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हाईब्रिड फलों से मिठास नदारद, रंग और चमक देखकर फ्रूट खरीदने वालों को मिल रहा धोखा - etv bharat news

कई तरह के फलों के लिए बिहार प्रसिद्ध रहा है. चाहे मुजफ्फरपुर की लीची हो या फिर हाजीपुर का केला, खाने-पीने के शौकीन राज्य में अब ऐसे फल और सब्जियों ने अपनी दस्तक दी है, जो रंग-रूप में तो शानदार हैं लेकिन जब स्वाद की बात आती है तो खाने वाले को धोखा मिल रहा है.

पटना के बाजार में हाइब्रिड फल
पटना के बाजार में हाइब्रिड फल
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Published : Dec 23, 2022, 12:18 PM IST

पटना के बाजार में हाइब्रिड फल

पटना: बिहार की राजधानी पटना के बाजार (Patna Fruit Market) में इस समय निहायत ही खूबसूरत रंग रूप में अमरूद, संतरे, बेर और केले बिक रहे हैं, जो देखने में फ्रेश और खूबसूरत हैं लेकिन जब बात स्वाद की है तो वो पूरी तरह से कसौटी पर खरे नहीं उतर पा रहे हैं. दरअसल फलों और सब्जियों के बाजार में एक बड़े वर्ग पर वैसे फलों का कब्जा हो गया है, जो हाइब्रिड (Tasteless Hybrid Fruits At Market In Patna) कहे जा रहे हैं. इन हाइब्रिड फलों का रंग इतना चोखा है कि देखते ही मन ललचा जा रहा है लेकिन खाने पर न तो वैसा स्वाद मिल रहा है और न ही सुगंध. खास बात यह कि इन फलों के आने से देसी किस्म के फल कमजोर हो रहे हैं और बाजार में उनकी उपस्थिति कम होती जा रही है.

ये भी पढ़ेंः कोरोना संकट के बीच अचानक से बढ़ गए फलों के दाम, ये है वजह

रोज रायपुर से आ रहे फलः राज्य की सबसे बड़ी फल मंडी बाजार समिति में बड़ी संख्या में फलों की आवक प्रतिदिन हो रही है. बिहार के बाजार में जहां पहले देसी अमरूद बड़े पैमाने पर मिलते थे. उसके बाद इलाहाबादी प्रजाति के अमरूद अपना स्थान बनाया, लेकिन अब छत्तीसगढ़ से आने वाला रायपुरिया अमरूद पूरी तरीके से बाजार पर कब्जा कर चुका है. इसी प्रकार महाराष्ट्र और झारखंड से आने वाला शरीफा अपना पैर पसार चुका है. हाजीपुर के चिनिया किस्म के केले के लिए फेमस बिहार में अब हरी छाल वाले विशेष प्रजाति के केले भी खूब मिल रहे हैं. वही गांव गांव में मिलने वाली बेर अब विलुप्त हो चुके हैं. उनकी जगह पर वैसे हाइब्रिड बेर बाजार में बिक रहे हैं जो देखने में नींबू और संतरे के जैसे लग रहे हैं. रही बात स्वाद की तो यह स्वाद के मामले में कमजोर पड़ रहे हैं.



देखने में शानदार, स्वाद बेकारः बाजार समिति के बड़े फल व्यापारी शौकत अली बताते हैं कि पटना के बाजार में बिक रहे अमरूद छत्तीसगढ़ के रायपुर से पटना में आ रहे हैं. यह देखने में खूबसूरत तो हैं लेकिन स्वाद में दम नहीं हैं. अमरूद की खपत के बारे में शौकत बताते हैं कि प्रतिदिन 15 सौ से दो हजार पेटी की खपत है. अमरूद पटना से पूरे बिहार में जाता है. थोक में 15 किलोग्राम वाली पेटी पांच सौ रुपये में और 20 किलोग्राम की पेटी 700 से लेकर 900 तक में बिक रही है. वो यह भी कहते हैं कि पूरे बिहार में अमरूद की बिक्री पर असर पड़ा है.

"अमरूद में इलाहाबादी का जो स्वाद है, उसका कोई जोड़ नहीं है. इलाहाबादी अमरूद को पटना में भेजने पर किसानों को लाभ नहीं होता है. रायपुर का माल सस्ता बिकता है इसलिए रायपुर वाले किसान अमरूद भेज रहे हैं जबकि इलाहाबाद वाले नहीं भेज रहे हैं. अमरूद की खपत प्रतिदिन 15 सौ से दो हजार पेटी की खपत है. अमरूद पटना से पूरे बिहार में जाता है"- शौकत अली, थोक फल विक्रेता

हाइब्रिड फलों को बेचने में मुनाफाः थोक में 40 से 45 रुपये प्रति किलो पड़ने वाले रायपुरिया खुदरा में 90 से 100 रुपए प्रति किलो तक बिक रहे हैं. खुदरा फल विक्रेता प्रति किलो 40 से 50 रुपये का मुनाफा कमा रहे हैं. जिसके कारण वह हाइब्रिड फलों को ही बेचने पर जोर दे रहे हैं. इसी प्रकार थोक में 40 से 50 रुपए प्रति किलो पड़ने वाली बेर खुदरा में 100 रुपए किलो तक बिक रही है. वैसे ही खुदरा में 120 रुपये किलो तक बिकने वाला शरीफा थोक में 70 से 80 रुपए प्रति किलो में मिल जा रहा है. प्रति किलो बढ़िया मुनाफा हो जाने के कारण खुदरा विक्रेता इन फलों के ही बेचने पर जोर दे रहे हैं.

बढ़ती डिमांड के कारण हाइब्रिड करना ही पड़ेगाः वहीं, कृषि अनुसंधान विभाग के वरीय वैज्ञानिक डॉ रणधीर कुमार बताते हैं कि दरअसल हुआ यह है कि हमारे देश और राज्य की जो हालात हैं, आबादी लगातार बढ़नी है. अगर साग सब्जी की बात करें तो प्रतिदिन प्रति व्यक्ति 300 ग्राम सब्जी की जरूरत है जल की उपलब्धता प्रति व्यक्ति डेढ़ सौ ग्राम की है. हम सब्जी उत्पादन में तीसरे स्थान पर आ गए, बावजूद हमारी जो एवरेज उत्पादकता है, वह राष्ट्रीय उत्पादकता से पीछे है. इसी प्रकार फल में भी हमारे हालात गंभीर हैं. हम अपनी जनता को नहीं दे पा रहे हैं. पूरे देश की स्थिति भी करीब यही है. प्रति व्यक्ति 400 ग्राम फल चाहिए लेकिन उपलब्धता 200 ग्राम तक की है. इस गैप को पूरा करने के लिए हमें हाइब्रिड तक जाना ही पड़ रहा है. उत्पादन को क्वांटिफाई करना पड़ा है. स्वाद में तो थोड़ा फर्क पड़ेगा.

"देसी स्वाद जो हम पहले से खाते रहे हैं वह अब नहीं मिलेगा. क्वालिटी पर बहुत जोर नहीं दिया गया है. पहले की किस्में रसीली थी, लोकल मार्केट में खपत के लिए बहुत अच्छी थी लेकिन आज की जो किस्मे हैं, वह दूर के बाजार के लिए बेहतर हैं. दूर के बाजार के लिए हमें हाइब्रिड में जाना पड़ रहा है. हाइब्रिड में उसकी चमड़ी मोटी करनी पड़ेगी, गुदे बढ़ाने पड़ेंगे, रस की मात्रा कम करनी पड़ेगी तो उसका स्वाद तो बदलेगा. हम अपनी जरूरत के हिसाब से हाइब्रिड पैदा कर रहे हैं. नहीं पैदा करेंगे तो हमारी आबादी फीड नहीं कर पाएंगे. ज्यादा उत्पादन भी चाहिए और कम पूंजी में कंपनी को ज्यादा मुनाफा भी चाहिए. ऐसे में हाइब्रिड ही हमारे लिए ऑप्शन बचा हुआ है"- डॉक्टर रणधीर कुमार, कृषि वैज्ञानिक

पटना के बाजार में हाइब्रिड फल

पटना: बिहार की राजधानी पटना के बाजार (Patna Fruit Market) में इस समय निहायत ही खूबसूरत रंग रूप में अमरूद, संतरे, बेर और केले बिक रहे हैं, जो देखने में फ्रेश और खूबसूरत हैं लेकिन जब बात स्वाद की है तो वो पूरी तरह से कसौटी पर खरे नहीं उतर पा रहे हैं. दरअसल फलों और सब्जियों के बाजार में एक बड़े वर्ग पर वैसे फलों का कब्जा हो गया है, जो हाइब्रिड (Tasteless Hybrid Fruits At Market In Patna) कहे जा रहे हैं. इन हाइब्रिड फलों का रंग इतना चोखा है कि देखते ही मन ललचा जा रहा है लेकिन खाने पर न तो वैसा स्वाद मिल रहा है और न ही सुगंध. खास बात यह कि इन फलों के आने से देसी किस्म के फल कमजोर हो रहे हैं और बाजार में उनकी उपस्थिति कम होती जा रही है.

ये भी पढ़ेंः कोरोना संकट के बीच अचानक से बढ़ गए फलों के दाम, ये है वजह

रोज रायपुर से आ रहे फलः राज्य की सबसे बड़ी फल मंडी बाजार समिति में बड़ी संख्या में फलों की आवक प्रतिदिन हो रही है. बिहार के बाजार में जहां पहले देसी अमरूद बड़े पैमाने पर मिलते थे. उसके बाद इलाहाबादी प्रजाति के अमरूद अपना स्थान बनाया, लेकिन अब छत्तीसगढ़ से आने वाला रायपुरिया अमरूद पूरी तरीके से बाजार पर कब्जा कर चुका है. इसी प्रकार महाराष्ट्र और झारखंड से आने वाला शरीफा अपना पैर पसार चुका है. हाजीपुर के चिनिया किस्म के केले के लिए फेमस बिहार में अब हरी छाल वाले विशेष प्रजाति के केले भी खूब मिल रहे हैं. वही गांव गांव में मिलने वाली बेर अब विलुप्त हो चुके हैं. उनकी जगह पर वैसे हाइब्रिड बेर बाजार में बिक रहे हैं जो देखने में नींबू और संतरे के जैसे लग रहे हैं. रही बात स्वाद की तो यह स्वाद के मामले में कमजोर पड़ रहे हैं.



देखने में शानदार, स्वाद बेकारः बाजार समिति के बड़े फल व्यापारी शौकत अली बताते हैं कि पटना के बाजार में बिक रहे अमरूद छत्तीसगढ़ के रायपुर से पटना में आ रहे हैं. यह देखने में खूबसूरत तो हैं लेकिन स्वाद में दम नहीं हैं. अमरूद की खपत के बारे में शौकत बताते हैं कि प्रतिदिन 15 सौ से दो हजार पेटी की खपत है. अमरूद पटना से पूरे बिहार में जाता है. थोक में 15 किलोग्राम वाली पेटी पांच सौ रुपये में और 20 किलोग्राम की पेटी 700 से लेकर 900 तक में बिक रही है. वो यह भी कहते हैं कि पूरे बिहार में अमरूद की बिक्री पर असर पड़ा है.

"अमरूद में इलाहाबादी का जो स्वाद है, उसका कोई जोड़ नहीं है. इलाहाबादी अमरूद को पटना में भेजने पर किसानों को लाभ नहीं होता है. रायपुर का माल सस्ता बिकता है इसलिए रायपुर वाले किसान अमरूद भेज रहे हैं जबकि इलाहाबाद वाले नहीं भेज रहे हैं. अमरूद की खपत प्रतिदिन 15 सौ से दो हजार पेटी की खपत है. अमरूद पटना से पूरे बिहार में जाता है"- शौकत अली, थोक फल विक्रेता

हाइब्रिड फलों को बेचने में मुनाफाः थोक में 40 से 45 रुपये प्रति किलो पड़ने वाले रायपुरिया खुदरा में 90 से 100 रुपए प्रति किलो तक बिक रहे हैं. खुदरा फल विक्रेता प्रति किलो 40 से 50 रुपये का मुनाफा कमा रहे हैं. जिसके कारण वह हाइब्रिड फलों को ही बेचने पर जोर दे रहे हैं. इसी प्रकार थोक में 40 से 50 रुपए प्रति किलो पड़ने वाली बेर खुदरा में 100 रुपए किलो तक बिक रही है. वैसे ही खुदरा में 120 रुपये किलो तक बिकने वाला शरीफा थोक में 70 से 80 रुपए प्रति किलो में मिल जा रहा है. प्रति किलो बढ़िया मुनाफा हो जाने के कारण खुदरा विक्रेता इन फलों के ही बेचने पर जोर दे रहे हैं.

बढ़ती डिमांड के कारण हाइब्रिड करना ही पड़ेगाः वहीं, कृषि अनुसंधान विभाग के वरीय वैज्ञानिक डॉ रणधीर कुमार बताते हैं कि दरअसल हुआ यह है कि हमारे देश और राज्य की जो हालात हैं, आबादी लगातार बढ़नी है. अगर साग सब्जी की बात करें तो प्रतिदिन प्रति व्यक्ति 300 ग्राम सब्जी की जरूरत है जल की उपलब्धता प्रति व्यक्ति डेढ़ सौ ग्राम की है. हम सब्जी उत्पादन में तीसरे स्थान पर आ गए, बावजूद हमारी जो एवरेज उत्पादकता है, वह राष्ट्रीय उत्पादकता से पीछे है. इसी प्रकार फल में भी हमारे हालात गंभीर हैं. हम अपनी जनता को नहीं दे पा रहे हैं. पूरे देश की स्थिति भी करीब यही है. प्रति व्यक्ति 400 ग्राम फल चाहिए लेकिन उपलब्धता 200 ग्राम तक की है. इस गैप को पूरा करने के लिए हमें हाइब्रिड तक जाना ही पड़ रहा है. उत्पादन को क्वांटिफाई करना पड़ा है. स्वाद में तो थोड़ा फर्क पड़ेगा.

"देसी स्वाद जो हम पहले से खाते रहे हैं वह अब नहीं मिलेगा. क्वालिटी पर बहुत जोर नहीं दिया गया है. पहले की किस्में रसीली थी, लोकल मार्केट में खपत के लिए बहुत अच्छी थी लेकिन आज की जो किस्मे हैं, वह दूर के बाजार के लिए बेहतर हैं. दूर के बाजार के लिए हमें हाइब्रिड में जाना पड़ रहा है. हाइब्रिड में उसकी चमड़ी मोटी करनी पड़ेगी, गुदे बढ़ाने पड़ेंगे, रस की मात्रा कम करनी पड़ेगी तो उसका स्वाद तो बदलेगा. हम अपनी जरूरत के हिसाब से हाइब्रिड पैदा कर रहे हैं. नहीं पैदा करेंगे तो हमारी आबादी फीड नहीं कर पाएंगे. ज्यादा उत्पादन भी चाहिए और कम पूंजी में कंपनी को ज्यादा मुनाफा भी चाहिए. ऐसे में हाइब्रिड ही हमारे लिए ऑप्शन बचा हुआ है"- डॉक्टर रणधीर कुमार, कृषि वैज्ञानिक

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