जाकर लोगों को पर्चे बांटा करती थीं. उस वक्त लोगों में देशभक्ति का जुनून पैदा करती थीं. अंग्रेजी हुकूमत से लड़ने के लिए उनके अंदर एक नई ताकत और ऊर्जा भरतीं थीं. ये देश वासियों के लिए सौभाग्य की बात है कि वो आज भी जिंदा हैं. मसौढ़ी थाना के डोरीपार गांव में अपने परिवार के साथ आजाद भारत की हवा में सांस लेते हुए उन्हें अच्छा लगता है.

''हम तब गली-गली गांव-गांव पर्चा बांटा करते थे. जहां कहीं भी सभा होती थी तो जाकर वहां लोगों को संबोधित भी करते थे. जंतरमंतर पर भी हम लोग गए हैं. रेल की पटरी उखाड़ने के लिए हमलोगों को 6 महीने की जेल ब्रिटिश शासन में हुई थी''- बरती देवी, स्वतंत्रता सेनानी

जोशीले नारों से जगाई क्रांति की अलख: ऐसे ही छोटकी बेरा गांव के स्वतंत्रता सेनानी योगा देवी (105 वर्ष) भी क्रांतिकारियों में जोश भरने का काम करतीं थीं. उनके लिखे नारे स्वतंत्रता सेनानियों की नस-नस में बारूद भरने का काम करते थे. इनके नारे इतने जोशीले होते थे कि क्रांतिकारियों का उत्साह चरम पर पहुंच जाता था. इनके टोली के उग्र तेवर को देखकर अंग्रेज भी थर-थर कांपते थे.

जिनके सामने आने में कांपते थे फिरंगी: वहीं, घोरहुआ के स्वतंत्रता सेनानी रामचंद्र सिंह (98 वर्ष) आजादी से पहले महात्मा गांधी के साथ मिलकर देश को स्वतंत्र करने की लड़ाई लड़ी. मसौढ़ी में जब गांधी जी आए थे तो उनका नेतृत्व रामचंद्र सिंह ने ही किया था. अपने इलाके में ये घूम-घूमकर क्रांतिकारियों को इकट्ठा करते थे, अंग्रेजों के खिलाफ योजनाएं बनाते थे. कई बार अंग्रेजों की लाठियां तक खाईं, गोलियां चलतीं थी लेकिन इनके पैर हमेशा आगे ही बढ़ते थे. इनकी प्लानिंग इतनी बेजोड़ थी कि अंग्रेज भी डरते थे. इन्हें 6 महीने के लिए रेल की पटरी उखाड़ने के आरोप में जेल जाना पड़ा.

"स्वतंत्रता सेनानी जब अंग्रेजों के खिलाफ लड़ते थे तो उनकी गोलियों से कई लोग जख्मी हो जाते थे. लाठियां भी चलाते थे लेकिन हम लोग पीछे नहीं हटते थे. हम सभी छिपकर प्लानिंग करके अंग्रेजों के पांव उखाड़ने का काम करते थे."- रामचंद्र सिंह, स्वतंत्रता सेनानी

युवाओं को क्रांतिकारियों का संदेश : स्वतंत्रता सेनानियों ने कहा कि आज की युवा पीढ़ी को इस आजाद मुल्क में एक स्वच्छ राजनीति में आना चाहिए. जब युवा बढ़ेंगे तभी देश आगे बढ़ेगा. यह देश युवाओं का ही देश रहा है. युवा के अंदर जोश, जुनून और उमंग होता है. किसी भी कार्य को लेकर और वह मेहनती होते हैं. इसलिए युवाओं को अपने देश के खातिर आगे आना होगा.

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