पटना: बिहार में पिछले कुछ महीनों से बीजेपी और जेडीयू के बीच कई मुद्दों पर गहरे मतभेद उभरकर सामने आए हैं. बिहार विधानसभा स्पीकर विजय सिन्हा और सीएम नीतीश के बीच तकरार (Bihar Speaker Vijay Sinha and CM Nitish Issue) में दोनों दलों के बीच गहरी खाई पैदा हो गई है. हालांकि, मुख्यमंत्री की पहल पर अध्यक्ष के साथ विवाद को सुलझाया गया और विधानसभा अध्यक्ष बुधवार को सदन में आए. विपक्ष ने सदन की कार्यवाही नहीं चलने दी, दो बार सदन की कार्रवाई को स्थगित करना पड़ा.
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BJP-JDU कितने दूर, कितने पास: फिलहाल, बीजेपी और जेडीयू के बीच सुलह तो हो गई, लेकिन कसक दोनों दलों के नेताओं में है. बीजेपी जहां बिहार में आत्मनिर्भर बनना चाहती है. वहीं, जेडीयू भी अपनी ताकत में बढ़ोतरी करना चाहती है. वर्तमान में बिहार की राजनीति (Bihar politics) में राजनीतिक दलों के पास सीमित विकल्प हैं. लिहाजा बड़े राजनीतिक उलटफेर की संभावना नहीं दिखती है. नीतीश कुमार महागठबंधन छोड़कर आए हैं और अब उनकी महागठबंधन में वापसी उसी शर्त पर होगी, जब वह मुख्यमंत्री की कुर्सी तेजस्वी के लिए छोड़ेंगे. जेडीयू के लिए ऐसा करना आत्मघाती होगा.
JDU के सामने विकल्प: जेडीयू के सामने दूसरा विकल्प चुनाव में जाना है. अगर बीजेपी से उसकी ठन जाती है और आरजेडी उन्हें तवज्जो नहीं देती है, तो ऐसी स्थिति में उनके पास चुनाव में जाने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं होगा. बीजेपी के लिए भी वर्तमान राजनीतिक परिस्थिति में कई विकल्प नहीं हैं. नीतीश कुमार अगर केंद्र की राजनीति में जाते हैं तो ऐसी स्थिति में बीजेपी को सीएम पद मिल सकता है.
BJP के सामने विकल्प: बीजेपी के लिए एक और विकल्प यह है कि आरजेडी रणनीतिक तौर पर उसे समर्थन करें और बीजेपी राज्य में अल्पमत की सरकार चलाए. ऐसा तभी संभव होगा जब विश्वास मत के दौरान आरजेडी सदन से वॉकआउट कर जाए. बीजेपी के लिए तीसरा विकल्प यह होगा कि पार्टी चुनाव में जाने का फैसला करे. उत्तर प्रदेश की तर्ज पर बिहार में भी पार्टी अकेले सरकार बनाना चाहेगी.
''भारतीय जनता पार्टी ने चार राज्यों में जिस तरह से सफलता पाई है, जिसके बाद से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के ऊपर प्रेश की राजनीति की जा रही है. ताकि माननीय मुख्यमंत्री कुछ ना कुछ बीजेपी और जेडीयू के रिश्तों पर बयान दें, कुछ ऐसा बोल दें ताकि बीजेपी को लोग उन पर दोषारोपण कर सकें. चार राज्यों के चुनाव के नतीजों के बाद बीजेपी नेता लगातार नीतीश कुमार के लिए परेशानी खड़ी कर रहे हैं और उनकी रणनीति यह है कि नीतीश कुमार के खिलाफ लगातार बयानबाजी की जाए, जिससे वह बीजेपी के लिए कुर्सी छोड़ दें.''- मुन्ना तिवारी, विधायक, कांग्रेस
''बीजेपी की मंशा यह है कि किसी तरह से हम सत्ता तक पहुंच जाएं और उसकी पूरी कोशिश यही है. अब बीजेपी यह चाहती है कि हम सदन को अध्यक्ष के सवाल पर डिस्टर्ब करके रखे. बीजेपी बिहार में अकेले दम पर सरकार बनाना चाहती है और इसी दिशा में काम भी कर रही है.''- अरुण कुमार, माले विधायक
''हम लोगों का सबका साथ, सबका विकास और सबका सम्मान नारा है, तो इस फेरा में ये क्यों पड़े हुए हैं. हम लोग ना हथियार डालने वाले लोग हैं और ना चलाने वाले लोग हैं. हम लोग ये कहते हैं कि यही समय पर सही निर्णय आदमी को लेना चाहिए. हम लोगों ने भी आपके सामने दुख प्रकट किया था, लेकिन समस्या का समाधान हो गया तो आप चाहते क्या है कि बेवजह एक ही मुद्दे पर लगे रहे सब, विधनसभा क्या ऐसे ही चलेगा. बीजेपी पहले से ही आत्मनिर्भर है और बिहार में हम मजबूत स्थिति में हैं.''- पवन जायसवाल, बीजेपी विधायक
''बीजेपी का अगला टारगेट बिहार है. अपने दम पर बीजेपी बिहार में सरकार बनाना चाहेगी, लेकिन 2024 तक नीतीश कुमार के साथ रहेगी, इसकी संभावना प्रबल है. नीतीश जब तक बीजेपी के एजेंडे पर चलते रहेंगे, तब तक पर बात नहीं होगी. लेकिन, 2024 में अगर नरेंद्र मोदी की वापसी होती है. तब उसके बाद नीतीश के लिए राहें आसान नहीं होंगी.''- कौशलेंद्र प्रियदर्शी, वरिष्ठ पत्रकार
विधानसभा में सीटों का गणित: आइए बिहार विधानसभा में समीकरण पर नज़र डालते हैं. बिहार में राजद के सबसे ज्यादा 75 विधायक हैं. दूसरे स्थान पर बीजेपी है जिनके कुल 74 विधायक हैं. जेडीयू कोटे में विधायकों की संख्या 45 है. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के पक्ष में विधायकों की कुल संख्या जहां 126 है. वहीं, राजद के पक्ष में 115 विधायकों की संख्या होगी. वह भी तब जब एआईएमआईएम के 5 विधायक साथ होंगे. उत्तर प्रदेश चुनाव नतीजों के बाद भाजपा नेताओं का उत्साह सातवें आसमान पर है और अब वह यूपी के तर्ज पर बिहार में भी अकेले सरकार बनाने की चाह रखती है. पार्टी नेता अब बिहार में भी भाजपा को आत्मनिर्भर बनाना चाहते हैं.
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