पटना: आज 05 नवंबर दिन शनिवार को तुलसी विवाह (Tulsi Vivah Saturday) है. इसमें भगवान शालिग्राम का तुलसी से विवाह होता है. कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को भगवान विष्णु के शालीग्राम अवतार और माता तुलसी का विवाह कराने की परंपरा है. यह दिन एकादशी के एक दिन बाद आता है. माना जाता है कि तुलसी-शालीग्राम विवाह कराने वाले व्यक्ति को कन्या दान के समान पुण्य मिलता है.
ये भी पढ़ें: प्रकाशोत्सव पर्व का दूसरा दिनः देश विदेश से आए श्रद्धालुओं ने निकाली नगर कीर्तन शोभा यात्रा
तुलसी विवाह मुहूर्त 2022: कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष (Tulsi Vivah Subh Muhurat) की द्वादशी तिथि यानी 05 नवंबर को शाम 06 बजकर 08 मिनट से शुरू होकर कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि यानी 06 नवंबर को शाम 05 बजकर 06 मिनट पर समाप्त होगा. तुलसी विवाह का शुभ समय आज शाम 05 बजकर 35 मिनट से शाम 07 बजटकर 12 मिनट तक रहेगा.
जानिए तुलसी विवाह की कहानी: इस पर्व को लेकर पुराणों में कहानी (Tulsi Vivah 2022 Katha) है कि जालंधर नामक एक राक्षस हुआ करता था, जो शादीशुदा होते हुए भी मां पर्वती को चाहने के लिए उनके पास जाकर मायावी शक्ति से भगवान शिव बनकर चला गया था. लेकिन कहते हैं कि मां पार्वती अपने भक्ति और योग के बलबूते पर उस मायावी जालंधर राक्षस को पहचान ली थी और उसी समय गायब हो गई थी.
उसके बाद मां पार्वती भगवान विष्णु के पास गई थी और अपने साथ हुए सारी घटनाओं की जानकारी दी. भगवान विष्णु उस राक्षस को मारने के लिए उसकी धार्मिक प्रवृत्ति की पत्नी को उसके पति के नजर से हटाने के लिए पास गए. ऐसा होने पर ही उस राक्षस को मारा जा सकता था. कहते हैं कि जालंधर की पत्नी वृंदा एक पतिव्रता नारी थी. यही वजह है कि भगवान विष्णु उसकी धार्मिक पत्नी के पास गए थे, जहां दो राक्षस के साथ वह मौजूद थी.
खुद को जलाकर हुई सती: भगवान विष्णु दोनों राक्षसों को भस्म कर दिए. इसे देखकर उक्त राक्षस की पत्नी अपने पति जालंधर के बारे में भगवान विष्णु से पूछी तो उन्होंने अपने विधा के बल पर उसका धड़ जो शरीर से अलग था, दिखाया और फिर उसे जिंदा करने के दौरान खुद उस जलंधर राक्षस के शरीर में प्रवेश कर गई. इसके बाद उस धार्मिक प्रवृत्ति की राक्षस की पत्नी भगवान विष्णु को अपना पति जैसा व्यवहार करने लगी, जिसके चलते उसका पतिव्रता भंग हो गया और उसके पति को कैलाश पर्वत पर भगवान शिव मार गिराए. इसकी जानकारी मिलते ही उक्त राक्षस की पत्नी ने भगवान विष्णु को श्राप देकर शालिग्राम पत्थर बना दिया.
वृंदा ऐसे बनी तुलसी: इसके बाद भगवान विष्णु तुरंत उसके श्राप से शालिग्राम पत्थर बन गए. इसके तीनों लोक में भगवान विष्णु के नहीं पहुंचने पर सभी देवी-देवताओं ने उक्त राक्षस की पत्नी से भगवान विष्णु को अपने श्राप से मुक्त करने के लिए आग्रह किया. उसने भगवान विष्णु को श्राप से मुक्त कर खुद को जलाकर सती हो गई. इसके बाद वहां एक तुलसी का पौधा उग आया. इसके बाद भगवान विष्णु उसके सतीत्व पर खुश होकर कहा कि तुम्हारा जब तक भोग नहीं लगेगा तब तक मैं नहीं जाऊंगा. मान्यता है कि जो कोई श्रद्धापूर्वक तुलसी विवाह संपन्न कराएगा उसका वैवाहिक जीवन खुशियों से भरा रहेगा.