पटना: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (UP Assembly Elections) में इस बार बिहार की सियासी पार्टियां (Political Parties of Bihar) भी जोर आजमाइश कर रही है. हालांकि चुनाव से पहले जितने जोर-जोर से दावे किए जा रहे थे, उतनी शोर अब सुनाई नहीं पड़ रही है. कई दलों को तो सभी सीटों के लिए प्रत्याशी तक नहीं मिल पाए. बिहार में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार है और नीतीश कुमार के नेतृत्व में सरकार चल रही है. जेडीयू, वीआईपी और हम पार्टी एनडीए का हिस्सा है. यूपी चुनाव में तीनों पार्टियां बीजेपी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ना चाहती थी लेकिन बीजेपी ने बिहार के किसी भी सहयोगी को भाव नहीं दिया. जिससे जेडीयू और वीआईपी को काफी निराशा हाथ लगी.
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प्रत्याशी तक नहीं मिले: नाराज वीआईपी चीफ मुकेश सहनी (VIP Chief Mukesh Sahani) ने सभी सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया. जीतन राम मांझी के नेतृत्व वाली पार्टी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा ने भी चुनाव में दो-दो हाथ की बात कह दी. चिराग पासवान के नेतृत्व वाली पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने भी लंबे चौड़े दावे किए थे. उधर, जेडीयू बिहार से बाहर पार्टी का विस्तार चाहती है. लिहाजा उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी के साथ गठबंधन का जिम्मा केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह को सौंपा गया लेकिन गठबंधन को लेकर सहमति नहीं बनी और जेडीयू की ओर से 125 सीटों पर उम्मीदवार खड़े करने का दावा किया गया. हालांकि अब जबकि चुनाव आखिरी दौर में है तब तक जेडीयू ने पूरे उत्तर प्रदेश में मात्र 28 सीटों पर ही उम्मीदवार खड़े किए.
हम ने छोड़ा मैदान: बिहार सरकार के मंत्री मुकेश सहनी के नेतृत्व वाली वीआईपी ने फूलन देवी के नाम पर यूपी में राजनीतिक जमीन तलाशने की कोशिश की. उन्होंने सभी सीटों पर उम्मीदवार खड़े करने का दावा किया था लेकिन पूरे उत्तर प्रदेश में वीआईपी को 54 उम्मीदवार मिले. जीतनराम मांझी के नेतृत्व वाली पार्टी हम ने भी 25 से ज्यादा सीटों पर उम्मीदवार खड़े करने का दावा किया था लेकिन हम पार्टी ने अंतिम क्षणों में मैदान छोड़ दिया और पार्टी ने एक भी प्रत्याशी मैदान में नहीं उतारे. उधर, चिराग पासवान के नेतृत्व वाली एलजेपीआर ने उत्तर प्रदेश के ज्यादातर सीटों पर उम्मीदवार उतारने का फैसला लिया था लेकिन 100 सीटों पर चिराग पासवान उम्मीदवार खड़े किए.
दावे से उलट स्थिति: जेडीयू के मुख्य प्रवक्ता और पूर्व मंत्री नीरज कुमार ने कहा है कि हम पार्टी के विस्तार के लिए दूसरे राज्यों में चुनाव लड़ रहे हैं. केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह को गठबंधन के लिए जिम्मा सौंपा गया था लेकिन गठबंधन नहीं हो सका. उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश चुनाव का असर बिहार में गठबंधन पर नहीं पड़ेगा. वहीं, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रवक्ता चंदन कुमार ने कहा कि हमारे संस्थापक दिवंगत रामविलास पासवान ने उत्तर प्रदेश में संगठन को खड़ा किया है और हमने 100 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए हैं. हमें बेहतर नतीजे की उम्मीद है. उधर, हम पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता दानिश रिजवान ने कहा है कि हमने चुनाव लड़ने के लिए तैयारी जरूर की थी लेकिन उत्तर प्रदेश की स्थानीय इकाई ने चुनाव ना लड़ने का प्रस्ताव भेजा. लिहाजा हम लोगों ने उम्मीदवार नहीं खड़ा करने का फैसला लिया.
'बीजेपी ने आगे सहयोगी बौने': वहीं, वीआईपी पार्टी के अध्यक्ष मुकेश साहनी ने कहा कि मुझे उत्तर प्रदेश में इसलिए चुनाव लड़ना पड़ा कि निषाद पार्टी को आरक्षण नहीं दिया जा रहा है. उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रचार की कमान संभाल रहे पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता दिव्य ज्योति ने कहा कि उत्तर प्रदेश में मजबूती से चुनाव लड़ रहे हैं और हम वहां मजबूत उपस्थिति दर्ज कराएंगे. उधर, बीजेपी प्रवक्ता संतोष पाठक ने कहा है कि उत्तर प्रदेश में मोदी और योगी का जादू चल रहा है. योगी आदित्यनाथ की सरकार एक बार पिर बड़े मतों के अंतर से बनेगी. वीआईपी जैसी पार्टी को तो वहां उम्मीदवार भी नहीं मिले.
बीजेपी की बैसाखी नहीं मिली: बिहार के सियासी दलों की यूपी में वास्तविक स्थिति पर वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक कौशलेंद्र प्रियदर्शी का मानना है कि बिहार के राजनीतिक दल उत्तर प्रदेश में बीजेपी की बदौलत राजनीतिक जमीन मजबूत करना चाहते थे लेकिन बीजेपी ने उनसे गठबंधन नहीं किया और चुनाव खत्म होते-होते तस्वीर भी साफ होने लगी है. ज्यादातर राजनीतिक दलों को उत्तर प्रदेश में प्रत्याशी भी नहीं मिले.
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