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लॉकडाउन में कमाई ठप: 'कोई देता है तो खा लेते हैं... नहीं तो भूखे सोने को मजबूर'

'पहले प्रतिदिन एक हजार से दो हजार रुपये तक की लागत से लगभग 800 से हजार रुपये तक की आमदनी हो जाती थी. वहीं, अब इसके उलट रोजाना केवल 100 से 200 रुपये ही काफी मुश्किल से कमा पा रहे हैं.'

भुट्टा विक्रेताओं की बेबसी
भुट्टा विक्रेताओं की बेबसी
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Published : May 16, 2020, 12:26 PM IST

पटना: वैश्विक महामारी कोरोना से बचाव के लिये केंद्र सरकार की ओर से पूरे देश में लॉकडाउन जारी है. इस वजह से लगभग सभी काम धंधे ठप हैं. ऐसे हालात में जिले के ठेला और सड़कों पर रेहड़ी लगाने वाले विक्रेताओं की माली हालत बेहद खराब हो चुकी है. लॉकडाउन के कारण सड़क किनारे छोटे-मोटे सामान बेचकर अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करने वाले लोगों को सबसे ज्यादा परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. सड़क किनारे ठेला लगाकर भुट्टा बेचने वालों की कमाई पूर्ण रूप से बंद हो गई है.

पटना
कौशल्या देवी

गौरतलब है कि परिवार के भरण-पोषण के लिये कुछ कमाई की आस में भुट्टा विक्रेता सुबह जल्दी उठकर घर से निकल जाते हैं और देर शाम तक सड़क किनारे भुट्टा बेचने का काम करते हैं. वहीं, देश में लॉकडाउन घोषित होने के बाद से अब तक भुट्टा विक्रेता बचत के पैसे और स्थानीय लोगों की मदद से घर चला रहे थे. लेकिन अब ना तो घर में राशन बचा है और ना ही कोई स्थानीय मदद, इसलिए उन्हें भुट्टा बेचने के लिए दोबारा सड़क किनारे दुकान लगाना पड़ रहा है.

पटना
भुट्टा विक्रेता

'कमाई हुई लगभग खत्म'
अपनी बेबसी और लाचारी बताते हुये कौशल्या देवी ने बताया कि बिहार-झारखंड बंटवारा के समय से ही वो भुट्टा बेचने का काम कर रही हैं. पहले प्रतिदिन दो से तीन बोरे भुट्टा बेच लेती थीं, लेकिन अब लॉकडाउन के समय में सुबह से शाम तक महज 20 से 25 भुट्टों की ही बिक्री बमुश्किल हो पाती है. कौशल्या देवी ने बताया कि घर परिवार चलाना काफी मुश्किल हो गया है. पहले प्रतिदिन एक हजार से दो हजार रुपये तक की लागत से लगभग 800 से हजार रुपये तक की आमदनी हो जाती थी. वहीं, अब इसके उलट रोजाना केवल 100 से 200 रुपये ही काफी मुश्किल से कमा पा रहे हैं.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

'सरकार से मदद की आस'
वहीं, कुछ अन्य भुट्टा विक्रेताओं ने बताया कि बैठकर दिन काट रहे हैं. दिनभर ग्राहकों का इंतजार रहता है, कि कोई आ जाए तो कुछ कमाई हो जाए. सरकार की तरफ से भी कोई मदद नहीं मिल रहा है. हम लोग यही चाहते हैं कि सरकार थोड़ी मदद कर दे तो इस गुरबत भरे दिन में गुजारा हो जाय. सरकारी मदद नहीं मिलने से निराश विक्रेताओं ने बताया कि किसी तरह की कोई मदद नहीं मिल रही है. कुछ सामाजिक कार्यकर्ता लोग आते हैं. खाना दे जाते हैं तो खा लेते हैं, अन्यथा कभी-कभी भूखे भी सोना पड़ता है.

पटना
भुट्टा

पटना: वैश्विक महामारी कोरोना से बचाव के लिये केंद्र सरकार की ओर से पूरे देश में लॉकडाउन जारी है. इस वजह से लगभग सभी काम धंधे ठप हैं. ऐसे हालात में जिले के ठेला और सड़कों पर रेहड़ी लगाने वाले विक्रेताओं की माली हालत बेहद खराब हो चुकी है. लॉकडाउन के कारण सड़क किनारे छोटे-मोटे सामान बेचकर अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करने वाले लोगों को सबसे ज्यादा परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. सड़क किनारे ठेला लगाकर भुट्टा बेचने वालों की कमाई पूर्ण रूप से बंद हो गई है.

पटना
कौशल्या देवी

गौरतलब है कि परिवार के भरण-पोषण के लिये कुछ कमाई की आस में भुट्टा विक्रेता सुबह जल्दी उठकर घर से निकल जाते हैं और देर शाम तक सड़क किनारे भुट्टा बेचने का काम करते हैं. वहीं, देश में लॉकडाउन घोषित होने के बाद से अब तक भुट्टा विक्रेता बचत के पैसे और स्थानीय लोगों की मदद से घर चला रहे थे. लेकिन अब ना तो घर में राशन बचा है और ना ही कोई स्थानीय मदद, इसलिए उन्हें भुट्टा बेचने के लिए दोबारा सड़क किनारे दुकान लगाना पड़ रहा है.

पटना
भुट्टा विक्रेता

'कमाई हुई लगभग खत्म'
अपनी बेबसी और लाचारी बताते हुये कौशल्या देवी ने बताया कि बिहार-झारखंड बंटवारा के समय से ही वो भुट्टा बेचने का काम कर रही हैं. पहले प्रतिदिन दो से तीन बोरे भुट्टा बेच लेती थीं, लेकिन अब लॉकडाउन के समय में सुबह से शाम तक महज 20 से 25 भुट्टों की ही बिक्री बमुश्किल हो पाती है. कौशल्या देवी ने बताया कि घर परिवार चलाना काफी मुश्किल हो गया है. पहले प्रतिदिन एक हजार से दो हजार रुपये तक की लागत से लगभग 800 से हजार रुपये तक की आमदनी हो जाती थी. वहीं, अब इसके उलट रोजाना केवल 100 से 200 रुपये ही काफी मुश्किल से कमा पा रहे हैं.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

'सरकार से मदद की आस'
वहीं, कुछ अन्य भुट्टा विक्रेताओं ने बताया कि बैठकर दिन काट रहे हैं. दिनभर ग्राहकों का इंतजार रहता है, कि कोई आ जाए तो कुछ कमाई हो जाए. सरकार की तरफ से भी कोई मदद नहीं मिल रहा है. हम लोग यही चाहते हैं कि सरकार थोड़ी मदद कर दे तो इस गुरबत भरे दिन में गुजारा हो जाय. सरकारी मदद नहीं मिलने से निराश विक्रेताओं ने बताया कि किसी तरह की कोई मदद नहीं मिल रही है. कुछ सामाजिक कार्यकर्ता लोग आते हैं. खाना दे जाते हैं तो खा लेते हैं, अन्यथा कभी-कभी भूखे भी सोना पड़ता है.

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भुट्टा
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