पटना: बिहार में युवाओं के रोजगार को लेकर हकीकत ये है कि डबल इंजन की सरकार बिहार में बन जाने के बाद भी रोजगार की हालत और ज्यादा खराब हुई है. भले ही सरकार या सरकार के नुमाइंदे आर्थिक मंदी और बेरोजगारी को मानने से इनकार करें. लेकिन इसकी जिम्मेदारी लेने की बात तो दूर ये लोग बयानबाजी में लगे रहते हैं.
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बेरोजगारी से युवा परेशान
आलम ये है कि बेरोजगारी की समस्या युवाओं के दिलों दिमाग को खोखला कर रही है. युवाओं के सामने सिर्फ यही सवाल है कि पढ़ाई के बाद नौकरी कैसे हासिल की जाए. पटना यूनिवर्सिटी के बाहर एक चाय की दुकान पर काफी संख्या में बैठे युवा रोजगार के बारे में चर्चा कर रहे थे. युवाओं का कहना था कि चुनाव के समय रोजगार के दावे किए जाते हैं, मगर चुनाव के बाद इन दावों को सरकार भूल जाती है.
सरकार नौकरी देने के मूड में नहीं
युवाओं ने कहा कि अगर पटना विश्वविद्यालय की ही बात करें तो विश्वविद्यालय में काफी संख्या में शिक्षक, प्रोफेसर और शैक्षणिक कर्मियों की कमी है. लेकिन इन रिक्तियों को भरा नहीं जा रहा है. प्रदेश में भी शिक्षकों के 2 लाख से अधिक पद रिक्त हैं, लेकिन सरकार युवाओं को नौकरी देने के मूड में नजर नहीं आती. प्रदेश के सभी विभागों में काफी संख्या में वैकेंसी है और अधिक वैकेंसी होने के कारण वर्तमान कर्मियों पर वर्क लोड भी काफी ज्यादा है, मगर सरकार नई वैकेंसी नहीं निकाल रही.
वैकेंसी के इंतजार में बीत रही उम्र
प्रदेश में कोई भी प्रतियोगी परीक्षाएं समय पर नहीं होती और अभी की स्थिति ये है कि वैकेंसी के इंतजार में बिहार के युवा अपनी उम्र बिता रहे हैं. प्रदेश में एसएससी की एग्जाम के लिए 2014 में वैकेंसी आई थी. छात्रों ने फॉर्म भरा था और उसके बाद 2019 में जाकर परीक्षा हुई. लेकिन अभी तक उसका परिणाम नहीं आया है. इसी प्रकार अन्य कई नौकरियों का यही हाल है.
रोजगार के कम होते अवसर
छात्रों ने बताया कि वो विश्वविद्यालय में वोकेशनल कोर्स कर रहे हैं और इस उम्मीद से कि उन्हें पेसू में नौकरी मिलेगी. मगर सरकार पेसू को प्राइवेट करने जा रही है. छात्रों ने कहा कि सभी जानते हैं कि प्राइवेट कंपनियां रोजगार सृजन के बजाय अधिक से अधिक मुनाफा कमाने पर ध्यान देती है. ऐसे में वह यही चाहेंगे कि 2 लोग के जगह 1 लोग से ही काम निकल जाए. ऐसे में आने वाले दिनों में रोजगार के अवसर कम होते नजर आ रहे हैं और युवाओं में निराशा घर करती जा रही है.
मुहिम के जरिए रोजगार की उम्मीद
युवाओं ने कहा कि वह लगातार #मुहिम चला रहे हैं कि 'मोदी जी रोजगार दो', 'मोदी जी जॉब दो' मगर मोदी जी के कान में जूं नहीं रेंग रही. युवाओं ने कहा कि युवा जब भी रोजगार का मुद्दा उठाते हैं सरकार के तरफ से मंदिर-मस्जिद, हिंदू-मुस्लिम, बिहार चुनाव-बंगाल चुनाव और राष्ट्रवाद जैसे मुद्दों को हाईलाइट कर रोजगार के मुद्दे को दबा दिया जाता है.
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अपने दायित्वों से भाग रही है सरकार
युवाओं ने कहा कि वो बिहार के सुदूर कोने से पटना में अच्छी शिक्षा ग्रहण करने के लिए पहुंचते हैं, क्योंकि उनके जिले में उच्च शिक्षा के लिए अच्छी व्यवस्था नहीं है और जब वह पटना में अच्छी शिक्षा ग्रहण कर लेते हैं. तब भी उन्हें कहीं नौकरी नहीं मिलती. इस वजह से युवा मानसिक तनाव से ग्रस्त हो रहे हैं. युवाओं ने कहा कि वह सरकार से अपना हक मांग रहे हैं और उन्होंने जो शिक्षा ग्रहण की है, उसी आधार पर सरकार से नौकरी की मांग कर रहे हैं. लेकिन सरकार अपने दायित्वों से भाग रही है.