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दिहाड़ी मजदूरों का दर्द: बिहार से हर दिन पहुंचते हैं झारखंड, फिर भी नहीं मिलती दो वक्त की रोटी

बिहार और दूसरे क्षेत्रों से हजारों की संख्या में आने वाले ये दिहाड़ी मजदूर हर दिन कोडरमा पहुंचते हैं. मजदूर कोडरमा स्टेशन पहुंच तो जाते हैं, लेकिन किसी को काम मिलता है तो किसी को भूखे पेट ही रात गुजारनी पड़ती है.

search of employment
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Published : Feb 16, 2020, 3:01 PM IST

कोडरमा/पटना: गया आसनसोल ईएमयू सवारी गाड़ी के कोडरमा स्टेशन पहुंचते ही आपा-धापी की स्थिति शुरू हो जाती है. कोडरमा स्टेशन से सटे बिहार के तमाम इलाकों से तकरीबन पांच हजार की संख्या में मजदूर हर रोज रोजगार की तलाश में कोडरमा पहुंचते हैं, लेकिन किसी को रोजगार मिलता है तो कोई निराश लौट जाता है.

मजदूरों की परेशानी और बढ़ी
दरअसल ईएमयू सवारी गाड़ी की टाइमिंग में बदलाव कर दिया गया है, जिससे इन मजदूरों की परेशानी और बढ़ गई है. अब यह ट्रेन जहां एक घंटे पहले खुलती है तो इसकी वापसी का समय भी पहले से एक घंटा विलम्ब हो गया है. ऐसे में सुबह तीन बजे से ही मजदूर रोजगार के लिए जद्दोजहद करते है जबकि वापस घर लौटते के लिए रात हो जाती है.

मजदूरों को मिलते हैं महज 400 रुपए
मजदूरों का कहना है कि 12 से 15 घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद इन मजदूरों को महज चार सौ रुपए ही आमदनी हो पाती है. आने-जाने और खाने के बाद जो कुछ बचता है उससे ही परिवार का गुजारा हो पाता है.

बाल मजदूर भी हैं शामिल
बता दें कि इन मजदूरों में कई बाल मजदूर भी होते हैं जो पढ़ाई की उम्र में पढ़ाई छोड़ मजदूरी कर रहे हैं. ऐसे बाल मजदूरों का कहना है कि गांव में रोजगार का कोई साधन नहीं है इसीलिए कम उम्र में घर परिवार से दूर यहां आकर मजदूरी करनी पड़ती है.

ये भी देखें- मंत्री बादल पत्रलेख ने प्रदीप यादव के कांग्रेस में आने किया समर्थन, कहा- निशिकांत दुबे के मंसूबे पर फिरेगा पानी

सरकार का नहीं है ध्यान
हालांकि बिहार और दूसरे क्षेत्रों से आने वाले ये दिहाड़ी मजदूर किसी पार्टी के वोट बैंक नहीं हैं. शायद यही वजह है कि आज ये हाशिये पर हैं इनकी ओर न तो सरकार ध्यान देती है और ना ही विपक्ष. ऐसे में इनकी परेशानी से किसी को कोई लेना-देना नहीं.

कोडरमा/पटना: गया आसनसोल ईएमयू सवारी गाड़ी के कोडरमा स्टेशन पहुंचते ही आपा-धापी की स्थिति शुरू हो जाती है. कोडरमा स्टेशन से सटे बिहार के तमाम इलाकों से तकरीबन पांच हजार की संख्या में मजदूर हर रोज रोजगार की तलाश में कोडरमा पहुंचते हैं, लेकिन किसी को रोजगार मिलता है तो कोई निराश लौट जाता है.

मजदूरों की परेशानी और बढ़ी
दरअसल ईएमयू सवारी गाड़ी की टाइमिंग में बदलाव कर दिया गया है, जिससे इन मजदूरों की परेशानी और बढ़ गई है. अब यह ट्रेन जहां एक घंटे पहले खुलती है तो इसकी वापसी का समय भी पहले से एक घंटा विलम्ब हो गया है. ऐसे में सुबह तीन बजे से ही मजदूर रोजगार के लिए जद्दोजहद करते है जबकि वापस घर लौटते के लिए रात हो जाती है.

मजदूरों को मिलते हैं महज 400 रुपए
मजदूरों का कहना है कि 12 से 15 घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद इन मजदूरों को महज चार सौ रुपए ही आमदनी हो पाती है. आने-जाने और खाने के बाद जो कुछ बचता है उससे ही परिवार का गुजारा हो पाता है.

बाल मजदूर भी हैं शामिल
बता दें कि इन मजदूरों में कई बाल मजदूर भी होते हैं जो पढ़ाई की उम्र में पढ़ाई छोड़ मजदूरी कर रहे हैं. ऐसे बाल मजदूरों का कहना है कि गांव में रोजगार का कोई साधन नहीं है इसीलिए कम उम्र में घर परिवार से दूर यहां आकर मजदूरी करनी पड़ती है.

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सरकार का नहीं है ध्यान
हालांकि बिहार और दूसरे क्षेत्रों से आने वाले ये दिहाड़ी मजदूर किसी पार्टी के वोट बैंक नहीं हैं. शायद यही वजह है कि आज ये हाशिये पर हैं इनकी ओर न तो सरकार ध्यान देती है और ना ही विपक्ष. ऐसे में इनकी परेशानी से किसी को कोई लेना-देना नहीं.

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