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जिस घोटाले के व्हीसल ब्लोअर थे CM नीतीश...उस सृजन घोटाले की कछुए की रफ्तार से जांच पर उठे सवाल

बिहार में सृजन घोटाला (Srijan Scam In Bihar) की जांच जारी है. अब तक कई लोगों को गिरफ्तार भी किया गया है लेकिन बड़ी मछलियां सीबीआई के शिकंजे से बाहर हैं. विशषेज्ञों का मानना है कि अगर जांच ठीक से हुई तो बीजेपी के कई लीडर और सीएम नीतीश कुमार भी रडार में आएंगे इसलिए जांच कछुए की रफ्तार से हो रही है. पढ़ें.

Srijan Scam In Bihar
Srijan Scam In Bihar
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Published : Oct 16, 2022, 3:03 PM IST

पटना: 5 साल पहले हुए एक घोटाले ने बिहार की राजनीति (Politics Of Bihar ) में भूचाल ला दिया था. राजनेता, आईएएस, आईपीएस और बैंक कर्मियों की मिलीभगत से बिहार को करोड़ों रुपए का चूना लगाया गया था. मामले की जांच का जिम्मा सीबीआई को सौंपा गया लेकिन अब भी बड़ी मछलियां जांच एजेंसियों की गिरफ्त (Slow Investigation Of Srijan Scam) से बाहर हैं.

पढ़ें- सृजन घोटाला : ईडी ने 14.32 करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त की

नीतीश कुमार ने घोटाले को लेकर दिए थे संकेत: पशुपालन घोटाला के बाद बिहार में सृजन घोटाला सबसे चर्चित घोटाला था. सृजन घोटाले का जब खुलासा हुआ था तो उस समय घोटाले की राशि 750 करोड़ रुपये निकलकर सामने आई थी लेकिन धीरे-धीरे यह बढ़कर 2000 करोड़ से अधिक का हो गया. अगस्त 2017 में मामले का पर्दाफाश हुआ. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar On Srijan Scam ) ने दावा किया था कि घोटाले का व्हीसल ब्लोअर वह खुद ही हैं. आनन-फानन में हेलीकॉप्टर के जरिए आर्थिक अपराध इकाई की टीम को डीएसपी गंगवार के नेतृत्व में भागलपुर भेजा गया.

सीएम नीतीश ने कही थी ये बात: दरअसल नीतीश कुमार ज्ञान भवन में एक कार्यक्रम में हिस्सा ले रहे थे. कार्यक्रम के दौरान ही मुख्यमंत्री ने कहा था कि बिहार में एक बड़े मामले का पर्दाफाश होने वाला है. पत्रकारों को मुख्यमंत्री ने संकेत दिया था कि आप लोग अपने स्तर से पता करिए. वाकया अगस्त 2017 का है, जब भागलपुर के जिलाधिकारी आदेश तितरमारे ने बैंक चेक पर हस्ताक्षर किए लेकिन जब चेक बैंक गया तो चेक को यह कहकर लौटा दिया गया कि खाते में पर्याप्त पैसे नहीं हैं.

क्या है सृजन घोटाला: चेक सरकारी खाते का था. चेक लौटने के बाद भागलपुर से लेकर पटना तक हड़कंप मच गया. भागलपुर के जिलाधिकारी ने जांच कमेटी बनाई जांच में यह बात सामने आई कि इंडियन बैंक और बैंक ऑफ बड़ौदा के सरकारी खातों में पैसे नहीं हैं. सूचना मुख्यमंत्री सचिवालय को भी दी गई. धीरे-धीरे घोटाले की परतें खुलने शुरू हुई और जांच में यह बात सामने आयी कि कई सरकारी विभागों की रकम सीधे विभागीय खातों में ना जाकर वहां से निकालकर सृजन महिला विकास सहयोग समिति नाम के एनजीओ के 6 खातों में ट्रांसफर कर दिया जाता था.

कैसे हुआ था सृजन घोटाला? : रुपयों को ट्रांसफर करने के बाद इस एनजीओ के कर्ताधर्ता जिला प्रशासन और बैंक अधिकारियों की मिलीभगत से सरकारी पैसों की हेराफेरी करते थे. दिवंगत मनोरमा देवी एनजीओ की संचालक थीं. घोटाले को अंजाम देने का ढंग भी अपने आप में अनूठा था. फर्जी सॉफ्टवेयर बनाकर पासबुक को अपडेट किया जाता था. उसी सॉफ्टवेयर से बैंक स्टेटमेंट निकाला जाता था. फर्जी स्टेटमेंट बिल्कुल वैसा ही होता था जैसा किसी सरकारी विभाग के इस्तेमाल और खर्च का होता है.

अनोखे अंदाज में 2000 करोड़ से ज्यादा का स्कैम: खास बात यह थी कि फर्जी सॉफ्टवेयर के जरिए ही इस राशि का ऑडिट भी करवा दिया जाता था. जांचकर्ताओं का कहना है कि एनजीओ ने धोखाधड़ी से बैंकों से चेक बुक खरीदा था और अपने पक्ष में चेक जारी करने के लिए जिला मजिस्ट्रेट के जाली हस्ताक्षर करता था, जिससे बड़ी धनराशि ट्रांसफर की जाती थी. सृजन घोटाला मामले में 10 एफआईआर दर्ज हुए जिसमें 9 भागलपुर में और एक सहरसा जिले में दर्ज किया गया. घोटाला 2004 से ही चल रहा था. मुख्य रूप से भू अर्जन विभाग की राशि के साथ हेरा फेरी की बात सामने आई थी. बाद में जांच के दौरान 10 विभागों की राशि हेरा फेरी का मामला सामने आया.

एनजीओ की संस्थापक की मौत के बाद मामले का हुआ पर्दाफाश: दरअसल एनजीओ की संस्थापक मनोरमा देवी की फरवरी 2017 को मौत हो गई. फिर परिवार में मतभेद उभर कर सामने आया. जिन लोगों ने एनजीओ से अवैध रूप से पैसे लिए थे, वह भुगतान में लापरवाही करने लगे और एनजीओ वित्तीय संकट में आ गया. 3 अगस्त 2017 को खाते में पर्याप्त धनराशि नहीं रहने के कारण 10.32 करोड़ रुपए की सरकारी चेक बाउंस हो गया जिससे घोटाला का खुलासा हुआ.

सृजन पर संग्राम: घोटाले के खुलासे के बाद बिहार में सियासी संग्राम मच गया. विपक्षी दलों ने नीतीश सरकार पर हमला बोल दिया. सदन के अंदर और सदन के बाहर सिर्फ सृजन घोटाले की ही गूंज थी. चौतरफा दबाव के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जांच का जिम्मा सीबीआई को सौंप दिया. सृजन घोटाला एक ऐसा घोटाला था जिसमें एनजीओ, आईएएस, आईपीएस, राजनेता, बैंक कर्मी और कई सफेदपोश की संलिप्तता थी.

सीबीआई की गिरफ्त से बाहर कई सफेदपोश: सीबीआई जांच में आईएएस आईपीएस और राजनेताओं की संलिप्तता सामने आई है लेकिन बड़ी मछलियों को अब तक गिरफ्तार नहीं किया जा सका है. हां इस मामले में बैंक के अधिकारी भू अर्जन पदाधिकारी जरूर गिरफ्तार किए गए हैं. सृजन घोटाला की जांच पिछले 5 साल से चल रही है लेकिन अब तक आईएएस आईपीएस और राजनेताओं को गिरफ्तार नहीं किया जा सका है.

"सृजन घोटाला बिहार के इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला है. इसमें सफेदपोशों ने लूट मचाई थी. इसके जांच नहीं होने के कई कारण है. अगर ईमानदारी से जांच हो तो केंद्र तक इसकी आंच जाएगी. सृजन घोटाला मामले में सरकार में बैठे लोगों की संलिप्तता है. जांच की आंच मुख्यमंत्री तक जा सकती है क्योंकि कई दलों के लोग इसमें संलिप्त हैं इसलिए कार्रवाई की रफ्तार धीमी है."- अमिताभ कुमार दास, पूर्व आईपीएस

"सृजन घोटाले ने बिहार के राजकोष को बड़ी क्षति पहुंचाई है. भले ही मामले की जांच सीबीआई कर रही हो लेकिन जांच की प्रक्रिया धीमी है. असल में जो लोग दोषी हैं उन तक जांच एजेंसियां नहीं पहुंच रही है."- अरविंद कुमार,वरिष्ठ अधिवक्ता

"सृजन घोटाले ने बिहार की छवि को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर धूमिल करने का काम किया है. पशुपालन घोटाला के बाद सृजन सबसे चर्चित घोटाला था. आईएएस आईपीएस और राजनेताओं पर कार्रवाई नहीं होने से आम लोगों में निराशा है और वह ठगा महसूस कर रहे हैं."- डॉ संजय कुमार,सामाजिक कार्यकर्ता

पटना: 5 साल पहले हुए एक घोटाले ने बिहार की राजनीति (Politics Of Bihar ) में भूचाल ला दिया था. राजनेता, आईएएस, आईपीएस और बैंक कर्मियों की मिलीभगत से बिहार को करोड़ों रुपए का चूना लगाया गया था. मामले की जांच का जिम्मा सीबीआई को सौंपा गया लेकिन अब भी बड़ी मछलियां जांच एजेंसियों की गिरफ्त (Slow Investigation Of Srijan Scam) से बाहर हैं.

पढ़ें- सृजन घोटाला : ईडी ने 14.32 करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त की

नीतीश कुमार ने घोटाले को लेकर दिए थे संकेत: पशुपालन घोटाला के बाद बिहार में सृजन घोटाला सबसे चर्चित घोटाला था. सृजन घोटाले का जब खुलासा हुआ था तो उस समय घोटाले की राशि 750 करोड़ रुपये निकलकर सामने आई थी लेकिन धीरे-धीरे यह बढ़कर 2000 करोड़ से अधिक का हो गया. अगस्त 2017 में मामले का पर्दाफाश हुआ. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar On Srijan Scam ) ने दावा किया था कि घोटाले का व्हीसल ब्लोअर वह खुद ही हैं. आनन-फानन में हेलीकॉप्टर के जरिए आर्थिक अपराध इकाई की टीम को डीएसपी गंगवार के नेतृत्व में भागलपुर भेजा गया.

सीएम नीतीश ने कही थी ये बात: दरअसल नीतीश कुमार ज्ञान भवन में एक कार्यक्रम में हिस्सा ले रहे थे. कार्यक्रम के दौरान ही मुख्यमंत्री ने कहा था कि बिहार में एक बड़े मामले का पर्दाफाश होने वाला है. पत्रकारों को मुख्यमंत्री ने संकेत दिया था कि आप लोग अपने स्तर से पता करिए. वाकया अगस्त 2017 का है, जब भागलपुर के जिलाधिकारी आदेश तितरमारे ने बैंक चेक पर हस्ताक्षर किए लेकिन जब चेक बैंक गया तो चेक को यह कहकर लौटा दिया गया कि खाते में पर्याप्त पैसे नहीं हैं.

क्या है सृजन घोटाला: चेक सरकारी खाते का था. चेक लौटने के बाद भागलपुर से लेकर पटना तक हड़कंप मच गया. भागलपुर के जिलाधिकारी ने जांच कमेटी बनाई जांच में यह बात सामने आई कि इंडियन बैंक और बैंक ऑफ बड़ौदा के सरकारी खातों में पैसे नहीं हैं. सूचना मुख्यमंत्री सचिवालय को भी दी गई. धीरे-धीरे घोटाले की परतें खुलने शुरू हुई और जांच में यह बात सामने आयी कि कई सरकारी विभागों की रकम सीधे विभागीय खातों में ना जाकर वहां से निकालकर सृजन महिला विकास सहयोग समिति नाम के एनजीओ के 6 खातों में ट्रांसफर कर दिया जाता था.

कैसे हुआ था सृजन घोटाला? : रुपयों को ट्रांसफर करने के बाद इस एनजीओ के कर्ताधर्ता जिला प्रशासन और बैंक अधिकारियों की मिलीभगत से सरकारी पैसों की हेराफेरी करते थे. दिवंगत मनोरमा देवी एनजीओ की संचालक थीं. घोटाले को अंजाम देने का ढंग भी अपने आप में अनूठा था. फर्जी सॉफ्टवेयर बनाकर पासबुक को अपडेट किया जाता था. उसी सॉफ्टवेयर से बैंक स्टेटमेंट निकाला जाता था. फर्जी स्टेटमेंट बिल्कुल वैसा ही होता था जैसा किसी सरकारी विभाग के इस्तेमाल और खर्च का होता है.

अनोखे अंदाज में 2000 करोड़ से ज्यादा का स्कैम: खास बात यह थी कि फर्जी सॉफ्टवेयर के जरिए ही इस राशि का ऑडिट भी करवा दिया जाता था. जांचकर्ताओं का कहना है कि एनजीओ ने धोखाधड़ी से बैंकों से चेक बुक खरीदा था और अपने पक्ष में चेक जारी करने के लिए जिला मजिस्ट्रेट के जाली हस्ताक्षर करता था, जिससे बड़ी धनराशि ट्रांसफर की जाती थी. सृजन घोटाला मामले में 10 एफआईआर दर्ज हुए जिसमें 9 भागलपुर में और एक सहरसा जिले में दर्ज किया गया. घोटाला 2004 से ही चल रहा था. मुख्य रूप से भू अर्जन विभाग की राशि के साथ हेरा फेरी की बात सामने आई थी. बाद में जांच के दौरान 10 विभागों की राशि हेरा फेरी का मामला सामने आया.

एनजीओ की संस्थापक की मौत के बाद मामले का हुआ पर्दाफाश: दरअसल एनजीओ की संस्थापक मनोरमा देवी की फरवरी 2017 को मौत हो गई. फिर परिवार में मतभेद उभर कर सामने आया. जिन लोगों ने एनजीओ से अवैध रूप से पैसे लिए थे, वह भुगतान में लापरवाही करने लगे और एनजीओ वित्तीय संकट में आ गया. 3 अगस्त 2017 को खाते में पर्याप्त धनराशि नहीं रहने के कारण 10.32 करोड़ रुपए की सरकारी चेक बाउंस हो गया जिससे घोटाला का खुलासा हुआ.

सृजन पर संग्राम: घोटाले के खुलासे के बाद बिहार में सियासी संग्राम मच गया. विपक्षी दलों ने नीतीश सरकार पर हमला बोल दिया. सदन के अंदर और सदन के बाहर सिर्फ सृजन घोटाले की ही गूंज थी. चौतरफा दबाव के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जांच का जिम्मा सीबीआई को सौंप दिया. सृजन घोटाला एक ऐसा घोटाला था जिसमें एनजीओ, आईएएस, आईपीएस, राजनेता, बैंक कर्मी और कई सफेदपोश की संलिप्तता थी.

सीबीआई की गिरफ्त से बाहर कई सफेदपोश: सीबीआई जांच में आईएएस आईपीएस और राजनेताओं की संलिप्तता सामने आई है लेकिन बड़ी मछलियों को अब तक गिरफ्तार नहीं किया जा सका है. हां इस मामले में बैंक के अधिकारी भू अर्जन पदाधिकारी जरूर गिरफ्तार किए गए हैं. सृजन घोटाला की जांच पिछले 5 साल से चल रही है लेकिन अब तक आईएएस आईपीएस और राजनेताओं को गिरफ्तार नहीं किया जा सका है.

"सृजन घोटाला बिहार के इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला है. इसमें सफेदपोशों ने लूट मचाई थी. इसके जांच नहीं होने के कई कारण है. अगर ईमानदारी से जांच हो तो केंद्र तक इसकी आंच जाएगी. सृजन घोटाला मामले में सरकार में बैठे लोगों की संलिप्तता है. जांच की आंच मुख्यमंत्री तक जा सकती है क्योंकि कई दलों के लोग इसमें संलिप्त हैं इसलिए कार्रवाई की रफ्तार धीमी है."- अमिताभ कुमार दास, पूर्व आईपीएस

"सृजन घोटाले ने बिहार के राजकोष को बड़ी क्षति पहुंचाई है. भले ही मामले की जांच सीबीआई कर रही हो लेकिन जांच की प्रक्रिया धीमी है. असल में जो लोग दोषी हैं उन तक जांच एजेंसियां नहीं पहुंच रही है."- अरविंद कुमार,वरिष्ठ अधिवक्ता

"सृजन घोटाले ने बिहार की छवि को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर धूमिल करने का काम किया है. पशुपालन घोटाला के बाद सृजन सबसे चर्चित घोटाला था. आईएएस आईपीएस और राजनेताओं पर कार्रवाई नहीं होने से आम लोगों में निराशा है और वह ठगा महसूस कर रहे हैं."- डॉ संजय कुमार,सामाजिक कार्यकर्ता

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