पटना: बिहार में अब तक खतरनाक रसायन और इलेक्ट्रॉनिक कचरे के संग्रहण या इसके निपटारे की कोई व्यवस्था नहीं हुई है. कई सालों से इस पर चर्चा जरूर हो रही है. इसे लेकर कई बार प्रयास भी हुए. लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं होने से ऐसे कचरे से निकलने वाले रेडिएशन का खतरा बिहार के लोगों पर मंडरा रहा है. राज्य की औद्योगिक इकाइयों की बात करें तो कोई अधिकारिक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है.
एक अनुमान के मुताबिक राज्य में डेढ़ सौ से ज्यादा औद्योगिक इकाइयों से हर साल करीब 76 सौ मीट्रिक टन खतरनाक अपशिष्ट निकल रहा है. इसमें से करीब 70% तो अकेले बरौनी रिफायनरी से ही निकलता है. हालांकि उसका निपटारा रिफाइनरी स्तर पर हो जाता है, लेकिन राज्य स्तर पर गौर करें तो औद्योगिक कचरा और ई-वेस्ट के निपटारे, उसके उपचार और उसके भंडारण की कोई सुविधा पूरे राज्य में फिलहाल उपलब्ध नहीं है.
ई-वेस्ट भी है खतरनाक
'ना सिर्फ औद्योगिक कचरा, बल्कि ई-वेस्ट भी काफी खतरनाक है. चाहे एलईडी टीवी के स्क्रीन टूटने पर निकलने वाली गैस हो या फिर मोबाइल स्क्रीन टूटने पर निकलने वाला गैस. दोनों काफी खतरनाक हैं. स्वास्थ्य पर बुरा असर डालते हैं. इस बारे में उद्योगपतियों ने और आईटी एक्सपर्ट ने सरकार को सलाह भी दी है. लेकिन अब तक इस दिशा में सरकार की तरफ से कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है. और जब कोई बड़ी दुर्घटना होती है तो उसके लिए सीधा और सारा दोष औद्योगिक इकाइयों पर मढ़ दिया जाता है.' - मुकेश कुमार, आईटी एक्सपर्ट और उद्योगपति
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नहीं है कोई जगह जहां कचरा फेंक सकें
'औद्योगिक इकाइयों को ही सारी जिम्मेदारी दे दी गई है. लेकिन इस दिशा में सरकार के स्तर से प्रयास होना चाहिए. इस बारे में मोबाइल, टीवी और लैपटॉप आदि रिपेयर करने वाले दुकानदार सुबोध कुमार कहते हैं कि ना तो पटना में और ना कहीं और ऐसी कोई जगह है, जहां हम इलेक्ट्रॉनिक कचरा फेंक सकें या पहुंचा सकें.' - रामलाल खेतान, अध्यक्ष, बिहार इंडस्ट्रीज एसोसिएशन
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क्या होती है परेशानी
- - औद्योगिक कचरे के भंडारण, ट्रीटमेंट और डिस्पोजल के लिए नहीं है कोई एकीकृत व्यवस्था
- - इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट के कलेक्शन और डिस्पोजल की भी बिहार में नहीं है कोई इंतजाम
आंकड़े के मुताबिक
- बिहार में पेट्रोलियम, गैस, एसिड और थर्मल पावर, चीनी, दवा, पेपर, प्लाई, टैक्सटाइल उत्पादन करनेवाली करीब 300 औद्योगिक इकाईयां हैं.
- इनसे करीब 7600 मीट्रिक टन खतरनाक कचरा निकलता है.
- इसमें से 70% से ज्यादा बरौनी रिफाइनरी से निकलता है.
खतरनाक अपशिष्ट
- शीशा, लोहा, कैमिकल, स्प्रिट, पेट्रो वेस्ट, चमड़ा आदि
2016 में बने कानून के मुताबिक
वर्ष 2016 में ई वेस्ट मैनेजमेंट पॉलिसी के तहत केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण परिषद ने मोबाइल कंपनियों के लिए लक्ष्य तय कर दिए थे. लेकिन मोबाइल कंपनियां इस लक्ष्य को राष्ट्रीय लक्ष्य का हवाला देते हुए पूरा करने का दावा करती है. खतरनाक कचरे के संबंध में वर्ष 2016 में जो कानून बनाया गया.
इसके तहत औद्योगिक इकाइयां विशेष परिस्थिति में कचरे का स्टोरेज कर सकती हैं. औद्योगिक इकाईयां अपने परिसर में 90 दिनों तक खतरनाक कचरे का स्टोरेज कर सकती हैं. इसके बाद संबंधित विशेष विभाग से विशेष अनुमति के बाद कंपनियां 180 दिनों तक स्टोर कर सकती हैं. लेकिन इसके बाद किसी भी स्थिति में उसका निस्तारण आवश्यक है.
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आईटी कंपनीज के साथ होती रहती हैं बैठकें
'जो लक्ष्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की तरफ से मोबाइल कंपनियों को दिया गया था. वह बिहार में पूरा नहीं होता. इस गाइडलाइन में जो खामियां हैं, उसे लेकर बिहार सरकार की तरफ से केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को पत्र लिखकर सलाह मांगी गई थी. लेकिन इस बारे में स्पष्ट गाइडलाइन या दिशा निर्देश अब तक प्राप्त नहीं हुआ है. बिहार में पर्यावरण विभाग की तरफ से समय-समय पर औद्योगिक इकाइयों और ई-वेस्ट से जुड़ी बातों के लिए आईटी कंपनीज के साथ बैठक होती है. जिसमें औद्योगिक कचरा और वेस्ट मैनेजमेंट की समीक्षा होती है और उन्हें दिशा निर्देश दिए जाते हैं.' - दीपक कुमार सिंह, प्रधान सचिव, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग
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कबाड़ियों के माध्यम से खपाए जाते थे वेस्ट मटेरियल
कुछ साल पहले तक इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट मटेरियल भी कबाड़ियों के माध्यम से ही खपाए जाते थे. 2016 के बाद इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद बेचने वाली कंपनियों की ही जिम्मेदारी दी गई थी कि कचरे का उचित निस्तारण भी अपने स्तर से करेंगे. लेकिन इस लेवल पर भी जमकर अनदेखी हो रही है.
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टेंडर में नहीं है किसी की दिलचस्पी
उद्योग विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के दिशा निर्देश से पटना और हाजीपुर समेत आठ जगहों पर सीआरपी केंद्र खोले जाने हैं. इस दिशा में कई बार बैठक हुई है. कई बार ऐसे केंद्र खोलने के लिए टेंडर निकाला गया. लेकिन टेंडर लेने में किसी की दिलचस्पी नहीं होने के कारण यह मामला अब तक टलता रहा है.
बिहार में इलेक्ट्रॉनिक कचरे की बात करें, तो इसके निस्तारण के लिए कोई यूनिट नहीं है. जिसकी वजह से मोबाइल और लैपटॉप कंपनियों को कचरे के निस्तारण में परेशानी हो रही है. फिलहाल दिल्ली, मुंबई आदि शहरों में भेज कर बिहार के लिए इलेक्ट्रॉनिक कचरे का निस्तारण हो रहा है.