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आइये जानें मंडल आयोग के बारे में, जिसके लागू होने से देश में क्या कुछ बदला...

भारत में मंडल आयोग को लागू होने के तीस वर्ष पूरे हो गए हैं. इस आयोग का गठन देश में पिछड़े तबके की सामाजिक बदहाली को दूर करने और बराबरी में खड़े होने के लिए किया गया था. आइए जानते हैं मंडल आयोग की मांग से लेकर लागू होने तक की कहानी...

mandal commission
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Published : Aug 7, 2021, 1:31 PM IST

पटना: मंडल आयोग (Mandal Commission) ने भारत की सियासत का नक्शा हमेशा के लिए बदल दिया था. संविधान के लागू होने के बाद पिछड़े वर्ग, अनुसूचित जाति/जनजाति पर कई प्रकार के प्रश्न उठे. जिसके बाद 1990 में तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह (Vishwanath Pratap Singh) ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने का एलान संसद में किया.

ये भी पढ़ें: मंडल कमीशन के गठन से लेकर लागू होने तक की पूरी कहानी

मंडल आयोग की सिफारिश के मुताबिक पिछड़े वर्ग को सरकारी नौकरी में 27 फीसदी आरक्षण देने की बात कही गई. आइए जानते हैं मंडल आयोग के मांग से लेकर इसके लागू होने तक की पूरी कहानी.

सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की स्थिति जानने के लिए 20 दिसंबर, 1978 को मोरारजी देसाई की सरकार ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल की अध्यक्षता में छह सदस्यीय पिछड़ा वर्ग आयोग के गठन की घोषणा की. यह मंडल आयोग के नाम से चर्चित हुआ.

मंडल आयोग ने ही सरकारी नौकरियों में पिछडे़ वर्गों के लोगों के लिए 27 फीसदी आरक्षण की सिफारिश की थी. इस आयोग का जमकर विरोध भी हुआ. 25 अगस्त को जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी में छात्रों ने बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल के जन्‍मदिन पर मंडल दिवस का आयोजन किया गया. मंडल आंदोलन के अग्रणी नेताओं में से एक शरद यादव इस कार्यक्रम में शामिल बोलते हुए कहा कि बराबरी का समाज बनाने के लिए जाति पर चोट करना जरूरी है.

मोरारजी देसाई के नेतृत्व में बनी पहली गैर कांग्रेसी ने 20 दिसंबर,1978 को बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल की अगुवाई में नए आयोग की घोषणा की. जिसे मंडल आयोग के नाम से जाना गया. मंडल आयोग ने 12 दिसंबर,1980 को अपनी रिपोर्ट फाइनल किया, तब तक मोरारजी देसाई की सरकार गिर चुकी थी।इंदिरा गांधी दुबारा सत्ता में आ चुकी थी.

ये भी पढ़ें: सामाजिक न्याय के लिए याद किए जाते हैं वीपी सिंह

इस रिपोर्ट में 11 संकेतकों का उपयोग करते हुए सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक आयोग ने 3,743 विभिन्न जातियों, समुदायों की पहचान और अन्य पिछड़ वर्ग के सदस्यों के रूप में की थी. यह अनुमान लगाया गया है कि ओबीसी श्रेणी में कुल आबादी का 52 प्रतिशत शामिल है.

जब वी पी सिंह प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने मंडल आयोग की सिफारिश को कुछ बदलाव के साथ लागू किया, जिसका जमकर विरोध हुआ. मंडल आयोग की अधिसूचना 13 अगस्त 1990 को जारी हुई.

मंडल आयोग के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन के दौरान दिल्ली के देशबंधु कॉलेज के राजीव गोस्वामी ने खुद को आग लगा ली. इससे पूरे उत्तर भारत में हिंसक विरोध प्रदर्शन और घटनाएं होती रहीं.

सर्वोच्च न्यायालय ने मंडल आयोग की सिफारिशों को बरकरार रखा, यह 16 नवंबर 1992 को इंद्रा साहनी बनाम संघ के मामले में एक निर्णय दिया गया, जबकि सामाजिक रूप से उन्नत व्यक्तियों, वर्गों के बहिष्कार के लिए ओबीसी के लिए 27 फीसदी आरक्षण को बरकरार रखा गया. ओबीसी और सरकार को इस क्रीमी लेयर की पहचान के लिए मानदंड विकसित करने का निर्देश दिया गया.

सितंबर 1993 में केंद्र और राज्य सरकारों के सभी मंत्रियों के विभागों के बीच सिफारिशों को स्वीकर कर लिया गया और प्रसारित किया गया. इशमें ओबीसी समुदायों के लिए आरक्षण लाया गया था.

केंद्र सरकार के संस्थानों में ओबीसी आरक्षण के लिए सिफारिश अंततह 1992 में लागू की गई थी, जबकि शिक्षा कोटा 2006 में लागू हुआ था.

ये भी पढ़ें: आज केंद्र के खिलाफ हुंकार भरेंगे तेजस्वी, जातीय जनगणना पर आर-पार के मूड में RJD

ओबीसी के कल्याण पर एक संसदीय पैनल ने फरवरी 2019 की अपनी रिपोर्ट में उल्लेख किया था कि 1997 के बाद से आय मानदंडों के चार संशोधनों के बावजूद, ओबीसी के पक्ष में आरक्षित 27 प्रतिशत रिक्त पदों को नहीं भरा जा रहा था.

समिति ने कहा कि एक मार्च 2016 को केंद्र सरकार के पदों और सेवाओं में ओबीसी के प्रतिनिधित्व के संबंध में 78 मंत्रालयों और विभागों से प्राप्त आंकड़े केंद्र सरकार के मंत्रालयों में खराब ओबीसी अधिभोग स्तरों को दर्शाते हैं. अक्टूबर 2017 में नरेंद्र मोदी सरकार ने सेवानिवृत्त दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जी। रोहिणी की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया.

ओबीसी में 6,000 जातियों और समुदायों में से, केवल 40 ऐसे समुदायों ने केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश और सिविल सेवाओं में भर्ती के लिए आरक्षण लाभ का 50 प्रतिशत प्राप्त किया था. पैनल ने आगे पाया कि 20 प्रतिशत से अधिक ओबीसी समुदायों को 2014 से 2018 तक लाभ देने के लिए कोटा नहीं मिला.

बता दें कि सरकारी नौकरियों में आरक्षण के अलावा मंडल आयोग की जो प्रमुख सिफारिश थी. उनमें जमींदारी प्रथा को खत्म करने के लिए भूमि सुधार कानून लागू किया जाये क्योंकि पिछड़े वर्गों का सबसे बड़ा दुश्मन जमींदारी प्रथा थी. सरकार द्वारा अनुबंधित जमीन को न केवल ST/ST को दिया जाये बल्कि OBC को भी इसमें शामिल किया जाये.

इसके अलावा, केंद्र और राज्य सरकारों में OBC के हितों की सुरक्षा के लिए अलग मंत्रालय/विभाग बनाये जाये. केंद्र और राज्य सरकारों के अधीन चलने वाली वैज्ञानिक, तकनीकी तथा प्रोफेशनल शिक्षण संस्थानों में दाखिले के लिए OBC वर्गों के छात्र-छात्राओं के लिए 27 फीसदी आरक्षण लागू किया जाये.

साथ ही, ओबीसी की आबादी वाले क्षेत्रों में वयस्क शिक्षा केंद्र तथा पिछड़ें वर्गों के छात्र-छात्राओं के लिए आवासीय विद्यालय खोले जाए. ओबीसी छात्रों को रोजगार परक शिक्षा दी जाये.

फिलहाल, मंडल आयोग की सिफारिशों को देखें तो इसके सिर्फ दो बड़े बिंदुओं पर ही कुछ काम हुआ है. पहला, केंद्र सरकार की नौकरियों में ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण और दूसरा केंद्र सरकार के उच्च शिक्षा संस्थानों के एडमिशन में ओबीसी का 27 फीसदी आरक्षण. बाकी सिफारिशें धूल फांक रही हैं.

पटना: मंडल आयोग (Mandal Commission) ने भारत की सियासत का नक्शा हमेशा के लिए बदल दिया था. संविधान के लागू होने के बाद पिछड़े वर्ग, अनुसूचित जाति/जनजाति पर कई प्रकार के प्रश्न उठे. जिसके बाद 1990 में तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह (Vishwanath Pratap Singh) ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने का एलान संसद में किया.

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मंडल आयोग की सिफारिश के मुताबिक पिछड़े वर्ग को सरकारी नौकरी में 27 फीसदी आरक्षण देने की बात कही गई. आइए जानते हैं मंडल आयोग के मांग से लेकर इसके लागू होने तक की पूरी कहानी.

सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की स्थिति जानने के लिए 20 दिसंबर, 1978 को मोरारजी देसाई की सरकार ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल की अध्यक्षता में छह सदस्यीय पिछड़ा वर्ग आयोग के गठन की घोषणा की. यह मंडल आयोग के नाम से चर्चित हुआ.

मंडल आयोग ने ही सरकारी नौकरियों में पिछडे़ वर्गों के लोगों के लिए 27 फीसदी आरक्षण की सिफारिश की थी. इस आयोग का जमकर विरोध भी हुआ. 25 अगस्त को जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी में छात्रों ने बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल के जन्‍मदिन पर मंडल दिवस का आयोजन किया गया. मंडल आंदोलन के अग्रणी नेताओं में से एक शरद यादव इस कार्यक्रम में शामिल बोलते हुए कहा कि बराबरी का समाज बनाने के लिए जाति पर चोट करना जरूरी है.

मोरारजी देसाई के नेतृत्व में बनी पहली गैर कांग्रेसी ने 20 दिसंबर,1978 को बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल की अगुवाई में नए आयोग की घोषणा की. जिसे मंडल आयोग के नाम से जाना गया. मंडल आयोग ने 12 दिसंबर,1980 को अपनी रिपोर्ट फाइनल किया, तब तक मोरारजी देसाई की सरकार गिर चुकी थी।इंदिरा गांधी दुबारा सत्ता में आ चुकी थी.

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इस रिपोर्ट में 11 संकेतकों का उपयोग करते हुए सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक आयोग ने 3,743 विभिन्न जातियों, समुदायों की पहचान और अन्य पिछड़ वर्ग के सदस्यों के रूप में की थी. यह अनुमान लगाया गया है कि ओबीसी श्रेणी में कुल आबादी का 52 प्रतिशत शामिल है.

जब वी पी सिंह प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने मंडल आयोग की सिफारिश को कुछ बदलाव के साथ लागू किया, जिसका जमकर विरोध हुआ. मंडल आयोग की अधिसूचना 13 अगस्त 1990 को जारी हुई.

मंडल आयोग के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन के दौरान दिल्ली के देशबंधु कॉलेज के राजीव गोस्वामी ने खुद को आग लगा ली. इससे पूरे उत्तर भारत में हिंसक विरोध प्रदर्शन और घटनाएं होती रहीं.

सर्वोच्च न्यायालय ने मंडल आयोग की सिफारिशों को बरकरार रखा, यह 16 नवंबर 1992 को इंद्रा साहनी बनाम संघ के मामले में एक निर्णय दिया गया, जबकि सामाजिक रूप से उन्नत व्यक्तियों, वर्गों के बहिष्कार के लिए ओबीसी के लिए 27 फीसदी आरक्षण को बरकरार रखा गया. ओबीसी और सरकार को इस क्रीमी लेयर की पहचान के लिए मानदंड विकसित करने का निर्देश दिया गया.

सितंबर 1993 में केंद्र और राज्य सरकारों के सभी मंत्रियों के विभागों के बीच सिफारिशों को स्वीकर कर लिया गया और प्रसारित किया गया. इशमें ओबीसी समुदायों के लिए आरक्षण लाया गया था.

केंद्र सरकार के संस्थानों में ओबीसी आरक्षण के लिए सिफारिश अंततह 1992 में लागू की गई थी, जबकि शिक्षा कोटा 2006 में लागू हुआ था.

ये भी पढ़ें: आज केंद्र के खिलाफ हुंकार भरेंगे तेजस्वी, जातीय जनगणना पर आर-पार के मूड में RJD

ओबीसी के कल्याण पर एक संसदीय पैनल ने फरवरी 2019 की अपनी रिपोर्ट में उल्लेख किया था कि 1997 के बाद से आय मानदंडों के चार संशोधनों के बावजूद, ओबीसी के पक्ष में आरक्षित 27 प्रतिशत रिक्त पदों को नहीं भरा जा रहा था.

समिति ने कहा कि एक मार्च 2016 को केंद्र सरकार के पदों और सेवाओं में ओबीसी के प्रतिनिधित्व के संबंध में 78 मंत्रालयों और विभागों से प्राप्त आंकड़े केंद्र सरकार के मंत्रालयों में खराब ओबीसी अधिभोग स्तरों को दर्शाते हैं. अक्टूबर 2017 में नरेंद्र मोदी सरकार ने सेवानिवृत्त दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जी। रोहिणी की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया.

ओबीसी में 6,000 जातियों और समुदायों में से, केवल 40 ऐसे समुदायों ने केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश और सिविल सेवाओं में भर्ती के लिए आरक्षण लाभ का 50 प्रतिशत प्राप्त किया था. पैनल ने आगे पाया कि 20 प्रतिशत से अधिक ओबीसी समुदायों को 2014 से 2018 तक लाभ देने के लिए कोटा नहीं मिला.

बता दें कि सरकारी नौकरियों में आरक्षण के अलावा मंडल आयोग की जो प्रमुख सिफारिश थी. उनमें जमींदारी प्रथा को खत्म करने के लिए भूमि सुधार कानून लागू किया जाये क्योंकि पिछड़े वर्गों का सबसे बड़ा दुश्मन जमींदारी प्रथा थी. सरकार द्वारा अनुबंधित जमीन को न केवल ST/ST को दिया जाये बल्कि OBC को भी इसमें शामिल किया जाये.

इसके अलावा, केंद्र और राज्य सरकारों में OBC के हितों की सुरक्षा के लिए अलग मंत्रालय/विभाग बनाये जाये. केंद्र और राज्य सरकारों के अधीन चलने वाली वैज्ञानिक, तकनीकी तथा प्रोफेशनल शिक्षण संस्थानों में दाखिले के लिए OBC वर्गों के छात्र-छात्राओं के लिए 27 फीसदी आरक्षण लागू किया जाये.

साथ ही, ओबीसी की आबादी वाले क्षेत्रों में वयस्क शिक्षा केंद्र तथा पिछड़ें वर्गों के छात्र-छात्राओं के लिए आवासीय विद्यालय खोले जाए. ओबीसी छात्रों को रोजगार परक शिक्षा दी जाये.

फिलहाल, मंडल आयोग की सिफारिशों को देखें तो इसके सिर्फ दो बड़े बिंदुओं पर ही कुछ काम हुआ है. पहला, केंद्र सरकार की नौकरियों में ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण और दूसरा केंद्र सरकार के उच्च शिक्षा संस्थानों के एडमिशन में ओबीसी का 27 फीसदी आरक्षण. बाकी सिफारिशें धूल फांक रही हैं.

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