ETV Bharat / state

बिहार दिवस: एक बिहारी की ईमानदारी की कहानी, जिसने बनाई दिलों में जगह

अपनी इंटरनल मेमोरी में सेव एक ऐसी घटना का जिक्र करना चाहती हूं, जो बिहारियों की ईमानदारी का जीता जागता नमूना पेश करती है.

कॉनसेप्ट इमेज
author img

By

Published : Mar 22, 2019, 11:11 AM IST

Updated : Mar 22, 2019, 11:30 AM IST

पटना: आज बिहार दिवस पूरे राज्य में धूम-धाम से मनाया जा रहा है. इस मौके पर सबसे पहले आप सभी को शुभकामनाएं. बिहार से मिलों दूर आज हैदराबाद में बिहार से जुड़ी कई खट्टी-मीठी यादें ताजा हों गईं, लेकिन एक ऐसी घटना जो मैं मरते दम तक नहीं भूल सकती, आज आप लोगों से शेयर कर रही हूं.

कभी न खत्म होने वाली यादें
बिहार की राजधानी पटना से सटे भोजपुर जिला मुख्यालय आरा में पूरा बचपन और जवानी गुजरी. इसी बीच कुछ साल राजधानी पटना में सहारा दैनिक अखबार से जुड़े होने के कारण बिताया. बिहार से जुड़ी कभी न खत्म होने वाली यादें आंखों के सामने घुमने लगती हैं. चाहे वो होली में दोस्तों के घर जा कर पूरी और कटहल की सब्जी का मज़ा लूटना हो या फिर दशहरे के दिन पंडालों में घूमना. रामनवमी का जुलूस हो या मुहर्रम का प्रोशेसन, दिवाली की मिठायां हों या फिर ईद की सेवंइयां बिहार में तकरिबन हर गांव और शहर में गंगा जमुनी तहज़ीब का नजारा देखने को मिल ही जाएगा.

सचमुच इमानदार हैं बिहारी
बहरहाल, इन सारी यादों के अलावा अपनी इंटरनल मेमोरी में सेव एक ऐसी घटना का जिक्र करना चाहती हूं, जो बिहारियों की ईमानदारी का जीता जागता नमूना पेश करती है. एक बिहारी की ईमानदारी से जुड़ी घटना का जिक्र करना इस लिए भी जरूरी समझती हूं क्योंकि आज कई राज्यों में चाहे वो महाराष्ट्र हो या असम या फिर राष्ट्रपिता गांधी की धरती गुजरात, सभी जगह बिहारियों की ईमानदारी और किरदार पर सवाल खड़े हो रहे हैं.

त्योहारों की थी सभों को खुशी
बात उन दिनों की है जब में छोटी थी, लेकिन इतनी छोटी नहीं की इस घटना को भूल जांऊ. दशहरा और दिवाली जैसे त्योहारों का महिना था. हर घर में त्योहारों की धूम थी. दूसरे बच्चों की तरह हमने भी अपने पापा से ढेर सारी मिठाइयां और खिलौने खरीदवाने का प्लान बना रखा था. मेरे पापा कोइलवर प्रखण्ड में शिक्षक के पद पर कार्यरत थे. उस समय बिहार में शिक्षकों को वेतन भी समय पर नहीं मिलता था. कमोबेश वो स्थिती आज भी है. त्योहार को देखते हुए सरकार ने बकाया वेतन देने का ऐलान किया था. घर में सभी खुश थे.

घर में छा गई थी मायूसी
इसी दौरान एक दिन पिता जी घर में आए और खामोशी के साथ सर झुकाए बैठ गए. माथे पर चिंता की लकीरें साफ दिख रही थीं. पापा ने खुद को कसूरवार समझते हुये धीरे से कहा मुझे मिली सारी सेलरी बैग समेत कहीं गिर गई. मुझे पता नहीं चला. फिर किया था घर में मायूसी छा गई. पिता जी उदास रहने लगे दिवाली का त्योहार गुजर गया. न खिलौने आए न पटाखे. दिन गुजरता गया.

अचानक दरवाजे पर हुई दस्तक
दिवाली के कुछ दिन बाद अचानक दरवाजे पर किसी ने नौक किया. पापा बाहर गए. एक शख्स सामने खड़ा था. उसने मेरे पापा का नाम लेते हुए कहा आप ताहिर हुसैन हैं? ये घर ताहिर हुसैन का है? पापा बोले हां, मैं ही हूं. उसने पूछा कि क्या कुछ दिन पहले आपका कोई बैग कहीं गिरा गया था. पापा चौंक गए और कहा हां गिरा तो था. फिर उसने कहा बैग में पड़े पासबुक के सहारे मैं यहां तक पहुंचा हूं. उसने पापा को बैग देते हुए कहा कि इसमें आपकी पूरी सैलरी है. पापा अश्चर्यचकित रह गए और उसे एक टक देखने लगे.

गर्व से कहती हूं कि "मैं बिहारी हूं"
बैग पापा के हवाले करते हुए वो शख्स बोलाये बैग मेरे बेटे को सड़क पर गिरा हुआ मिला था. दिवाली में बिजी रहने के कारण आने में देर हो गई. ये शख्स एक बिहारी था, जिसने हाथ आए हजारों रुपए उस इंसान तक पहुंचा दिया, जिसकी ये अमानत थी. उस शख्स की ईमानदारी की ये मिसाल हमारे दिल से कभी नहीं मीट सकती. आज बिहार दिवस पर में गर्व से कहती हूं की "मैं बिहारी हूं"

नोट- बिहार से जुड़ी मेरी यादें- 'अनजान'

पटना: आज बिहार दिवस पूरे राज्य में धूम-धाम से मनाया जा रहा है. इस मौके पर सबसे पहले आप सभी को शुभकामनाएं. बिहार से मिलों दूर आज हैदराबाद में बिहार से जुड़ी कई खट्टी-मीठी यादें ताजा हों गईं, लेकिन एक ऐसी घटना जो मैं मरते दम तक नहीं भूल सकती, आज आप लोगों से शेयर कर रही हूं.

कभी न खत्म होने वाली यादें
बिहार की राजधानी पटना से सटे भोजपुर जिला मुख्यालय आरा में पूरा बचपन और जवानी गुजरी. इसी बीच कुछ साल राजधानी पटना में सहारा दैनिक अखबार से जुड़े होने के कारण बिताया. बिहार से जुड़ी कभी न खत्म होने वाली यादें आंखों के सामने घुमने लगती हैं. चाहे वो होली में दोस्तों के घर जा कर पूरी और कटहल की सब्जी का मज़ा लूटना हो या फिर दशहरे के दिन पंडालों में घूमना. रामनवमी का जुलूस हो या मुहर्रम का प्रोशेसन, दिवाली की मिठायां हों या फिर ईद की सेवंइयां बिहार में तकरिबन हर गांव और शहर में गंगा जमुनी तहज़ीब का नजारा देखने को मिल ही जाएगा.

सचमुच इमानदार हैं बिहारी
बहरहाल, इन सारी यादों के अलावा अपनी इंटरनल मेमोरी में सेव एक ऐसी घटना का जिक्र करना चाहती हूं, जो बिहारियों की ईमानदारी का जीता जागता नमूना पेश करती है. एक बिहारी की ईमानदारी से जुड़ी घटना का जिक्र करना इस लिए भी जरूरी समझती हूं क्योंकि आज कई राज्यों में चाहे वो महाराष्ट्र हो या असम या फिर राष्ट्रपिता गांधी की धरती गुजरात, सभी जगह बिहारियों की ईमानदारी और किरदार पर सवाल खड़े हो रहे हैं.

त्योहारों की थी सभों को खुशी
बात उन दिनों की है जब में छोटी थी, लेकिन इतनी छोटी नहीं की इस घटना को भूल जांऊ. दशहरा और दिवाली जैसे त्योहारों का महिना था. हर घर में त्योहारों की धूम थी. दूसरे बच्चों की तरह हमने भी अपने पापा से ढेर सारी मिठाइयां और खिलौने खरीदवाने का प्लान बना रखा था. मेरे पापा कोइलवर प्रखण्ड में शिक्षक के पद पर कार्यरत थे. उस समय बिहार में शिक्षकों को वेतन भी समय पर नहीं मिलता था. कमोबेश वो स्थिती आज भी है. त्योहार को देखते हुए सरकार ने बकाया वेतन देने का ऐलान किया था. घर में सभी खुश थे.

घर में छा गई थी मायूसी
इसी दौरान एक दिन पिता जी घर में आए और खामोशी के साथ सर झुकाए बैठ गए. माथे पर चिंता की लकीरें साफ दिख रही थीं. पापा ने खुद को कसूरवार समझते हुये धीरे से कहा मुझे मिली सारी सेलरी बैग समेत कहीं गिर गई. मुझे पता नहीं चला. फिर किया था घर में मायूसी छा गई. पिता जी उदास रहने लगे दिवाली का त्योहार गुजर गया. न खिलौने आए न पटाखे. दिन गुजरता गया.

अचानक दरवाजे पर हुई दस्तक
दिवाली के कुछ दिन बाद अचानक दरवाजे पर किसी ने नौक किया. पापा बाहर गए. एक शख्स सामने खड़ा था. उसने मेरे पापा का नाम लेते हुए कहा आप ताहिर हुसैन हैं? ये घर ताहिर हुसैन का है? पापा बोले हां, मैं ही हूं. उसने पूछा कि क्या कुछ दिन पहले आपका कोई बैग कहीं गिरा गया था. पापा चौंक गए और कहा हां गिरा तो था. फिर उसने कहा बैग में पड़े पासबुक के सहारे मैं यहां तक पहुंचा हूं. उसने पापा को बैग देते हुए कहा कि इसमें आपकी पूरी सैलरी है. पापा अश्चर्यचकित रह गए और उसे एक टक देखने लगे.

गर्व से कहती हूं कि "मैं बिहारी हूं"
बैग पापा के हवाले करते हुए वो शख्स बोलाये बैग मेरे बेटे को सड़क पर गिरा हुआ मिला था. दिवाली में बिजी रहने के कारण आने में देर हो गई. ये शख्स एक बिहारी था, जिसने हाथ आए हजारों रुपए उस इंसान तक पहुंचा दिया, जिसकी ये अमानत थी. उस शख्स की ईमानदारी की ये मिसाल हमारे दिल से कभी नहीं मीट सकती. आज बिहार दिवस पर में गर्व से कहती हूं की "मैं बिहारी हूं"

नोट- बिहार से जुड़ी मेरी यादें- 'अनजान'

Intro:Body:

NITISH


Conclusion:
Last Updated : Mar 22, 2019, 11:30 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.